Books - महाकाल का शंख बज गया, समय बदलने वाला है
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महाकाल का शंख बज गया, समय बदलने वाला है
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अग्रदूत बनिए दिलेरी का परिचय दीजिए
वानप्रस्थ सत्र- शान्तिकुञ्ज हरिद्वार
दिनाँक २७- ५- ७७
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
वक्त बदल रहा है
देवियो, भाइयो! प्रातःकाल सुनहरे रंग का सूर्य निकलता है, तो उस समय सबमें उमंगें और नया उत्साह देखा जा सकता है, पक्षी चहचहाते हुए पेड़ों पर देखे जा सकते हैं और हर आदमी की नींद खुलने लगती है। बच्चे उठने लगते हैं और सब आदमी अपने काम पर लग जाते हैं। प्रातःकाल होते ही हरेक के भीतर उमंग और हरेक के भीतर हलचल प्रारम्भ हो जाती है। मित्रो! प्रातःकाल के युग का अब नया सबेरा आरंभ होने जा रहा है। मित्रो! मालूम पड़ता है है कि रात्रि अब समाप्त होने को आ गयी और नया दिनमान शुरू होने वाला है। नया दिन अब हमारे नजदीक आ गया है। हम और आप जिन दिनों में निवास कर रहे हैं, रह रहे हैं, वह प्रातःकाल का समय है। प्रातःकाल की स्वर्णिम ऊषा का चिह्न पीला वस्त्र हमने आपके शरीरों पर पहना दिया है। आप इस मिशन के संदेशवाहक हैं, जो इस बात की घोषणा करती है कि अब नया युग चला आ रहा है। अब समय बदल रहा है, युग बदल रहा है, वक्त बदल रहा है। मनुष्य बदल रहा है, परिस्थितियाँ बदल रही हैं।
मित्रो! जिन परिस्थितियों में और जिस ढंग से हम बहुत दिनों से चले आ रहे थे, अब उन परिस्थितियों में हमारा गुजारा नहीं हो सकता। अब हमको नयी परिस्थितियों में निवास करना पड़ेगा। विज्ञान ने जिस हिसाब से तरक्की की है, उस हिसाब से दुनिया बहुत नजदीक आ गयी है। थोड़े घंटों में अमेरिका से- पाताल लोक से लेकर के हम यहाँ आना चाहते हैं और चौबीस घण्टे के भीतर आ जाते हैं। टेलीफोन से अभी बात करना चाहें, तो इंग्लैण्ड और अमेरिका से हम कुछ मिनट के भीतर अभी- अभी बात कर सकते हैं। क्या पहले बात हो सकती थी? नहीं हो सकती थी, लेकिन अब दुनिया को विज्ञान ने बहुत नजदीक ला करके रख दिया है। अब हमारे लिए नये ढंग से विचार करना आवश्यक हो गया है। पुराने ढंग से विचार करके अब हम जिन्दा नहीं रह सकते। हमको अब नयी परिस्थितियों का मुकाबला करना पड़ेगा और समय से ढलना पड़ेगा।
प्रातःकाल का संदेश देता आपका बाना
साथियों जो ढलना है, जो बदलना है, उसकी तैयारी के लिए हम अग्रदूत की तरीके से आगे- आगे काम करते हैं। आपका बड़ा सौभाग्य है और बड़ा महत्त्व है। आगे चलने वाले का भी उसी तरह से स्वागत होता है, जिस तरह से प्रातःकाल के निकलने वाले नवीन सूर्य का सब जगह स्वागत होता है। हम भी आपको सबेरे सविता देवता का ध्यान कराते हैं। दोपहर का ध्यान हम नहीं कराते। सायंकाल के सूरज का भी ध्यान नहीं कराते। सूरज तो वही है, लेकिन उसकी नवीनता प्रातःकाल की है, क्योंकि वह नया संदेश लेकर के आता है। जब सब ओर अन्धेरा छाया हुआ होता है, तब थोड़े समय में एक नयी परिस्थितियाँ पैदा करके सूरज चला आता है। हम और आप यही प्रातःकालीन सूर्य का, प्रातःकालीन संदेश का और प्रातःकालीन युग का संदेश लेकर पीले कपड़े पहनकर लोगों के पास चल रहे हैं।
वासंती चोला
मित्रो! पीले कपड़े वसंत के कपड़े हैं। वसंत से क्या मतलब है? बेटे, वसंत से मेरा मतलब उस समय से है, जिसके अंदर उमंगें, पत्तियों के अंदर उमंगें, वृक्षों के अंदर उमंगें, घास के अंदर उमंगें दिखाई पड़ती हैं। ठंड के दिनों में जो डंठल के रूप में पड़े थे, वसंत के समय के फूलों के रूप में, नयी- नयी कोपलों के रूप में, नयी- नयी पत्तियों के रूप में बाहर आ जाती है। हर जगह हमको मालूम पड़ता है कि कुछ नयापन आ गया है। कुछ नवीनता आ गयी है। वसंत जो आता है, तो केवल फूल लेकर नहीं आता, एक उत्साह लेकर आता है। एक उल्लास लेकर आता है। यह बसंती चोला हमने आपको पहना दिया। यह वह बसंती चोला है, जिसको भगत सिंह जेलखाने के अंदर गाया करते थे कि हे माँ! हमारे चोले को बसंती रंग में रंग दो। यह उस रंग की बात नहीं थी जो एक पैसे- दो पैसे का रंग मँगा कर रंग सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि दो पैसे का पीला रंग ले लें और गुलाबी रंग का मत लें। चोले से मतलब यह था कि हमारा जीवन और हमारा व्यक्तित्व इस तरीके से रंग जाय कि इसमें बसंतीपन हो अर्थात् उमंगें, उत्साह, उल्लास और नयी चेतना, नयी प्रेरणा के आदर्श जुड़े हों। बसंती से मतलब यही है।
नया मनुष्य आने का द्योतक ला रंग
मित्रो! हमने आपको बसंती चोला इसलिए पहनाया कि आपको यह ध्यान बना रहे कि आप क्या करने जा रहे हैं? और क्या करने का उद्देश्य आपके कंधे पर इस कपड़े के रंग के हिसाब से लाद दिया गया है। बेटे, यह किसका रंग है? यह प्रातःकालीन सूरज का रंग है। प्रातःकालीन सूरज ऐसे ही होता है, जैसा कपड़ा आप पहने हुए हैं। गुरुजी! प्रातःकालीन सूरज से आपका क्या मतलब है? बेटे, प्रातःकालीन सूरज से हमारा मतलब यह है कि प्रातःकालीन सूरज जिस तरीके से एक नयी उमंगें, नयी हलचलें, नयी दिशायें और नयी रोशनी ले करके घोर अंधकार के बीच में उदय होता है। हम चाहते हैं कि आप लोग नवीनता का संदेश लेकर के इस तरीके से जाएँ कि नया युग चला आ रहा है। नया समय आ रहा है, नयी परिस्थितियाँ आ रही हैं। नया मनुष्य बनने को जा रहा है। क्यों? इसलिए बेटे, कि मनुष्य नया बनने के लिए जा रहा है अब मौत और जिंदगी के बीच में से उसे एक का चुनाव करना पड़ेगा।
बड़ा प्रतिकूल समय है यह
अब जिन परिस्थितियों में मनुष्य रह रहा है और जिस रास्ते पर चल रहा है, उस पर मौत के अलावा दूसरी चीज हमको दिखाई नहीं पड़ती। कैसे दिखाई नहीं पड़ती? तीन- चार वजह हैं जिससे हमें मालूम पड़ता है कि हम मौत की ओर जा रहे हैं और सामूहिक आत्महत्या करने के लिए जा रहे हैं। कैसे? बेटे, इसीलिए कह रहा हूँ कि जो हथियार अब बन रहे हैं, वहाँ जा करके आप देखिये, तो पायेंगे कि ऐसे हथियार बन रहे हैं, जो लाठी नहीं हैं, बंदूक नहीं हैं, तलवार नहीं हैं, तमंचे नहीं हैं, वरन् ऐसे हथियार हैं जिन्हें एक आदमी जाकर छोड़ सकता है और जो हजारों मील दूर जा करके विनाश कर सकते हैं। आज आदमी एक राकेट छोड़ सकता है, बम, हाइड्रोजन बम छोड़ सकता है और ऐसी गैस छोड़ सकता है कि सारे के सारे इलाके के आदमियों का सफाया हो जाये। पता ही नहीं चले, हत्याकाण्ड भी न हो, मारकाट भी न हो, सब जहाँ के तहाँ सोते हुए रह जाएँ। ऐसे हथियार और बम हैं। मालूम पड़ता है कि कोई पागल आदमी किसी दिन उन हथियारों पर हावी हो गया और उसने चला दिये, तो यह जरा सी पृथ्वी- नन्ही सी पृथ्वी, छोटी सी- बच्ची सी पृथ्वी को एक दैत्य- एक एटम बम खतम कर देगा। हमको मालूम पड़ता है कि अगर ऐसा कहीं हुआ, तो मनुष्य जाति लाखों वर्षों के लिए- करोड़ों वर्षों के लिए फिर वहीं चली जायेगी, जहाँ से कि अमीबा पैदा हुआ था। और जहाँ से पानी में से चीजें पैदा हुई थीं। फिर शायद हम नयी सभ्यता पैदा करेंगे। ऐसे समय में हम और आप रह रहे हैं।
पत्थर के मकान, पत्थर के आदमी
मित्रो! हम और आप ऐसे वक्त में रह रहे हैं जिसमें कि इंसान का स्वार्थ बेहिसाब रूप से बढ़ता हुआ चला जा रहा है। आदमी समझदार तो बहुत होता जा रहा है, अक्लमंद भी होता चला जा रहा है, पर आदमी पत्थर का बनता जा रहा है, निष्ठुर बनता जा रहा है। आज हमको हर जगह निष्ठुर आदमी दिखाई पड़ता है, पत्थर दिल दिखाई पड़ता है। पहले गाँव में कच्चे मकान बनते थे, फूस के झोपड़े बनते थे। अब फूस के झोपड़े नहीं बनते। अब हर जगह पत्थर के मकान बनते हैं, ईंटों के मकान बनते हैं। आज पक्के मकान, मजबूत मकान सब जगह दिखाई पड़ते हैं। शहरों में भी कच्चे मकान नहीं दिखाई पड़ते और गाँव में भी नहीं दिखाई पड़ते। बेटे, अब हमको मालूम पड़ता है कि अब मनुष्य पत्थर के मनुष्य, चट्टान के मनुष्य, लोहे के मनुष्य हैं। नहीं साहब! हाड़−मांस के हैं। हाँ बेटे, हैं तो हाड़−मांस के, पर मैं तेरे हृदय को कहता हूँ और तेरे कलेजे को कहता हूँ, जिसमें न किसी के लिए दया है, न कोई सिद्धान्त है। जिसके पास न आदर्श है, न कोई बड़ी बातें हैं, सिवाय पैसे के और औलाद के। काम वासना और तृष्णा के अलावा और कोई दूसरा लक्ष्य नहीं है। ऐसा घिनौना लक्ष्य कि जिससे इन्सानियत भी शर्मिन्दा होती है। भजन करने वाले क्षेत्रों में भी हम देखते हैं और दूसरे क्षेत्रों में भी हम देखते हैं। हर जगह हम देखते हैं कि जो आदमी अपने आपको दूसरों से अच्छा और ऊँचा बताते हैं, उनको भी हम देखते हैं। राष्ट्रीयता की दुहाई देने वालों को भी देखते हैं और सामाजिकता की दुहाई देने वालों को भी देखते हैं और उन्हें देखकर हम शर्मिन्दा होते हैं।
एक खौफनाक जानवरः आदमी
मित्रो! अध्यात्म के नाम पर हम लोहे के आदमी हैं और पत्थर के आदमी हैं और चट्टान के आदमी हैं। आदमी अगर चट्टानों के बनते चले गये, तो उनके भीतर से मोहब्बत चली जायेगी और मोहब्बत चले जाने के बाद में सहकारिता चली जायेगी और स्नेह चला जायेगा। स्नेह और सहकारिता चली जायेगी तो इसके बाद में ईमानदारी चली जायेगी और भलमनसाहत चली जायेगी। फिर क्या हो जायेगा? आदमी के बराबर खौफनाक जानवर दुनिया के परदे पर कोई नहीं होगा। शेर मारकाट में तो बहुत ताकतवर होता है, पर बेअक्ल होता है और बेवकूफ होता है। हाथी भी ताकतवर बहुत होता है, पर वह भी बेअक्ल होता है। लेकिन आदमी इतना समझदार है कि इसको किसी के पेट में मुँह खंगाल करके खून पीने की जरूरत नहीं है। किसी के पेट में बिना दाँत गड़ाए ही वह दूसरों का खून पी सकता है और आदमी को मुर्दा बना करके छोड़ सकता है। यह कला मनुष्य को आती है।
आदमी से अरे, डर रहा आदमी
मित्रो! आदमी बड़ा खौफनाक है और आदमी बड़ा खतरनाक है। खतरनाक और खौफनाक आदमी जिस तेजी से बढ़ रहा है, आदमी के दाँत और सींग जिस हिसाब से बढ़ रहे हैं, उससे मालूम पड़ता है कि अब ये राक्षस होने वाला है। इसके अंदर से दया, करुणा, ममता, स्नेह, दुलार और आदर्शवाद के सारे सिद्धान्त खत्म होते चले जा रहे हैं। अगर तरक्की इसी हिसाब से होती चली गयी तो आप देखना थोड़े दिनों में वह भूत- पलीत हो जायेगा, जिन्न-मशान हो जायेगा, जिससे कि एक दूसरे को डर मालूम पड़ेगा। आदमी को देखकर आदमी डरेगा और कहेगा कि देखो आदमी जा रहा है, होशियार रहना। पहले आदमी को देखकर हिम्मत बँधती थी कि आदमी आ गया। वह हमारी सहायता कर सकता है और हम एक से दो हो गये, लेकिन बेटे, अब हमको भय मालूम पड़ता है कि कहीं ऐसा न हो कि हमारे साथ- साथ जो व्यक्ति चलता है, वही हमारे लिए पिशाच न सिद्ध हो। रेलगाड़ी के डिब्बे में हम बैठते हैं और पास में दूसरा आदमी बैठा हुआ रहता है। बार- बार हम देखते हैं कि कहीं यह जेबकट तो नहीं है। बार- बार पूछते हैं कि भाई साहब! आप कहाँ से आये हैं? कहाँ जायेंगे? बार- बार हम देखते रहते हैं कि कहीं यह हमारे गले की जंजीर न ले जाये और हमारी जेब न काट ले।
कैसी है यह प्रगति?
साथियो! आदमी से आज हमको डर लगता है। यदि यह तरक्की इसी हिसाब से होती रही, इसी हिसाब से सिद्धान्त- विहीन आदमी, आदर्श विहीन आदमी अगर बढ़ता रहा, इसकी समझदारी बढ़ती रही, शिक्षा बढ़ती रही, यह इसी तरह एम.ए. करता रहा तो आदमी आदमी को खा जायेगा, फिर एक भी आदमी जिंदा नहीं रहेगा। इन आदमियों की वजह से आज सब जगह नरक बनेंगे। जहाँ कहीं जिस घर में ऐसे आदमी रहेंगे, उस घर को नरक बना करके छोड़ेंगे। जिस मोहल्ले में रहेंगे, जिस गाँव में रहेंगे, जिस नगर में रहेंगे, जिस देश में रहेंगे, उसका सफाया करके रहेंगे। बेटे, अब ऐसी परिस्थितियाँ सामने आ रही हों तो मालूम पड़ता है कि दुनिया अब मरने के लिए जा रही है। आदमी की जो तरक्की हो रही है, उसे देखकर ऐसा मालूम पड़ता है कि इससे तो हमारा पिछड़ापन लाख दर्जे अच्छा था। यह तरक्की मुझे बड़ी खौफनाक मालूम पड़ती है। उसे देखकर मालूम पड़ता है कि हम किसी भयानक युग की दिशा में चले जा रहे हैं।
आसन्न विभीषिकाएँ
बेटे, एक और भी बात हमको मालूम पड़ती है जिससे लगता है कि हम किसी भयानक जमाने की तरफ तेजी से बढ़ते चले जा रहे हैं। वह क्या चीज है? वह है बेटे, संतानों की संख्या। संतानों की संख्या जिस तेजी से बढ़ती जा रही है, गुणन प्रक्रिया के हिसाब से- रिकरिंग प्रक्रिया के हिसाब से, चक्रवर्ती ब्याज के हिसाब से बढ़ रही है। अगर वह इसी हिसाब से बढ़ती रही, तो मुझे दिखाई पड़ता है कि अभी तो स्कूलों में जगह नहीं मिलती, नौकरी के लिए जगह नहीं मिलती, रेलगाड़ियों में जगह नहीं मिलती, अमुक स्थान में जगह नहीं मिलती, तो सौ वर्षों के अन्दर आगे चलकर सड़क पर चलने के लिए जगह नहीं मिलेगी। पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा। खुराक की तो मैं क्या कहूँ। आदमी को भूख से तड़प- तड़प करके मरना पड़ेगा। जिस हिसाब से आज आदमी औलाद पैदा करते चले जा रहे हैं, आदमियों की यह आदत इतनी भयंकर है कि आप देख लेना इसके क्या परिणाम होते हैं। और भी बहुत सी बातें हैं, जिनसे मालूम पड़ता है कि हम किसी भयंकर समय की ओर तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।
सँभलेगा अवश्य आदमी
परन्तु गुरुजी! क्या यह भयंकर समय आयेगा? नहीं बेटे, मेरा विश्वास है कि नहीं आयेगा, क्योंकि आदमी बड़ा समझदार है। आदमी बड़ा अक्लमन्द है। यह बढ़ता तो है, पर ठोकर खाने के बाद में संभल जाता है, समझ जाता है, उसे अक्ल जरूर आती है। कितने ही युग आ चुके जब ठंडक पड़ी, बरफ से दुनिया जम गयी। लेकिन आदमी इतना होशियार है कि उससे भी मुकाबला कर लेता है और संभल जाता है। मैं आपको बताता हूँ कि खौफनाक परिस्थितियाँ कैसी आ रही हैं? खतरे कैसे आ रहे हैं? पर मैं आपको आश्वासन देना चाहता हूँ कि आदमी के भीतर जो सुपीरियारिटी है, आदमी के भीतर जो महत्ता है, वह समय के अनुसार समझ जाती है। वह बढ़ता तो है मरने के लिए, चलता तो है आग के पास जाने के लिए, लेकिन जब अंगुलियाँ जलने लगती हैं, हाथ झुलसने लगता है, तो वह पूरे हाथ को जलने से पहले ही उसे पीछे खींच लेता है। हम देखते हैं कि गलती से जब बच्चा आग के पास चला जाता है और जरा सी उसकी अंगुली जलने लगती है तो वह पीछे भाग खड़ा होता है।
सामान की नहीं गरिमा की जरूरत
मित्रो! आदमी समझदार है और इस समझदारी पर मुझे विश्वास है। इसलिए मैं जानता हूँ कि नया युग आयेगा। वर्तमान परिस्थितियों का विकल्प यही हो सकता है कि हम मानवीय गरिमा और मानवीय सिद्धान्तों को फिर से ठीक करें। सामान की कमी नहीं है। सामान की कमी को अगर पूरा भी किया तो मैं समझता हूँ कि इससे आदमी की किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। आप सामान की कमी को कहाँ तक पूरा करेंगे। अमेरिका से ज्यादा तो नहीं कर सकते, जहाँ प्रत्येक आदमी के लिए प्रतिदिन की औसत आमदनी दो हजार मासिक है। दो हजार रुपये मासिक कैसे है? जैसे मान लीजिए आप अपने घर में पाँच आदमी रहते हैं। आप रहते हैं, आपकी बीबी रहती है, तीन बच्चे रहते हैं। इस तरह आप पाँच हुए तो औसत आमदनी क्या होनी चाहिए? आपकी आमदनी दस हजार रुपया महीना होनी चाहिए। फिर आपकी दो हजार की औसत आमदनी फेल हो सकती है। इतने बड़े आमदनी वाले देश में आप जाकर देखिए और पता लगाकर आइए, उन किताबों को पढ़िए जिनमें अमेरिका की रिपोर्ट छपती है। तो आप पायेंगे कि वहाँ का समाज कितना दयनीय, कितना गया- बीता समाज, कितना पिछड़ा हुआ समाज, कितना हाहाकार करता हुआ समाज, कितना मरणोन्मुख समाज और कितना पतनोन्मुख समाज दिखाई पड़ेगा।
समाधान यह नहीं
गुरुजी! तो क्या धन से हमारी समस्याएँ सुलझ जायेंगी? बेटे, धन से समस्याएँ नहीं दूर हो सकतीं। विज्ञान से भी नहीं हो सकती, पैसे से भी नहीं हो सकती। जब आदमी की जीवात्मा ही मरती चली जायेगी तो पैसा क्या करेगा? आदमी पैसा नहीं है, आदमी हड्डियाँ नहीं है और माँस भी नहीं है। आदमी के भीतर एक सोल काम करती है, चेतना काम करती है। चेतना की खुराक, चेतना की राहत और चेतना का नियंत्रण न मिल सकता, तो बाहर की वस्तुएँ क्या करेंगी? हम रोज देखते हैं, पैसे वालों को देखते हैं, विद्वानों को देखते हैं, धनवानों को देखते हैं, मालदारों को देखते हैं, सेहतवालों को देखते हैं, ताकतवालों को देखते हैं, पहलवानों को देखते हैं और उनकी घिनौनी जिंदगी को देखते हैं। उनके सामने चारों ओर जो परिस्थितियाँ खड़ी हुई हैं, उसे देखकर हम भाग खड़े होते हैं और कहते हैं कि हे भगवान! हमको ऐसा धनवान मत बनाना। हमको ऐसा बलवान मत बनाना। हमको मत बनाना ऐसा विद्वान। बेटे हमको इस विद्या से डर लगता है। हम चाहते हैं कि इस तरक्की की बनिस्बत हमारा पिछड़ापन ही हमारे पल्ले से बँधा रह जाय तो अच्छा है।
प्रेम- त्याग से भरा होगा सतयुग
बेटे, मैं देखता हूँ कि नया युग आयेगा, तो कैसा युग आयेगा? यह ऐसा युग आयेगा जिसमें आदमी के पास नीति, आदर्श, दर्शन, सिद्धान्त, भलमनसाहत- ये सिद्धान्त उसके पास होंगे। और थोड़ा सामान होते हुए भी आदमी अपना गुजारा कर लेगा। ऐसा युग आयेगा, जब आदमी संयम से रहना सीखेगा और इसी शरीर में से अपनी मजबूती पैदा कर लेगा, दिली जीवन पैदा कर लेगा। ऐसा जमाना आयेगा जिसमें हम अपने घरों में अपने बाल- बच्चों के साथ प्यार- मोहब्बत के साथ हँसती- हँसाती हुई जिन्दगी व्यतीत करेंगे। बच्चे अपने पापा से लिपट जाया करेंगे और पाप अपने बच्चों को कंधे पर रखकर के यह अनुभव करेंगे कि यह भगवान का बेटा है, भगवान का दिया हुआ छोटा सा खिलौना है। अपने पति को देख करके पत्नी खुश हो जाया करेगी। जिस तरीके से सूरज को देख करके कमल खिल जाता है, उसी तरीके से स्त्रियाँ अपने पतियों को देख करके खिला करेंगी और पति अपनी पत्नी को देख करके कहेंगे कि साक्षात् लक्ष्मी हमारे घर में विद्यमान है। हमारे घर में सरस्वती विद्यमान है। हमारे घर में गायत्री विद्यमान है, फिर क्या कमी है? बेटे, हम ऐसे ही प्रेम- मोहब्बत की दुनिया को आता हुआ देखते हैं। और उसके लिए तैयारी करने में हमको कोई निराशा नहीं होती। क्योंकि मालूम पड़ता है कि भगवान उस जमाने को लायेंगे। रात के बाद जब दिन आ सकता है, तो खराब और गंदे जमाने के बाद अच्छा समय क्यों नहीं आयेगा? यह तर्क, यह दलील हमको कहती है। भविष्य की आशाएँ हमको कहती हैं, प्रकृति का चक्र हमको बताता है। हर चिह्न बताता है कि नया युग और नया जमाना आ रहा है और पुराना बदलने जा रहा है।
अग्रगामी बनिए
