Books - गायत्री साधना की उपलब्धियाँ
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गायत्री साधना की उपलब्धियाँ
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गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ,
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। देवियो! भाइयो!!
गायत्री मंत्र की महिमा के बारे में कि इस मंत्र से क्या लाभ हो सकता है? इसके बारे में अथर्ववेद की एक बहुत अच्छी साक्षी आती है। अथर्ववेद के गवाह से अच्छा कोई और गवाह चाहिए क्या? नहीं, बेटे! इससे अच्छा गवाह नहीं मिलता। इसमें यह बताया गया है कि सात लाभ जो इसके भीतर हैं, इन सात लाभों में से पाँच भौतिक हैं और दो आध्यात्मिक। सात लाभ हैं गायत्री मंत्र के। गायत्री के सात विद्यार्थी हैं। सात विद्यार्थियों को सात ?इष भी कहा गया है। लाभों में, पाँच सांसारिक हैं और दो आध्यात्मिक हैं। दोनों को मिला देने से सात लाभ मिल जाते हैं और मनुष्य के जीवन की प्रगति की समस्त आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं। कौन- कौन सी हैं? आप में से अधिकांश लोगों को वह मंत्र शायद याद होगा। यदि नहीं याद हो तो आप फिर समझ सकते हैं और इसे याद कर सकते हैं। यह मंत्र है-
'' स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्ताम्, पावमानी द्विजानाम्। आयु: प्राण प्रजां पशु कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यम् दत्त्वा ब्रजतम् ब्रह्मलोकम्।। '' गायत्री के पाँच मुख बताए गए हैं। पाँच भौतिक लाभ हैं? क्या क्या हैं, भौतिक लाभ? भौतिक लाभों में बताया गया है, आयु: आदमी का दीर्घजीवन। आदमी गायत्री उपासना से दीर्घजीवी बन सकते हैं तो क्या साहब यह ठीक है ?? क्या यह कोई दवा है ?? क्या यह कोई कायाकल्प है लंबी जिंदगी का ?? इसमें जादू है या कोई दवा है। केवल एक ही जादू की जरूरत है और जिसके शिक्षण का नाम है- संयम। अगर आपके जीवन में संयम आ जाए तब, निश्चित रूप से आप नीरोग भी रह सकते हैं और दीर्घजीवी भी हो सकते हैं। दीर्घजीवन तो हमने बिगाड़ा है। अल्प आयु और बीमारियाँ तो हमने खरीदी हैं। ये खरीदी नहीं बुलाई गई हैं।जल्दी मौत हमने बुलाई है और बीमारी को भी हमने बुलाया है। सृष्टि के किसी जानवर के पास बीमारियों नहीं आतीं। सब आदमी, सब जानवर पैदा तो होते है, जवान भी होते हैं, बुड्ढे भी होते हैं और समय आता है तो मौत के मुँह में भी चले जाते हैं, पर बीमारियों का जैसा हमला मनुष्य पर होता है, वैसा किसी प्राणी के ऊपर नहीं होता। क्या वजह है बता दीजिए। भाई साहब, कोई वजह नहीं है, केवल एक ही वजह है कि दूसरे प्राणी प्रकृति की प्रेरणा से संयमशील जीवन जीते हैं, मर्यादाओं में रहते हैं, कायदा -कानून मानते हैं, प्रकृति की आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं करते और आदमी पग पग पर उल्लंघन करता रहता है और असंयम बरतता रहता है। हकीम लुकमान ये कहते थे कि आदमी अपने मरने के लिए कब्र खोदता रहता है, जबान की नोंक से। जीभ की ओर इशारा उनका असंयम से था, जो हमारे प्रत्येक हिस्से में समाया रहता है!
गायत्री मंत्र का जप करने का उद्देश्य है आदमी के विचारों में और आदमी के चिंतन में हेर -फेर होना चाहिए। आदमी का व्यक्तित्व और आदमी का चिंतन परिष्कृत होना चाहिए। अगर ऐसा हो गया है, तब आपको लाभ मिल जाएगा। चाहे सांसारिक हो, चाहे आध्यात्मिक हो। अगर आपके जीवन में हेर फेर नहीं हुआ तो कुछ लाभ नहीं मिलेगा।
अगर आपके जीवन में गायत्री उपासना ने कोई हेर- फेर उत्पन्न नहीं किया है, अगर आपको कोई प्रकाश नहीं दिया है तो आपका जीवन जैसा सामान्य मनुष्यों का घिनौना और पिछड़ा हुआ होता है, उसी स्तर का घिनौना और पिछड़ा जीवन होगा तो मैं आपसे कहता हूँ कोई भी मंत्र जिसमें गायत्री भी शामिल है, जिसमें रामायण भी शामिल है, जिसमें गीता भी शामिल है, आपके लिए कोई खास फायदा पैदा नहीं कर सकते। गायत्री मंत्र जब शरीर में प्रवेश करता है तो किस रूप में आता है? वह संयम के रूप में आता है। आदमी संयमी होता है। जब संयमी होता है तो संयमी होने के पश्चात मैं दीर्घजीवी हो जाता है। बहुत दिन जिंदा रहता नीरोग रहता है।
गायत्री का दूसरा सबसे बड़ा जो गुण है, जिसके ऊपर गायत्री शब्द ही रखा गया है- '' गय ''। गायत्री किसे कहते हैं?' गय '' कहते हैं प्राण को संस्कृत में। प्राण को मजबूत बनाने वाली, प्राण को ताकत देने वाली, प्राण का त्राण करने वाले को गायत्री मंत्र कहते हैं। प्राण किसे कहते हैं? प्राण कहते हैं, बेटे! हिम्मत को, प्राण कहते हैं, जीवट को और प्राण कहते हैं, साहस को। दुनिया में जितने भी उन्नतिशील लोग हुए हैं, सब आदमियों के पास और कोई गुण रहा हो, चाहे नहीं रहा हो, विद्या रही हो, चाहे नहीं रही हो, शारीरिक बल रहा हो, चाहे नहीं रहा हो, पर एक चीज जरूर रही है- अच्छे कामों के लिए साहस। बुरे कामों के लिए नहीं, बुरे कामों के लिए तो डाकुओं के पास भी होता है। चोरों के पास भी होता है। उचक्के और बेईमान और बदमाशों के पास भी होता है। उस साहस का हवाला नहीं दे रहा मैं। प्राण उसकी नीयत से नहीं आता, प्राण सिर्फ अच्छे कामों के लिए आता है। अच्छे कामों के लिए हिम्मत की जरूरत होती है और आदमी उसी हिम्मत के आधार पर बढ़ते हुए चले जाते हैं। सफलता के द्वार हर एक के लिए खुले हुए हैं। लेकिन उसमें प्रवेश करना केवल उन लोगों का काम है, जो बहादुर हैं, जो हिम्मत वाले हैं, लड़ाकू हैं, जिनके अंदर जीवट है, जिनके अंदर साहस है। जीवट, साहस, हिम्मत ये सब हमारे मन: क्षेत्र की क्षमताएँ हैं। हम कैसे जानें गायत्री मंत्र आपके पास आया कि नहीं? हम कैसे जानें कि गायत्री की फिलॉसफी का आपने अध्ययन किया कि नहीं किया? हम कैसे मानें कि आपका अनुष्ठान सही हुआ है कि नहीं हुआ है? हमको इन्हीं दो बातों से मानना पड़ेगा। आपको बुखार है कि नहीं, हम कैसे जाने ?बुखार जानने का एक ही तरीका है कि आपका शरीर गरम होना चाहिए तो हम मान लेंगे कि आपको बुखार है।