तो महाराज जी फिर क्या करना चाहिए? बेटे, आपके हाथ में एक सौभाग्य है। आप चाहें तो सौभाग्य का फायदा उठा सकते हैं। कैसे? आगे वाली लाइन में जो लोग चला करते हैं, यह श्रेय उन्हीं के हिस्से में आता है। भीड़ में अगर आप कभी शामिल हों और अगर फोटो खिंचे, तो सबसे पहले आपका ही फोटो खिंचेगा। इसलिए पीछे चलने की बनिस्बत जहाँ आपको यह मालूम पड़ता हो कि यहाँ कुछ नफे का काम है और कोई अच्छा काम है, तो आपको आगे- आगे चलना चाहिए। काँग्रेस के आन्दोलन में शुरू- शुरू में जो लोग गये थे, उन्हें मजा आ गया और वे क्या से क्या बन गये। पीछे तो बहुत सारे आदमी आ गये और बहुत से चलते गये। लेकिन जिनके नाम आते हैं, वे हैं- जो कि पहले गये थे। गाँधी जी के नमक सत्याग्रह में जितने लोग गये थे, उनकी कुल तादात उन्यासी थी। वे लोग गाँधी जी के साथ नमक बनाने गये थे। महादेव भाई देसाई भी थे, प्यारेलाल जी भी थे और दूसरे, तीसरे आदमी थे। मन में आया काश! हम भी उन लोगों में शामिल होते, तो हमारा भी फोटो खिंच जाता और हमारी भी फिल्म बन जाती। लेकिन हम आगे की लाइन में नहीं रह सके। बेटे, आगे की लाइन में, अच्छे कामों की लाइन में जो आदमी आगे चलते हैं, उनका बहुत नाम होता है।
सभी में अकेला एक अंगद
मित्रो! अंगद आगे की लाइन में यह बताने के लिए थे कि देखो राम- रावण युद्ध होने वाला है और अब कुछ नया हेर- फेर होने वाला है। अंगद लंका गये थे और रावण की सभा में पैर जमाकर खड़े हो गये थे। बेटे, अंगद का नाम रामायण में लिखा हुआ है। अंगद का नाम सुन करके हम बहुत गुस्सा आता है। क्यों साहब! अंगद अकेले तो नहीं थे, बहुत सारे लोग थे। हाँ बेटे, बहुत सारे लोग थे। उनमें से एक का नाम नल था, एक का नील था, एक का नाम सुग्रीव था। एक नाम क्या, बहुत सारे ढेरों आदमी थे, बंदर थे, भालू थे। तो फिर अंगद की बात क्यों कहते हैं? अंगद की बात बेटे मैं इसलिए करता हूँ कि वह सबसे आगे वाली लाइन में खड़े थे। जब राम- रावण युद्ध होने वाला था, तो अंगद पहली वाली भूमिका में आगे जा करके खड़े हो गये थे और उन्होंने अगली वाली भूमिका का उत्तरदायित्व अपने कंधों पर लिया था।
अच्छा समय यही है
मित्रो! अब ठीक उसी तरह का समय आ गया है। आप चाहें तो सबेरे निकलने वाले सूरज की तरीके से श्रेय ले लें। नया युग तो आयेगा ही। आप काम न करें तो भी बेटे आयेगा। जरूर आयेगा। आप इस बात को नोट करके रखना कि अब नया समय अवश्य आयेगा। अगर नया समय नहीं आयेगा, तो मनुष्य जाति की सामूहिक हत्या हो जायेगी और आत्महत्या करके मनुष्य जाति हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगी। गुरुजी! ऐसा हो जायेगा? नहीं बेटे, ऐसा नहीं हो सकता है। बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी मैंने आशा का दीपक जला करके रखा है। खराब से खराब परिस्थितियों में भी मैं यह उम्मीद करता रहता हूँ कि कल नहीं तो परसों अच्छा समय आने ही वाला है। बेटे, अच्छा समय जरूर आयेगा। मैं अपने विश्वास के आधार पर, आशाओं के आधार पर, मानव जाति की गरिमा के आधार पर और जिस भगवान ने ऐसी सुन्दर दुनिया बनाई है और ऐसा सुन्दर आदमी बनाया है, उसकी बात पर विश्वास करते हुए मैं ख्याल करता हूँ कि अच्छा दिन आने वाला है और जल्दी ही आने वाला है।
आप चाहे जो भूमिका ले लें
मित्रो! ठीक यही समय है, जबकि नये युग की, नये समय की शुरुआत चल रही है और नया समय बदल रहा है। आप चाहें तो अपनी मुनासिब भूमिका को ग्रहण कर सकते हैं। आप चाहें तो पीछे भी चले जा सकते हैं। आप चाहें तो बैठे भी रह सकते हैं। आप न करेंगे तो कोई हर्ज की बात नहीं है। आप न करेंगे तो भगवान की हवाएँ ऐसे तेजी के साथ आयेंगी कि आप न उड़ना चाहें, तो भी पत्ते उड़ेंगे और दूसरी चीजें उड़ेंगी। भगवान की जब इच्छा होती है तो कोई न कोई काम कहीं न कहीं से हो ही जाता है। अगर नये युग को आगे लाने वाला मुर्गा नहीं बोलेगा, तो क्या सबेरा नहीं होगा? मुर्गा बोलता है, तो अच्छा मालूम पड़ता है कि अच्छा साहब! मुर्गा बोल गया। अब तो उठें। हाँ साहब! उठिए, अब तो मुर्गे ने आवाज लगा दी। मुर्गा न हो तो? तो भी बेटे, सबेरा तो होगा ही। मैं चाहता था कि आप का नाम लोगों की जबान पर हो कि सबेरे के लिए मुर्गा बोला, कुक्कड़ू कूँ की। आप भी बोलिए न कुक्कड़ूं कूँ, तो मजा आ जाये और आप भी खुश हो जाएँ और हर आदमी के दिमाग में आ जाय कि सबसे पहले उठने वाला कौन है? सबको आवाज लगाने वाला कौन है? सबसे पहले शंख बजाने वाला कौन है? सबसे बड़ा पंडित कौन है? सबसे बड़ा मुल्ला कौन है? मुर्गा। आप चाहें तो मुर्गा हो सकते हैं।
मात्र दिलेरी चाहिए
तो महाराज जी! मुर्गा बनने के लिए क्या करना पड़ेगा? बेटे, एक काम करना पड़ेगा और वह है- दिलेरी। दिलेरी के अलावा और किसी भी बात की जरूरत नहीं है आपको। ज्ञान की जरूरत है? नहीं बेटे, ज्ञान की कोई खास जरूरत नहीं है। दुनिया में ज्ञान वालों ने बड़े काम नहीं किये हैं। दिलेर लोगों ने बड़े काम किये हैं। फ्रांस की स्वाधीनता की जिम्मेदारी वहाँ के पढ़े- लिखे लोगों के जिम्मे नहीं थी, वहाँ के वकीलों के जिम्मे नहीं थी, पी.एच.डी. लोगों के हाथ में नहीं थी और पंडितों के जिम्मे नहीं थी और आचार्यों के जिम्मे नहीं थी। किसके जिम्मे थी? किसान की एक छोकरी के जिम्मे थी। सत्रह- अठारह वर्ष की छोकरी थी, जिसका नाम था जोन ऑफ ऑर्क। जोन ऑफ ऑर्क घोड़े पर चढ़ करके चल पड़ी। उसने कहा कि अंग्रेजों से मैं लड़ूँगी। बस अंग्रेजों से लड़ने के लिए वह लड़की, जो नाम मात्र की पढ़ी थी, चल पड़ी। और जब चल पड़ी तो आगे- आगे वह चली और उसके पीछे- पीछे सारा फ्रांस चल पड़ा। उसने अंग्रेजों को हरा दिया और फ्रांस फिर से आजाद हो गया।
मछली की तरह धारा को चीरते हुए
मित्रो! आप आगे- आगे चलें, तो आगे चलने के लिए आपको किस चीज की जरूरत है। हथियारों की? नहीं बेटे, हथियारों की कोई खास जरूरत नहीं है। पैसे की? पैसे की जरूरत नहीं है। विद्या की? विद्या की भी जरूरत नहीं है। सिर्फ एक चीज की जरूरत है और उसका नाम है- दिलेरी। दिलेरी माने हिम्मत। हिम्मत की जरूरत है। हिम्मत किसे कहते हैं? हिम्मत से मेरा मतलब उस दिलेरी से नहीं है, जो डाकुओं में पाई जाती है, लुटेरों में पाई जाती है, ठगों में पाई जाती है। उनमें भी बड़ी दिलेरी होती है, पर मेरा मतलब उससे नहीं है। मेरा मतलब उससे है जो समय की धारा को चीरते हुए, वातावरण को चीरते हुए उलटी दिशा में चल सकते हों। उसको मैं दिलेरी कहता हूँ। दिलेरी का एक उदाहरण है- मछली। पानी जब बहता है, नदी में बहाव आता है, तब पानी के साथ सब बह जाते है। छप्पर बह जाते हैं, काँटे बह जाते हैं, लकड़ियाँ बह जाती हैं, हाथी बह जाते हैं, घोड़े बह जाते हैं, गाय- भैंस बह जाती हैं- सब बह जाते हैं। पर एक जानवर ऐसा है जो पानी के बहाव को चैलेन्ज करता है और यह कहता है कि हम आपके साथ- साथ चलने को कतई तैयार नहीं हैं। हम अपनी मर्जी से चलेंगे और उस जानवर का नाम है- मछली। मछली पानी की बीच धारा में छलछलाती हुई उलटी दिशा में चल पड़ती है।
पहले कोई आगे तो चले
मित्रो! लहरें लाख मना करती हैं कि हम नहीं चलने देंगे। लेकिन दिलेरी के सामने आप क्या कर सकते हैं। हम चलेंगे और उलटी दिशा में चलेंगे। सारे लोग सीधी दिशा में चलते हैं, लेकिन जो लोग धारा को चीरते हुए उलटी दिशा की ओर चलते हैं, उनको मैं दिलेर कहता हूँ। बस, इसी दिलेरी की आपको जरूरत है। आप ऐसी हिम्मत को अपने भीतर संभाल कर रखे रहें, जो समय को बदल डालने के लिए आवश्यक है। महाराज जी! फिर समय से मुकाबला किससे करना पड़ेगा? बेटे, एक हवा चल रही है, एक प्रवाह चल रहा है, लोगों की एक मनोवृत्ति चल रही है, आदमी का एक ढर्रा चल रहा है। इस ढर्रे को बदलने और नया ढर्रा लाने के लिए तो किसी न किसी को तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी। किसी न किसी को तो आगे चलना ही पड़ेगा। बाद में पीछे तो लोग चलेंगे ही। यही तो लोगों की आदत है कि पहले कोई आगे चले तो हम पीछे चलें। बेटे, आगे आपको चलना पड़ेगा। अगर आपको आगे चलने की दिलेरी है, हिम्मत है और आपके भीतर इतना माद्दा है कि हम जमाने की हवा और जमाने के ढर्रे का मुकाबला करते हुए नये ढंग से विचार कर सकते हैं और नयी परिस्थितियों को बुला लाने के लिए हिम्मत कर सकते हैं और अकेले आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ा सकते हैं, तो मैं कहूँगा कि वह उद्देश्य पूरा हो गया, जिसके लिए शिविर लगाया गया था।
दिलेरी का परिचय दें
साथियो! हमने वानप्रस्थों के लिए शिविर लगाया था और जहाँ दूसरे आदमी तरह तरह के कपड़े पहनते हैं, हमने आपको पीले कपड़े पहनाये थे। क्यों पहनाये थे? यों पहनाये थे कि दूसरा कोई आदमी पीले कपड़ा नहीं पहनता। आप बाजार में घूम आइए, आपको नीले पैन्ट पहनने वाले मिलेंगे, अमुक रंग के मिलेंगे, पर पीले रंग का कोई नहीं मिलेगा। पीले रंग में आपको शरम लगेगी? नहीं साहब! हमको कोई शरम नहीं लगेगी। देखो- यह आया पीले कपड़े वाला, यह आया बाबाजी, यह आया भिखारी। देखो यह आया पंडित, यह आया जोगी, यह आया ढोंगी, आदि बातें लोगों को कहने दीजिए। पीले कपड़े पहनने से आपने हिम्मत तो नहीं हारी? लोग यह कहते हैं। लोगों को कहने दीजिए, उनकी जबान है, वो भी चाहें कह सकते हैं। लेकिन गुरु जी ने हमको पीला कपड़ा पहनाया है, तो हमको पीले कपड़े में अपनी इज्जत मालूम पड़ती है और शान मालूम पड़ती है। नहीं साहब! ये भिखारी हैं और भीख माँगते हैं। हाँ माँगते होंगे, जा, तेरे घर माँगने आयें तो मत देना। बेटे जिसके भीतर दिलेरी है, वह सारी दुनिया की हँसी को देख करके भी अपनी जगह पर खड़ा रह सकता है। मैं उसको दिलेर कहता हूँ। इस आदमी से मैं कुछ उम्मीद कर सकता हूँ।
मुझे नया आदमी चाहिए
मित्रो! नया जमाना लाने के लिए, नयी फिजाएँ पैदा करने के लिए शायद ऐसे आदमी काम आ जायें। जो आदमी ढर्रे पर बह रहा है, उसके लिए हम क्या कर सकते है। मुझे तो नया ढर्रा पैदा करना है। नया वक्त लाना है, नयी जिन्दगी पैदा करनी है, नया आदमी पैदा करना है और नये स्वभाव और नये संस्कारों से आदमी को ढालना है। इसलिए मुझे नया आदमी चाहिए और ऐसा आदमी चाहिए जो हवा से प्रभावित न हो। ढर्रे के बहाव को चीरने के लिए जिसके अन्दर कुव्वत और जिसके अन्दर कलेजा हो, मुझे सिर्फ ऐसे आदमी चाहिए। दूसरे आदमी नहीं चाहिए। मुझे खुशी है कि आप लोग ऐसे ही आदमियों में से हैं, जिन्होंने यह निश्चय किया कि हम अपना मनोबल संग्रह करेंगे। बेटे, मनोबल संग्रह करेंगे, तो फिर इसका इस्तेमाल क्या करेंगे मनोबल का इस्तेमाल करने के लिए कई रास्ते हैं। यह कौन सा हथियार है? आपने इसके साथ- साथ जो पीले कपड़े पहना है और मैंने जिसके लिए उम्मीद रखी है और जिस काम की आपको दीक्षा दी, जिस मनोबल की आपको मैंने दीक्षा दी, यह वह मनोबल है जो श्रेष्ठ कामों के लिए, आदर्श क्रिया- कलापों के लिए प्रेरणा देता है। ऐसे व्यक्ति लोगों की कोई चिन्ता नहीं करते कि लोग क्या कहते हैं।
मात्र भगवान की सलाह लें
बेटे, लोग बड़े गन्दे है, बड़े वाहियात हैं। इनकी सलाह, इनका मशविरा, इनके परामर्श से हमारा कोई काम बनने वाला नहीं है। ये चोरी के अलावा, चालाकी के अलावा, बदमाशी के अलावा, बेवकूफी के अलावा कोई सलाह नहीं दे सकते। इनके पास भलमनसाहत की सलाह कहाँ है? अरे एक आदमी पकड़कर मेरे पास लाइये, जो आपको भलमनसाहत और शराफत की सलाह देने के लिए तैयार हो। जब बेटे, शराफत की सलाह देने वाला कोई है ही नहीं, तो मैं क्या कर सकता हूँ। ऐसी स्थिति में आपको हिम्मत के साथ भगवान की सलाह और अपनी आत्मा की सलाह लेकर के आगे बढ़ना चाहिए। आगे बढ़ेंगे तो वह उद्देश्य पूरा हो जायेगा, जिसको हम वानप्रस्थ जीवन कहते हैं। वानप्रस्थ जीवन का उद्देश्य यही है। तो हमें क्या करना पड़ेगा? बेटे, एक- एक करके कदम बढ़ाता चल। कैसे? ऐसे कदम बढ़ाता चल, जिसमें कि तेरी हिम्मत सिद्धान्तों के प्रति निष्ठा का सबूत देती हो।
अपना बँटवारा करो
महाराज जी! क्या- क्या काम करूँ? बेटे, पहला काम तो यह कर कि एक बँटवारा कर दे। किसका बटवारा करूँ? इस चीज का बटवारा कर दे कि तेरी दुकान में दो आदमियों का हिस्सा है। अभी तो एक आदमी- एक पार्टनर निन्यानवे परसेंट माल खाता रहता है और दूसरे पार्टनर को अँगूठा दिखा देता है। उसे कुछ भी नहीं देता है। तू तो पहला इंसाफ यही कर कि दोनों को बराबर की हिस्सेदारी दे। दुनिया में सब जगह बेइंसाफी हो रही है। तू सबसे पहले इस बेइंसाफी को पहली बार अपने पास से दूर कर। यदि यह बेइंसाफी दूर हो जाये, तो इंसाफ चालू हो जायेगा। इंसाफ की दुनिया ही तो हमको लानी है। न्याय की दुनिया ही तो लानी है, भलमनसाहत की तो दुनिया ही लाती है। इसलिए निजी जीवन में जो बेईमानी हो रही है, इसको तू पहले ठीक कर दे। पहले तू यहाँ से चल, फिर और बताऊँगा।
कायसत्ता और जीवात्मा
मित्रो! क्या करना चाहिए? यह करना चाहिए कि अपनी दुकान में हम दो आदमी हैं- लाला चुन्नूलाल, लाला मुन्नूलाल एण्ड संस कौन सी है हमारी दुकान? यह शरीर ही हमारी दुकान है। इसमें दो आदमी काम करते हैं। इसमें दो आदमियों का हिस्सा है- एक हमारा शरीर और एक हमारी जीवात्मा। दो की सम्मिलित दुकान है। बेटे, हम शरीर से काम करते हैं। यह भी हमारा एक पार्टनर है, जो दिन- रात काम करता है और एक हमारी जीवात्मा है, जिसकी वजह से यह पार्टनर जिन्दा है। जिसकी वजह से हम काम कर सकते हैं। जिसकी वजह से हमारी लाइफ काम करती है। हम दो आदमी हैं। दोनों आदमियों की मशक्कत से, दोनों आदमियों की मेहनत से, दोनों आदमियों के सहयोग से हमारे जिन्दगी की नाव चलती है। लेकिन एक आदमी इसका फायदा उठाता है और दूसरा आदमी दिन- रात मरता रहता है। न किसी को यह फिकर है कि यह मर गया या जिंदा है। न कोई इसको पानी पिलाता है, न कोई इसको रोटी खिलाता है। सूख- सूख कर यह काँटा हो गया है और मरने के नजदीक आ गया है। जबकि एक आदमी मोटा होता जाता है।
इस गिरोह से बचें
बेटे, यह क्या हो रहा है? बेइन्साफी तेरे भीतर हो रही है। कैसे? जिंदगी का जो कुछ भी फायदा है, हमारा बहिरंग उठाता है। बहिरंग से क्या मतलब है? बहिरंग से मतलब हमारे शरीर से है। सारा फायदा हमारा शरीर उठाता है और जीवात्मा बिलखती रहती है। जो भी वक्त होता है, वह सारे का सारा हमारे शरीर के लिए होता है। हमारे खाने के लिए, हमारे ऐय्याशी के लिए, हमारे मनोरंजन के लिए, हमारे मौज- मजा के लिए और हमारे शरीर के साथ जो आदमी इस रस्सी से बँधे हुए हैं, शरीर की वजह से बँधे हैं, आत्मा की वजह से नहीं बँधे हैं। हमको कामवासना की हवस होती है तो हम बीबी पैदा कर लेते हैं और बीबी बच्चे पैदा कर देती है। इसलिए वे सब हमारे शरीर से ताल्लुक रखते हैं। वे हमारे शरीर के रिश्तेदार हैं। वे हमारी आत्मा के रिश्तेदार नहीं है। हमारे चारों ओर रिश्तेदारों का गिरोह जमा हो गया है। यह जो गिरोह है, हमारी जिंदगी की सारी की सारी कमाई के ऊपर हाथ साफ करता रहता है।
कोई अहसान नहीं कर रहे भजन करके
बेटे, आत्मा के नाम पर हमारे पास कुछ भी नहीं है। नहीं साहब! हम दो माला रोज जप करते हैं। बेटे, मैंने सौ बार कहा है, फिर सौ बार अभी और कहूँगा कि जो आप भजन करते हैं, वह दाँत साफ करने के बराबर है और बालों में कंघी करने के बराबर है। भगवान पर कोई अहसान नहीं है। भगवान ने मनुष्य का जीवन इसलिए नहीं दिया कि हमारे लिए भजन करना। भजन कोई चीज नहीं है। बेटे, भजन तो अपने मन की मलीनता की सफाई के लिए है। इसके द्वारा हमारी जीवात्मा को कोई पोषण नहीं मिलता। अगर पोषण मिला होता, तो वे जो संत, बाबाजी गंगाजी के किनारे, जमुना जी के किनारे बैठे रहते हैं और पंडित लोग जो भीख माँगते रहते हैं, सारे दिन रामायण का पाठ करते रहते हैं, इनके अन्दर आपको कोई तेज दिखाई पड़ता है? इनके अन्दर कोई वर्चस्, आपको दिखाई पड़ता है? इनके अन्दर कोई गौरव दिखाई पड़ता है? इनके अन्दर कोई जीवन दिखाई पड़ता है? इनके अंदर कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता।
श्रेष्ठ कामों का सुख
मित्रो! राम के नाम की बात मैं नहीं कहता, मैं तो यह कहता हूँ कि हमारे आत्मा की खुराक, जिसको हम शान्ति कहते हैं सुख कहते हैं। जिसको हम संतोष कहते हैं, कहाँ है? सुख वह होता है जो हमारे शरीर को मिलता है। शरीर सुख उठाता है। जब जीभ से मीठी चीजें खाते हैं, तो हमको सुख मिलता है। कामवासना के सेवन में हमें सुख मिलता है और सिनेमा देखने के लिए जाते हैं, तो हमें सुख मिलता है। सुख किसको मिलता है? शरीर को मिलता है। बस शरीर को मौज मिलती रहती है। हमारी वासना पूरी होती रहती है, तृष्णा पूरी होती रहती है, लेकिन हमको शान्ति और संतोष नहीं मिलता है। शान्ति और संतोष कैस मिलता है? बेटे संतोष, भजन से नहीं मिलता है, श्रेष्ठ काम करने से मिलता है। आदर्शों को जीवन में ढालने से मिलता है। ऐसे काम करने से मिलता है जिसमें हमारी जिंदगी दूसरे के सामने नमूने की जिंदगी बन सके। इससे हमें संतोष मिलता है। उससे हमारा गर्व पूरा होता है, गौरव मिलता है। उससे हमारी जीवात्मा गौरव अनुभव करती है कि सारे के सारे लोग जहाँ गंदी, घटिया और निकम्मी जिंदगी जी रहे थे, तब हमने मुसीबतों के बीच भी, कठिनाइयों के बीच भी एक ऐसी जिंदगी जी, जो प्रकाश स्तंभ का काम करती रही।
प्रकाश स्तम्भ बनें
प्रकाश स्तंभ, जो अकेला समुद्र में खड़ा रहता है, लेकिन वहाँ से लाइट फेंकता रहता है। ताकि समुद्र में जाने वाली नावें और जहाज डूबने न पायें। वह इशारा करता रहता है कि यहाँ मत आइए, चट्टान है। यहाँ से दूर चलिए। समुद्र में खड़ा हुआ प्रकाश स्तंभ- लाइट हाउस रात भर हमको बताता रहता है। आदमी का यह गर्व और आदमी का यह गौरव है ओर आदमी की यह शान है, इज्जत है कि बाकी लोगों ने जहाँ- सब लोगों ने जहाँ अपने ईमान गँवा दिये। लोगों ने जब अपने सिद्धान्त गँवा दिये, तब हमने गरीबी में रहते हुए भी, दुखियारे होते हुए भी, कंगाली का मुकाबला करते हुए भी हमने ऐसी नेक और शराफत की जिंदगी जी, जिसको देख करके हमारे पीछे आने वाले आदमी अपनी राह तलाश कर सकते हैं। ऐसी जिंदगी हमने जी। बेटे, छोटे सितारे की जिंदगी धन्य है। रात को एक छोटा सितारा चमकता रहता है। रात में जब सभी ओर अँधेरा फैला हुआ है। अब हमको कहाँ चलना चाहिए, कहाँ जाना चाहिए? तब रात को निकलने वाला सितारा रास्ता बताता है।
सितारा! तू धन्य है
सितारा कहता है कि आइए हम रास्ता बता सकते हैं। आप देखिए इधर पूरब है, देखिए इधर पश्चिम है। छोटा सा सितारा हमको रास्ता बताता है और भटकने वाला मुसाफिर, गुमराह होने वाला मुसाफिर रास्ता तलाश कर लेता है और देख लेता है और उसको धन्यवाद देता है। किसको? रात को निकलने वाले तारे को क्या कहता है- ‘फॉर ऑल स्पार्क,- लिटिल स्टार’। ऐ, छोटे तारे चमको, खूब चमको। ‘थैंक यू फॉर यूअर टिनी स्पार्क’ छोटी सी चिंगारी के लिए धन्यवाद। हाऊ आई वंडर ह्वाट यू आर।’ छोटे बच्चे गाते रहते हैं। दूसरे दर्जे की किताबों में लिखा रहता है, ऐ तारे! आप धन्य हो। आप जले- ठीक, आप बर्बाद हो गये- ठीक। आप छदाम के थे। आप एक मिट्टी के बने हुए थे, लेकिन आपने वह रोशनी पैदा की, जिसकी वजह से हम ठोकर खाने से बचे।
संत कौन?