गायत्री मंत्र की उपासना वास्तव में आपने की है कि नहीं, इसकी परख करनी हो तो आपके मन: क्षेत्र में हमको एक ही जानकारी प्राप्त करनी पड़ेगी कि आपके भीतर जीवट और हिम्मत है कि नहीं। हिम्मत के अभाव में, शरीर की ताकत के अभाव में आदमी को चलना फिरना तक मुश्किल पड़ जाता है, खड़ा होना मुश्किल पड़ जाता है और भीतर वाले हिस्से को, हिम्मत को जिसको हम प्राण कहते हैं, उस प्राण के अभाव में आदमी छोटे- संकल्पों तक को पूरा नहीं कर पाता है। गायत्री मंत्र का जप करेंगे, अमुक काम करेंगे, बीड़ी पीना बंद करेंगे, जल्दी उठा करेंगे, अरे साहब दो- चार दिन तो हुआ फिर न हो सका। क्यों साहब, क्यों नहीं हो सका? अरे साहब ताकत नहीं है? उठे तो सही, पर ताकत नहीं है, गिर पड़े भट से जमीन पर। इसको अंदर की जीवट कहते हैं, इसको संकल्पशक्ति कहते हैं। इसको इच्छाशक्ति कहते हैं, '' विल पावर '' कहते हैं और बहुत से नाम हो सकते हैं, जिसे हम जीवट कहते हैं, वह हमारे मन:क्षेत्र में प्रवेश करती है। गायत्री जीवट के रूप में आती है और जीवट के रूप में आ जाए तो छोटे- छोटे बिना ताकत के आदमी न जाने दुनिया में क्या से क्या कर सकते हैं? '' आयु:, प्राण, प्रजाम् '' गायत्री उपासना के प्रतिफल हैं- प्रजामू है। आप गायत्री मंत्र का जप करेंगे तो आपके बच्चे पैदा हो जाएँगे। नहीं बेटे! आपके बच्चे तो पैदा नहीं हो जाएँगे, लेकिन आपको '' '' प्रजां '' '' शब्द जो आया है, उसे समझना चाहिए। यह केवल बच्चे के अर्थ मैं नहीं आया है। प्रजा कहते हैं- पीछे चलने वालों को और सहायता करने वालों को। पीछे चलने वालों का स्तर, साथियों का स्तर, ये प्रजा कहलाती है। गांधीजी की प्रजा का नाम बताइए ?? गांधीजी की प्रजा का नाम, गांधीजी के बेटो का नाम, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल राजेन्द्र बाबू सुभाषचंद्र बोस, पट्टाभिसीतारमैया। अभी और बताइए? अभी और बताता हूँ। अभी याद कर लेने दीजिए- डॉ ० राधाकृष्णन, जाकिर हुसैन। अभी और बताइए अभी और बताएँगे। ये कौन हैं? ये उनकी संतान हैं। संतान क्या होती है? संतान औरत के पेट से पैदा होने वाले बच्चे को नहीं कहते हैं। संतानें उन्हें कहते हैं जों पीछे बन ला क रत हैं। गोत्र जो चले हैं। दो आधार पर चले हैं एक तो वंश परंपरा से गोत्र चला है और एक शिष्य परंपरा से गोत्र चला है।
अपनी संतान हो, चाहे पराई हो। स्तर और क्वालिटी, संख्या नहीं, क्वांटिटी नहीं, क्वालिटी की बात कहता हूँ। संख्या की दृष्टि से तो कुत्ते, बिल्ली ज्यादा संतान पैदा करते हैं। यदि संख्या को भगवान की कृपा माना जाता तो मैं कहता हूँ कि भगवान सूअरों के ऊपर सबसे ज्यादा प्रसन्न होता है। एक- एक बार में सूअरिया बारह- बारह बच्चे देती है और साल भर में २४ बच्चे दे देती है। सारी जिंदगी में मान लो दस साल सूअरिया जिंदा रही, तो ढाई सौ बच्चे दे दिए। सबसे ज्यादा कृपा है। ये संतान नहीं है, क्वालिटी की बात, मैं कह रहा हूँ। क्वालिटी की बात कैसे हो सकती है? क्वालिटी की बात वहाँ हो सकती है, जहाँ कि माता और पिता अपने जीवन को और चरित्र को इस ढंग से बनाते हैं। जहाँ ठप्पा ढाँचा ढलता हुआ चला जाता है। ढाँचे और ठप्पे में जैसे मिट्टी लगाते हैं वैसे ही बनते हुए चले जाते हैं। अभिभावक अगर अपने स्तर को और क्वालिटी को बना सकने में समर्थ हो तो उनकी संतानें, प्रजा भी इम तरीके की बन सकती है।
गायत्री मंत्र के बारे में कहा गया है कि ये प्रजा दिया करती हैं और चौथी क्या चीज देती है? चौथी चीज देती है- आदमी को कीर्तिं। कीर्तिं और ख्याति में फर्क है, आप ध्यान रखना। ख्याति क्या होती है? ख्याति वो होती है, जो पैसा देकर खरीदी जा सके। ख्याति पैसा देकर खरीदी जा सकती है, पर कीर्ति पैसा देकर खरीदी नहीं जा सकती हैं। कीर्ति शब्द आया है ख्याति शब्द नहीं आया हें इसमें। जिस गायत्री मंत्र की आप उपासना करते हैं, यह बीज मंत्र हमारी संस्कृति का मूल है। अगर आपने उपासना की है तो आपको जानना चाहिए कि आपने उपासना की है कि नहीं की है। आपकी कीर्ति होती है कि नहीं। कीर्ति किसे कहते हैं? कीर्ति बेटे! इसे कहते हैं कि जो आदमी अपने व्यक्तिगत जीवन में प्रामाणिक होता है, उस प्रामाणिक आदमी पर दूसरे लोग भी विश्वास करते हैं और जिस आदमी का विश्वास किया जाता है, उस आदमी का करते हैं, सहयोग और सहयोग जिस आदमी का किया जाता है, वह आदमी होता है संपन्न। चार सीढ़ियाँ हैं संपन्न बनने की। आप जहाँ कहीं भी चले जाइए, दुनिया में बढ़िया से बढ़िया प्रामाणिक व्यक्ति हर क्षेत्र में हुए हैं। चाहें तो सामाजिक क्षेत्र में नेता हुआ हो या कोई आदमी महापुरुष हुआ हो अथवा व्यापारिक क्षेत्र में कोई आदमी संपन्न आदमी हुआ हो। बहरहाल टिकाऊ उन्नति केवल उसी के हिस्से में आई है, जिसने अपने आपको प्रामाणिक सिद्ध कर दिया। हम सही हैं और ईमानदार हैं। जो वायदा करते हैं, उसको पूरा करते हैं और जो हमारा वचन है, वह गलत नहीं हो सकता, जिसने अपने आपको इस तरह से प्रामाणिक साबित कर दिया उस प्रामाणिक आदमी के बारे में लोगों ने विश्वास किया, भरोसा किया।
गायत्री मंत्र कीर्ति कैसे प्रदान करता है? कीर्ति उसे कहते हैं, जिससे आदमी को गर्व हो सकता है। हमने जिंदगी इस तरह से बिताई कि जिससे हमको गर्व और संतोष है। दुनिया ने जिस आदमी की प्रशंसा की उस आदमी को भी संतोष हो सकता है। प्रशंसा के लिए कितना प्यासा है, आदमी, कहाँ से कहाँ मारा- मारा डोलता है? प्रशंसा के लिए जाने क्या- क्या करता है? कोई कपड़े पहनता है कोई फैशन बनाता है, कोई मकान बनाता है, कोई विवाह- शादियों में धूम - धड़ाका मचाता है, कोई विज्ञापन करता है, कोई अपने नाम के पत्थर लगवाता है। जाने कितने खेल- खिलौने करता है आदमी। लेकिन इस ख्याति के लिए आपको सारे के सारे चमत्कार और खेल- खिलौने करने की जरूरत नहीं हैं। गायत्री मंत्र अगर हमारे भीतर आएगा तो हमारे भीतर वह प्रामाणिकता पैदा होगी जो निश्चित रूप से हमको कीर्ति देने में समर्थ होगी और अगर आप कीर्तिवान हैं तो आप सफल और संपन्न भी होकर रहेंगे। मित्रो! '' आयु:, प्राणं, प्रजाम् पशुं कीर्तिम् '' के बाद '' द्रविणं '' अर्थात धन के बारे में भी मैं आपसे कह चुका हूँ कि धन की मात्रा कोई एक वस्तु नहीं है। आपका यह ख्याल हो कि धन की मात्रा का बड़ा होना ही कोई बड़ा सौभाग्य है तो मात्रा का बड़ा होना ही सौभाग्य नहीं है धन का उपयोग करना चाहिए। धन का उपभोग नहीं, उपयोग। थोड़े से पैसे जिन लोगों के पास है, उन लोगों ने दुनिया में इस बढ़िया तरीके से धन का उपयोग कर दिखाया कि लखपति, करोड़ पति, अरबपति और खरबपति भी वह लाभ नहीं उठा सकते जो उन लोगों ने थोड़े से पैसे का सही इस्तेमाल करके उपयोग कर लिया है। धन की समस्या, आर्थिक समस्या तीन बातों पर टिकी हुई है। एक आदमी मशक्कत करता हो, मेहनती हो, जो आदमी मेहनती नहीं है, वह सारी जिंदगी भर दरिद्र रहेगा। दरिद्रता क्या है? दरिद्रता का मूल है- आलस। आलस की मूल है- दरिद्रता। दरिद्रता और आलस दोनों आपस में जुड़े हुए हैं। आदमी अगर मशक्कत नहीं करेगा तो गरीब रहेगा और आदमी के अंदर अगर ये महत्त्वाकांक्षा नहीं होगी कि हम अपनी योग्यताओं को बढ़ाएँ तो वह जहाँ जमकर बैठ गया है वहीं बैठा रहेगा। वह यही रोना रोता रहेगा कि हमारे माँ- बाप ने पाँचवाँ दरजा पास करा दिया था साहब, हमारे कर्म में इससे ज्यादा विद्या नहीं लिखी है। पाँचवें दरजे तक पढ़ाकर बाप मर गया और फिर हमने स्कूल छोड़ दिया। फिर क्यों नहीं पड़ा? फिर क्या पढ़ते, जब हमारा बाप मर गया। आदमी को हर दिन जिस तरह से रोटी कमाते हैं, उसी तरह से अपनी ज्ञान, योग्यता और क्षमता का संवर्द्धन करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। विदेशों में आप जाकर देखिए वहाँ नाइट स्कूल चलते हैं। आदमी नौकरी भी करते हैं और रात में अपनी योग्यता भी बढ़ाते हैं। शनिवार- इतवार के दो दिन के स्कूल सारी दुनिया में चलते हैं। अमेरिका में जितने विद्यार्थी सबेरे की स्कूल में पढ़ते हैं उससे दूने विद्यार्थी शनिवार- इतवार के स्कूल में पढ़ते हैं। काम करते जाते हैं और बराबर पढ़ते जाते हैं, चाहे वे बुड्ढे हों, चाहे जवान हों, बराबर पढ़ने जाते है, योग्यता बढ़ाते जाते हैं और सुसंपन्नता कमाते हैं। योग्यता बढ़ाते नहीं और कहते हैं कि पैसा दे दें। कहाँ से पैसा दे दें। योग्यता लिए बैठा हें बाबा आदम के जमाने की और बार- बार कहता है कि हमारी नौकरी बढ़ा दीजिए और तरक्की करा दीजिए। किस बात की तरक्की करा दें? पहले योग्यता बढ़ा। नहीं साहब, योग्यता तो हम नहीं बढ़ाएँगे, हमको ऐसे ही आशीर्वाद दे दीजिए। हमारा जुआ जिता और लॉटरी खुलवा दीजिए। बेटा ऐसा नहीं हो सकता। पहले अपनी योग्यता बढ़ाओ, फिर देखो तुम्हारी आर्थिक उन्नति होती है कि नहीं होती।
तो मित्रो! परिश्रमशीलता और निरंतर योग्यता की वृद्धि यह दो उन्नति के मार्ग हैं और तीसरा उपाय है- किफायतशारी। ज्यादा खरचे जो हमने बढ़ा रखे हैं वे नही बढ़ाने चाहिए। खरचे हम बढ़ाते हैं। ढाई सौ रुपये मिलते हैं और खरचे बढ़ा रखे हैं- साढ़े चार सौ रुपये वाले। इसलिए बेईमानी करनी पड़ती है, चोरी करनी पड़ती है, कर्ज लेना पड़ता है। किसने कहा था? खरच बढ़ाओ। खरच में कोई कमी क्यों नहीं कर सकता? नहीं साहब, खरच तो हमारा बहुत बढ़ा हुआ है तो आमदनी बढ़ाओ और अगर आमदनी नहीं बढ़ाता तो खर्चा घटाओ। खरच घटाता नहीं है, आमदनी बढ़ाता नहीं है फिर हाथ तंगी नहीं होगी तो फिर क्या होगी? मित्रो, यह आध्यात्मिकता के सिद्धांत हैं। गायत्री मंत्र का यदि वास्तव में आपने जप किया होगा तो आर्थिक संतुलन के बारे में आपको बराबर ध्यान रखना होगा। हम कमाते तो हैं, पर साथ ही साथ योग्यता भी बढ़ाएँ मेहनत करें ताकि ज्यादा आमदनी हो सके। किफायतशाली पर ध्यान रखें और उतना खरच करें जो हमारी हैसियत और हमारी कमाई के भीतर हो। पाँव हम उतना ही पसारे जितनी कि पसारना चाहिए। यह गायत्री का व्यावहारिक पक्ष है। अध्यात्म हवाई नहीं है। अध्यात्म काल्पनिक नहीं होता, अध्यात्म में छप्पर फाड़कर दौलत नहीं बरसती। अध्यात्म उस चीज का नाम है जो आदमी के भीतर गुणों के रूप में, कर्म के रूप में, स्वभाव के रूप में प्रवेश करने के बाद में आदमी का व्यक्तित्व विकसित होता हुआ चला जाता है, आदमी समर्थ और संपन्न होता हुआ चला जाता है।
इस तरह '' द्रविणं '' सहित सांसारिक पाँच फायदे हो गए और दो फायदे आध्यात्मिक हैं। एक तो हैं '' ब्रह्मवर्चस '' और एक है '' पावमानी द्विजानाम '' जो मनुष्य के जीवन को दोबारा से जन्म देती है। हा आदमी माँ के पेट में से अनपढ़ जानवर पैदा होता है। जानवरों की दो ही इच्छाएँ रहती हैं- एक पेट भरने की और दूसरी औलाद पैदा करने की इच्छा। इसलिए हर आदमी जानवर पैदा होता है- ' '' जन्मना जायते शूद्र: '' अर्थात जन्म से हर आदमी शूद्र पैदा होता है, लेकिन अगर भगवान के संपर्क में आता है तो जैसे लोहा पारस के संपर्क में आता है तो सोना हो जाता है, इसी तरीके से यदि व्यक्ति अध्यात्म के संपर्क में आता है, गायत्री माता के संपर्क में आता है तो सोना हो जाता है, अर्थात उसका स्वरूप बदल जाता है, फिर वह जानवर नहीं रहता, इनसान हो जाता है। इनसान को कहते हैं- द्विज। इनसान किसे कहते हैं? इनसान उसे कहते हैं जिसके सामने पेट मुख्य नहीं है, औलाद मुख्य नहीं है, उसके सामने सिद्धांत मुख्य हैं, जिसके लिए जिंदगी मिली है। जिसके सामने सिद्धांत मुख्य है, वह इनसान है और जिसके सामने मुख्य नहीं है, पशु प्रवृत्तियाँ जिसके सामने मुख्य है, वह शरीर की दृष्टि से आदमी होते हुए भी हैवान कहा जाएगा। एक शब्द नर- पशु आता है। नर- पशु किसे कहते हैं? नर- पशु बेटे उसे कहते हैं, जिसकी शक्ल तो इनसान जैसी होती है, लेकिन ईमान जिसका जानवर जैसा होता है और शक्ल इनसान जैसी, उसका नाम है- नर- पशु। नर- पशुओं के रूप में हम और आप सब विद्यमान हैं। लेकिन नर- नारायण के रूप में, नर- देवता के रूप में, पुरुष से पुरुषोत्तम के रूप में जो जिंदा है, उनको ही मनुष्य कह सकते हैं।
मनुष्य को द्विज कहना दोबारा जन्म की निशानी है। इसलिए उसे '' द्विज '' कहा गया है कि उसका दोबारा जन्म हो जाता है। गायत्री माता के पेट से जो बच्चा पैदा होता है, उसी का नाम है 'द्विज' अर्थात सिद्धांतवादी अर्थात आदर्शवादी। जो वास्तव में मनुष्य होता है उसी का नाम है -द्विज। जो द्विज होता है, वह पावमानी अर्थात पवित्र होता है। आदमी अपवित्र होता है, खून का बना हुआ, मांस का बना हुआ, टट्टी- पेशाब का घड़ा अपवित्र है और पवित्र कैसे होता है? पवित्र ज्ञान से होता है। पवित्र सत्कर्म से हो जाता है। पवित्र सद्भाव से हो जाता है। गायत्री मंत्र आध्यात्मिक जीवन में जब प्रवेश करता है तो '' पावमानी द्विजानाम् '' दोबारा जन्म देता है और आदमी को भीतर से, बाहर से, हर जगह से पवित्र बना देता है। स्वच्छ, पवित्र, इसकी वाणी पवित्र, इसका शरीर पवित्र, इसके कपड़े पवित्र, इसका व्यवहार पवित्र, इसका वचन पवित्र, इसका दृष्टिकोण पवित्र हर चीज में जहाँ पवित्रता का समावेश है, ऐसा द्विज बनाती है गायत्री। ये है आध्यात्मिकता का एक चरण "पावमानी द्विजानाम्" आध्यात्मिक संपदा। आध्यात्मिक संपदा का दूसरा वाला चरण है- ' '' ब्रह्मवर्चसम् ''। ब्रह्मवर्चस किसे कहते हैं? ब्रह्मवर्चस भी एक ताकत है। दुनिया में बहुत सारी ताकतें हैं। एक ताकत वह है, जो शरीर की ताकत कहलाती है। एक ताकत वह है जो पैसे की ताकत कहलाती है। एक ताकत वह है, जो अक्ल की ताकत कहलाती है। एक ताकत वह है जो होशियारी की ताकत कहलाती है। एक ताकत वह है जो मनुष्य की संघबद्धता की, मनुष्यों के समूह की और