मित्रो! वह आदमी, जिसने अपनी जिंदगी को इस तरीके से जिया जैसे कि छोटे वाले सितारे ने जिया, मिट्टी के छोटे से दीपक ने जिया, उसको शान्ति मिलने वाली है, संतोष मिलने वाला है। जिसके सफेद कपड़ों के ऊपर दाग- धब्बे नहीं लगे, जिसने गंदा जीवन नहीं जिया, लोगों के सामने घिनौने काम, घिनौने उदाहरण पेश नहीं किये। बेटे, मैं उसको इज्जतदार आदमी मानता हूँ और उसको मैं संत कहता हूँ। शरीफ आदमी को मैं संत कहता हूँ। आपने अगर शराफत की जिंदगी जी ली, तो समझ लीजिए संत की जिंदगी जी ली। ऐसे जमाने में जहाँ कि हर आदमी अपना ईमान खोता चला जा रहा है। एक- एक पैसे के लिए लोग ईमान खो रहे हैं। छोटी- छोटी बातों के लिए ओर जरा सी बातों के लिए फिसलते हुए चले जा रहे हैं। अगर आदमी इस फिसलन के जमाने में चट्टान की तरह से खड़ा रह गया तो मैं कहता हूँ कि उसको शान्ति मिलने वाली है। उसको सुख मिलने वाला है।
आत्मा की भूख पूरी करें
मित्रो! आपके दो हिस्सेदार है। एक हिस्सेदार आपका शरीर है और दूसरा हिस्सेदार आपकी जीवात्मा है। वह भी आपका पार्टनर है। उसको भी शेयर मिलना चाहिए- हिस्सा मिलना चाहिए। आपकी भूख तो उन चीजों की है जिसको हम वासना, तृष्णा कहते हैं। परन्तु आत्मा की भूख यह नहीं है। आत्मा की भूख यह है कि आपका चरित्र उच्चस्तरीय बनता रहे। उच्च- स्तरीय चरित्र बनाने के लिए आप अपने जीवन की संपदा में से कोई हिस्सा निकालते हैं कि नहीं, जबाब दीजिये? नहीं साहब! हम तो भजन करते हैं। बेटे भजन की बात करेगा, तो अबकी बार मैं गाली दूँगा। बड़ा आया भजन करने वाला, मैं भजन करता हूँ। भजन लेकर चला है। ले जा भजन को। भजन की भगवान के यहाँ कोई जरूरत नहीं है। हमने भगवान के यहाँ खाते में देखा था और यह पूछा था कि आपके यहाँ भजन का कोई एकाउण्ट है? उन्होंने कहा कि नहीं, यहाँ भजन का कोई एकाउण्ट नहीं है। हमारे यहाँ शराफत का एकाउण्ट है और आपने जिंदगी किस तरीके से जी है, इसका एकाउण्ट है। अब आप बताइये कि कैसी जिन्दगी जीते हैं। हम भजन करते हैं। नहीं, हमें आपकी जरूरत नहीं है। भगवान के यहाँ भजन से कोई ताल्लुक नहीं।
सहकारिता के चक्र
मित्रो! आपको क्या करना पड़ेगा? शराफत की और अच्छी जिंदगी जीने के लिए अपनी जीवात्मा को खुराक देने के लिए कमर बाँध करके खरा बनना पड़ेगा। अगर आप नये युग के संदेश वाहक के रूप में चलते हैं, तब आप यह काम कर सकते हैं। यह काम आपके स्वयं के काबू का है। नहीं साहब! हमारा कोई कहना नहीं मानता। कोई नहीं मानता होगा, लेकिन मैंने मान लिया। आप तो अपना कहना मान सकते हैं। आपकी अक्ल पर आपका अधिकार तो होना चाहिए। आपके शरीर पर आपका अधिकार तो होना चाहिए, फिर आप क्यों नहीं मानते? अपनी जिंदगी को आप शराफत से व्यतीत कीजिए। बेटे, हमारी जिंदगी में, मनुष्य की जिंदगी में एक और भी चीज है और वह है- हमारा शरीर चक्र, समाज चक्र, जल चक्र- यह सभी एक पहिए पर घूम रहा है- सहकारिता के ऊपर, कोआपरेशन के ऊपर, एक दूसरे की सहायता करने के ऊपर, सेवा करने के ऊपर टिका हुआ है। आप देखते नहीं हैं अपने शरीर को? हाथ कमाता रहता है, मुँह खाता रहता है, पेट हजम करता रहता है। हृदय में खून जाता रहता है और नाड़ियों में खून जमा रहता है। ये सभी एक दूसरे के सहकारिता पर टिके हुए हैं।
औरों के लिए जीना
मित्रो! अगर हमारे और आपकी तरीके से यह शरीर भी स्वार्थी बन जाय, तब बड़ी मुश्किल खड़ी हो जायेगी और कोई शरीर जिंदा नहीं रह सकेगा। यह मनुष्य समाज अगर बादलों को समुद्रों की तरीके से सहयोग नहीं करता रहेगा, तो यह मानव समाज मर जायेगा। समुद्र बादलों को पानी देते हैं, बादल जमीन पर बरस जाते हैं। जमीन का पानी नदियों में चला जाता है। नदियाँ समुद्र में चली जाती हैं। समुद्र से चक्र घूमता रहता है- सर्किल घूमता रहता है। यदि सर्किल को घूमने नहीं देना चाहते, तो फिर दुनिया में तबाही आयेगी और आपके लिए मुसीबतें लायेगी, अगर एक आदमी कुछ भी कमायेगा और स्वयं ही खाता रहेगा। दूसरों की भी कमाई खाता रहेगा और अपनी भी खाता रहेगा। जिस समाज में हम पैदा हुए हैं, उसकी समस्याओं के समाधान के लिए हम कोई योगदान नहीं देंगे, उसकी उपेक्षा करते रहेंगे? हमें किसी से क्या काम, की नीति अपनायेंगे। अपने मतलब से मतलब रखेंगे, तो बेटे मुसीबत आयेगी।नहीं साहब! यह चीज हमारी है और हम इसे पैसे दे करके लाये हैं। अच्छा तो कपड़ा कहाँ से लाये हैं? समाज ने बनाकर दिया है न? नहीं साहब! पैसे देकर लिया है। अच्छा, तो आप पैसा देकर के सब चीज लाये हैं? अच्छा, आपने जो माँ खरीदी थी, जिसने आपको नौ महीने पेट में रखा था और जिसने दूध पिलाया था, कितने पैसे में खरीदा था? बीबी, जो आपके पास है और सारी जिंदगी जो आपकी सेवा करती है, कितने पैसे में खरीदकर लाये? जिस जमीन पर आप रहते हैं। यह जमीन कितने पैसे में खरीदी है? जिस सड़क पर चलते हैं, उस सड़क को कितने पैसे में खरीदी है? जिस गंगा जी में नहा करके आये हैं, उसे कितने पैसे में खरीदा है? सूरज, जिसकी धूप और रोशनी में आप बैठे हैं, उसे कितने पैसे में खरीदा है? नहीं महाराज जी! मैं तो पैसे से लाया हूँ। पैसा देकर खरीदता है, बड़ा आया पैसे वाला।
समाज संस्कृति के प्रति आपका कर्तव्य
मित्रो! क्या हुआ? यह सारे का सारा समाज का अनुदान है, जिसकी वजह से हमको बोलना आता है, सोचना आता है। जिसकी वजह से हम दवा−दारू करते हैं। जिसके ज्ञान में हम रहते हैं और जिसकी वजह से हमारी तरक्की हुई है। उस समाज के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य हैं- हाँ, तो बेटे के ब्याह के साथ समाज का भी ब्याह करना है। जिस समाज में हम पैदा हुए, जिस देश में हम पैदा हुए, जिस धर्म में हम पैदा हुए, जिस संस्कृति में हम पैदा हुए हैं, जिस समय में हम पैदा हुए हैं, जिस युग में हम पैदा हुए हैं, उसके प्रति भी हमारी कोई जिम्मेदारी है कि नहीं? नहीं साहब! उसके प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। बस हमारी मौज करने की जिम्मेदारी है और औलाद की जिम्मेदारी है। चलो मान लिया कि आपकी औलाद की भी जिम्मेदारी है और शरीर की भी जिम्मेदारी है, पर वह भी आपकी जिम्मेदारी है, जो अभी हमने आपको बताया है। नहीं साहब! यह जिम्मेदारी हमारी नहीं है। तो बेटे मैं एक बात कहता हूँ कि आपको शान्ति नहीं मिलेगी। आपको चेन नहीं मिलेगा। आपकी जीवात्मा भीतर ही भीतर हाहाकार करती रहेगी कि हमने ऐसा घटिया जीवन जिया, जिसमें सिवाय स्वार्थों के कोई और दूसरी चीज के लिए गुंजायश नहीं थी।
बराबर का बँटवारा
बेटे, आपको क्या करना पड़ेगा? बँटवारा करना पड़ेगा। आप बँटवारा कर दीजिए और कह दीजिए कि अब तक जो बेइंसाफी चली, वह चली, आगे से नहीं चलेगी। आप लोग यहाँ से विदा होंगे, अब आप यह बँटवारा बनाकर जाइये कि आपकी जो कीमती जिंदगी है, भगवान का सबसे बड़ा उपहार है। इससे बड़ा उपहार और कोई नहीं है। भगवान के यहाँ इससे बड़ा कोई कोहिनूर हीरा नहीं है, जो हमको और आपको मिला हुआ है इंसानी जीवन के रूप में। इसके जो लाभ हैं, जो फायदे हैं, उसका एक हिस्सा शरीर को दिया कीजिए और एक हिस्सा जीवात्मा के उपभोग को पूरा करने के लिए दिया कीजिए। दोनों को बराबर बाँट दीजिए। आपके पास जो समय है, जो संपत्ति है, उसे बराबर हिस्से में बाँट दीजिए। नहीं साहब! हमारे पास तो कुछ भी नहीं है। बेटे, तेरे पास ढेरों सामान है। तेरे पास कई दौलतें हैं और ये इतनी कीमती दौलतें हैं कि भगवान के बेटे को यह कहने का अधिकार नहीं है कि हम गरीब हैं। भगवान के बेटे को अपने आपको गरीब नहीं कहना चाहिए और अपने बाप की बेइज्जती नहीं करानी चाहिए।
आप दौलतमन्द हैं
मित्रो! हमारे पास दौलतें हैं, जिसे असली दौलत कह सकते हैं। हमारे पास श्रम है, हमारे पास समय है, हमारे पास अक्ल है, हमारे पास प्रतिभा है। हमारे पास ये सभी चीजें हैं और ये हमारी दौलतें हैं। इन दौलतों को आप बाँट दीजिए। इन्हीं के आधार पर तो हम कमाते हैं। इन्हीं के आधार पर तो हम सिनेमा देखते हैं। इसी के आधार पर तो हमने मकान बना लिया है। इसी के आधार पर तो हम बड़े आदमी हो गये हैं। इसी के आधार पर तो हम पैसा कमाते हैं। अन्य सब कुछ हम इन्हीं के आधार पर कमाते हैं। भगवान की यह असली दौलत है, जिसे हम भगवान के यहाँ से लेकर आये हैं। इन्हीं चीजों की कीमत पर हमने जो कुछ भी कमाया है, उसका आधार यही है। हमारे पास और कोई दौलत नहीं थी। भगवान उन दौलतों को छीन ले, समय को छीन ले, श्रम को छीन ले, अक्ल को छीन ले, फिर देखें आप क्या कमा कर लाते हैं? बेटे यही असली दौलत है जिसका केवल रूप परिवर्तन हो जाता है और हम उसे रुपये के रूप में, अमुक के रूप में ले आते हैं। आप दौलतमंद हैं। आप यह मत कहिए कि हमारे पास दौलत नहीं है।
समय को बाँटिए
मित्रो! आप इस दौलत का बँटवारा और यह निश्चय कीजिए कि हम अपने श्रम का कितना हिस्सा, समय का कितना हिस्सा इस शरीर के लिए खर्च करेंगे और कितना जीवात्मा के लिए खर्च करेंगे। आप समय का बँटवारा कीजिए। आपके पास चौबीस घंटे समय है, आप इसे बाँटिए। इसमें से बारह घंटे भगवान को दीजिए और बारह घंटे शरीर को दीजिए। नहीं साहब! बारह घंटे तो बहुत ज्यादा होते हैं। अच्छा, बताइये कितना यम देंगे? महाराज जी! मैं तो रुपये में चार आने भगवान जी को दूँगा ओर बारह आने अपने लिए बचा कर रखूँगा। अच्छा भाई चल चार आने दे दे। हम भगवान जी से कह देंगे कि यह तो बड़ा वैसा आदमी है। यह तो आपको चार आने देना चाहता है और चौबीस घंटे में बारह आने का स्वयं मालिक कहलाना चाहता है। अच्छा, ला भाई छः घंटे भगवान को दे दे और अठारह घंटे तू खा जा। नहीं महाराज जी! यह तो ज्यादा हो गया। पच्चीस परसेंट तक का तो मैंने ख्याल नहीं किया था, छः घंटे तो बहुत होते हैं। आप कम करा दीजिए। हाँ करा दूँगा। तब भगवान को कितना समय देगा? साढ़े बारह परसेंट देगा? और साढ़े- छियासी परसेंट तू खा जा। इतना तो देगा कि इतना भी नहीं देगा? हाँ महाराज जी। इतना तो दे दूँगा।
योजनाबद्ध जीवन
अच्छा महाराज जी! चौबीस घंटे में तीन घंटे दें तो किसके लिए देंगे? बेटे, उसमें तेरे भजन को मैं शामिल नहीं करूँगा। भजन तो मैंने कभी शामिल नहीं किया। भजन को मैं व्यक्तिगत आवश्यकताओं में मानता हूँ। शरीर में हम साबुन लगाते हैं, बालों में कंघी करते हैं, कपड़े धोते हैं। बेटे, यह किसी पर अहसान नहीं है। इसे न धोया जाय तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी। दिमाग को धोने के लिए भजन न करूँ, तो बेटे दिमाग गंदा हो जायेगा। भगवान के ऊपर यह कोई अहसान नहीं है और यह जीवन की सार्थकता नहीं है। जीवन की सार्थकता के लिए हमको अपना चरित्र आदर्श बनाने के लिए, लोगों के सामने अपना नमूना पेश करने के लिए क्या करना चाहिए? और समाज को सुखी- समुन्नत बनाने के लिए क्या करना चाहिए? आपको इसकी प्लानिंग करनी चाहिए और इसके लिए योजना बनानी चाहिए। अपने श्रम का उपयोग कैसे करेंगे? समय का उपयोग कैसे करेंगे? आप इस तरीके से बटवारा बनाकर ले जाएँ और यहाँ से जाकर के ईमानदार आदमी की तरीके से जीवन जियें।
बिगाड़ा हमने है, ठीक हमें ही करना है
मित्रो! नये युग के लिए आपको लोगों के सामने नमूना पेश करना है। इसके लिए ढेरों के ढेरों सामान की जरूरत होगी। इसके लिए ढेरों की ढेरों अक्ल चाहिए, ढेरों की ढेरों समय चाहिए। बिगाड़ने के लिए तो थोड़ा सा सामान चाहिए, लेकिन बनाने के लिए ढेरों सामान चाहिए। हमने दुनिया को बिगाड़ा है और हम अभी भी बिगाड़ रहे हैं। बिगाड़ने के लिए हमने दुनिया को बिगाड़ा है और हम अभी भी बिगाड़ रहे हैं। बिगाड़ने के लिए हमने सिनेमा खोला है। सिनेमा की वजह से इसमें हमने कितना पैसा लगाया है, कितनी अक्ल लगायी है, कितने होशियार आदमी इसके लिए हमने इकट्ठे किये हैं। नट इकट्ठे किये हैं, गायन करने वाले इकट्ठे किये हैं, कलाकार इकट्ठे किये हैं। तब इतनी मेहनत करने के बाद हमने अपने बच्चे और बच्चियों को हिप्पी बनना सिखाया है। हमारा बेटा जो हिप्पी हो गया है और बाल रखाये इधर से उधर फिरता रहता है और जिसके बारे में यह पता नहीं चलता कि यह लड़का है या लड़की है। बेटे यह आफत जो हमने पैदा की है, बड़ी मेहनत से पैदा की है।
मित्रो! हमने सिनेमा बनाया और लड़के एवं लड़कियों के दिमागों में यह खुराफातें पैदा की, जिससे उनका शौर्य, उनका साहस, उनका पराक्रम, उनका तेज सब गायब हो गया। जनानियों की तरीके से, जनखों की तरीके से यह नहीं मालूम पड़ता कि ये कमबख्त लड़के हैं या लड़कियाँ हैं। न इनके चेहरे पर कोई तेज है, न सौम्यता। इनकी वही बनावट, वही शृंगार है जो शृंगार सारे दिन वेश्याएँ करती रहती हैं। सारे दिन बालों का शृंगार करते रहते हैं। बेटे, हमने ऐसी पीढ़ी संसार को दी है। यह हमारी जिम्मेदारी है। इसके लिए हमने ढेरों पैसे खर्च किये हैं और करोड़ों की संपत्ति लगाई है, तब हमने अपनी इन पीढ़ियों को खराब किया है। पीढ़ियों को बनाने के लिए बहुत सारी अक्ल चाहिए, बहुत सारा श्रम चाहिए, बहुत सारा धन चाहिए और बहुत सारा समय चाहिए।
आपको जिन्दगी जीकर दिखानी होगी
मित्रो! यह कहाँ से आयेगा? यह जन साधारण के जीवन में से निकल करके आयेगा। यह एक आदमी का काम नहीं है। यह बिड़ला सेठ का काम नहीं है, टाटा का काम नहीं है और यह किसी अमीर आदमी का काम नहीं है। यह जनसाधारण का काम है। हर आदमी को अपनी जिंदगी में से एक हिस्सा देना पड़ेगा, जिसको मैं अंशदान कहता हूँ। इस तरह से हर आदमी को अपना हिस्सा देना पड़ेगा और अपना हक एवं अपना पार्ट अदा करना पड़ेगा। इसके लिए आपको आगे आना चाहिए, क्योंकि आप मार्गदर्शक हैं। क्योंकि आप नेता हैं। क्योंकि आप समाज को आगे बढ़ाने के लिए चल रहे हैं। क्योंकि आप समाज को दिशा देने के लिए चल रहे हैं। इसलिए आपको क्या करना है? लोगों को व्यावहारिक जीवन में प्रयोग करके दिखाना आपका काम है। शिक्षण नहीं, बेटे नमूना पेश करना है। नहीं साहब हम व्याख्यान देंगे? बेटे, व्याख्यान से कोई काम नहीं चलेगा। नहीं साहब! कथा कहेंगे? कथा से बेटे कोई काम नहीं चलेगा। आपका व्याख्यान और आपकी कथा कब सार्थक होगी, जब आप अपनी जिंदगी का नमूना पेश करते हुए क्रिया और विचारों का समन्वय पेश करेंगे, तब आपकी कथा का कोई असर पड़ेगा।
क्रिया व विचार का समन्वय
मित्रो! अगर आपकी क्रिया और विचारों का समन्वय नहीं है, तो मैं कहता हूँ कि आपका कोई असर नहीं पड़ेगा। लोगों के ऊपर वेश्या का असर होता है। वेश्या अपनी जिंदगी में सौ भडुए पैदा कर देती है। उसके विचार और कर्म एक हैं। उसके दिमाग में दुराचार और व्यभिचार की जो वृत्ति है, वही उसके शरीर में भी है। शरीर और मन से वह एक है। एक होने से आदमी में ताकत पैदा होती है, कूबत पैदा होती है। इसी आधार पर वेश्या अपने ढाँचे में सैकड़ों आदमियों को ढाल ले जाती है। शराबी अपने ढाँचे में ढेरों आदमियों को ढाल लेते हैं। जुआरी अपने ढाँचे में ढेरों आदमियों को ढाल लेते हैं। जुआरी अपने ढाँचे में ढेरों को ढाल लेते हैं। ये सभी लोग ढाल लेते हैं, लेकिन हम किसी को नहीं ढाल पाये। कथा तो हमने बहुत सारी कही, भागवत् भी बहुत कही, रामायण की कथा कही, कहीं अमुक कथा कही, लेकिन हमारे कथा की वजह से कोई भी न हनुमान पैदा हो सके, न अर्जुन पैदा हो सके। न तुलसी दास पैदा हो सके, न सूरदास पैदा हो सके। कोई भी पैदा न हो सका। हमारी कथा कैसी निकम्मी है। न उसमें कोई जान है, न उसमें कोई जीवन है, न उसमें कोई प्रकाश है, न उसमें कोई प्रेरणा है। जीभ की लपलप, बेकार की लपलप हम करते रहते हैं। सिद्धान्तों की दुहाई, आदर्शों की दुहाई देते रहते हैं।
आपके पीछे भी ढेरों चलेंगे
मित्रो! पहले यह बताइये कि आपकी जिंदगी कैसी है? भगवान की भक्ति आपके जीवन में कैसी है? अपनी जिंदगी में भगवान की भक्ति उतार कर दिखाइये, फिर हम आपके पीछे पीछे चलेंगे। गाँधी जी ने अपनी जिंदगी में सत्याग्रह का जीवन जी करके दिखाया था, तब लोगों ने कहा कि हम भी आपके पीछे- पीछे चलेंगे। विनोबा ने सत्याग्रह का जीवन जिया, तब लोगों ने कहा कि हम भी आपके पीछे- पीछे चलेंगे। भगवान बुद्ध ने त्यागी का, संन्यासी का जीवन जिया और दिखाया कि भीतर से और बाहर से हम एक हैं। आपके पीछे भी ढेरों के ढेरों आदमी क्यों नहीं चलेंगे? जरूर चलेंगे, क्योंकि आप उन्हें नया युग, नया प्रकाश देने चले हैं। इसके लिए बेटे, आपको शुरुआत वहाँ से करनी पड़ेगी। नया युग लाने के लिए, नये युग के निर्माण के लिए जो समय की जरूरत पड़ेगी, अक्ल की जरूरत पड़ेगी, पैसे की जरूरत पड़ेगी, वह हम कहाँ से लायेंगे? हम चन्दा कहाँ से करेंगे? किसके ऊपर दबाव डालेंगे? किसको प्रेस करेंगे? हम प्रयास कहाँ से करेंगे? कौन देगा और कब तक देगा? बेटे, यह माँगने से नहीं मिलेगा। स्वेच्छा से जो अनुदान उत्पन्न होंगे, नया युग उसी से आरंभ होगा। उसी के आधार पर आगे बढ़ना संभव होगा।
शुरुआत करें अपने आपसे
मित्रो! यह काम कौन शुरू करेगा? यह काम शुरू करेगा- मुर्गा। मुर्गा कौन? मुर्गा आप और कौन? आप अपने से शुरू कीजिए। गुरुजी! यह कैसे शुरू करना पड़ेगा, मुझे तो अभ्यास भी नहीं है। हाँ बेटे, आपको अभ्यास नहीं है। इसीलिए मैंने कहा था कि आपको वानप्रस्थ का जीवन जीना चाहिए, जिसकी दीक्षा ले करके आप यहाँ से जा रहे हैं। यहाँ से विदा होकर जा रहे हैं। आप अपने कलेजे में इतनी हिम्मत ले करके जाइये कि शरीर से कहिए कि अब आपको केवल आपका हिस्सा मिलेगा, ज्यादा नहीं मिल सकता। हमारा शेयर होल्डर मरा जा रहा है ओर उस पार्टनर के हिस्से में जरा सा भी नहीं आ रहा है। आप चौबीस घंटे खा जाते हैं और हमारी सारी कमाई खा जाते हैं और हमारी सारी अक्ल खा जाते हैं। अब ऐसा नहीं हो सकेगा। अब हम अपनी जीवात्मा को भी देंगे। उसके लिए भी पचास प्रतिशत का शेयर सुरक्षित रखेंगे। आप यहाँ से जाने के बाद इस तरह हिम्मतवाला सिद्धान्त, हिम्मतवाला आदर्श अगर आप जीवन में ले करके विदा हों, तो मैं समझूँगा कि आपको जिस उद्देश्य के लिए और जिस काम के लिए बुलवाया गया था, उस काम में हमें सफलता मिल गयी। और जो आपको करना चाहिए, जो आप करने के लिए इच्छा करते हैं, आकांक्षा करते हैं, उसके बारे में मुझे यह विश्वास हो जायेगा कि आप यह कार्य जरूर करके दिखा सकते हैं, क्योंकि आपने अपने आपसे शुरुआत की है।
साथियो जो आदमी अपने आप से शुरुआत कर देता है, उसको सफलता मिल जाती है। जो परायों से सफलता की उम्मीदें करता रहता है कि आप वह कीजिए, आप ज्ञानवान बन जाइये, आप तपस्वी बन जाइये, आप महात्मा बन जाइये। और हम? हम जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे, तब तक बेटे आपकी बातें कोई नहीं सुनेगा। केवल आपका मजाक उड़ाया जायेगा। लेकिन जिस दिन आप यह कहेंगे कि आपको करना हो तो करना, नहीं करना हो तो न करना, हम करेंगे। और देखिये हम करके दिखाते हैं। जिस दिन आप इस तरीके से निश्चय कर लेंगे, मेरा विश्वास है कि आपके अन्दर क्षमताएँ, आपके अन्दर लोगों पर प्रभाव डालने की शक्ति जरूर पैदा हो जायेगी। और आप जहाँ कहीं भी जायेंगे, फिर आपको बातें करनी आती हो, चाहे न आती हो, बोलना आता हो चाहे न आता हो। आपको कथा कहनी आती हो या ना आती हो, आपका प्रभाव जरूर पड़ेगा। आपमें से प्रत्येक आदमी को मैं चाहता हूँ कि इस तरीके से आप यहाँ से विचार करके जाएँ।
बदलते युग में जिम्मेदारी
मित्रो! फिर आप क्या करेंगे? करने के लिए हमारी पुरानी पीढ़ियों के लिए एक काम काफी था। कौन सा? धर्मोपदेश। कथा कहना- भागवत् की कथा कहना, सत्यनारायण भगवान की कथा कहना, गंगाजी नहाना, भगवान जी के दर्शन करना। हमारी पहली वाली पीढ़ियाँ, जो हमारे बुजुर्ग थे, उनके लिए यही काफी था। क्योंकि उस जमाने में न चालाकियाँ थी, न उस जमाने में चोरियाँ थी, न उस जमाने में बदकारियाँ थीं, न बदमाशियाँ थीं। अब हमारे लिए एक नया काम आ गया है, एक नयी आफत आ गयी है। जिस जमाने में हम रह रहे हैं, उसमें हमको दो काम करने पड़ेंगे। क्या काम करने पड़ेंगे? यह काम करने पड़ेंगे कि भगवान ने जब कभी अवतार लिए हैं, ऐसे ही गंदे समय में लिए हैं जिसमें हम और आप पैदा हुए हैं। अवतारों में से प्रत्येक भगवान को दो काम करने पड़े हैं। भगवान का एक भी ऐसा अवतार नहीं हुआ है, जिसे दो काम न करने पड़े हों और वह एक ही काम करके चले गये हों। कथा करके चले गये हों, स्नान करा करके चले गये हों, कथा करके चले गये हों, स्नान करा करके चले गये हों, जप कराकर चले गये हों और तीर्थयात्रा कराकर चले गये हों। बेटे, ऐसा एक भी भगवान हमको दिखाई नहीं पड़ता।
भगवान के जितने भी अवतार हुए हैं, उन्होंने दो काम किये हैं। कौन- कौन से काम किये हैं-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥
दोनों काम जरूरी
भगवान कौन सा दो काम करता है? अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना। धर्म की स्थापना आवश्यक है। कथा कहना आवश्यक है। अखण्ड कीर्तन और ज्यादा आवश्यक है। गंगा नहाना उससे भी ज्यादा आवश्यक है, लेकिन एक और काम भी आवश्यक है। वह कौन सा है? आज अवांछनीयताएँ घर- घर में और मन- मन में समा गयी हैं। इनके विरुद्ध लोहा लेना और संघर्ष करना भी आवश्यक है। अब हमको दो काम करने पड़ेंगे। हमको लड़ाई भी लड़नी पड़ेगी और धर्म की स्थापना भी करनी पड़ेगी। हमको जमीन खोदनी भी पड़ेगी, ताकि नींव रखी जा सके और हमको चिनाई भी करनी पड़ेगी। बेटे, हमको दो काम करने पड़ेंगे। अपने खेत में गोड़ाई भी करनी पड़ेगी और बोवाई भी करनी पड़ेगी। हम यह दोनों काम करेंगे।
एक आँख दुलार की, एक सुधार की
मित्रो! हम ऐसे ही समय में पैदा हुए हैं जिसमें दो काम किये बिना हमारी कोई गति नहीं है। हमको एक आँख प्यार की और एक आँख सुधार की लेकर चलना पड़ेगा। बच्चों के लिए हम इसी तरह के तरीके काम में लाते हैं, नहीं तो हमारे बच्चे खराब हो जायेंगे। एक आँख से हम बच्चे को प्यार करते हैं कि तू हमारा प्यारा बच्चा है, बहुत प्यारा लड़का है। अच्छा हम तुझे मिठाई खिलायेंगे। लेकिन जब वह यहाँ- वहाँ पेशाब कर देता है, घड़ी तोड़ने की कोशिश करता है, तो हम दूसरी आँख से काम लेते हैं और कहते हैं कि मारे चाँटे के तेरे होश ठिकाने लगा देंगे और कान उखाड़ देंगे। चुपचाप बैठ, नहीं तो तेरे कान उखाड़ दिये जायेंगे। इस तरह बच्चे को डराते भी हैं। अगर आप बच्चे को डरायेंगे नहीं, और प्यार ही प्यार करते रहेंगे, तो देख लेना आपके बच्चे का क्या होता है? बच्चा खराब हो जायेगा। इस जमाने में हमको दोनों को लेकर चलना है। एक सुधार का लेकर चलना पड़ेगा और एक प्यार का लेकर चलना पड़ेगा।
हर भगवान ने यही किया
मित्रो! हर एक भगवान ने यही किया है। श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को कथा सुनाई, बेशक। गोवर्धन पहाड़ उठाया- बेशक। गोपियों के सामने नृत्य किया- बेशक। लेकिन महाभारत भी रचाया। उसे क्यों भूल जाते हैं? नहीं महाराज जी! मैं तो रास करूँगा। बेटे, रास भी कर और महाभारत भी लड़ और पहाड़ भी उठा। नहीं महाराज जी! मैं तो पहाड़ नहीं उठा सकता, केवल रास- नाच करूँगा। तो बेटे, यह भी बंद कर और नाच भी बंद कर। नहीं महाराज जी। यह नाच तो मैं जरूर करूँगा और उसे नहीं करूँगा। बेटे, उसे भी कर। रामचंद्र जी ने दो काम किये। उन्होंने रीछ- बंदरों को राक्षसों से लड़ने के लिए खड़ा कर दिया था। और क्या कर दिया था? उन्होंने शबरी के भक्ति की कथा भी बताई और रामगीता भी बताई थी। और यह भी किया था- ऋषियों के आश्रमों में तत्त्वज्ञान की शिक्षा भी पायी थी और शिक्षा दी थी। वह रामचन्द्र जी का काम था। उन्होंने रामराज्य बनाया था, लेकिन दुष्टों से लोहा भी लिया था।
निराई- गुड़ाई
मित्रो! हमको भी अपनी जिंदगी में दो काम लेकर के चलना पड़ेगा, आप लोग ध्यान रखना। दो काम लेकर के आप नहीं चलेंगे, तो बड़ी भारी आफत आ जायेगी और हमारा उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा। हमारे जिम्मे माली का काम है। माली को पौधों में पानी लगाना पड़ता है, सिंचाई करनी पड़ती है। दूसरा एक काम और भी करना पड़ता है, उसका नाम है- निराई। यह क्या कर रहे हैं? साहब खर- पतवार उखाड़ रहे हैं। और यह क्या कर रहे हैं? पेड़ की काट- छाँट कर रहे हैं। क्यों? खूबसूरती लाने के लिए इसकी काट- छाँट जरूरी है। और डंडा लेकर क्यों घूम रहे हैं? डंडा लेकर इसलिए हम घूम रहे हैं कि चिड़िया आयेंगी और इस बाग को खत्म कर देंगी। जंगली जानवर आयेंगे, सुअर आयेंगे और बाग को खत्म कर देंगे। आपको क्या करना पड़ेगा? खेत में खाद- पानी देना पड़ेगा, लेकिन साथ ही रखवाली और गुड़ाई करना भी जरूरी है, नहीं तो बगीचा नहीं बच सकता।
यह भी करना होगा
आज सब जगह जिस तरीके से दुष्टताएँ चारों और फैलती चली जा रही हैं, उनको शिक्षा देकर के और अखण्ड कीर्तन करके, रामायण की कथा सुना करके आप ठीक करना चाहते हैं? अच्छा करना चाहते हैं? तो वहाँ चले जाइये जहाँ आपके खेत में जंगली सुअर आ जाते हैं। आप वहाँ खड़े हो जाना और अखण्ड कीर्तन करना शुरू करना, रामायण पढ़ना शुरू करना और यह कहना कि सुअर भगवान जी, बाराह भगवान जी। देखना हम आपको भागवत् की कथा सुनाते है। तो सुनाइए। आप चले जाइये, गन्ने का खेत मत खाइये। अगर गन्ने का खेत बिना खाये सुअर वहाँ से चला जाय तो मैं समझता हूँ कि आपके कथा कहने से सब काम चल सकता है और कथा कहने से धर्म का उद्धार हो सकता है, धर्म की सेवा हो सकती है। अगर आपको यह मालूम पड़े कि इससे काम नहीं चल सकता और हमको नया हथियार काम में लाना पड़ेगा, तब फिर आप डंडा ले करके खड़े हो जाना। आप यह समझना कि डंडा ले करके प्रत्येक क्षेत्र में खड़े होना पड़ेगा। अन्यथा आप जो धर्म के बीज बोना चाहते हैं, धर्म की स्थापना करना चाहते हैं, वह फल- फूल नहीं सकेगा।
शास्त्रादपि शरादपि
मित्रो! आपको दोनों काम करने पड़ेंगे जैसे कि प्राचीनकाल में ऋषियों ने किये थे। एक ऋषि का नाम था- द्रोणाचार्य। उनके पास हथियार थे। वे दो हथियारों को लेकर लड़ने जाते थे। आपको भी मैं द्रोणाचार्य की तरीके से दो हथियारों को लेकर लड़ने के लिए कहता हूँ। वे एक हाथ में वेद ले करके चलते थे और पीठ पर धनुष लेकर चलते थे। ‘‘अग्रतः चतुरोवेदाः पृष्ठतः शसरो धनुः। इदम् ब्राह्मम् इदम् क्षात्रम् शास्त्रादपि शरादपि॥’’ आगे वे वेदों को लेकर चलते थे, ज्ञान को लेकर चलते थे। शिक्षा को लेकर चलते थे, उपदेश को लेकर चलते थे। कथा लेकर चलते थे, अखण्ड कीर्तन लेकर चलते थे। अनुवादों को लेकर चलते थे। यह भी एक बड़ा हथियार है। यह किसके लिए है? यह भले आदमियों के लिए है, शरीफों के लिए है, सज्जनों के लिए है। भावनाशीलों के लिए है, शरीफों के लिए है, सज्जनों के लिए है। भावनाशीलों के लिए है, हृदयवानों के लिए है। जिनके पास भलमनसाहत हो, जिनके पास हृदय हो, उनके लिए यह हथियार बिलकुल ठीक है। आप उनको कथा कह करके, प्रेम की बातें कह करके, सज्जनता की शिक्षा दे करके, अच्छी बातें कह करके काबू में ला सकते हैं और समझा सकते हैं और सफलता पा सकते हैं।
दूसरा तरीका भी जरूरी
बेटे, मैं वेद की तारीफ करूँगा। ज्ञान की, कथा की और भागवत् की तारीफ करूँगा, लेकिन एक और चीज है, जिसकी बनावट अजीब तरह की होती है। उसकी बनावट ऐसे तरीके से होती है जिनके लिए वेद एक ही है, पुराण एक ही है और कथा एक ही है और उसका नाम है- जूता। जूते के अलावा उनके लिए कोई वेद नहीं है, जूते के अलावा उनके लिए कोई पुराण नहीं है। जूते के अलावा कोई शिक्षा नहीं है। जूते के अलावा कोई कथा नहीं है। उनके लिए जूते के अलावा कोई भगवान नहीं है। इस तरह के भी लोग होते है। उनके लिए क्या करना पड़ेगा? उनके लिए- ‘‘पृष्ठतः शसरो धनुः’’ पीठ पर धनुष लेकर चलना पड़ेगा। ‘‘इदम् ब्राह्मम्, इदम् क्षात्रम्’’ यह हमारा ब्रह्म है और ‘इदम् क्षात्रम्’ है। यह दुनिया दो चीजों से बनी हुई है- एक देव और एक दैत्य। एक तमोगुण और एक सतोगुण। जहाँ सतोगुण है, बेटे, हमको वहाँ प्यार की बातें कहना चाहिए। क्षमा की बात कहनी चाहिए, दया की बात करनी चाहिए। करुणा की बात कहनी चाहिए, स्नेह की बात कहनी चाहिए। और जहाँ साँप, बिच्छू हैं, खटमल, मच्छर हैं, वहाँ क्या करना चाहिए? बेटा वहाँ दूसरा तरीका अपनाना चाहिए।
उभय पक्षीय दृष्टि
मित्रो! बिच्छू पर दया करेंगे, तो बच्चे जिन्दा नहीं रह सकते। बिच्छू को पालिए, सँभालिए, साँप को दूध पिलाइए और अपने बच्चों को मौत के मुँह में धकेलिए। बेटे, इन दो में से कोई एक जियेगा। या तो खटमल जियेगा या तो तू जियेगा। नहीं महाराज जी! मैं तो खटमल पालूँगा, तो बेटे पाल ले और फिर देख ले। शान्तिकुञ्ज से मैं और एक पार्सल भेज दूँगा, तू उन्हें भी पाल लेना। नहीं साहब! मैं तो सब पर दया करूँगा, क्षमा करूँगा। तू कर, चल तेरी दया को देखूँगा और तेरी क्षमा को देखूँगा। मित्रो! क्या करना पड़ेगा? आपको इन बातों के बारे में कड़ा और स्पष्ट रुख ले करके चलना पड़ेगा। एकांगी धर्म से, एकांगी उपदेश से और एकांगी ज्ञान से काम चलने वाला नहीं है। ज्ञान और विज्ञान दोनों का समन्वय लेकर चलना पड़ेगा। हमको अपने भीतर जप का माद्दा पैदा करना चाहिए और ध्यान का माद्दा पैदा करना चाहिए और अपने भीतर जो बुराइयाँ हैं, कमजोरियाँ है, उनके प्रति लोहा लेकर खड़ा हो जाना चाहिए और अपने साथ में कड़ाई से पेश आना चाहिए। अब हम नहीं कर सकते और यह अब नहीं होगा, बेटे इस तरीके से अब बात बनने वाली नहीं है। नहीं साहब! यह भी चलता रहेगा और वह भी चलता रहेगा। पाप भी चलता रहेगा और पुण्य भी चलता रहेगा और वह भी चलता रहेगा। पाप भी चलता रहेगा और पुण्य भी चलता रहेगा और चोरी भी चलती रहेगी। बेटे, अब इस तरीके से गड़बड़ नहीं चल सकती। अब एक के विरुद्ध लोहा ले और एक को ही बढ़ाने की कोशिश कर।
दण्ड नहीं दिया जाना चाहिए क्या?
मित्रो! आगे बढ़ने के लिए जीवन की नीति आपकी स्पष्ट होनी चाहिए। अगर स्पष्ट नहीं होगी, तो आप भ्रम में पड़ेंगे और ऐसे जंजाल में फँसेंगे कि आप दार्शनिक भ्रम में ही फँसे हुए रह जायेंगे। एक महात्मा जी ने पानी में बहते हुए एक बिच्छू को निकाला और बिच्छू ने उन्हें काट खाया। अच्छा तो आप महात्मा हैं। ईसा ने कहा था कि जिसने पहले कोई पाप न किया हो, वही इस महिला को पत्थर मारे। अच्छा, तो फिर कचहरी को बंद करा दीजिए, अदालत को बंद करा दीजिए, जेलखाने को बंद करा दीजिए। मुकदमा चलाना बंद करा दीजिए। डाकुओं की छुट्टी कर दीजिए और दुष्टों की छुट्टी कर दीजिए। आपकी मनमर्जी है, कोई भी आपको मार नहीं सकता, कोई सता नहीं सकता। कोई आपको दंड नहीं दे सकता है, क्योंकि कोई ऐसा आदमी नहीं है जिसने कोई न कोई बुरे काम न किये हों। इसलिए हम दण्ड दिलाने से आपको छुट्टी दिलाते है, मुक्ति दिलाते हैं। फिर चाहे आम जो काम कर सकते हैं, कोई रोकथाम नहीं है। फिर आपको दंड देने की बात कोई नहीं कहेगा। न अदालत कहेगी, न हम कहेंगे।
गुरु गोविन्द सिंह जी, गाँधी एवं बुद्ध
मित्रो! मुझे गुरु गोविन्द सिंह जी की नीति बहुत पसंद है- ‘‘एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला’’। गाँधी जी वह नीति मुझे पसंद है, जिसके आधार पर उन्होंने अहिंसा की शिक्षा दी, सत्य की शिक्षा दी, खादी की शिक्षा दी। उसके साथ में उन्होंने जहाँ बुराइयाँ फैली हुई थी, उसके विरुद्ध लोहा भी लिया और सत्याग्रह की मुहिम खड़ी कर दी। यह उभयपक्षीय सर्वांगपूर्णता थी। अगर यह उभयपक्षीय सर्वांगपूर्णता अध्यात्म में न आयी, तो फिर आपकी मिट्टी पलीद होगी। मुझे याद है- कि बुद्ध एक ऐसे तपस्वी का नाम था, एक ऐसे तेजस्वी का नाम था, जिनका खून खौलने लगा था। जब उनका जन्म हुआ, तब उन्होंने देखा कि यज्ञों के नाम पर हिंसा फैल रही थी। बुद्ध ने कहा कि भाई। यह क्या बात है? आप लोग हवन करते हैं और जानवरों को मारकाट करके हवन करा देते हैं। यह भी कोई बात है? उस समय लोग ज्यादा पढ़े हुए तो थे नहीं, उन्होंने कहा कि साहब! यह तो यज्ञ है। यज्ञ में हिंसा होती है। यज्ञ में तो जानवर कटेंगे ही। बुद्ध ने कहा- तो फिर यज्ञ करने की भी जरूरत नहीं है। जिसमें हत्या होती हो, उस यज्ञ को क्यों करना चाहिए?
पंडितों और दूसरे लोगों ने कहा कि यज्ञ करना- कराना तो वेदों में लिखा हुआ है। बुद्ध ने कहा कि तो फिर ऐसे वेदों को मानने की जरूरत नहीं है, जिसमें ऐसी गंदी बातें लिखी हो। फिर लोगों ने कहा कि वेद तो भगवान ने बनाये है। उन्होंने कहा कि, तो फिर ऐसे भगवान को मानने की जरूरत नहीं है, जो यह कहता है कि जीवों को, जानवरों को काट करके यज्ञ की भेंट चढ़ा दो। गैर मुनासिब बातें करने वाले भगवान से मना कर दीजिए।
अपने समय के क्रान्तिकारी थे बुद्ध
मित्रो! भगवान बुद्ध ने नास्तिकवाद फैलाया, शून्यवाद फैलाया और उन्होंने कहा कि ईश्वर कोई नहीं होता। उन्होंने वेद के विरुद्ध बहुत सारी बातें कहीं। तो क्या वे वेद विरुद्ध थे? नहीं बेटे, वे वेद विरुद्ध नहीं थे। उन्होंने उस समय जो स्वरूप देखा, सो मना कर दिया। वे क्या थे? बुद्ध ऐसे क्रान्तिकारी थे, ऐसे संघर्षशील योद्धा थे कि उन्होंने जहाँ कहीं भी अवांछनीयता देखी, हमला बोल दिया। उन्होंने हिन्दुस्तान के कोने- कोने में हमला करने के लिए लाखों लोगों को भेजा। अनीति के खिलाफ, अवांछनीयता के खिलाफ लोहा लेने के लिए भेजा। हिन्दुस्तान के अतिरिक्त बाहर एशिया के सारे के सारे देशों में और दूसरे देशों में जहाँ अनीति और अज्ञान फैला था, वहाँ लाखों आदमी भेजे। ऐसे लड़ाकू, ऐसे योद्धा और ऐसे शक्तिशाली थे बुद्ध भगवान कि मैं क्या कह सकता हूँ। उन्होंने क्षत्रिय के घर में जन्म लिया था। वे बहादुर थे, लेकिन थोड़े दिनों बाद क्या हुआ? कुछ लोगों ने- कैसे लोगों ने? जैसे हम और आप लोगों ने बुद्ध की ऐसी मिट्टी पलीद की कि भगवान करे कोई ऐसी किसी की न करे।
अहिंसा की मिट्टी पलीद
लोगों ने क्या किया? उन्होंने एक छोटा वाला हिस्सा, कमजोर वाला हिस्सा ले लिया, उसे लिख लिया, जिसके भीतर हम अपनी कमजोरियों को छिपा सकते हैं। कमजोरियों को छिपा सकने वाला अहिंसा वाला हिस्सा उन्होंने ले लिया और कहा कि हम हिंसा नहीं करेंगे। अगर कोई मारे तो? मारे तो मारता रहे, हम नहीं मारेंगे। अच्छा, तो अहिंसा को तू निभा लेगा, यह अच्छी बात है। इसमें कोई आफत तो नहीं है? इसमें कोई आफत नहीं है। कोई पीटता है तो तू पिटता रहे, नहीं तो अहिंसा खंडित हो जायेगी। अहिंसा पाल लीजिए। यह बड़ा सरल है। इसमें कोई आफत नहीं, इसमें कोई त्याग नहीं करना पड़ेगा और कोई कष्ट सहन नहीं करना पड़ेगा ।। बेटे, इसी तरह से भगवान बुद्ध की जितनी विचारधारा थी, जितना मजहब था, लोगों ने उसका सत्यानाश कर दिया और दुनिया को खतम कर दिया। फिर क्या हुआ? हुआ यह कि जैसे तिब्बत में आप चले जाइये, वहाँ अहिंसा धर्म का पालन करने वाले मिलेंगे। सारा तिब्बत बौद्धों का देश है। वहाँ अहिंसा पाली जाती है, लेकिन माँस सब खाते हैं और अहिंसा का पालन करते हैं। इसका क्या मतलब है। बेटे, वे हत्या नहीं करते। तो बिना हत्या के माँस मिल जाता है? अभी मैं बताता हूँ कि बिना हत्या के भी माँस मिल सकता है? कैसे?
सरल रास्ता ढूँढ़ते हैं आप!