समुदाय की ताकत कहलाती है। पाँच ताकते दुनिया की हैं, लेकिन सबसे बड़ी ताकत जो आदमी की है वह है रूहानी ताकत, ब्रह्मवर्चसम् की ताकत। ब्रह्मवर्चस की कैसे होती है? ब्रह्मवर्चस की ताकत के बारे में पुराने ऋषियों की बात बताऊँ आपको। पुराने ऋषियों की बात जाने दीजिए कल- परसों की बात मैं बता सकता हूँ। एक दुबला- पतला छयानवें पौंड का आदमी, कमजोर जैसा आदमी एक हंटर और एक चाबुक लेकर खड़ा हो गया। जिस तरीके से सर्कस का रिंग मास्टर चाबुक लेकर खड़ा हो जाता है और शेर को कहता है कि तमाशा दिखाइए दो पैर से खड़े हो जाइए। उसने ब्रिटेन के शेर को कहा- ' क्विट इंडिया '' हिंदुस्तान छोड़िए। हिंदुस्तान के सर्कस के रिंग मास्टर का हंटर देखकर अंगरेज काँप गए और अपना बोरिया- बिस्तर बाँध करके हिंदुस्तान के बाहर चले गए। ये कौन सी ताकत थी? ये रूहानी ताकत थी। ये आध्यात्मिक ताकतें थीं। आध्यात्मिक ताकतें कैसी होती हैं? इसे आप इतिहास में देखिए। महापुरुषों की ताकतें, महामानवों की ताकतें, ज्ञानियों की ताकतें, ऋषियों की ताकतें शारीरिक नहीं थी, मानसिक भी नहीं थी, बौद्धिक भी नहीं थी, दौलत के हिसाब से वह कोई बलवान नहीं थे और पैसे वाले नहीं थे, लेकिन उनके पास असली ताकत जो थी वह रूहानी ताकत थी, जिसको हम आत्मबल कहते हैं। गायत्री मंत्र जब किसी के पास आता है, तब क्या करता है उसको आत्मबल प्रदान करता है, जिसको हम योगाभ्यास से तपश्चर्या के नाम से कभी बताएँगे। आत्मबल कैसे प्राप्त होता है? आत्मबल के लिए दो ही तरीके हैं। एक का नाम योग है और एक का नाम तप है। अध्ययनशीलता, विचारों का परिष्कार, इसका नाम योग है और तप का अर्थ है- व्यवहार में सिद्धांतों को इस तरह से समावेश करना, भले ही हमको कठिनाइयाँ बरदाश्त करनी पड़ें, लेकिन कठिनाइयों को बरदाश्त करते हुए भी हम शालीनता के रास्ते पर चलते चले जाएँ। यह तप का सिद्धांत है। योग का सिद्धांत है अपने आपको, अपने चिंतन को भगवान के चिंतन के साथ मिला देना। अपने आदर्शों को भगवान के आदर्शों के साथ मिला देना। अपने दृष्टिकोण को भगवान के दृष्टिकोण के साथ में मिला देना, यह योग है। योग और तप दोनों को मिला देने से, गायत्री और सावित्री को मिला देने से, गायत्री का तत्त्वज्ञान और गायत्री का उपयोग, गायत्री की फिलॉसफी गायत्री की प्रक्रिया और गायत्री की उपासना दोनों को मिला देने से जो चीज पैदा होती है उसका नाम है- ' ब्रह्मवर्चस ''। क्यों साहब ये बातें हमारी कुछ समझ में आई तो सही, जो कुछ आपने कहा व्याख्यान में, पर कुछ बात जमती नहीं है कि ये कैसे ठीक हो सकती है, कैसे नहीं हो सकती है। मित्रो, ज्यादा तो मैं क्या कह सकता हूँ पर अभी ऋषियों की बातें मैंने आपको बताईं। प्राणवानों की बातें बताईं, अभ्यास की बातें बताई। लेकिन अगर आपको इसमें भी शक हो तो मैं बड़ी नम्रतापूर्वक एक और गवाही आपके सामने पेश कर सकता हँ, जिसको झुठलाने का हममें से कोई भी आदमी हिम्मत नहीं का सकेगा! अच्छा बताइए, एक और गवाही। एक गवाही के रूप में हमको इसीलिए आना पड़ा आपके सामने। हम दूसरे कामों में लगे हुए थे, पर भगवान ने गायत्री मंत्र का प्रचार करने के लिए भेज दिया ओर साथ में उन सारी विशेषताओं को साथ लेकर के भेजा कि लोग ये पूछताछ करेंगे कि क्यों साहब, आप गायत्री मंत्र की जो विशेषता भौतिक और आध्यात्मिक लाभ के रूप में बताते हैं, वे कहाँ तक सही हो सकती हैं। आप साबित कीजिए। तो बेटे हम कैसे साबित करेंगे, हम कहाँ - कहाँ से सबूत लाते फिरेंगे, कहाँ कहाँ से गवाही इकट्ठी करते फिरेंगे? इन गवाहियाँ और सबूतों के सामने हम अपने आपको पेश करते है आपके सामने। ये जो पाँचों, सातों बातें हैं ठीक ढंग से, सही ढंग से गायत्री की उपासना की जाए तो सहज ही उपलब्ध हो जाती हैं।
सही ढंग से गायत्री उपासना क्या होती है? आगे चलकर हम आपको बता देंगे, जो हमने की है। जिस ढंग से हमने गायत्री उपासना की है। हमारे ज्ञान और हमारे कर्म दोनों में ही गायत्री का समावेश हुआ है। परिणाम क्या हुआ? जो लाभ हम बता चुके हैं, अभी और उसे पूरा करते हैं कैसे? लंबी जिंदगी, हमारी कितनी जिंदगी है, बहुत लंबी जिंदगी है। कितनी लंबी जिंदगी है? उम्र के हिसाब से, जन्मपत्री के हिसाब से, डेट ऑफ बर्थ के हिसाब से हमारी सत्तर वर्ष उम्र होती है और वैसे कितनी होती है? वैसे जो अभी बता रहा था कि पाँच लाभ गायत्री के होते हैं। गायत्री के पाँच मुख और पंचकोश हैं- इस हिसाब से हमारी साढ़े तीन सौ वर्ष उम्र हो जाती है। जो हमने काम किए हैं, जिंदगी में, आप पता लगा सकते हैं और तलाश कर सकते हैं कि इतने काम कोई आदमी साढ़े तीन सौ वर्ष से कम में कर सकता है क्या? हमने जितना साहित्य लिखा है, ये सत्तर वर्ष से कम में नहीं लिखा जा सकता है। हमने जो संगठन किया है, इतना बडा संगठन करने के लिए कम से कम इतनी पर उम्र चाहिए जो कि ऊपर बताई है। दस लाख आदमी हमारे पास हैं वे हमारे संग में इस कदर जुडे हुए हैं, जैसे आप देखते हैं।
पाँच हिस्सों में हम अपना काम करते हैं। एक समय में पाँच कल- पुर्जे और पाँच मशीनें हमारी काम करती रहती हैं। एक मशीन हमारी लेखन का काम करती है, एक मशीन हमारी संगठन का काम करती है, एक मशीन हमारी तपस्वी का काम करती है, ताकि दूसरों को वरदान देने के काम आ सके। एक मशीन हमारे गुरदे के पास रहती है और अपना जो मूल लक्ष्य है, जीवन का उसको पूरा करने के लिए हम तालमेल बिठाते रहते हैं। इस तरह हम पाँच हिस्सों में एक साथ काम करते हैं।
'' एकला चलो रे '', '' एकला चलो रे '' रवीन्द्रनाथ टैगोर की इस कविता को गाते हुए और गुनगुनाते हुए हम चलते हैं। कौन- कौन चलता है? एक हम चलते हैं और एक हमारा प्राण चलता है, एक हमारा जीवट चलता है और एक हमारी हिम्मत चलती है और कोई चलता है? और कोई नहीं चलता। एक हम और एक हमारी हिम्मत और कोई! और कोई नहीं है, एक हमारा भगवान और एक हमारा ईमान और कोई ?? और कोई नहीं है हमारे साथ दो ही है एक हमारी आत्मा और एक हमारी जुर्रत और एक हमारी हिम्मत। इनको लेकर के हम बढ़ते चले जाते हैं।
गायत्री मंत्र जिसका हम आपको शिक्षण करते हैं। गायत्री मंत्र जिसकी हमने जीवन भर उपासना की है। गायत्री मंत्र जिसका विस्तार हम सारे संसार में करना चाहते हैं। यह उन सारे के सारे सामर्थ्यों से भरा हुआ है, जो व्यक्ति की भौतिक और आत्मिक दोनों सफलताओं के द्वार को खोलने में समर्थ है। यह है गायत्री मंत्र की सामर्थ्य। आज इतना ही, बाकी कल।
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। देवियो! भाइयो!!
गायत्री मंत्र की महिमा के बारे में कि इस मंत्र से क्या लाभ हो सकता है? इसके बारे में अथर्ववेद की एक बहुत अच्छी साक्षी आती है। अथर्ववेद के गवाह से अच्छा कोई और गवाह चाहिए क्या? नहीं, बेटे! इससे अच्छा गवाह नहीं मिलता। इसमें यह बताया गया है कि सात लाभ जो इसके भीतर हैं, इन सात लाभों में से पाँच भौतिक हैं और दो आध्यात्मिक। सात लाभ हैं गायत्री मंत्र के। गायत्री के सात विद्यार्थी हैं। सात विद्यार्थियों को सात ?इष भी कहा गया है। लाभों में, पाँच सांसारिक हैं और दो आध्यात्मिक हैं। दोनों को मिला देने से सात लाभ मिल जाते हैं और मनुष्य के जीवन की प्रगति की समस्त आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं। कौन- कौन सी हैं? आप में से अधिकांश लोगों को वह मंत्र शायद याद होगा। यदि नहीं याद हो तो आप फिर समझ सकते हैं और इसे याद कर सकते हैं। यह मंत्र है-
'' स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्ताम्, पावमानी द्विजानाम्। आयु: प्राण प्रजां पशु कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यम् दत्त्वा ब्रजतम् ब्रह्मलोकम्।। '' गायत्री के पाँच मुख बताए गए हैं। पाँच भौतिक लाभ हैं? क्या क्या हैं, भौतिक लाभ? भौतिक लाभों में बताया गया है, आयु: आदमी का दीर्घजीवन। आदमी गायत्री उपासना से दीर्घजीवी बन सकते हैं तो क्या साहब यह ठीक है ?? क्या यह कोई दवा है ?? क्या यह कोई कायाकल्प है लंबी जिंदगी का ?? इसमें जादू है या कोई दवा है। केवल एक ही जादू की जरूरत है और जिसके शिक्षण का नाम है- संयम। अगर आपके जीवन में संयम आ जाए तब, निश्चित रूप से आप नीरोग भी रह सकते हैं और दीर्घजीवी भी हो सकते हैं। दीर्घजीवन तो हमने बिगाड़ा है। अल्प आयु और बीमारियाँ तो हमने खरीदी हैं। ये खरीदी नहीं बुलाई गई हैं।जल्दी मौत हमने बुलाई है और बीमारी को भी हमने बुलाया है। सृष्टि के किसी जानवर के पास बीमारियों नहीं आतीं। सब आदमी, सब जानवर पैदा तो होते है, जवान भी होते हैं, बुड्ढे भी होते हैं और समय आता है तो मौत के मुँह में भी चले जाते हैं, पर बीमारियों का जैसा हमला मनुष्य पर होता है, वैसा किसी प्राणी के ऊपर नहीं होता। क्या वजह है बता दीजिए। भाई साहब, कोई वजह नहीं है, केवल एक ही वजह है कि दूसरे प्राणी प्रकृति की प्रेरणा से संयमशील जीवन जीते हैं, मर्यादाओं में रहते हैं, कायदा -कानून मानते हैं, प्रकृति की आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं करते और आदमी पग पग पर उल्लंघन करता रहता है और असंयम बरतता रहता है। हकीम लुकमान ये कहते थे कि आदमी अपने मरने के लिए कब्र खोदता रहता है, जबान की नोंक से। जीभ की ओर इशारा उनका असंयम से था, जो हमारे प्रत्येक हिस्से में समाया रहता है!
गायत्री मंत्र का जप करने का उद्देश्य है आदमी के विचारों में और आदमी के चिंतन में हेर -फेर होना चाहिए। आदमी का व्यक्तित्व और आदमी का चिंतन परिष्कृत होना चाहिए। अगर ऐसा हो गया है, तब आपको लाभ मिल जाएगा। चाहे सांसारिक हो, चाहे आध्यात्मिक हो। अगर आपके जीवन में हेर फेर नहीं हुआ तो कुछ लाभ नहीं मिलेगा।
अगर आपके जीवन में गायत्री उपासना ने कोई हेर- फेर उत्पन्न नहीं किया है, अगर आपको कोई प्रकाश नहीं दिया है तो आपका जीवन जैसा सामान्य मनुष्यों का घिनौना और पिछड़ा हुआ होता है, उसी स्तर का घिनौना और पिछड़ा जीवन होगा तो मैं आपसे कहता हूँ कोई भी मंत्र जिसमें गायत्री भी शामिल है, जिसमें रामायण भी शामिल है, जिसमें गीता भी शामिल है, आपके लिए कोई खास फायदा पैदा नहीं कर सकते। गायत्री मंत्र जब शरीर में प्रवेश करता है तो किस रूप में आता है? वह संयम के रूप में आता है। आदमी संयमी होता है। जब संयमी होता है तो संयमी होने के पश्चात मैं दीर्घजीवी हो जाता है। बहुत दिन जिंदा रहता नीरोग रहता है।
गायत्री का दूसरा सबसे बड़ा जो गुण है, जिसके ऊपर गायत्री शब्द ही रखा गया है- '' गय ''। गायत्री किसे कहते हैं?' गय '' कहते हैं प्राण को संस्कृत में। प्राण को मजबूत बनाने वाली, प्राण को ताकत देने वाली, प्राण का त्राण करने वाले को गायत्री मंत्र कहते हैं। प्राण किसे कहते हैं? प्राण कहते हैं, बेटे! हिम्मत को, प्राण कहते हैं, जीवट को और प्राण कहते हैं, साहस को। दुनिया में जितने भी उन्नतिशील लोग हुए हैं, सब आदमियों के पास और कोई गुण रहा हो, चाहे नहीं रहा हो, विद्या रही हो, चाहे नहीं रही हो, शारीरिक बल रहा हो, चाहे नहीं रहा हो, पर एक चीज जरूर रही है- अच्छे कामों के लिए साहस। बुरे कामों के लिए नहीं, बुरे कामों के लिए तो डाकुओं के पास भी होता है। चोरों के पास भी होता है। उचक्के और बेईमान और बदमाशों के पास भी होता है। उस साहस का हवाला नहीं दे रहा मैं। प्राण उसकी नीयत से नहीं आता, प्राण सिर्फ अच्छे कामों के लिए आता है। अच्छे कामों के लिए हिम्मत की जरूरत होती है और आदमी उसी हिम्मत के आधार पर बढ़ते हुए चले जाते हैं। सफलता के द्वार हर एक के लिए खुले हुए हैं। लेकिन उसमें प्रवेश करना केवल उन लोगों का काम है, जो बहादुर हैं, जो हिम्मत वाले हैं, लड़ाकू हैं, जिनके अंदर जीवट है, जिनके अंदर साहस है। जीवट, साहस, हिम्मत ये सब हमारे मन: क्षेत्र की क्षमताएँ हैं। हम कैसे जानें गायत्री मंत्र आपके पास आया कि नहीं? हम कैसे जानें कि गायत्री की फिलॉसफी का आपने अध्ययन किया कि नहीं किया? हम कैसे मानें कि आपका अनुष्ठान सही हुआ है कि नहीं हुआ है? हमको इन्हीं दो बातों से मानना पड़ेगा। आपको बुखार है कि नहीं, हम कैसे जाने ?बुखार जानने का एक ही तरीका है कि आपका शरीर गरम होना चाहिए तो हम मान लेंगे कि आपको बुखार है।