वे बकरी का मुँह बाँध देते हैं, जिससे वह चिल्लाती नहीं है, तो हत्या कैसे हुई? एक काम और वे करते हैं कि उसके गले में फाँसी लगाकर टाँग देते हैं और उसे मार डालते हैं। इससे उसको खून भी नहीं निकलता, तो फिर हिंसा कैसे हुई? चिल्लाएगी नहीं, खून निकला नहीं, तो ये अहिंसा हुई। इस तरह उन्होंने अपने लिए अहिंसा का मतलब निकाल लिया। सारे के सारे तिब्बत में इसी तरह की अहिंसा फैल गयी। बेटे, इस तरह की विडम्बनाएँ करने में हम बड़े माहिर हैं। इन मामलों में हम बड़े माहिर हैं। देखिए हम भगवान रामचंद्र जी की भक्ति के बारे में, श्रीकृष्ण जी की भक्ति के बारे में हम बड़े माहिर हैं। हमने ऐसा तरीका ढूँढ़ निकाला है। कि दोनों की भक्ति एक ही ढेले से हम दोनों का शिकार खेल सकते हैं। कैसे? ‘हरे रामा, हरे कृष्णा- हरे रामा- हरे कृष्णा से। हार गये रामा, हार गये कृष्णा- देख लीजिए- एक ही ढेले में हमने दो शिकार मार दिये। हाँ महाराज जी। कौन सा मारा? एक मारा राम और एक मारा कृष्ण। बेटे, इनमें राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे कृष्ण भगवान पूर्ण पुरुष थे। राम मर्यादाओं की स्थापना करने आये थे, तो श्रीकृष्ण पूर्ण पुरुष बनाने के लिए आये थे। आप मर्यादाओं का पालन करेंगे? ‘‘हरे रामा करूँगा।’’ अऽऽहा..........देखा, सबसे सुगम वाला रास्ता ढूँढ़ लिया। सबसे सरल वाला रास्ता ढूँढ़ लिया।
कमजोर अहिंसा
मित्रो! भगवान बुद्ध के जमाने में ऐसा ही हुआ। केवल अहिंसा वाला हिस्सा रह गया। लोगों ने बाकी सब हथियार फेंक दिये। साहब! हम अहिंसा करेंगे और जप करेंगे। अहिंसा करेंगे और जप करेंगे। इसका परिणाम यह हुआ कि मध्य एशिया से पन्द्रह सौ आदमी आये और पन्द्रह सौ आदमी सारे हिन्दुस्तान पर एक के बाद एक कब्जा करते चले गये। अस्सी वर्ष के अन्दर सारे हिन्दुस्तान को पैरों तले रौंदकर फेंक दिया, केवल पन्द्रह सौ डाकुओं ने। क्यों आती है अहिंसा? यह कौन सी वाली अहिंसा है, जिसमें डाकुओं को छूट, दुष्टों को छूट, बेईमानों को छूट, अत्याचारियों को छूट- सबको छूट है। बेटे, यह थी अहिंसा, जिसने हिन्दुस्तानियों को शाप दिया कि वे हजारों वर्षों तक गुलामी के बंधनों में जकड़े पड़े रहें। आप उस अहिंसा का चमत्कार देखिए जिसने हिन्दुस्तान को हजार वर्ष के लिए गुलाम बना दिया। हिन्दुस्तान से वही अहिंसा दौड़ती हुई चली गयी और उस अहिंसा के ऊपर पंद्रह सौ डाकू बढ़ते हुए चले गये। वे सिंगापुर में चले गये, मलेशिया चले गये, जावा चले गये, सुमात्रा चले गये, इंडोनेशिया चले गये। वे सब मुसलिम देश हैं, जहाँ आप जाकर के देखिए। वहाँ अभी भी सारे मंदिर बने हुए हैं। हिन्दू सभ्यता की रामायण की रामलीलाएँ होती हैं। वहाँ नब्बे- पंचानवे फीसदी मुसलमान हैं। नहीं साहब! सारे के सारे देशों में मुसलमान बड़े ताकतवर थे। नहीं बेटे ये डाकू ताकतवर नहीं थे, मुसलमान ताकतवर नहीं थे, वरन् हम कमजोर थे, हमारी अहिंसा कमजोर थी।
भीतरी एवं बाहरी दो मोर्चे
मित्रो! क्या करना पड़ेगा? आपको यहाँ से जाने के बाद दोहरी बातों को लेकर चलना पड़ेगा। हमारे भीतर कमजोरियों के जखीरे भरे पड़े हैं। हमको यहाँ से जाते ही कसम खानी पड़ेगी कि हम अपने विरुद्ध मोर्चा खड़ा करेंगे। हम अपने विचारों के विरुद्ध, अपने गुणों के विरुद्ध, अपने कर्म के विरुद्ध ओर अपने स्वभाव के विरुद्ध मोर्चा खड़ा करेंगे और उनसे लड़ाई लड़ेंगे। अपने आपसे लड़ाई लड़ेंगे ओर एक भले आदमी की जिंदगी, शरीफ आदमी की जिंदगी जियेंगे। हमारे भीतर जो कमजोरियाँ हैं, उन्हें पैरों तले रौंद कर बाहर फेंक देंगे। आपका एक यह भीतरी मोर्चा है, जिस पर आपको चलना है और बाहर का मोर्चा? हाँ बेटे, मैं बाहर का भी बताता हूँ। आपके घर के भीतर जो दुष्ट परम्पराएँ चलती हैं, मैं उसके लिए भी आपको सलाह देता हूँ। आप उसके लिए भी लोहा लेने की कोशिश करना। डॉक्टर दोनों काम को लेकर चलता है। डॉक्टर को आपरेशन करना पड़ता है, मरहम लगाना पड़ता है। आप डॉक्टर की तरीके से चलें। घरवालों को प्यार करें, दुलार करें, सहयोग करें। घरवालों की सेवा करें, लेकिन जहाँ कहीं भी घर वाले वह काम कर रहे हों, जो उन्हें नहीं करना चाहिए तो उनके विरुद्ध खड़े हों। न केवल घरवालों के विरुद्ध वरन् सारे समाज के विरुद्ध लोहा लें। सारे समाज में जो अच्छाइयाँ हैं, उनको समर्थन करना चाहिए, प्रोत्साहित करना चाहिए, लेकिन जहाँ कहीं भी हमको गलतियाँ दिखाई पड़ती हैं, कुरीतियाँ दिखाई पड़ती हैं, अवांछनीयता दिखाई पड़ती हैं, उनसे हमको लोहा लेना चाहिए।
ब्रह्मक्षत्र
प्राचीनकाल में ब्रह्मक्षत्र नाम की एक कौम थी। फिर उसके दो हिस्से हो गये। पहले वह एक कौम थी, जिसमें ब्राह्मण और क्षत्रिय का सम्मिश्रण था। जैसे- परशुराम ब्राह्मण भी थे और क्षत्रिय भी थे अर्थात् ब्राह्मण- क्षत्रिय थे। विश्वामित्र कौन थे? ब्रह्मर्षि और राजर्षि- दोनों का मिला हुआ जोड़ा था। बेटे, प्राचीनकाल में ब्राह्मणों को ही दोनों काम करने पड़ते थे। ऋषियों को ही दोनों काम करने पड़ते थे। उन्हें अवांछनीयता को उखाड़ना भी पड़ता था और धर्म की स्थापना भी करनी पड़ती थी। हवन कराना, गायत्री का जप कराना, अनुष्ठान कराना- ये सभी कार्य आप जरूर कराना। अखण्ड कीर्तन कराना, सत्यनारायण की कथा भी कहना- जो भी कर सकते हों करना, लेकिन यह ध्यान रखना कि इस अकेले से काम नहीं चलेगा। लोगों के अंदर वह वृत्ति भी जगानी पड़ेगी, वह शौर्य भी जगाना पड़ेगा, वह साहस भी जगाना पड़ेगा, वह हिम्मत भी जगानी पड़ेगी, वह रोष, वह मन्यु भी जगाना पड़ेगा, जिसके बिना इस दुनिया का संतुलन कायम नहीं रह सकता।
दुहरी रणनीति
मित्रो! आप लोगों को पहला हिस्सा- पहला काम यह बताया कि आप बटवारे के लिए तैयार हों और अपनी जिंदगी में बँटवारा करें। यहाँ से जाते ही आप अपने क्रियाकलापों में दोनों तरह की चीजों को शामिल रखें। ज्ञान वाली चीज को, धर्म की स्थापना वाली चीज को, पूजा- पाठ वाली चीज को और साथ में संघर्ष वाली चीज को- जिसमें अपने भीतर संघर्ष करना और अपने गुण, कर्म, स्वभाव एवं आदतों को ठीक करना शामिल है। अपने आप में संघर्ष करना पहला चरण है। इसके बाद हमारा बहिरंग जीवन आता है। आपको बहिरंग जीवन में भी संघर्ष खड़ा करना पड़ेगा। संघर्ष के लिए मैं आपको शुभ कामना देता हूँ और आशीर्वाद भेजता हूँ और चाहता हूँ कि आप लड़ाकू की तरीके से, गुरुगोविन्द सिंह जी की तरीके से और दूसरे समर्थ लोगों की तरीके से समाज में एक इस तरह का उदाहरण पेश करें- पैदा करें, जिससे यह मालूम पड़ता हो कि इन्होंने नीति और धर्म की स्थापना में भी मदद की और अनीति तथा पाप के उन्मूलन में भी उतनी ही बहादुरी से और उतने ही साहस से काम लिया।
नंगा होना पड़ेगा
मित्रो! दोनों काम के लिए मैं आपको यहाँ से भेजता हूँ और एक काम और सौंपकर के आज की बात खतम करता हूँ। वह काम यह है कि जब आप यहाँ से लोगों के सामने इस रूप में जायेंगे कि हम आपको कोई शिक्षण देने आये हैं, तब हर कोई आपको ज्यादा बारीकी से देखेगा और बहुत पैनी नजर से देखेगा। आपकी शकल को भी देखेगा, चेहरे को भी देखेगा। माला तो पहनाएगा, पर आपको जरूर बारीकी से देखेगा। हम यहाँ स्टेज पर बैठे हुए हैं। आपमें से हर एक की नजर हमारे ऊपर है। आप सब हमारी तरफ देख रहे हैं। इसका क्या मतलब है? क्या पाँच सो आदमी हमारा इंटरव्यू ले रहे हैं? गुरुजी को कैसे बोलना आता है? उनकी नाक कैसी है? उनके बाल कैसे हैं? हर आदमी की आँख हमारे ऊपर लगी हुई है। तो बेटे, आप जनता के सामने इंटरव्यू देने जा रहे हैं जैसे कि कम्पटीशन में इंटरव्यू होता है। हर आदमी आपको देखेगा। क्या चीज देखेगा? आपकी आवाज? हाँ, बेटे आवाज भी देखेगा। आपकी हर चीज देखेगा, आपको नंगा करके देखेगा। कैसे नंगा करके? जैसे मिलिट्री में भर्ती किये जाते हैं ।। पहले तो लंबाई, ऊँचाई देखते हैं। फिर कमरे में ले जाते हैं। क्यों साहब! यहाँ किसलिए लाये हैं? अब आपको नंगा करेंगे। इससे क्या मतलब है आपका? अब हम आपके शरीर का वह हिस्सा देखेंगे, जो आपको नहीं दिखाई पड़ते हैं। पहले हम उसे देखेंगे, तब फिर आपको मिलिट्री में भर्ती करेंगे। बेटे, जनता आपको नंगा करके देखेगी। जनता में अगर आप नंगा होने के लिए तैयार नहीं हैं, तो आप विश्वास रखिये आपकी इज्जत नहीं हो सकती और आपके अन्दर प्रभाव उत्पन्न नहीं हो सकता। हमको प्रभाव उत्पन्न करने के लिए, नंगा होने के लिए तैयार होना चाहिए।
नीयत परखी जाएगी
मित्रो! क्या करना पड़ेगा? कई चीजें ऐसी हैं जो आपके ईमान से ताल्लुक रखती हैं। वह शायद उनकी समझ में न आवें। मैं पहले ही आपको समझा चुका हूँ कि आपको अपना दृष्टिकोण कैसे बनाना चाहिए। आपको मालूम है न कि रिटन टेस्ट के अलावा वाइवा भी होता है। इंटरव्यू में बातचीत से भी पूछा जाता है और मौखिक बात भी होती है। इसमें लोग आपकी बाहर की बातों की भी देख−भाल करेंगे और इससे आपका वजन, आपकी इज्जत के बारे में पता लगायेंगे। गुरुजी! और क्या- क्या बातें जाँचेंगे- परखेंगे? बेटे, सबसे पहले तो वे आपका व्यक्तित्व देखेंगे। सब बातों में आपका इम्तिहान लेंगे और हर बात में से आपके नम्बर काट लेंगे। जब लोग आपको- वानप्रस्थों को खाना खिलायेंगे ओर यह जानेंगे कि शान्तिकुञ्ज के वानप्रस्थी आये हैं, तो जो घर में रोटी खाते होंगे, उसकी अपेक्षा आपको अच्छी रोटी खिलायेंगे। अपने घर में अगर वह मक्के की रोटी खाता होगा, तो आपको गेहूँ की खिलायेगा, आपको पराठा खिलायेगा। तो महाराज जी! पराठा खाऊँ कि न खाऊँ? खाना तो सही बेटे, पर क्या करेगा? तेरी इज्जत और तेरा इंटरव्यू उसके ऊपर टिका हुआ है। मैंने तुझे यहाँ सिखाया था कि जिह्वा का हमें संयमी होना चाहिए और जिह्वा पर हमें कंट्रोल करना चाहिए। वह आदमी, जिसने मिठाई ला करके परोस दी है, वह यह देखेगा कि इसका तरीका क्या है? इसकी नीयत क्या है? इसका ढंग क्या है? वह आपका इम्तहान लेगा।
हमारी इज्जत तुम्हारे हाथ
मित्रो! क्या करना चाहिए? खानपान के सम्बन्ध में कभी आपको मौका आये, तो आप प्रशंसा तो करना, परन्तु किसकी करेंगे? आप उसकी भावना की, खिलाते समय उसका जो प्रेम है, उसकी प्रशंसा करना, लेकिन पदार्थों की प्रशंसा मत करना। आपने पदार्थों की प्रशंसा करना शुरू किया कि आपकी मिठाई बहुत अच्छी है, पूरी बहुत अच्छी बनी हुई है और जलेबी बहुत अच्छी बनी हुई है, तो आपकी इज्जत दो कौड़ी की हो जायेगी और आपको जो संयमी व्यक्ति मानना चाहिए, वह नहीं माना जायेगा। बेटे, इज्जत खराब हो जायेगी। आप जीभ पर काबू रखना। आप हमारे प्रतिनिधि हो करके जा रहे हैं। आप जहाँ चीजें परोसी जा रही हों, वहाँ इस बात को देखना कि आपका इंटरव्यू लिया जा रहा है जायके के ऊपर कि आपको यह चीज पसंद है या अमुक चीज पसंद है। आपको तो नहीं बता सकते, पर देवकन्याओं को- लड़कियों को हमने पढ़ा दिया था कि बेटे, तुझे कुछ खाना हो, तो यहाँ खा लेना, पर वहाँ जा करके शान से रहना, जैसे तुम यहाँ रहती हो। वहाँ कोई मिठाई वगैरह परोसता हो तो उसके सम्मान के लिए- स्वागत के लिए जरा सी चीज ले लेना, लेकिन यह मत करना कि सारी की सारी मिठाइयाँ तुम्हीं खाती रहो और तुम्हें उल्टी होने लगे। बेटे जब तुम्हें उल्टियाँ होने लगेंगी, तुम बीमार पड़ जाओगी, तब हमारी बेइज्जती हो जायेगी।
बाराती बनकर मत जाना
मित्रो! देवकन्याएँ यहाँ से जीभ पर काबू ले करके गयीं थीं। आप भी जीभ पर काबू ले करके जाना, क्योंकि आपका जनता के सामने इंटरव्यू होने वाला है। आप जनता के सामने अपनी बातचीत पर लगाम रख करके जाना। आपस में आप जब दो आदमी बात करते हों, तो आप दो आदमियों के अतिरिक्त तीसरा आदमी भी आपकी बातचीत को सुनता रहता है कि ये वानप्रस्थी आपस में क्या बात कर रहे हैं? स्टेज पर तो हम बढ़िया- बढ़िया बात कहेंगे और आपस में कैसी- कैसी अनर्गल बातें कर रहे हैं। बेटे, आपस की बात ही आपके असली स्वरूप का बखान करती है। आपस की बात ही असली होगी, जिसके द्वारा लोग आपकी इज्जत को देखेंगे, परखेंगे कि आपस में ये लोग क्या बातें करते हैं। आपके रहन- सहन का ढंग भी देखेंगे। बेटे, हम आपको बाराती बनाकर नहीं भेज रहे हैं। कहाँ? लोगों के पास। लोगों के पास आप जाना, तो बाराती बनकर मत जाना। बाराती किसे कहते हैं? बाराती उसे कहते हैं, जो फरमाइशें करते जाते हैं। साहब! कोका कोला लाइये। छः बजे चाय लाइये। हमको माला नहीं पहनाई, हमको यह नहीं दिया आदि विभिन्न तरह की फरमाइशें करते जाते हैं।
वालंटियर बनकर सभी काम
मित्रो! हम आपको वालंटियर बना करके भेज रहे हैं। इसलिए भेज रहे हैं कि जहाँ कहीं भी आप जाएँ, वहाँ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना। एक वालंटियर की तरीके से उनको बताना कि आपको काम करना नहीं आता है, देखिये हमको आता है। हम यहाँ काम करेंगे। शाम को हमें स्टेज पर दो घंटे व्याख्यान देना है। बाकी बाइस घंटे बचते हैं। इसमें क्या हम बैठे रहेंगे? नहीं, हम आपके साथ एक स्वयंसेवक की तरीके से काम करेंगे। बेटे आप ऐसा ही करना, इससे ही आपकी इज्जत है। नहीं साहब! हम मेहनत करेंगे, तो हमारी इज्जत खराब हो जायेगी। हम तो बड़े आदमी हैं। हम तो नेता है और हम तो व्याख्यान देने आये हैं। नहीं बेटे, अगर आप व्याख्यान देने जायेंगे, नेता बनने के लिए जायेंगे, तो अपनी इज्जत गँवा बैठेंगे। अगर वालंटियर की तरीके से जायेंगे और साथ- साथ में आप काम करेंगे, कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे, तो अपनी इज्जत खरीद करके लायेंगे। आप अपनी नियमितता के सम्बन्ध में, पूजा और भजन के सम्बन्ध में, जो हमारा मुख्य उद्देश्य है, जिसे हमने लोगों को सिखाया है, उसके प्रति हमारी बड़ी निष्ठा है; इस सम्बन्ध में अपनी नियमितता को बनाये रखना। बेटे, मैं जो भजन सिखाता हूँ, वह हमारी जीवात्मा का साबुन है। वह हमारे जीवन का ध्रुव तारा है। वह हमारा प्राण है। हम रोटी खाये बिना जिंदा रह सकते हैं, लेकिन भजन के बिना जिंदा नहीं रह सकते। क्योंकि जिस तरह से हमारे लिए श्वास की जरूरत है, उसी तरह से भगवान के प्रकाश की जरूरत है। श्वास और भगवान का प्रकाश हमारी दृष्टि से दोनों ही बराबर है, लेकिन आपकी दृष्टि में अलग- अलग हैं, जिससे मुझे नाराजगी है।
नागा नहीं
मित्रो! आप जहाँ कहीं भी बाहर जाएँ, अपनी नियमितता के बारे में इन बातों को ध्यान रखना कि कहीं किसी चीज में नागा न हो जाय। आज तो थके हुए हैं, लाओ आज सो जाते हैं। नहीं बेटे, संध्या का समय है, तो पहले संध्या करना। इस सम्बन्ध में देखिए- रामचन्द्र जी जब सीता जी को तलाश करने गये, तो उन्होंने वियोग में बिलखते हुए देखा कि संध्याकाल हो गया है। सीता कहीं भी होंगी, किसी भी हैसियत में होंगी, लेकिन भजन करने के लिए और संध्या करने के लिए इस नदी के तट पर जरूर आयेंगी। बेटे, आप भी संध्या के बारे में नागा मत करना, गैर हाजिरी मत करना, भजन के बारे में कहीं नागा मत करना। जवान से आप मिठास बरसाना, अमृत बरसाना, लोगों की प्रशंसा करना। कहीं ऐसा न हो कि आप में जो आदत जिंदगी भर रही है और वही आदत वहाँ भी प्रकट होने लगे, तो बेटे हमारी भी इज्जत भी खराब हो जायेगी और आपकी भी इज्जत खराब हो जायेगी। बाहर जहाँ कहीं जायें, तो आपका पहला काम है लोगों की प्रशंसा करना। साहब! आपने बड़ी मशक्कत से यज्ञ किया। अच्छे ढंग से पंडाल बनाया। आपने कैसी तैयारी की, जिसमें महीनों लग गया। जहाँ कमियाँ दिखाई दें, वहाँ कहिए कि भाई साहब! इसकी जगह पर अगर हम यह काम कर लें, अगर ऐसा संभव हो जाय, तो कैसा अच्छा रहेगा? बताइये आपकी क्या राय है? हाँ आप कहते हैं, तो ठीक है, पर यहाँ कुछ इंतजाम नहीं हो सका। देखिए कोशिश करते हैं, शायद इंतजाम हो जाय।
प्रशंसा की सृजनात्मक शक्ति
मित्रो! अगर आप इस तरह से कहेंगे और उसके ‘अहं’ को, ‘प्रेस्टीज’ को चोट पहुँचाये बिना काम करेंगे तो इससे उसको इज्जत मिलेगी और आपका काम भी आसान हो जायेगा। लेकिन अगर आप नुक्ता- चीनी करेंगे, उस आदमी की गलतियों को बतायेंगे, तब आप अपना घटियापन साबित करेंगे। लोगों को तब बतायेंगे कि आप बड़े घटिया आदमी हैं। आपको प्यार करना नहीं आता, आपको मोहब्बत नहीं आती, आपको दुलार करना नहीं आता, आपको प्रोत्साहन देना नहीं आता और आपकी जबान में बिच्छू का डंक है। आप बिच्छू का डंक ले करके वहाँ मत जाना। हमने ऐसा कोई वानप्रस्थी नहीं बनाया है और न कोई ऐसा नेता हम बनाना चाहते हैं जो बिच्छू का डंक जीभ में ले करके जाये। आप वहाँ विनम्र हो करके जाना, सज्जन हो करके जाना और सही होकर के जाना। दो बातों को और ध्यान रखना। इसमें चूक मत करना। इसमें अगर आपने चूक कर डाली, तो बेटे हम मर जायेंगे।
सवाल ईमान का है
मित्रो! पैसे के सम्बन्ध में आप यह छाप डाल कर आना कि आप पैसे के बारे में निस्पृह हैं। कहीं आपने ऐसा करना शुरू कर दिया कि आरती उतरी और लोगों ने पैसा देना शुरू किया और बहुत सारा पैसा जमा हुआ। आपने उसमें से एक मुट्ठी जेब में डाल लिया, तो बेटे, हर आदमी की आँखें देख लेंगी और आपकी इज्जत चली जायेगी। हमारी भी इज्जत चली जायेगी, भगवान की इज्जत चली जायेगी, हिन्दू धर्म और संस्कृति की, परम्परा की इज्जत चली जायेगी, गायत्री माता की इज्जत चली जायेगी। इसलिए पैसे के बारे में क्या करना चाहिए? आप अपने घर में दुकानदारी करते हैं, या नहीं करते हैं, बेईमानी करते हैं, जो चाहें कर सकते हैं। लेकिन जहाँ आपको हजारों आदमी देख रहे हैं और भगवान देख रहा है और जहाँ पर आप ऋषि की वेदी पर बैठे हुए हैं, वहाँ पैसे की चालाकी मत करना। पैसे की चालाकी करेंगे, तो बेटे आपकी मिट्टी पलीद हो जायेगी। यहाँ पैसे का सवाल नहीं है, वरन् ईमान का सवाल है। सवाल इस बात का है कि आपका तौल और आपका वजन इस लायक है या नहीं है? आप दो पैसे के ऊपर अपना ईमान खराब करते हैं, तो हम कैसे मानेंगे कि आप ऐसे चरित्रवान आदमी हैं, जो नया युग लाने के लिए लोगों के सामने अपना नमूना पेश कर सकते हैं। इसलिए पैसे के बारे में आप कुछ मत करना। जहाँ कहीं से भी एक- एक पैसा आये, आप उसकी रसीद काटकर देना। वहाँ आपके पास रसीद न हो तो हाथ से पर्ची काट कर दे देना और कहना कि देखिए हम शान्तिकुञ्ज हरिद्वार जा रहे हैं वहाँ से हम आपसे ग्यारह रुपये मिलने की रसीद काटकर भेज देंगे। तब तक आपकी जानकारी के लिए हम अपने हाथ की लिखी पर्ची देकर जाते हैं, ताकि हम बेईमानी न कर सकें। बेटे, कोई आपको रेलवे का टिकट देता है तो आप उसकी भी रसीद दे देना।
इस आकर्षण से बचना
मित्रो! अगर पैसे के बारे में आप अपना खरापन कायम रख सकें, तो हमारी इज्जत कायम रहेगी। हमारे मिशन की इज्जत कायम रहेगी। लेकिन अगर लोगों ने आपके बारे में यह ख्याल बनाना शुरू कर दिया कि पैसे के मामले में यह आदमी बड़ा ढीला है, बड़ा चालाक है, तो बेटे फिर आपका श्लोक बोलना बेकार है, मंत्र बोलना बेकार है। आपका अमुक काम करना सब एक ओर पैसे की चालाकी एक ओर। दूसरी एक और बात बताता हूँ कि आप जहाँ जायेंगे, वहाँ आपके प्रति आकर्षण पैदा होगा। आपको मिलने के लिए सभी लोग आयेंगे। लेकिन एक बात का आप विशेष ध्यान रखना अगर आप मरद हैं तो आप स्त्रियों के बारे में होशियार रहना। कोई भाई- बहन भी रिक्शे में बैठकर अगर हँसते हुए साथ- साथ जाते हैं, तो हर आदमी यह कहता है कि यह प्रेमी- प्रेमिका जा रहे हैं। देखने वाला हर आदमी कहता है कि किसी सयानी लड़की को बार- बार बुलाते हैं और बार- बार आवाज देते हैं कि तुम यह काम कर लेना, तो भाई साहब! वही लड़की क्यों कर लेगी? इतने आदमी बैठे हुए हैं, उनसे आप क्यों नहीं कहते?