गायत्री मंत्र की उपासना वास्तव में आपने की है कि नहीं, इसकी परख करनी हो तो आपके मन: क्षेत्र में हमको एक ही जानकारी प्राप्त करनी पड़ेगी कि आपके भीतर जीवट और हिम्मत है कि नहीं। हिम्मत के अभाव में, शरीर की ताकत के अभाव में आदमी को चलना फिरना तक मुश्किल पड़ जाता है, खड़ा होना मुश्किल पड़ जाता है और भीतर वाले हिस्से को, हिम्मत को जिसको हम प्राण कहते हैं, उस प्राण के अभाव में आदमी छोटे- संकल्पों तक को पूरा नहीं कर पाता है। गायत्री मंत्र का जप करेंगे, अमुक काम करेंगे, बीड़ी पीना बंद करेंगे, जल्दी उठा करेंगे, अरे साहब दो- चार दिन तो हुआ फिर न हो सका। क्यों साहब, क्यों नहीं हो सका? अरे साहब ताकत नहीं है? उठे तो सही, पर ताकत नहीं है, गिर पड़े भट से जमीन पर। इसको अंदर की जीवट कहते हैं, इसको संकल्पशक्ति कहते हैं। इसको इच्छाशक्ति कहते हैं, '' विल पावर '' कहते हैं और बहुत से नाम हो सकते हैं, जिसे हम जीवट कहते हैं, वह हमारे मन:क्षेत्र में प्रवेश करती है। गायत्री जीवट के रूप में आती है और जीवट के रूप में आ जाए तो छोटे- छोटे बिना ताकत के आदमी न जाने दुनिया में क्या से क्या कर सकते हैं? '' आयु:, प्राण, प्रजाम् '' गायत्री उपासना के प्रतिफल हैं- प्रजामू है। आप गायत्री मंत्र का जप करेंगे तो आपके बच्चे पैदा हो जाएँगे। नहीं बेटे! आपके बच्चे तो पैदा नहीं हो जाएँगे, लेकिन आपको '' '' प्रजां '' '' शब्द जो आया है, उसे समझना चाहिए। यह केवल बच्चे के अर्थ मैं नहीं आया है। प्रजा कहते हैं- पीछे चलने वालों को और सहायता करने वालों को। पीछे चलने वालों का स्तर, साथियों का स्तर, ये प्रजा कहलाती है। गांधीजी की प्रजा का नाम बताइए ?? गांधीजी की प्रजा का नाम, गांधीजी के बेटो का नाम, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल राजेन्द्र बाबू सुभाषचंद्र बोस, पट्टाभिसीतारमैया। अभी और बताइए? अभी और बताता हूँ। अभी याद कर लेने दीजिए- डॉ ० राधाकृष्णन, जाकिर हुसैन। अभी और बताइए अभी और बताएँगे। ये कौन हैं? ये उनकी संतान हैं। संतान क्या होती है? संतान औरत के पेट से पैदा होने वाले बच्चे को नहीं कहते हैं। संतानें उन्हें कहते हैं जों पीछे बन ला क रत हैं। गोत्र जो चले हैं। दो आधार पर चले हैं एक तो वंश परंपरा से गोत्र चला है और एक शिष्य परंपरा से गोत्र चला है।
अपनी संतान हो, चाहे पराई हो। स्तर और क्वालिटी, संख्या नहीं, क्वांटिटी नहीं, क्वालिटी की बात कहता हूँ। संख्या की दृष्टि से तो कुत्ते, बिल्ली ज्यादा संतान पैदा करते हैं। यदि संख्या को भगवान की कृपा माना जाता तो मैं कहता हूँ कि भगवान सूअरों के ऊपर सबसे ज्यादा प्रसन्न होता है। एक- एक बार में सूअरिया बारह- बारह बच्चे देती है और साल भर में २४ बच्चे दे देती है। सारी जिंदगी में मान लो दस साल सूअरिया जिंदा रही, तो ढाई सौ बच्चे दे दिए। सबसे ज्यादा कृपा है। ये संतान नहीं है, क्वालिटी की बात, मैं कह रहा हूँ। क्वालिटी की बात कैसे हो सकती है? क्वालिटी की बात वहाँ हो सकती है, जहाँ कि माता और पिता अपने जीवन को और चरित्र को इस ढंग से बनाते हैं। जहाँ ठप्पा ढाँचा ढलता हुआ चला जाता है। ढाँचे और ठप्पे में जैसे मिट्टी लगाते हैं वैसे ही बनते हुए चले जाते हैं। अभिभावक अगर अपने स्तर को और क्वालिटी को बना सकने में समर्थ हो तो उनकी संतानें, प्रजा भी इम तरीके की बन सकती है।
गायत्री मंत्र के बारे में कहा गया है कि ये प्रजा दिया करती हैं और चौथी क्या चीज देती है? चौथी चीज देती है- आदमी को कीर्तिं। कीर्तिं और ख्याति में फर्क है, आप ध्यान रखना। ख्याति क्या होती है? ख्याति वो होती है, जो पैसा देकर खरीदी जा सके। ख्याति पैसा देकर खरीदी जा सकती है, पर कीर्ति पैसा देकर खरीदी नहीं जा सकती हैं। कीर्ति शब्द आया है ख्याति शब्द नहीं आया हें इसमें। जिस गायत्री मंत्र की आप उपासना करते हैं, यह बीज मंत्र हमारी संस्कृति का मूल है। अगर आपने उपासना की है तो आपको जानना चाहिए कि आपने उपासना की है कि नहीं की है। आपकी कीर्ति होती है कि नहीं। कीर्ति किसे कहते हैं? कीर्ति बेटे! इसे कहते हैं कि जो आदमी अपने व्यक्तिगत जीवन में प्रामाणिक होता है, उस प्रामाणिक आदमी पर दूसरे लोग भी विश्वास करते हैं और जिस आदमी का विश्वास किया जाता है, उस आदमी का करते हैं, सहयोग और सहयोग जिस आदमी का किया जाता है, वह आदमी होता है संपन्न। चार सीढ़ियाँ हैं संपन्न बनने की। आप जहाँ कहीं भी चले जाइए, दुनिया में बढ़िया से बढ़िया प्रामाणिक व्यक्ति हर क्षेत्र में हुए हैं। चाहें तो सामाजिक क्षेत्र में नेता हुआ हो या कोई आदमी महापुरुष हुआ हो अथवा व्यापारिक क्षेत्र में कोई आदमी संपन्न आदमी हुआ हो। बहरहाल टिकाऊ उन्नति केवल उसी के हिस्से में आई है, जिसने अपने आपको प्रामाणिक सिद्ध कर दिया। हम सही हैं और ईमानदार हैं। जो वायदा करते हैं, उसको पूरा करते हैं और जो हमारा वचन है, वह गलत नहीं हो सकता, जिसने अपने आपको इस तरह से प्रामाणिक साबित कर दिया उस प्रामाणिक आदमी के बारे में लोगों ने विश्वास किया, भरोसा किया।
गायत्री मंत्र कीर्ति कैसे प्रदान करता है? कीर्ति उसे कहते हैं, जिससे आदमी को गर्व हो सकता है। हमने जिंदगी इस तरह से बिताई कि जिससे हमको गर्व और संतोष है। दुनिया ने जिस आदमी की प्रशंसा की उस आदमी को भी संतोष हो सकता है। प्रशंसा के लिए कितना प्यासा है, आदमी, कहाँ से कहाँ मारा- मारा डोलता है? प्रशंसा के लिए जाने क्या- क्या करता है? कोई कपड़े पहनता है कोई फैशन बनाता है, कोई मकान बनाता है, कोई विवाह- शादियों में धूम - धड़ाका मचाता है, कोई विज्ञापन करता है, कोई अपने नाम के पत्थर लगवाता है। जाने कितने खेल- खिलौने करता है आदमी। लेकिन इस ख्याति के लिए आपको सारे के सारे चमत्कार और खेल- खिलौने करने की जरूरत नहीं हैं। गायत्री मंत्र अगर हमारे भीतर आएगा तो हमारे भीतर वह प्रामाणिकता पैदा होगी जो निश्चित रूप से हमको कीर्ति देने में समर्थ होगी और अगर आप कीर्तिवान हैं तो आप सफल और संपन्न भी होकर रहेंगे। मित्रो! '' आयु:, प्राणं, प्रजाम् पशुं कीर्तिम् '' के बाद '' द्रविणं '' अर्थात धन के बारे में भी मैं आपसे कह चुका हूँ कि धन की मात्रा कोई एक वस्तु नहीं है। आपका यह ख्याल हो कि धन की मात्रा का बड़ा होना ही कोई बड़ा सौभाग्य है तो मात्रा का बड़ा होना ही सौभाग्य नहीं है धन का उपयोग करना चाहिए। धन का उपभोग नहीं, उपयोग। थोड़े से पैसे जिन लोगों के पास है, उन लोगों ने दुनिया में इस बढ़िया तरीके से धन का उपयोग कर दिखाया कि लखपति, करोड़ पति, अरबपति और खरबपति भी वह लाभ नहीं उठा सकते जो उन लोगों ने थोड़े से पैसे का सही इस्तेमाल करके उपयोग कर लिया है। धन की समस्या, आर्थिक समस्या तीन बातों पर टिकी हुई है। एक आदमी मशक्कत करता हो, मेहनती हो, जो आदमी मेहनती नहीं है, वह सारी जिंदगी भर दरिद्र रहेगा। दरिद्रता क्या है? दरिद्रता का मूल है- आलस। आलस की मूल है- दरिद्रता। दरिद्रता और आलस दोनों आपस में जुड़े हुए हैं। आदमी अगर मशक्कत नहीं करेगा तो गरीब रहेगा और आदमी के अंदर अगर ये महत्त्वाकांक्षा नहीं होगी कि हम अपनी योग्यताओं को बढ़ाएँ तो वह जहाँ जमकर बैठ गया है वहीं बैठा रहेगा। वह यही रोना रोता रहेगा कि हमारे माँ- बाप ने पाँचवाँ दरजा पास करा दिया था साहब, हमारे कर्म में इससे ज्यादा विद्या नहीं लिखी है। पाँचवें दरजे तक पढ़ाकर बाप मर गया और फिर हमने स्कूल छोड़ दिया। फिर क्यों नहीं पड़ा? फिर क्या पढ़ते, जब हमारा बाप मर गया। आदमी को हर दिन जिस तरह से रोटी कमाते हैं, उसी तरह से अपनी ज्ञान, योग्यता और क्षमता का संवर्द्धन करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। विदेशों में आप जाकर देखिए वहाँ नाइट स्कूल चलते हैं। आदमी नौकरी भी करते हैं और रात में अपनी योग्यता भी बढ़ाते हैं। शनिवार- इतवार के दो दिन के स्कूल सारी दुनिया में चलते हैं। अमेरिका में जितने विद्यार्थी सबेरे की स्कूल में पढ़ते हैं उससे दूने विद्यार्थी शनिवार- इतवार के स्कूल में पढ़ते हैं। काम करते जाते हैं और बराबर पढ़ते जाते हैं, चाहे वे बुड्ढे हों, चाहे जवान हों, बराबर पढ़ने जाते है, योग्यता बढ़ाते जाते हैं और सुसंपन्नता कमाते हैं। योग्यता बढ़ाते नहीं और कहते हैं कि पैसा दे दें। कहाँ से पैसा दे दें। योग्यता लिए बैठा हें बाबा आदम के जमाने की और बार- बार कहता है कि हमारी नौकरी बढ़ा दीजिए और तरक्की करा दीजिए। किस बात की तरक्की करा दें? पहले योग्यता बढ़ा। नहीं साहब, योग्यता तो हम नहीं बढ़ाएँगे, हमको ऐसे ही आशीर्वाद दे दीजिए। हमारा जुआ जिता और लॉटरी खुलवा दीजिए। बेटा ऐसा नहीं हो सकता। पहले अपनी योग्यता बढ़ाओ, फिर देखो तुम्हारी आर्थिक उन्नति होती है कि नहीं होती।
तो मित्रो! परिश्रमशीलता और निरंतर योग्यता की वृद्धि यह दो उन्नति के मार्ग हैं और तीसरा उपाय है- किफायतशारी। ज्यादा खरचे जो हमने बढ़ा रखे हैं वे नही बढ़ाने चाहिए। खरचे हम बढ़ाते हैं। ढाई सौ रुपये मिलते हैं और खरचे बढ़ा रखे हैं- साढ़े चार सौ रुपये वाले। इसलिए बेईमानी करनी पड़ती है, चोरी करनी पड़ती है, कर्ज लेना पड़ता है। किसने कहा था? खरच बढ़ाओ। खरच में कोई कमी क्यों नहीं कर सकता? नहीं साहब, खरच तो हमारा बहुत बढ़ा हुआ है तो आमदनी बढ़ाओ और अगर आमदनी नहीं बढ़ाता तो खर्चा घटाओ। खरच घटाता नहीं है, आमदनी बढ़ाता नहीं है फिर हाथ तंगी नहीं होगी तो फिर क्या होगी? मित्रो, यह आध्यात्मिकता के सिद्धांत हैं। गायत्री मंत्र का यदि वास्तव में आपने जप किया होगा तो आर्थिक संतुलन के बारे में आपको बराबर ध्यान रखना होगा। हम कमाते तो हैं, पर साथ ही साथ योग्यता भी बढ़ाएँ मेहनत करें ताकि ज्यादा आमदनी हो सके। किफायतशाली पर ध्यान रखें और उतना खरच करें जो हमारी हैसियत और हमारी कमाई के भीतर हो। पाँव हम उतना ही पसारे जितनी कि पसारना चाहिए। यह गायत्री का व्यावहारिक पक्ष है। अध्यात्म हवाई नहीं है। अध्यात्म काल्पनिक नहीं होता, अध्यात्म में छप्पर फाड़कर दौलत नहीं बरसती। अध्यात्म उस चीज का नाम है जो आदमी के भीतर गुणों के रूप में, कर्म के रूप में, स्वभाव के रूप में प्रवेश करने के बाद में आदमी का व्यक्तित्व विकसित होता हुआ चला जाता है, आदमी समर्थ और संपन्न होता हुआ चला जाता है।
इस तरह '' द्रविणं '' सहित सांसारिक पाँच फायदे हो गए और दो फायदे आध्यात्मिक हैं। एक तो हैं '' ब्रह्मवर्चस '' और एक है '' पावमानी द्विजानाम '' जो मनुष्य के जीवन को दोबारा से जन्म देती है। हा आदमी माँ के पेट में से अनपढ़ जानवर पैदा होता है। जानवरों की दो ही इच्छाएँ रहती हैं- एक पेट भरने की और दूसरी औलाद पैदा करने की इच्छा। इसलिए हर आदमी जानवर पैदा होता है- ' '' जन्मना जायते शूद्र: '' अर्थात जन्म से हर आदमी शूद्र पैदा होता है, लेकिन अगर भगवान के संपर्क में आता है तो जैसे लोहा पारस के संपर्क में आता है तो सोना हो जाता है, इसी तरीके से यदि व्यक्ति अध्यात्म के संपर्क में आता है, गायत्री माता के संपर्क में आता है तो सोना हो जाता है, अर्थात उसका स्वरूप बदल जाता है, फिर वह जानवर नहीं रहता, इनसान हो जाता है। इनसान को कहते हैं- द्विज। इनसान किसे कहते हैं? इनसान उसे कहते हैं जिसके सामने पेट मुख्य नहीं है, औलाद मुख्य नहीं है, उसके सामने सिद्धांत मुख्य हैं, जिसके लिए जिंदगी मिली है। जिसके सामने सिद्धांत मुख्य है, वह इनसान है और जिसके सामने मुख्य नहीं है, पशु प्रवृत्तियाँ जिसके सामने मुख्य है, वह शरीर की दृष्टि से आदमी होते हुए भी हैवान कहा जाएगा। एक शब्द नर- पशु आता है। नर- पशु किसे कहते हैं? नर- पशु बेटे उसे कहते हैं, जिसकी शक्ल तो इनसान जैसी होती है, लेकिन ईमान जिसका जानवर जैसा होता है और शक्ल इनसान जैसी, उसका नाम है- नर- पशु। नर- पशुओं के रूप में हम और आप सब विद्यमान हैं। लेकिन नर- नारायण के रूप में, नर- देवता के रूप में, पुरुष से पुरुषोत्तम के रूप में जो जिंदा है, उनको ही मनुष्य कह सकते हैं।
मनुष्य को द्विज कहना दोबारा जन्म की निशानी है। इसलिए उसे '' द्विज '' कहा गया है कि उसका दोबारा जन्म हो जाता है। गायत्री माता के पेट से जो बच्चा पैदा होता है, उसी का नाम है 'द्विज' अर्थात सिद्धांतवादी अर्थात आदर्शवादी। जो वास्तव में मनुष्य होता है उसी का नाम है -द्विज। जो द्विज होता है, वह पावमानी अर्थात पवित्र होता है। आदमी अपवित्र होता है, खून का बना हुआ, मांस का बना हुआ, टट्टी- पेशाब का घड़ा अपवित्र है और पवित्र कैसे होता है? पवित्र ज्ञान से होता है। पवित्र सत्कर्म से हो जाता है। पवित्र सद्भाव से हो जाता है। गायत्री मंत्र आध्यात्मिक जीवन में जब प्रवेश करता है तो '' पावमानी द्विजानाम् '' दोबारा जन्म देता है और आदमी को भीतर से, बाहर से, हर जगह से पवित्र बना देता है। स्वच्छ, पवित्र, इसकी वाणी पवित्र, इसका शरीर पवित्र, इसके कपड़े पवित्र, इसका व्यवहार पवित्र, इसका वचन पवित्र, इसका दृष्टिकोण पवित्र हर चीज में जहाँ पवित्रता का समावेश है, ऐसा द्विज बनाती है गायत्री। ये है आध्यात्मिकता का एक चरण "पावमानी द्विजानाम्" आध्यात्मिक संपदा। आध्यात्मिक संपदा का दूसरा वाला चरण है- ' '' ब्रह्मवर्चसम् ''। ब्रह्मवर्चस किसे कहते हैं? ब्रह्मवर्चस भी एक ताकत है। दुनिया में बहुत सारी ताकतें हैं। एक ताकत वह है, जो शरीर की ताकत कहलाती है। एक ताकत वह है जो पैसे की ताकत कहलाती है। एक ताकत वह है, जो अक्ल की ताकत कहलाती है। एक ताकत वह है जो होशियारी की ताकत कहलाती है। एक ताकत वह है जो मनुष्य की संघबद्धता की, मनुष्यों के समूह की और समुदाय की ताकत कहलाती