शील और मर्यादा बनी रहे
गुरुजी! आप तो लड़कियों को बुरा मानते हैं और उनको दूर करना चाहते हैं। बेटे, मैं दूर नहीं करना चाहता। लड़कियों को आगे बढ़ाने वाला मुझसे ज्यादा कौन हो सकता है? कौन है जो मुझसे ज्यादा प्रोत्साहन करेगा? लेकिन आप आँखें नीचे रखिए। आँख से आँख मिलाकर लड़कियों की तरफ मत देखिए। जहाँ तक हो सके, शरीर से काफी दूर रहिए। जहाँ तक हो सके, आप यह कोशिश कीजिए कि लड़कियों से बातचीत करनी पड़े तो कई लड़कियाँ हों या कई लड़के हों, तब बात कीजिए। अकेले में बात मत कीजिए। अकेले में जब आप बात कर रहे होंगे, तब चाहे आप कोई भी बात कर रहे हों- खाने की बात कर रहे हों कि हमको बैगन की शाक अच्छा नहीं लगता, हमारे लिए टमाटर की चटनी बना देना। आप कह यही रहे होंगे, लेकिन हर आदमी यही समझेगा कि ये लोग कोई गलत बात कर रहे हैं। खराब बात कर रहे हैं। लड़कियों के बारे में, महिलाओं के बारे में प्राचीन परम्परा यही थी कि साधु किसी स्त्री से अपना शरीर छुला नहीं सकता। गुजरात में स्वामी नारायण सम्प्रदाय है। उन लोगों की यही मर्यादा- नियम है कि कोई साधु किसी स्त्री से अपना शरीर स्पर्श नहीं करा सकता। मैं उतना ज्यादा अतिवादी तो नहीं हूँ, लेकिन मैं यह जरूर चाहता हूँ कि आपकी आँखों में शील और मर्यादा स्त्रियों के बारे में होनी ही चाहिए।
नारियो! आप भी तपस्वी के रूप में जाना
मित्रो! महिलाओं से भी मैं यही कहता हूँ कि लड़कियों। तुम अगर कहीं शाखाओं में प्रचार करने जा रही हो, कही भी प्रचार करने जा रही हो, तो लड़कियों हमारी इज्जत का ध्यान रखना। तुम क्या कहती हो, क्या बकती हो, क्या व्याख्यान देती हो, उसकी कीमत दो कौड़ी की है। सबसे बड़ी कीमत यह है कि ये शान्तिकुञ्ज की लड़कियाँ हैं। इनमें तमीज है कि नहीं है? शौर्य है कि नहीं है? मुँह फाड़- फाड़ करके ही- ही करेंगी और गलत तरीके से उलटे- सीधे कपड़े पहन कर बैठेंगी। ऐसा किया, तो बेटे हम मर जायेंगे। आप अच्छे तरीके से जाना। आपने देखा नहीं है कि जहाँ हम लड़कियों को भेजते हैं, उनको रुद्राक्ष की माला पहनाकर भेजते हैं और पीले कपड़े पहनाकर भेजते हैं। हम उनको तपस्वी के रूप में भेजते हैं। इसलिए महिला जागृति की लड़कियाँ जहाँ कहीं जाना, आप सब तपस्वी के रूप में जाना। अपने घर में जो चाहे, सो पहनना, लेकिन स्टेज के ऊपर, किसी मंच के ऊपर, किसी सार्वजनिक सभा में कभी भी इस तरह का लिबास पहनकर मत जाना, जो हमारी शान के खिलाफ है। अगर तुम हमारी शान के खिलाफ जाओगी, इस तरीके से बातचीत करोगी, लोगों से घुल−मिल कर बातें करोगी। भइया जी- भइया जी करती रहोगी......तो बेटे, बात बिगड़ जायेगी। अतः सीधे ढंग से, अनुशासित तरीके से रहना।
ईसाई नन
बेटे, एक बार क्रिश्चियन कॉलेज, इंदौर में हमारा व्याख्यान हुआ पादरियों ने फिलॉसफी के ऊपर वहाँ पर हमारा व्याख्यान कराया। वहाँ हमने ईसाइयों की ननों को देखा। वे सबसे आगे बैठी थीं। बड़ी- बड़ी सयानी लड़कियाँ थीं, पर प्रत्येक लड़की को मैंने देखा, जो आगे की लाइन में बैठी हुई थीं, उन सब की आँखें नीची थीं। मैंने उनसे पूछा कि यह क्या बात है? आपके यहाँ तो कोई घूँघट नहीं मारता, फिर यह क्या बात है। उन्होंने कहा कि हमारे यहाँ घूँघट तो नहीं मारा जाता, पर हमारी आँखें नीची रहती हैं। मर्दों के बारे में ये जो ननें हैं, घूँघट नहीं करतीं, लेकिन इस बात का ध्यान रखती हैं कि कहीं इस ढंग से तो बात नहीं कर रहे हैं, जिसको देखने वाला आदमी कोई गलत अंदाज लगा सके। उनको हमेशा यह शिक्षा दी जाती है और यह बताया जाता है कि आपको आँखें नीची रखनी पड़ेगी। मर्दों से बात करना है तो आप इस तरीके से मुँह जरा टेढ़ा करके करेंगी, कोई जरूरी बात होगी तो इस ढंग से करेंगी, जिसमें कोई आदमी गलत अंदाज न लगा ले।
सार्वजनिक क्षेत्र की मर्यादाएँ
मित्रो! आपसे भी कहता हूँ, लड़कियों आपसे भी कहता हूँ और लड़कों आपसे भी कहता हूँ। चूँकि आपको सार्वजनिक क्षेत्र में भेजता हूँ और खासतौर से धार्मिक क्षेत्र में भेजता हूँ और वानप्रस्थ बनाकर भेजता हूँ। आप उपरोक्त बातों से बेहद सावधान रहिए। स्त्रियों के बारे में आपको किसी ने कलंक लगा दिया, तो बेटे हमारा मरना हो जायेगा और अगर आपके बारे में किसी ने पैसे के सम्बन्ध में कलंक लगा दिया तो हमारा मरना हो जायेगा। फिर हम यह मिशन बंद कर देंगे। फिर हम खोमचा लगा लेंगे, रिक्शा चला लेंगे और हम यह मिशन बंद कर देंगे, अगर आप हमारी इज्जत खराब करेंगे, तब! आप हमारी इज्जत मत खराब कीजिए। हमने ऋषि का बाना पहना है, साधु का बाना पहना है, हमने ब्राह्मण का बाना पहना है और हमने यह घोषणा की है कि हम धर्मतंत्र से लोकशिक्षण करेंगे। धर्म की शालीनता की, धर्म के गौरव की हम रक्षा करेंगे। इसलिए आवश्यक है कि आप इन मोटी- मोटी मर्यादाओं को समझें। स्त्रियों के सम्बन्ध में, पैसे के सम्बन्ध में, आपको जहाँ कहीं भी जाना है, इन मर्यादाओं का ध्यान रखना।
चरित्र व क्रिया द्वारा शिक्षण
अगर आप इन बातों को ध्यान रखेंगे तो बेटे आपका पीला कपड़ा, जो हमने पहनाया है, उसकी भी इज्जत रह जायेगी और आप जो वानप्रस्थ के माध्यम से कार्य करने वाले हैं, उसमें भी सफलता मिलती चली जायेगी। मुझे उम्मीद है कि आप इन बातों को पूरी तरह से ध्यान में रखेंगे और यहाँ से जाने के बाद में ऐसे कदम बढ़ायेंगे कि आपके अपने वैयक्तिक जीवन में और सामाजिक जीवन में इससे वह उद्देश्य पूरा होना संभव हो जायेगा, जिसको आप व्याख्यानों के द्वारा करना चाहते हैं। लेकिन व्याख्यानों के द्वारा नहीं, वरन् अपने चरित्र और क्रियाकलाप के द्वारा अगर आप करेंगे, तो हमें खुशी होगी और हमारे उद्देश्य की पूर्ति हुए बिना नहीं रहेगी। नया युग आ रहा है और नये युग के संदेशवाहकों को कैसा व्यक्तित्व वाला होना चाहिए, इसके सम्बन्ध में आप तैयारी कीजिए और ऐसे ढलने की कोशिश कीजिए, ताकि आपके व्यक्तित्व की प्रत्येक नस और प्रत्येक रोम- रोम उपदेश देता चले और लोग अनायास ही आपकी तरफ खिंचते चले आयें। अनायास ही मिशन की तरफ खिंचते और जुड़ते चले जाएँ। अगर आप इतना कर सके तो आपका वानप्रस्थ जीवन धन्य हो जायेगा और हमारा उद्देश्य ‘‘मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण’’ पूर्ण होने में देर नहीं लगेगी।
आज की बात समाप्त।
॥ ॐ शान्तिः॥
वानप्रस्थ सत्र- शान्तिकुञ्ज हरिद्वार
दिनाँक २७- ५- ७७
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
वक्त बदल रहा है
देवियो, भाइयो! प्रातःकाल सुनहरे रंग का सूर्य निकलता है, तो उस समय सबमें उमंगें और नया उत्साह देखा जा सकता है, पक्षी चहचहाते हुए पेड़ों पर देखे जा सकते हैं और हर आदमी की नींद खुलने लगती है। बच्चे उठने लगते हैं और सब आदमी अपने काम पर लग जाते हैं। प्रातःकाल होते ही हरेक के भीतर उमंग और हरेक के भीतर हलचल प्रारम्भ हो जाती है। मित्रो! प्रातःकाल के युग का अब नया सबेरा आरंभ होने जा रहा है। मित्रो! मालूम पड़ता है है कि रात्रि अब समाप्त होने को आ गयी और नया दिनमान शुरू होने वाला है। नया दिन अब हमारे नजदीक आ गया है। हम और आप जिन दिनों में निवास कर रहे हैं, रह रहे हैं, वह प्रातःकाल का समय है। प्रातःकाल की स्वर्णिम ऊषा का चिह्न पीला वस्त्र हमने आपके शरीरों पर पहना दिया है। आप इस मिशन के संदेशवाहक हैं, जो इस बात की घोषणा करती है कि अब नया युग चला आ रहा है। अब समय बदल रहा है, युग बदल रहा है, वक्त बदल रहा है। मनुष्य बदल रहा है, परिस्थितियाँ बदल रही हैं।
मित्रो! जिन परिस्थितियों में और जिस ढंग से हम बहुत दिनों से चले आ रहे थे, अब उन परिस्थितियों में हमारा गुजारा नहीं हो सकता। अब हमको नयी परिस्थितियों में निवास करना पड़ेगा। विज्ञान ने जिस हिसाब से तरक्की की है, उस हिसाब से दुनिया बहुत नजदीक आ गयी है। थोड़े घंटों में अमेरिका से- पाताल लोक से लेकर के हम यहाँ आना चाहते हैं और चौबीस घण्टे के भीतर आ जाते हैं। टेलीफोन से अभी बात करना चाहें, तो इंग्लैण्ड और अमेरिका से हम कुछ मिनट के भीतर अभी- अभी बात कर सकते हैं। क्या पहले बात हो सकती थी? नहीं हो सकती थी, लेकिन अब दुनिया को विज्ञान ने बहुत नजदीक ला करके रख दिया है। अब हमारे लिए नये ढंग से विचार करना आवश्यक हो गया है। पुराने ढंग से विचार करके अब हम जिन्दा नहीं रह सकते। हमको अब नयी परिस्थितियों का मुकाबला करना पड़ेगा और समय से ढलना पड़ेगा।
प्रातःकाल का संदेश देता आपका बाना
साथियों जो ढलना है, जो बदलना है, उसकी तैयारी के लिए हम अग्रदूत की तरीके से आगे- आगे काम करते हैं। आपका बड़ा सौभाग्य है और बड़ा महत्त्व है। आगे चलने वाले का भी उसी तरह से स्वागत होता है, जिस तरह से प्रातःकाल के निकलने वाले नवीन सूर्य का सब जगह स्वागत होता है। हम भी आपको सबेरे सविता देवता का ध्यान कराते हैं। दोपहर का ध्यान हम नहीं कराते। सायंकाल के सूरज का भी ध्यान नहीं कराते। सूरज तो वही है, लेकिन उसकी नवीनता प्रातःकाल की है, क्योंकि वह नया संदेश लेकर के आता है। जब सब ओर अन्धेरा छाया हुआ होता है, तब थोड़े समय में एक नयी परिस्थितियाँ पैदा करके सूरज चला आता है। हम और आप यही प्रातःकालीन सूर्य का, प्रातःकालीन संदेश का और प्रातःकालीन युग का संदेश लेकर पीले कपड़े पहनकर लोगों के पास चल रहे हैं।
वासंती चोला
मित्रो! पीले कपड़े वसंत के कपड़े हैं। वसंत से क्या मतलब है? बेटे, वसंत से मेरा मतलब उस समय से है, जिसके अंदर उमंगें, पत्तियों के अंदर उमंगें, वृक्षों के अंदर उमंगें, घास के अंदर उमंगें दिखाई पड़ती हैं। ठंड के दिनों में जो डंठल के रूप में पड़े थे, वसंत के समय के फूलों के रूप में, नयी- नयी कोपलों के रूप में, नयी- नयी पत्तियों के रूप में बाहर आ जाती है। हर जगह हमको मालूम पड़ता है कि कुछ नयापन आ गया है। कुछ नवीनता आ गयी है। वसंत जो आता है, तो केवल फूल लेकर नहीं आता, एक उत्साह लेकर आता है। एक उल्लास लेकर आता है। यह बसंती चोला हमने आपको पहना दिया। यह वह बसंती चोला है, जिसको भगत सिंह जेलखाने के अंदर गाया करते थे कि हे माँ! हमारे चोले को बसंती रंग में रंग दो। यह उस रंग की बात नहीं थी जो एक पैसे- दो पैसे का रंग मँगा कर रंग सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि दो पैसे का पीला रंग ले लें और गुलाबी रंग का मत लें। चोले से मतलब यह था कि हमारा जीवन और हमारा व्यक्तित्व इस तरीके से रंग जाय कि इसमें बसंतीपन हो अर्थात् उमंगें, उत्साह, उल्लास और नयी चेतना, नयी प्रेरणा के आदर्श जुड़े हों। बसंती से मतलब यही है।
नया मनुष्य आने का द्योतक ला रंग
मित्रो! हमने आपको बसंती चोला इसलिए पहनाया कि आपको यह ध्यान बना रहे कि आप क्या करने जा रहे हैं? और क्या करने का उद्देश्य आपके कंधे पर इस कपड़े के रंग के हिसाब से लाद दिया गया है। बेटे, यह किसका रंग है? यह प्रातःकालीन सूरज का रंग है। प्रातःकालीन सूरज ऐसे ही होता है, जैसा कपड़ा आप पहने हुए हैं। गुरुजी! प्रातःकालीन सूरज से आपका क्या मतलब है? बेटे, प्रातःकालीन सूरज से हमारा मतलब यह है कि प्रातःकालीन सूरज जिस तरीके से एक नयी उमंगें, नयी हलचलें, नयी दिशायें और नयी रोशनी ले करके घोर अंधकार के बीच में उदय होता है। हम चाहते हैं कि आप लोग नवीनता का संदेश लेकर के इस तरीके से जाएँ कि नया युग चला आ रहा है। नया समय आ रहा है, नयी परिस्थितियाँ आ रही हैं। नया मनुष्य बनने को जा रहा है। क्यों? इसलिए बेटे, कि मनुष्य नया बनने के लिए जा रहा है अब मौत और जिंदगी के बीच में से उसे एक का चुनाव करना पड़ेगा।
बड़ा प्रतिकूल समय है यह
अब जिन परिस्थितियों में मनुष्य रह रहा है और जिस रास्ते पर चल रहा है, उस पर मौत के अलावा दूसरी चीज हमको दिखाई नहीं पड़ती। कैसे दिखाई नहीं पड़ती? तीन- चार वजह हैं जिससे हमें मालूम पड़ता है कि हम मौत की ओर जा रहे हैं और सामूहिक आत्महत्या करने के लिए जा रहे हैं। कैसे? बेटे, इसीलिए कह रहा हूँ कि जो हथियार अब बन रहे हैं, वहाँ जा करके आप देखिये, तो पायेंगे कि ऐसे हथियार बन रहे हैं, जो लाठी नहीं हैं, बंदूक नहीं हैं, तलवार नहीं हैं, तमंचे नहीं हैं, वरन् ऐसे हथियार हैं जिन्हें एक आदमी जाकर छोड़ सकता है और जो हजारों मील दूर जा करके विनाश कर सकते हैं। आज आदमी एक राकेट छोड़ सकता है, बम, हाइड्रोजन बम छोड़ सकता है और ऐसी गैस छोड़ सकता है कि सारे के सारे इलाके के आदमियों का सफाया हो जाये। पता ही नहीं चले, हत्याकाण्ड भी न हो, मारकाट भी न हो, सब जहाँ के तहाँ सोते हुए रह जाएँ। ऐसे हथियार और बम हैं। मालूम पड़ता है कि कोई पागल आदमी किसी दिन उन हथियारों पर हावी हो गया और उसने चला दिये, तो यह जरा सी पृथ्वी- नन्ही सी पृथ्वी, छोटी सी- बच्ची सी पृथ्वी को एक दैत्य- एक एटम बम खतम कर देगा। हमको मालूम पड़ता है कि अगर ऐसा कहीं हुआ, तो मनुष्य जाति लाखों वर्षों के लिए- करोड़ों वर्षों के लिए फिर वहीं चली जायेगी, जहाँ से कि अमीबा पैदा हुआ था। और जहाँ से पानी में से चीजें पैदा हुई थीं। फिर शायद हम नयी सभ्यता पैदा करेंगे। ऐसे समय में हम और आप रह रहे हैं।
पत्थर के मकान, पत्थर के आदमी
मित्रो! हम और आप ऐसे वक्त में रह रहे हैं जिसमें कि इंसान का स्वार्थ बेहिसाब रूप से बढ़ता हुआ चला जा रहा है। आदमी समझदार तो बहुत होता जा रहा है, अक्लमंद भी होता चला जा रहा है, पर आदमी पत्थर का बनता जा रहा है, निष्ठुर बनता जा रहा है। आज हमको हर जगह निष्ठुर आदमी दिखाई पड़ता है, पत्थर दिल दिखाई पड़ता है। पहले गाँव में कच्चे मकान बनते थे, फूस के झोपड़े बनते थे। अब फूस के झोपड़े नहीं बनते। अब हर जगह पत्थर के मकान बनते हैं, ईंटों के मकान बनते हैं। आज पक्के मकान, मजबूत मकान सब जगह दिखाई पड़ते हैं। शहरों में भी कच्चे मकान नहीं दिखाई पड़ते और गाँव में भी नहीं दिखाई पड़ते। बेटे, अब हमको मालूम पड़ता है कि अब मनुष्य पत्थर के मनुष्य, चट्टान के मनुष्य, लोहे के मनुष्य हैं। नहीं साहब! हाड़−मांस के हैं। हाँ बेटे, हैं तो हाड़−मांस के, पर मैं तेरे हृदय को कहता हूँ और तेरे कलेजे को कहता हूँ, जिसमें न किसी के लिए दया है, न कोई सिद्धान्त है। जिसके पास न आदर्श है, न कोई बड़ी बातें हैं, सिवाय पैसे के और औलाद के। काम वासना और तृष्णा के अलावा और कोई दूसरा लक्ष्य नहीं है। ऐसा घिनौना लक्ष्य कि जिससे इन्सानियत भी शर्मिन्दा होती है। भजन करने वाले क्षेत्रों में भी हम देखते हैं और दूसरे क्षेत्रों में भी हम देखते हैं। हर जगह हम देखते हैं कि जो आदमी अपने आपको दूसरों से अच्छा और ऊँचा बताते हैं, उनको भी हम देखते हैं। राष्ट्रीयता की दुहाई देने वालों को भी देखते हैं और सामाजिकता की दुहाई देने वालों को भी देखते हैं और उन्हें देखकर हम शर्मिन्दा होते हैं।
एक खौफनाक जानवरः आदमी
मित्रो! अध्यात्म के नाम पर हम लोहे के आदमी हैं और पत्थर के आदमी हैं और चट्टान के आदमी हैं। आदमी अगर चट्टानों के बनते चले गये, तो उनके भीतर से मोहब्बत चली जायेगी और मोहब्बत चले जाने के बाद में सहकारिता चली जायेगी और स्नेह चला जायेगा। स्नेह और सहकारिता चली जायेगी तो इसके बाद में ईमानदारी चली जायेगी और भलमनसाहत चली जायेगी। फिर क्या हो जायेगा? आदमी के बराबर खौफनाक जानवर दुनिया के परदे पर कोई नहीं होगा। शेर मारकाट में तो बहुत ताकतवर होता है, पर बेअक्ल होता है और बेवकूफ होता है। हाथी भी ताकतवर बहुत होता है, पर वह भी बेअक्ल होता है। लेकिन आदमी इतना समझदार है कि इसको किसी के पेट में मुँह खंगाल करके खून पीने की जरूरत नहीं है। किसी के पेट में बिना दाँत गड़ाए ही वह दूसरों का खून पी सकता है और आदमी को मुर्दा बना करके छोड़ सकता है। यह कला मनुष्य को आती है।
आदमी से अरे, डर रहा आदमी
मित्रो! आदमी बड़ा खौफनाक है और आदमी बड़ा खतरनाक है। खतरनाक और खौफनाक आदमी जिस तेजी से बढ़ रहा है, आदमी के दाँत और सींग जिस हिसाब से बढ़ रहे हैं, उससे मालूम पड़ता है कि अब ये राक्षस होने वाला है। इसके अंदर से दया, करुणा, ममता, स्नेह, दुलार और आदर्शवाद के सारे सिद्धान्त खत्म होते चले जा रहे हैं। अगर तरक्की इसी हिसाब से होती चली गयी तो आप देखना थोड़े दिनों में वह भूत- पलीत हो जायेगा, जिन्न-मशान हो जायेगा, जिससे कि एक दूसरे को डर मालूम पड़ेगा। आदमी को देखकर आदमी डरेगा और कहेगा कि देखो आदमी जा रहा है, होशियार रहना। पहले आदमी को देखकर हिम्मत बँधती थी कि आदमी आ गया। वह हमारी सहायता कर सकता है और हम एक से दो हो गये, लेकिन बेटे, अब हमको भय मालूम पड़ता है कि कहीं ऐसा न हो कि हमारे साथ- साथ जो व्यक्ति चलता है, वही हमारे लिए पिशाच न सिद्ध हो। रेलगाड़ी के डिब्बे में हम बैठते हैं और पास में दूसरा आदमी बैठा हुआ रहता है। बार- बार हम देखते हैं कि कहीं यह जेबकट तो नहीं है। बार- बार पूछते हैं कि भाई साहब! आप कहाँ से आये हैं? कहाँ जायेंगे? बार- बार हम देखते रहते हैं कि कहीं यह हमारे गले की जंजीर न ले जाये और हमारी जेब न काट ले।
कैसी है यह प्रगति?
साथियो! आदमी से आज हमको डर लगता है। यदि यह तरक्की इसी हिसाब से होती रही, इसी हिसाब से सिद्धान्त- विहीन आदमी, आदर्श विहीन आदमी अगर बढ़ता रहा, इसकी समझदारी बढ़ती रही, शिक्षा बढ़ती रही, यह इसी तरह एम.ए. करता रहा तो आदमी आदमी को खा जायेगा, फिर एक भी आदमी जिंदा नहीं रहेगा। इन आदमियों की वजह से आज सब जगह नरक बनेंगे। जहाँ कहीं जिस घर में ऐसे आदमी रहेंगे, उस घर को नरक बना करके छोड़ेंगे। जिस मोहल्ले में रहेंगे, जिस गाँव में रहेंगे, जिस नगर में रहेंगे, जिस देश में रहेंगे, उसका सफाया करके रहेंगे। बेटे, अब ऐसी परिस्थितियाँ सामने आ रही हों तो मालूम पड़ता है कि दुनिया अब मरने के लिए जा रही है। आदमी की जो तरक्की हो रही है, उसे देखकर ऐसा मालूम पड़ता है कि इससे तो हमारा पिछड़ापन लाख दर्जे अच्छा था। यह तरक्की मुझे बड़ी खौफनाक मालूम पड़ती है। उसे देखकर मालूम पड़ता है कि हम किसी भयानक युग की दिशा में चले जा रहे हैं।
आसन्न विभीषिकाएँ
बेटे, एक और भी बात हमको मालूम पड़ती है जिससे लगता है कि हम किसी भयानक जमाने की तरफ तेजी से बढ़ते चले जा रहे हैं। वह क्या चीज है? वह है बेटे, संतानों की संख्या। संतानों की संख्या जिस तेजी से बढ़ती जा रही है, गुणन प्रक्रिया के हिसाब से- रिकरिंग प्रक्रिया के हिसाब से, चक्रवर्ती ब्याज के हिसाब से बढ़ रही है। अगर वह इसी हिसाब से बढ़ती रही, तो मुझे दिखाई पड़ता है कि अभी तो स्कूलों में जगह नहीं मिलती, नौकरी के लिए जगह नहीं मिलती, रेलगाड़ियों में जगह नहीं मिलती, अमुक स्थान में जगह नहीं मिलती, तो सौ वर्षों के अन्दर आगे चलकर सड़क पर चलने के लिए जगह नहीं मिलेगी। पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा। खुराक की तो मैं क्या कहूँ। आदमी को भूख से तड़प- तड़प करके मरना पड़ेगा। जिस हिसाब से आज आदमी औलाद पैदा करते चले जा रहे हैं, आदमियों की यह आदत इतनी भयंकर है कि आप देख लेना इसके क्या परिणाम होते हैं। और भी बहुत सी बातें हैं, जिनसे मालूम पड़ता है कि हम किसी भयंकर समय की ओर तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।
सँभलेगा अवश्य आदमी
परन्तु गुरुजी! क्या यह भयंकर समय आयेगा? नहीं बेटे, मेरा विश्वास है कि नहीं आयेगा, क्योंकि आदमी बड़ा समझदार है। आदमी बड़ा अक्लमन्द है। यह बढ़ता तो है, पर ठोकर खाने के बाद में संभल जाता है, समझ जाता है, उसे अक्ल जरूर आती है। कितने ही युग आ चुके जब ठंडक पड़ी, बरफ से दुनिया जम गयी। लेकिन आदमी इतना होशियार है कि उससे भी मुकाबला कर लेता है और संभल जाता है। मैं आपको बताता हूँ कि खौफनाक परिस्थितियाँ कैसी आ रही हैं? खतरे कैसे आ रहे हैं? पर मैं आपको आश्वासन देना चाहता हूँ कि आदमी के भीतर जो सुपीरियारिटी है, आदमी के भीतर जो महत्ता है, वह समय के अनुसार समझ जाती है। वह बढ़ता तो है मरने के लिए, चलता तो है आग के पास जाने के लिए, लेकिन जब अंगुलियाँ जलने लगती हैं, हाथ झुलसने लगता है, तो वह पूरे हाथ को जलने से पहले ही उसे पीछे खींच लेता है। हम देखते हैं कि गलती से जब बच्चा आग के पास चला जाता है और जरा सी उसकी अंगुली जलने लगती है तो वह पीछे भाग खड़ा होता है।
सामान की नहीं गरिमा की जरूरत
मित्रो! आदमी समझदार है और इस समझदारी पर मुझे विश्वास है। इसलिए मैं जानता हूँ कि नया युग आयेगा। वर्तमान परिस्थितियों का विकल्प यही हो सकता है कि हम मानवीय गरिमा और मानवीय सिद्धान्तों को फिर से ठीक करें। सामान की कमी नहीं है। सामान की कमी को अगर पूरा भी किया तो मैं समझता हूँ कि इससे आदमी की किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। आप सामान की कमी को कहाँ तक पूरा करेंगे। अमेरिका से ज्यादा तो नहीं कर सकते, जहाँ प्रत्येक आदमी के लिए प्रतिदिन की औसत आमदनी दो हजार मासिक है। दो हजार रुपये मासिक कैसे है? जैसे मान लीजिए आप अपने घर में पाँच आदमी रहते हैं। आप रहते हैं, आपकी बीबी रहती है, तीन बच्चे रहते हैं। इस तरह आप पाँच हुए तो औसत आमदनी क्या होनी चाहिए? आपकी आमदनी दस हजार रुपया महीना होनी चाहिए। फिर आपकी दो हजार की औसत आमदनी फेल हो सकती है। इतने बड़े आमदनी वाले देश में आप जाकर देखिए और पता लगाकर आइए, उन किताबों को पढ़िए जिनमें अमेरिका की रिपोर्ट छपती है। तो आप पायेंगे कि वहाँ का समाज कितना दयनीय, कितना गया- बीता समाज, कितना पिछड़ा हुआ समाज, कितना हाहाकार करता हुआ समाज, कितना मरणोन्मुख समाज और कितना पतनोन्मुख समाज दिखाई पड़ेगा।
समाधान यह नहीं
गुरुजी! तो क्या धन से हमारी समस्याएँ सुलझ जायेंगी? बेटे, धन से समस्याएँ नहीं दूर हो सकतीं। विज्ञान से भी नहीं हो सकती, पैसे से भी नहीं हो सकती। जब आदमी की जीवात्मा ही मरती चली जायेगी तो पैसा क्या करेगा? आदमी पैसा नहीं है, आदमी हड्डियाँ नहीं है और माँस भी नहीं है। आदमी के भीतर एक सोल काम करती है, चेतना काम करती है। चेतना की खुराक, चेतना की राहत और चेतना का नियंत्रण न मिल सकता, तो बाहर की वस्तुएँ क्या करेंगी? हम रोज देखते हैं, पैसे वालों को देखते हैं, विद्वानों को देखते हैं, धनवानों को देखते हैं, मालदारों को देखते हैं, सेहतवालों को देखते हैं, ताकतवालों को देखते हैं, पहलवानों को देखते हैं और उनकी घिनौनी जिंदगी को देखते हैं। उनके सामने चारों ओर जो परिस्थितियाँ खड़ी हुई हैं, उसे देखकर हम भाग खड़े होते हैं और कहते हैं कि हे भगवान! हमको ऐसा धनवान मत बनाना। हमको ऐसा बलवान मत बनाना। हमको मत बनाना ऐसा विद्वान। बेटे हमको इस विद्या से डर लगता है। हम चाहते हैं कि इस तरक्की की बनिस्बत हमारा पिछड़ापन ही हमारे पल्ले से बँधा रह जाय तो अच्छा है।
प्रेम- त्याग से भरा होगा सतयुग
बेटे, मैं देखता हूँ कि नया युग आयेगा, तो कैसा युग आयेगा? यह ऐसा युग आयेगा जिसमें आदमी के पास नीति, आदर्श, दर्शन, सिद्धान्त, भलमनसाहत- ये सिद्धान्त उसके पास होंगे। और थोड़ा सामान होते हुए भी आदमी अपना गुजारा कर लेगा। ऐसा युग आयेगा, जब आदमी संयम से रहना सीखेगा और इसी शरीर में से अपनी मजबूती पैदा कर लेगा, दिली जीवन पैदा कर लेगा। ऐसा जमाना आयेगा जिसमें हम अपने घरों में अपने बाल- बच्चों के साथ प्यार- मोहब्बत के साथ हँसती- हँसाती हुई जिन्दगी व्यतीत करेंगे। बच्चे अपने पापा से लिपट जाया करेंगे और पाप अपने बच्चों को कंधे पर रखकर के यह अनुभव करेंगे कि यह भगवान का बेटा है, भगवान का दिया हुआ छोटा सा खिलौना है। अपने पति को देख करके पत्नी खुश हो जाया करेगी। जिस तरीके से सूरज को देख करके कमल खिल जाता है, उसी तरीके से स्त्रियाँ अपने पतियों को देख करके खिला करेंगी और पति अपनी पत्नी को देख करके कहेंगे कि साक्षात् लक्ष्मी हमारे घर में विद्यमान है। हमारे घर में सरस्वती विद्यमान है। हमारे घर में गायत्री विद्यमान है, फिर क्या कमी है? बेटे, हम ऐसे ही प्रेम- मोहब्बत की दुनिया को आता हुआ देखते हैं। और उसके लिए तैयारी करने में हमको कोई निराशा नहीं होती। क्योंकि मालूम पड़ता है कि भगवान उस जमाने को लायेंगे। रात के बाद जब दिन आ सकता है, तो खराब और गंदे जमाने के बाद अच्छा समय क्यों नहीं आयेगा? यह तर्क, यह दलील हमको कहती है। भविष्य की आशाएँ हमको कहती हैं, प्रकृति का चक्र हमको बताता है। हर चिह्न बताता है कि नया युग और नया जमाना आ रहा है और पुराना बदलने जा रहा है।
अग्रगामी बनिए
तो महाराज जी फिर क्या करना चाहिए? बेटे, आपके हाथ में एक सौभाग्य है। आप चाहें तो सौभाग्य का फायदा उठा सकते हैं। कैसे? आगे वाली लाइन में जो लोग चला करते हैं, यह श्रेय उन्हीं के हिस्से में आता है। भीड़ में अगर आप कभी शामिल हों और अगर फोटो खिंचे, तो सबसे पहले आपका ही फोटो खिंचेगा। इसलिए पीछे चलने की बनिस्बत जहाँ आपको यह मालूम पड़ता हो कि यहाँ कुछ नफे का काम है और कोई अच्छा काम है, तो आपको आगे- आगे चलना चाहिए। काँग्रेस के आन्दोलन में शुरू- शुरू में जो लोग गये थे, उन्हें मजा आ गया और वे क्या से क्या बन गये। पीछे तो बहुत सारे आदमी आ गये और बहुत से चलते गये। लेकिन जिनके नाम आते हैं, वे हैं- जो कि पहले गये थे। गाँधी जी के नमक सत्याग्रह में जितने लोग गये थे, उनकी कुल तादात उन्यासी थी। वे लोग गाँधी जी के साथ नमक बनाने गये थे। महादेव भाई देसाई भी थे, प्यारेलाल जी भी थे और दूसरे, तीसरे आदमी थे। मन में आया काश! हम भी उन लोगों में शामिल होते, तो हमारा भी फोटो खिंच जाता और हमारी भी फिल्म बन जाती। लेकिन हम आगे की लाइन में नहीं रह सके। बेटे, आगे की लाइन में, अच्छे कामों की लाइन में जो आदमी आगे चलते हैं, उनका बहुत नाम होता है।
सभी में अकेला एक अंगद
मित्रो! अंगद आगे की लाइन में यह बताने के लिए थे कि देखो राम- रावण युद्ध होने वाला है और अब कुछ नया हेर- फेर होने वाला है। अंगद लंका गये थे और रावण की सभा में पैर जमाकर खड़े हो गये थे। बेटे, अंगद का नाम रामायण में लिखा हुआ है। अंगद का नाम सुन करके हम बहुत गुस्सा आता है। क्यों साहब! अंगद अकेले तो नहीं थे, बहुत सारे लोग थे। हाँ बेटे, बहुत सारे लोग थे। उनमें से एक का नाम नल था, एक का नील था, एक का नाम सुग्रीव था। एक नाम क्या, बहुत सारे ढेरों आदमी थे, बंदर थे, भालू थे। तो फिर अंगद की बात क्यों कहते हैं? अंगद की बात बेटे मैं इसलिए करता हूँ कि वह सबसे आगे वाली लाइन में खड़े थे। जब राम- रावण युद्ध होने वाला था, तो अंगद पहली वाली भूमिका में आगे जा करके खड़े हो गये थे और उन्होंने अगली वाली भूमिका का उत्तरदायित्व अपने कंधों पर लिया था।
अच्छा समय यही है
मित्रो! अब ठीक उसी तरह का समय आ गया है। आप चाहें तो सबेरे निकलने वाले सूरज की तरीके से श्रेय ले लें। नया युग तो आयेगा ही। आप काम न करें तो भी बेटे आयेगा। जरूर आयेगा। आप इस बात को नोट करके रखना कि अब नया समय अवश्य आयेगा। अगर नया समय नहीं आयेगा, तो मनुष्य जाति की सामूहिक हत्या हो जायेगी और आत्महत्या करके मनुष्य जाति हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगी। गुरुजी! ऐसा हो जायेगा? नहीं बेटे, ऐसा नहीं हो सकता है। बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी मैंने आशा का दीपक जला करके रखा है। खराब से खराब परिस्थितियों में भी मैं यह उम्मीद करता रहता हूँ कि कल नहीं तो परसों अच्छा समय आने ही वाला है। बेटे, अच्छा समय जरूर आयेगा। मैं अपने विश्वास के आधार पर, आशाओं के आधार पर, मानव जाति की गरिमा के आधार पर और जिस भगवान ने ऐसी सुन्दर दुनिया बनाई है और ऐसा सुन्दर आदमी बनाया है, उसकी बात पर विश्वास करते हुए मैं ख्याल करता हूँ कि अच्छा दिन आने वाला है और जल्दी ही आने वाला है।
आप चाहे जो भूमिका ले लें
मित्रो! ठीक यही समय है, जबकि नये युग की, नये समय की शुरुआत चल रही है और नया समय बदल रहा है। आप चाहें तो अपनी मुनासिब भूमिका को ग्रहण कर सकते हैं। आप चाहें तो पीछे भी चले जा सकते हैं। आप चाहें तो बैठे भी रह सकते हैं। आप न करेंगे तो कोई हर्ज की बात नहीं है। आप न करेंगे तो भगवान की हवाएँ ऐसे तेजी के साथ आयेंगी कि आप न उड़ना चाहें, तो भी पत्ते उड़ेंगे और दूसरी चीजें उड़ेंगी। भगवान की जब इच्छा होती है तो कोई न कोई काम कहीं न कहीं से हो ही जाता है। अगर नये युग को आगे लाने वाला मुर्गा नहीं बोलेगा, तो क्या सबेरा नहीं होगा? मुर्गा बोलता है, तो अच्छा मालूम पड़ता है कि अच्छा साहब! मुर्गा बोल गया। अब तो उठें। हाँ साहब! उठिए, अब तो मुर्गे ने आवाज लगा दी। मुर्गा न हो तो? तो भी बेटे, सबेरा तो होगा ही। मैं चाहता था कि आप का नाम लोगों की जबान पर हो कि सबेरे के लिए मुर्गा बोला, कुक्कड़ू कूँ की। आप भी बोलिए न कुक्कड़ूं कूँ, तो मजा आ जाये और आप भी खुश हो जाएँ और हर आदमी के दिमाग में आ जाय कि सबसे पहले उठने वाला कौन है? सबको आवाज लगाने वाला कौन है? सबसे पहले शंख बजाने वाला कौन है? सबसे बड़ा पंडित कौन है? सबसे बड़ा मुल्ला कौन है? मुर्गा। आप चाहें तो मुर्गा हो सकते हैं।
मात्र दिलेरी चाहिए
तो महाराज जी! मुर्गा बनने के लिए क्या करना पड़ेगा? बेटे, एक काम करना पड़ेगा और वह है- दिलेरी। दिलेरी के अलावा और किसी भी बात की जरूरत नहीं है आपको। ज्ञान की जरूरत है? नहीं बेटे, ज्ञान की कोई खास जरूरत नहीं है। दुनिया में ज्ञान वालों ने बड़े काम नहीं किये हैं। दिलेर लोगों ने बड़े काम किये हैं। फ्रांस की स्वाधीनता की जिम्मेदारी वहाँ के पढ़े- लिखे लोगों के जिम्मे नहीं थी, वहाँ के वकीलों के जिम्मे नहीं थी, पी.एच.डी. लोगों के हाथ में नहीं थी और पंडितों के जिम्मे नहीं थी और आचार्यों के जिम्मे नहीं थी। किसके जिम्मे थी? किसान की एक छोकरी के जिम्मे थी। सत्रह- अठारह वर्ष की छोकरी थी, जिसका नाम था जोन ऑफ ऑर्क। जोन ऑफ ऑर्क घोड़े पर चढ़ करके चल पड़ी। उसने कहा कि अंग्रेजों से मैं लड़ूँगी। बस अंग्रेजों से लड़ने के लिए वह लड़की, जो नाम मात्र की पढ़ी थी, चल पड़ी। और जब चल पड़ी तो आगे- आगे वह चली और उसके पीछे- पीछे सारा फ्रांस चल पड़ा। उसने अंग्रेजों को हरा दिया और फ्रांस फिर से आजाद हो गया।
मछली की तरह धारा को चीरते हुए
मित्रो! आप आगे- आगे चलें, तो आगे चलने के लिए आपको किस चीज की जरूरत है। हथियारों की? नहीं बेटे, हथियारों की कोई खास जरूरत नहीं है। पैसे की? पैसे की जरूरत नहीं है। विद्या की? विद्या की भी जरूरत नहीं है। सिर्फ एक चीज की जरूरत है और उसका नाम है- दिलेरी। दिलेरी माने हिम्मत। हिम्मत की जरूरत है। हिम्मत किसे कहते हैं? हिम्मत से मेरा मतलब उस दिलेरी से नहीं है, जो डाकुओं में पाई जाती है, लुटेरों में पाई जाती है, ठगों में पाई जाती है। उनमें भी बड़ी दिलेरी होती है, पर मेरा मतलब उससे नहीं है। मेरा मतलब उससे है जो समय की धारा को चीरते हुए, वातावरण को चीरते हुए उलटी दिशा में चल सकते हों। उसको मैं दिलेरी कहता हूँ। दिलेरी का एक उदाहरण है- मछली। पानी जब बहता है, नदी में बहाव आता है, तब पानी के साथ सब बह जाते है। छप्पर बह जाते हैं, काँटे बह जाते हैं, लकड़ियाँ बह जाती हैं, हाथी बह जाते हैं, घोड़े बह जाते हैं, गाय- भैंस बह जाती हैं- सब बह जाते हैं। पर एक जानवर ऐसा है जो पानी के बहाव को चैलेन्ज करता है और यह कहता है कि हम आपके साथ- साथ चलने को कतई तैयार नहीं हैं। हम अपनी मर्जी से चलेंगे और उस जानवर का नाम है- मछली। मछली पानी की बीच धारा में छलछलाती हुई उलटी दिशा में चल पड़ती है।
पहले कोई आगे तो चले
मित्रो! लहरें लाख मना करती हैं कि हम नहीं चलने देंगे। लेकिन दिलेरी के सामने आप क्या कर सकते हैं। हम चलेंगे और उलटी दिशा में चलेंगे। सारे लोग सीधी दिशा में चलते हैं, लेकिन जो लोग धारा को चीरते हुए उलटी दिशा की ओर चलते हैं, उनको मैं दिलेर कहता हूँ। बस, इसी दिलेरी की आपको जरूरत है। आप ऐसी हिम्मत को अपने भीतर संभाल कर रखे रहें, जो समय को बदल डालने के लिए आवश्यक है। महाराज जी! फिर समय से मुकाबला किससे करना पड़ेगा? बेटे, एक हवा चल रही है, एक प्रवाह चल रहा है, लोगों की एक मनोवृत्ति चल रही है, आदमी का एक ढर्रा चल रहा है। इस ढर्रे को बदलने और नया ढर्रा लाने के लिए तो किसी न किसी को तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी। किसी न किसी को तो आगे चलना ही पड़ेगा। बाद में पीछे तो लोग चलेंगे ही। यही तो लोगों की आदत है कि पहले कोई आगे चले तो हम पीछे चलें। बेटे, आगे आपको चलना पड़ेगा। अगर आपको आगे चलने की दिलेरी है, हिम्मत है और आपके भीतर इतना माद्दा है कि हम जमाने की हवा और जमाने के ढर्रे का मुकाबला करते हुए नये ढंग से विचार कर सकते हैं और नयी परिस्थितियों को बुला लाने के लिए हिम्मत कर सकते हैं और अकेले आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ा सकते हैं, तो मैं कहूँगा कि वह उद्देश्य पूरा हो गया, जिसके लिए शिविर लगाया गया था।
दिलेरी का परिचय दें
साथियो! हमने वानप्रस्थों के लिए शिविर लगाया था और जहाँ दूसरे आदमी तरह तरह के कपड़े पहनते हैं, हमने आपको पीले कपड़े पहनाये थे। क्यों पहनाये थे? यों पहनाये थे कि दूसरा कोई आदमी पीले कपड़ा नहीं पहनता। आप बाजार में घूम आइए, आपको नीले पैन्ट पहनने वाले मिलेंगे, अमुक रंग के मिलेंगे, पर पीले रंग का कोई नहीं मिलेगा। पीले रंग में आपको शरम लगेगी? नहीं साहब! हमको कोई शरम नहीं लगेगी। देखो- यह आया पीले कपड़े वाला, यह आया बाबाजी, यह आया भिखारी। देखो यह आया पंडित, यह आया जोगी, यह आया ढोंगी, आदि बातें लोगों को कहने दीजिए। पीले कपड़े पहनने से आपने हिम्मत तो नहीं हारी? लोग यह कहते हैं। लोगों को कहने दीजिए, उनकी जबान है, वो भी चाहें कह सकते हैं। लेकिन गुरु जी ने हमको पीला कपड़ा पहनाया है, तो हमको पीले कपड़े में अपनी इज्जत मालूम पड़ती है और शान मालूम पड़ती है। नहीं साहब! ये भिखारी हैं और भीख माँगते हैं। हाँ माँगते होंगे, जा, तेरे घर माँगने आयें तो मत देना। बेटे जिसके भीतर दिलेरी है, वह सारी दुनिया की हँसी को देख करके भी अपनी जगह पर खड़ा रह सकता है। मैं उसको दिलेर कहता हूँ। इस आदमी से मैं कुछ उम्मीद कर सकता हूँ।
मुझे नया आदमी चाहिए
मित्रो! नया जमाना लाने के लिए, नयी फिजाएँ पैदा करने के लिए शायद ऐसे आदमी काम आ जायें। जो आदमी ढर्रे पर बह रहा है, उसके लिए हम क्या कर सकते है। मुझे तो नया ढर्रा पैदा करना है। नया वक्त लाना है, नयी जिन्दगी पैदा करनी है, नया आदमी पैदा करना है और नये स्वभाव और नये संस्कारों से आदमी को ढालना है। इसलिए मुझे नया आदमी चाहिए और ऐसा आदमी चाहिए जो हवा से प्रभावित न हो। ढर्रे के बहाव को चीरने के लिए जिसके अन्दर कुव्वत और जिसके अन्दर कलेजा हो, मुझे सिर्फ ऐसे आदमी चाहिए। दूसरे आदमी नहीं चाहिए। मुझे खुशी है कि आप लोग ऐसे ही आदमियों में से हैं, जिन्होंने यह निश्चय किया कि हम अपना मनोबल संग्रह करेंगे। बेटे, मनोबल संग्रह करेंगे, तो फिर इसका इस्तेमाल क्या करेंगे मनोबल का इस्तेमाल करने के लिए कई रास्ते हैं। यह कौन सा हथियार है? आपने इसके साथ- साथ जो पीले कपड़े पहना है और मैंने जिसके लिए उम्मीद रखी है और जिस काम की आपको दीक्षा दी, जिस मनोबल की आपको मैंने दीक्षा दी, यह वह मनोबल है जो श्रेष्ठ कामों के लिए, आदर्श क्रिया- कलापों के लिए प्रेरणा देता है। ऐसे व्यक्ति लोगों की कोई चिन्ता नहीं करते कि लोग क्या कहते हैं।