है। पाँच ताकते दुनिया की हैं, लेकिन सबसे बड़ी ताकत जो आदमी की है वह है रूहानी ताकत, ब्रह्मवर्चसम् की ताकत। ब्रह्मवर्चस की कैसे होती है? ब्रह्मवर्चस की ताकत के बारे में पुराने ऋषियों की बात बताऊँ आपको। पुराने ऋषियों की बात जाने दीजिए कल- परसों की बात मैं बता सकता हूँ। एक दुबला- पतला छयानवें पौंड का आदमी, कमजोर जैसा आदमी एक हंटर और एक चाबुक लेकर खड़ा हो गया। जिस तरीके से सर्कस का रिंग मास्टर चाबुक लेकर खड़ा हो जाता है और शेर को कहता है कि तमाशा दिखाइए दो पैर से खड़े हो जाइए। उसने ब्रिटेन के शेर को कहा- ' क्विट इंडिया '' हिंदुस्तान छोड़िए। हिंदुस्तान के सर्कस के रिंग मास्टर का हंटर देखकर अंगरेज काँप गए और अपना बोरिया- बिस्तर बाँध करके हिंदुस्तान के बाहर चले गए। ये कौन सी ताकत थी? ये रूहानी ताकत थी। ये आध्यात्मिक ताकतें थीं। आध्यात्मिक ताकतें कैसी होती हैं? इसे आप इतिहास में देखिए। महापुरुषों की ताकतें, महामानवों की ताकतें, ज्ञानियों की ताकतें, ऋषियों की ताकतें शारीरिक नहीं थी, मानसिक भी नहीं थी, बौद्धिक भी नहीं थी, दौलत के हिसाब से वह कोई बलवान नहीं थे और पैसे वाले नहीं थे, लेकिन उनके पास असली ताकत जो थी वह रूहानी ताकत थी, जिसको हम आत्मबल कहते हैं। गायत्री मंत्र जब किसी के पास आता है, तब क्या करता है उसको आत्मबल प्रदान करता है, जिसको हम योगाभ्यास से तपश्चर्या के नाम से कभी बताएँगे। आत्मबल कैसे प्राप्त होता है? आत्मबल के लिए दो ही तरीके हैं। एक का नाम योग है और एक का नाम तप है। अध्ययनशीलता, विचारों का परिष्कार, इसका नाम योग है और तप का अर्थ है- व्यवहार में सिद्धांतों को इस तरह से समावेश करना, भले ही हमको कठिनाइयाँ बरदाश्त करनी पड़ें, लेकिन कठिनाइयों को बरदाश्त करते हुए भी हम शालीनता के रास्ते पर चलते चले जाएँ। यह तप का सिद्धांत है। योग का सिद्धांत है अपने आपको, अपने चिंतन को भगवान के चिंतन के साथ मिला देना। अपने आदर्शों को भगवान के आदर्शों के साथ मिला देना। अपने दृष्टिकोण को भगवान के दृष्टिकोण के साथ में मिला देना, यह योग है। योग और तप दोनों को मिला देने से, गायत्री और सावित्री को मिला देने से, गायत्री का तत्त्वज्ञान और गायत्री का उपयोग, गायत्री की फिलॉसफी गायत्री की प्रक्रिया और गायत्री की उपासना दोनों को मिला देने से जो चीज पैदा होती है उसका नाम है- ' ब्रह्मवर्चस ''। क्यों साहब ये बातें हमारी कुछ समझ में आई तो सही, जो कुछ आपने कहा व्याख्यान में, पर कुछ बात जमती नहीं है कि ये कैसे ठीक हो सकती है, कैसे नहीं हो सकती है। मित्रो, ज्यादा तो मैं क्या कह सकता हूँ पर अभी ऋषियों की बातें मैंने आपको बताईं। प्राणवानों की बातें बताईं, अभ्यास की बातें बताई। लेकिन अगर आपको इसमें भी शक हो तो मैं बड़ी नम्रतापूर्वक एक और गवाही आपके सामने पेश कर सकता हँ, जिसको झुठलाने का हममें से कोई भी आदमी हिम्मत नहीं का सकेगा! अच्छा बताइए, एक और गवाही। एक गवाही के रूप में हमको इसीलिए आना पड़ा आपके सामने। हम दूसरे कामों में लगे हुए थे, पर भगवान ने गायत्री मंत्र का प्रचार करने के लिए भेज दिया ओर साथ में उन सारी विशेषताओं को साथ लेकर के भेजा कि लोग ये पूछताछ करेंगे कि क्यों साहब, आप गायत्री मंत्र की जो विशेषता भौतिक और आध्यात्मिक लाभ के रूप में बताते हैं, वे कहाँ तक सही हो सकती हैं। आप साबित कीजिए। तो बेटे हम कैसे साबित करेंगे, हम कहाँ - कहाँ से सबूत लाते फिरेंगे, कहाँ कहाँ से गवाही इकट्ठी करते फिरेंगे? इन गवाहियाँ और सबूतों के सामने हम अपने आपको पेश करते है आपके सामने। ये जो पाँचों, सातों बातें हैं ठीक ढंग से, सही ढंग से गायत्री की उपासना की जाए तो सहज ही उपलब्ध हो जाती हैं।
सही ढंग से गायत्री उपासना क्या होती है? आगे चलकर हम आपको बता देंगे, जो हमने की है। जिस ढंग से हमने गायत्री उपासना की है। हमारे ज्ञान और हमारे कर्म दोनों में ही गायत्री का समावेश हुआ है। परिणाम क्या हुआ? जो लाभ हम बता चुके हैं, अभी और उसे पूरा करते हैं कैसे? लंबी जिंदगी, हमारी कितनी जिंदगी है, बहुत लंबी जिंदगी है। कितनी लंबी जिंदगी है? उम्र के हिसाब से, जन्मपत्री के हिसाब से, डेट ऑफ बर्थ के हिसाब से हमारी सत्तर वर्ष उम्र होती है और वैसे कितनी होती है? वैसे जो अभी बता रहा था कि पाँच लाभ गायत्री के होते हैं। गायत्री के पाँच मुख और पंचकोश हैं- इस हिसाब से हमारी साढ़े तीन सौ वर्ष उम्र हो जाती है। जो हमने काम किए हैं, जिंदगी में, आप पता लगा सकते हैं और तलाश कर सकते हैं कि इतने काम कोई आदमी साढ़े तीन सौ वर्ष से कम में कर सकता है क्या? हमने जितना साहित्य लिखा है, ये सत्तर वर्ष से कम में नहीं लिखा जा सकता है। हमने जो संगठन किया है, इतना बडा संगठन करने के लिए कम से कम इतनी पर उम्र चाहिए जो कि ऊपर बताई है। दस लाख आदमी हमारे पास हैं वे हमारे संग में इस कदर जुडे हुए हैं, जैसे आप देखते हैं।
पाँच हिस्सों में हम अपना काम करते हैं। एक समय में पाँच कल- पुर्जे और पाँच मशीनें हमारी काम करती रहती हैं। एक मशीन हमारी लेखन का काम करती है, एक मशीन हमारी संगठन का काम करती है, एक मशीन हमारी तपस्वी का काम करती है, ताकि दूसरों को वरदान देने के काम आ सके। एक मशीन हमारे गुरदे के पास रहती है और अपना जो मूल लक्ष्य है, जीवन का उसको पूरा करने के लिए हम तालमेल बिठाते रहते हैं। इस तरह हम पाँच हिस्सों में एक साथ काम करते हैं।
'' एकला चलो रे '', '' एकला चलो रे '' रवीन्द्रनाथ टैगोर की इस कविता को गाते हुए और गुनगुनाते हुए हम चलते हैं। कौन- कौन चलता है? एक हम चलते हैं और एक हमारा प्राण चलता है, एक हमारा जीवट चलता है और एक हमारी हिम्मत चलती है और कोई चलता है? और कोई नहीं चलता। एक हम और एक हमारी हिम्मत और कोई! और कोई नहीं है, एक हमारा भगवान और एक हमारा ईमान और कोई ?? और कोई नहीं है हमारे साथ दो ही है एक हमारी आत्मा और एक हमारी जुर्रत और एक हमारी हिम्मत। इनको लेकर के हम बढ़ते चले जाते हैं।
गायत्री मंत्र जिसका हम आपको शिक्षण करते हैं। गायत्री मंत्र जिसकी हमने जीवन भर उपासना की है। गायत्री मंत्र जिसका विस्तार हम सारे संसार में करना चाहते हैं। यह उन सारे के सारे सामर्थ्यों से भरा हुआ है, जो व्यक्ति की भौतिक और आत्मिक दोनों सफलताओं के द्वार को खोलने में समर्थ है। यह है गायत्री मंत्र की सामर्थ्य। आज इतना ही, बाकी कल।