मात्र भगवान की सलाह लें
बेटे, लोग बड़े गन्दे है, बड़े वाहियात हैं। इनकी सलाह, इनका मशविरा, इनके परामर्श से हमारा कोई काम बनने वाला नहीं है। ये चोरी के अलावा, चालाकी के अलावा, बदमाशी के अलावा, बेवकूफी के अलावा कोई सलाह नहीं दे सकते। इनके पास भलमनसाहत की सलाह कहाँ है? अरे एक आदमी पकड़कर मेरे पास लाइये, जो आपको भलमनसाहत और शराफत की सलाह देने के लिए तैयार हो। जब बेटे, शराफत की सलाह देने वाला कोई है ही नहीं, तो मैं क्या कर सकता हूँ। ऐसी स्थिति में आपको हिम्मत के साथ भगवान की सलाह और अपनी आत्मा की सलाह लेकर के आगे बढ़ना चाहिए। आगे बढ़ेंगे तो वह उद्देश्य पूरा हो जायेगा, जिसको हम वानप्रस्थ जीवन कहते हैं। वानप्रस्थ जीवन का उद्देश्य यही है। तो हमें क्या करना पड़ेगा? बेटे, एक- एक करके कदम बढ़ाता चल। कैसे? ऐसे कदम बढ़ाता चल, जिसमें कि तेरी हिम्मत सिद्धान्तों के प्रति निष्ठा का सबूत देती हो।
अपना बँटवारा करो
महाराज जी! क्या- क्या काम करूँ? बेटे, पहला काम तो यह कर कि एक बँटवारा कर दे। किसका बटवारा करूँ? इस चीज का बटवारा कर दे कि तेरी दुकान में दो आदमियों का हिस्सा है। अभी तो एक आदमी- एक पार्टनर निन्यानवे परसेंट माल खाता रहता है और दूसरे पार्टनर को अँगूठा दिखा देता है। उसे कुछ भी नहीं देता है। तू तो पहला इंसाफ यही कर कि दोनों को बराबर की हिस्सेदारी दे। दुनिया में सब जगह बेइंसाफी हो रही है। तू सबसे पहले इस बेइंसाफी को पहली बार अपने पास से दूर कर। यदि यह बेइंसाफी दूर हो जाये, तो इंसाफ चालू हो जायेगा। इंसाफ की दुनिया ही तो हमको लानी है। न्याय की दुनिया ही तो लानी है, भलमनसाहत की तो दुनिया ही लाती है। इसलिए निजी जीवन में जो बेईमानी हो रही है, इसको तू पहले ठीक कर दे। पहले तू यहाँ से चल, फिर और बताऊँगा।
कायसत्ता और जीवात्मा
मित्रो! क्या करना चाहिए? यह करना चाहिए कि अपनी दुकान में हम दो आदमी हैं- लाला चुन्नूलाल, लाला मुन्नूलाल एण्ड संस कौन सी है हमारी दुकान? यह शरीर ही हमारी दुकान है। इसमें दो आदमी काम करते हैं। इसमें दो आदमियों का हिस्सा है- एक हमारा शरीर और एक हमारी जीवात्मा। दो की सम्मिलित दुकान है। बेटे, हम शरीर से काम करते हैं। यह भी हमारा एक पार्टनर है, जो दिन- रात काम करता है और एक हमारी जीवात्मा है, जिसकी वजह से यह पार्टनर जिन्दा है। जिसकी वजह से हम काम कर सकते हैं। जिसकी वजह से हमारी लाइफ काम करती है। हम दो आदमी हैं। दोनों आदमियों की मशक्कत से, दोनों आदमियों की मेहनत से, दोनों आदमियों के सहयोग से हमारे जिन्दगी की नाव चलती है। लेकिन एक आदमी इसका फायदा उठाता है और दूसरा आदमी दिन- रात मरता रहता है। न किसी को यह फिकर है कि यह मर गया या जिंदा है। न कोई इसको पानी पिलाता है, न कोई इसको रोटी खिलाता है। सूख- सूख कर यह काँटा हो गया है और मरने के नजदीक आ गया है। जबकि एक आदमी मोटा होता जाता है।
इस गिरोह से बचें
बेटे, यह क्या हो रहा है? बेइन्साफी तेरे भीतर हो रही है। कैसे? जिंदगी का जो कुछ भी फायदा है, हमारा बहिरंग उठाता है। बहिरंग से क्या मतलब है? बहिरंग से मतलब हमारे शरीर से है। सारा फायदा हमारा शरीर उठाता है और जीवात्मा बिलखती रहती है। जो भी वक्त होता है, वह सारे का सारा हमारे शरीर के लिए होता है। हमारे खाने के लिए, हमारे ऐय्याशी के लिए, हमारे मनोरंजन के लिए, हमारे मौज- मजा के लिए और हमारे शरीर के साथ जो आदमी इस रस्सी से बँधे हुए हैं, शरीर की वजह से बँधे हैं, आत्मा की वजह से नहीं बँधे हैं। हमको कामवासना की हवस होती है तो हम बीबी पैदा कर लेते हैं और बीबी बच्चे पैदा कर देती है। इसलिए वे सब हमारे शरीर से ताल्लुक रखते हैं। वे हमारे शरीर के रिश्तेदार हैं। वे हमारी आत्मा के रिश्तेदार नहीं है। हमारे चारों ओर रिश्तेदारों का गिरोह जमा हो गया है। यह जो गिरोह है, हमारी जिंदगी की सारी की सारी कमाई के ऊपर हाथ साफ करता रहता है।
कोई अहसान नहीं कर रहे भजन करके
बेटे, आत्मा के नाम पर हमारे पास कुछ भी नहीं है। नहीं साहब! हम दो माला रोज जप करते हैं। बेटे, मैंने सौ बार कहा है, फिर सौ बार अभी और कहूँगा कि जो आप भजन करते हैं, वह दाँत साफ करने के बराबर है और बालों में कंघी करने के बराबर है। भगवान पर कोई अहसान नहीं है। भगवान ने मनुष्य का जीवन इसलिए नहीं दिया कि हमारे लिए भजन करना। भजन कोई चीज नहीं है। बेटे, भजन तो अपने मन की मलीनता की सफाई के लिए है। इसके द्वारा हमारी जीवात्मा को कोई पोषण नहीं मिलता। अगर पोषण मिला होता, तो वे जो संत, बाबाजी गंगाजी के किनारे, जमुना जी के किनारे बैठे रहते हैं और पंडित लोग जो भीख माँगते रहते हैं, सारे दिन रामायण का पाठ करते रहते हैं, इनके अन्दर आपको कोई तेज दिखाई पड़ता है? इनके अन्दर कोई वर्चस्, आपको दिखाई पड़ता है? इनके अन्दर कोई गौरव दिखाई पड़ता है? इनके अन्दर कोई जीवन दिखाई पड़ता है? इनके अंदर कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता।
श्रेष्ठ कामों का सुख
मित्रो! राम के नाम की बात मैं नहीं कहता, मैं तो यह कहता हूँ कि हमारे आत्मा की खुराक, जिसको हम शान्ति कहते हैं सुख कहते हैं। जिसको हम संतोष कहते हैं, कहाँ है? सुख वह होता है जो हमारे शरीर को मिलता है। शरीर सुख उठाता है। जब जीभ से मीठी चीजें खाते हैं, तो हमको सुख मिलता है। कामवासना के सेवन में हमें सुख मिलता है और सिनेमा देखने के लिए जाते हैं, तो हमें सुख मिलता है। सुख किसको मिलता है? शरीर को मिलता है। बस शरीर को मौज मिलती रहती है। हमारी वासना पूरी होती रहती है, तृष्णा पूरी होती रहती है, लेकिन हमको शान्ति और संतोष नहीं मिलता है। शान्ति और संतोष कैस मिलता है? बेटे संतोष, भजन से नहीं मिलता है, श्रेष्ठ काम करने से मिलता है। आदर्शों को जीवन में ढालने से मिलता है। ऐसे काम करने से मिलता है जिसमें हमारी जिंदगी दूसरे के सामने नमूने की जिंदगी बन सके। इससे हमें संतोष मिलता है। उससे हमारा गर्व पूरा होता है, गौरव मिलता है। उससे हमारी जीवात्मा गौरव अनुभव करती है कि सारे के सारे लोग जहाँ गंदी, घटिया और निकम्मी जिंदगी जी रहे थे, तब हमने मुसीबतों के बीच भी, कठिनाइयों के बीच भी एक ऐसी जिंदगी जी, जो प्रकाश स्तंभ का काम करती रही।
प्रकाश स्तम्भ बनें
प्रकाश स्तंभ, जो अकेला समुद्र में खड़ा रहता है, लेकिन वहाँ से लाइट फेंकता रहता है। ताकि समुद्र में जाने वाली नावें और जहाज डूबने न पायें। वह इशारा करता रहता है कि यहाँ मत आइए, चट्टान है। यहाँ से दूर चलिए। समुद्र में खड़ा हुआ प्रकाश स्तंभ- लाइट हाउस रात भर हमको बताता रहता है। आदमी का यह गर्व और आदमी का यह गौरव है ओर आदमी की यह शान है, इज्जत है कि बाकी लोगों ने जहाँ- सब लोगों ने जहाँ अपने ईमान गँवा दिये। लोगों ने जब अपने सिद्धान्त गँवा दिये, तब हमने गरीबी में रहते हुए भी, दुखियारे होते हुए भी, कंगाली का मुकाबला करते हुए भी हमने ऐसी नेक और शराफत की जिंदगी जी, जिसको देख करके हमारे पीछे आने वाले आदमी अपनी राह तलाश कर सकते हैं। ऐसी जिंदगी हमने जी। बेटे, छोटे सितारे की जिंदगी धन्य है। रात को एक छोटा सितारा चमकता रहता है। रात में जब सभी ओर अँधेरा फैला हुआ है। अब हमको कहाँ चलना चाहिए, कहाँ जाना चाहिए? तब रात को निकलने वाला सितारा रास्ता बताता है।
सितारा! तू धन्य है
सितारा कहता है कि आइए हम रास्ता बता सकते हैं। आप देखिए इधर पूरब है, देखिए इधर पश्चिम है। छोटा सा सितारा हमको रास्ता बताता है और भटकने वाला मुसाफिर, गुमराह होने वाला मुसाफिर रास्ता तलाश कर लेता है और देख लेता है और उसको धन्यवाद देता है। किसको? रात को निकलने वाले तारे को क्या कहता है- ‘फॉर ऑल स्पार्क,- लिटिल स्टार’। ऐ, छोटे तारे चमको, खूब चमको। ‘थैंक यू फॉर यूअर टिनी स्पार्क’ छोटी सी चिंगारी के लिए धन्यवाद। हाऊ आई वंडर ह्वाट यू आर।’ छोटे बच्चे गाते रहते हैं। दूसरे दर्जे की किताबों में लिखा रहता है, ऐ तारे! आप धन्य हो। आप जले- ठीक, आप बर्बाद हो गये- ठीक। आप छदाम के थे। आप एक मिट्टी के बने हुए थे, लेकिन आपने वह रोशनी पैदा की, जिसकी वजह से हम ठोकर खाने से बचे।
संत कौन?
मित्रो! वह आदमी, जिसने अपनी जिंदगी को इस तरीके से जिया जैसे कि छोटे वाले सितारे ने जिया, मिट्टी के छोटे से दीपक ने जिया, उसको शान्ति मिलने वाली है, संतोष मिलने वाला है। जिसके सफेद कपड़ों के ऊपर दाग- धब्बे नहीं लगे, जिसने गंदा जीवन नहीं जिया, लोगों के सामने घिनौने काम, घिनौने उदाहरण पेश नहीं किये। बेटे, मैं उसको इज्जतदार आदमी मानता हूँ और उसको मैं संत कहता हूँ। शरीफ आदमी को मैं संत कहता हूँ। आपने अगर शराफत की जिंदगी जी ली, तो समझ लीजिए संत की जिंदगी जी ली। ऐसे जमाने में जहाँ कि हर आदमी अपना ईमान खोता चला जा रहा है। एक- एक पैसे के लिए लोग ईमान खो रहे हैं। छोटी- छोटी बातों के लिए ओर जरा सी बातों के लिए फिसलते हुए चले जा रहे हैं। अगर आदमी इस फिसलन के जमाने में चट्टान की तरह से खड़ा रह गया तो मैं कहता हूँ कि उसको शान्ति मिलने वाली है। उसको सुख मिलने वाला है।
आत्मा की भूख पूरी करें
मित्रो! आपके दो हिस्सेदार है। एक हिस्सेदार आपका शरीर है और दूसरा हिस्सेदार आपकी जीवात्मा है। वह भी आपका पार्टनर है। उसको भी शेयर मिलना चाहिए- हिस्सा मिलना चाहिए। आपकी भूख तो उन चीजों की है जिसको हम वासना, तृष्णा कहते हैं। परन्तु आत्मा की भूख यह नहीं है। आत्मा की भूख यह है कि आपका चरित्र उच्चस्तरीय बनता रहे। उच्च- स्तरीय चरित्र बनाने के लिए आप अपने जीवन की संपदा में से कोई हिस्सा निकालते हैं कि नहीं, जबाब दीजिये? नहीं साहब! हम तो भजन करते हैं। बेटे भजन की बात करेगा, तो अबकी बार मैं गाली दूँगा। बड़ा आया भजन करने वाला, मैं भजन करता हूँ। भजन लेकर चला है। ले जा भजन को। भजन की भगवान के यहाँ कोई जरूरत नहीं है। हमने भगवान के यहाँ खाते में देखा था और यह पूछा था कि आपके यहाँ भजन का कोई एकाउण्ट है? उन्होंने कहा कि नहीं, यहाँ भजन का कोई एकाउण्ट नहीं है। हमारे यहाँ शराफत का एकाउण्ट है और आपने जिंदगी किस तरीके से जी है, इसका एकाउण्ट है। अब आप बताइये कि कैसी जिन्दगी जीते हैं। हम भजन करते हैं। नहीं, हमें आपकी जरूरत नहीं है। भगवान के यहाँ भजन से कोई ताल्लुक नहीं।
सहकारिता के चक्र
मित्रो! आपको क्या करना पड़ेगा? शराफत की और अच्छी जिंदगी जीने के लिए अपनी जीवात्मा को खुराक देने के लिए कमर बाँध करके खरा बनना पड़ेगा। अगर आप नये युग के संदेश वाहक के रूप में चलते हैं, तब आप यह काम कर सकते हैं। यह काम आपके स्वयं के काबू का है। नहीं साहब! हमारा कोई कहना नहीं मानता। कोई नहीं मानता होगा, लेकिन मैंने मान लिया। आप तो अपना कहना मान सकते हैं। आपकी अक्ल पर आपका अधिकार तो होना चाहिए। आपके शरीर पर आपका अधिकार तो होना चाहिए, फिर आप क्यों नहीं मानते? अपनी जिंदगी को आप शराफत से व्यतीत कीजिए। बेटे, हमारी जिंदगी में, मनुष्य की जिंदगी में एक और भी चीज है और वह है- हमारा शरीर चक्र, समाज चक्र, जल चक्र- यह सभी एक पहिए पर घूम रहा है- सहकारिता के ऊपर, कोआपरेशन के ऊपर, एक दूसरे की सहायता करने के ऊपर, सेवा करने के ऊपर टिका हुआ है। आप देखते नहीं हैं अपने शरीर को? हाथ कमाता रहता है, मुँह खाता रहता है, पेट हजम करता रहता है। हृदय में खून जाता रहता है और नाड़ियों में खून जमा रहता है। ये सभी एक दूसरे के सहकारिता पर टिके हुए हैं।
औरों के लिए जीना
मित्रो! अगर हमारे और आपकी तरीके से यह शरीर भी स्वार्थी बन जाय, तब बड़ी मुश्किल खड़ी हो जायेगी और कोई शरीर जिंदा नहीं रह सकेगा। यह मनुष्य समाज अगर बादलों को समुद्रों की तरीके से सहयोग नहीं करता रहेगा, तो यह मानव समाज मर जायेगा। समुद्र बादलों को पानी देते हैं, बादल जमीन पर बरस जाते हैं। जमीन का पानी नदियों में चला जाता है। नदियाँ समुद्र में चली जाती हैं। समुद्र से चक्र घूमता रहता है- सर्किल घूमता रहता है। यदि सर्किल को घूमने नहीं देना चाहते, तो फिर दुनिया में तबाही आयेगी और आपके लिए मुसीबतें लायेगी, अगर एक आदमी कुछ भी कमायेगा और स्वयं ही खाता रहेगा। दूसरों की भी कमाई खाता रहेगा और अपनी भी खाता रहेगा। जिस समाज में हम पैदा हुए हैं, उसकी समस्याओं के समाधान के लिए हम कोई योगदान नहीं देंगे, उसकी उपेक्षा करते रहेंगे? हमें किसी से क्या काम, की नीति अपनायेंगे। अपने मतलब से मतलब रखेंगे, तो बेटे मुसीबत आयेगी।नहीं साहब! यह चीज हमारी है और हम इसे पैसे दे करके लाये हैं। अच्छा तो कपड़ा कहाँ से लाये हैं? समाज ने बनाकर दिया है न? नहीं साहब! पैसे देकर लिया है। अच्छा, तो आप पैसा देकर के सब चीज लाये हैं? अच्छा, आपने जो माँ खरीदी थी, जिसने आपको नौ महीने पेट में रखा था और जिसने दूध पिलाया था, कितने पैसे में खरीदा था? बीबी, जो आपके पास है और सारी जिंदगी जो आपकी सेवा करती है, कितने पैसे में खरीदकर लाये? जिस जमीन पर आप रहते हैं। यह जमीन कितने पैसे में खरीदी है? जिस सड़क पर चलते हैं, उस सड़क को कितने पैसे में खरीदी है? जिस गंगा जी में नहा करके आये हैं, उसे कितने पैसे में खरीदा है? सूरज, जिसकी धूप और रोशनी में आप बैठे हैं, उसे कितने पैसे में खरीदा है? नहीं महाराज जी! मैं तो पैसे से लाया हूँ। पैसा देकर खरीदता है, बड़ा आया पैसे वाला।
समाज संस्कृति के प्रति आपका कर्तव्य
मित्रो! क्या हुआ? यह सारे का सारा समाज का अनुदान है, जिसकी वजह से हमको बोलना आता है, सोचना आता है। जिसकी वजह से हम दवा−दारू करते हैं। जिसके ज्ञान में हम रहते हैं और जिसकी वजह से हमारी तरक्की हुई है। उस समाज के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य हैं- हाँ, तो बेटे के ब्याह के साथ समाज का भी ब्याह करना है। जिस समाज में हम पैदा हुए, जिस देश में हम पैदा हुए, जिस धर्म में हम पैदा हुए, जिस संस्कृति में हम पैदा हुए हैं, जिस समय में हम पैदा हुए हैं, जिस युग में हम पैदा हुए हैं, उसके प्रति भी हमारी कोई जिम्मेदारी है कि नहीं? नहीं साहब! उसके प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। बस हमारी मौज करने की जिम्मेदारी है और औलाद की जिम्मेदारी है। चलो मान लिया कि आपकी औलाद की भी जिम्मेदारी है और शरीर की भी जिम्मेदारी है, पर वह भी आपकी जिम्मेदारी है, जो अभी हमने आपको बताया है। नहीं साहब! यह जिम्मेदारी हमारी नहीं है। तो बेटे मैं एक बात कहता हूँ कि आपको शान्ति नहीं मिलेगी। आपको चेन नहीं मिलेगा। आपकी जीवात्मा भीतर ही भीतर हाहाकार करती रहेगी कि हमने ऐसा घटिया जीवन जिया, जिसमें सिवाय स्वार्थों के कोई और दूसरी चीज के लिए गुंजायश नहीं थी।
बराबर का बँटवारा
बेटे, आपको क्या करना पड़ेगा? बँटवारा करना पड़ेगा। आप बँटवारा कर दीजिए और कह दीजिए कि अब तक जो बेइंसाफी चली, वह चली, आगे से नहीं चलेगी। आप लोग यहाँ से विदा होंगे, अब आप यह बँटवारा बनाकर जाइये कि आपकी जो कीमती जिंदगी है, भगवान का सबसे बड़ा उपहार है। इससे बड़ा उपहार और कोई नहीं है। भगवान के यहाँ इससे बड़ा कोई कोहिनूर हीरा नहीं है, जो हमको और आपको मिला हुआ है इंसानी जीवन के रूप में। इसके जो लाभ हैं, जो फायदे हैं, उसका एक हिस्सा शरीर को दिया कीजिए और एक हिस्सा जीवात्मा के उपभोग को पूरा करने के लिए दिया कीजिए। दोनों को बराबर बाँट दीजिए। आपके पास जो समय है, जो संपत्ति है, उसे बराबर हिस्से में बाँट दीजिए। नहीं साहब! हमारे पास तो कुछ भी नहीं है। बेटे, तेरे पास ढेरों सामान है। तेरे पास कई दौलतें हैं और ये इतनी कीमती दौलतें हैं कि भगवान के बेटे को यह कहने का अधिकार नहीं है कि हम गरीब हैं। भगवान के बेटे को अपने आपको गरीब नहीं कहना चाहिए और अपने बाप की बेइज्जती नहीं करानी चाहिए।
आप दौलतमन्द हैं
मित्रो! हमारे पास दौलतें हैं, जिसे असली दौलत कह सकते हैं। हमारे पास श्रम है, हमारे पास समय है, हमारे पास अक्ल है, हमारे पास प्रतिभा है। हमारे पास ये सभी चीजें हैं और ये हमारी दौलतें हैं। इन दौलतों को आप बाँट दीजिए। इन्हीं के आधार पर तो हम कमाते हैं। इन्हीं के आधार पर तो हम सिनेमा देखते हैं। इसी के आधार पर तो हमने मकान बना लिया है। इसी के आधार पर तो हम बड़े आदमी हो गये हैं। इसी के आधार पर तो हम पैसा कमाते हैं। अन्य सब कुछ हम इन्हीं के आधार पर कमाते हैं। भगवान की यह असली दौलत है, जिसे हम भगवान के यहाँ से लेकर आये हैं। इन्हीं चीजों की कीमत पर हमने जो कुछ भी कमाया है, उसका आधार यही है। हमारे पास और कोई दौलत नहीं थी। भगवान उन दौलतों को छीन ले, समय को छीन ले, श्रम को छीन ले, अक्ल को छीन ले, फिर देखें आप क्या कमा कर लाते हैं? बेटे यही असली दौलत है जिसका केवल रूप परिवर्तन हो जाता है और हम उसे रुपये के रूप में, अमुक के रूप में ले आते हैं। आप दौलतमंद हैं। आप यह मत कहिए कि हमारे पास दौलत नहीं है।
समय को बाँटिए
मित्रो! आप इस दौलत का बँटवारा और यह निश्चय कीजिए कि हम अपने श्रम का कितना हिस्सा, समय का कितना हिस्सा इस शरीर के लिए खर्च करेंगे और कितना जीवात्मा के लिए खर्च करेंगे। आप समय का बँटवारा कीजिए। आपके पास चौबीस घंटे समय है, आप इसे बाँटिए। इसमें से बारह घंटे भगवान को दीजिए और बारह घंटे शरीर को दीजिए। नहीं साहब! बारह घंटे तो बहुत ज्यादा होते हैं। अच्छा, बताइये कितना यम देंगे? महाराज जी! मैं तो रुपये में चार आने भगवान जी को दूँगा ओर बारह आने अपने लिए बचा कर रखूँगा। अच्छा भाई चल चार आने दे दे। हम भगवान जी से कह देंगे कि यह तो बड़ा वैसा आदमी है। यह तो आपको चार आने देना चाहता है और चौबीस घंटे में बारह आने का स्वयं मालिक कहलाना चाहता है। अच्छा, ला भाई छः घंटे भगवान को दे दे और अठारह घंटे तू खा जा। नहीं महाराज जी! यह तो ज्यादा हो गया। पच्चीस परसेंट तक का तो मैंने ख्याल नहीं किया था, छः घंटे तो बहुत होते हैं। आप कम करा दीजिए। हाँ करा दूँगा। तब भगवान को कितना समय देगा? साढ़े बारह परसेंट देगा? और साढ़े- छियासी परसेंट तू खा जा। इतना तो देगा कि इतना भी नहीं देगा? हाँ महाराज जी। इतना तो दे दूँगा।
योजनाबद्ध जीवन
अच्छा महाराज जी! चौबीस घंटे में तीन घंटे दें तो किसके लिए देंगे? बेटे, उसमें तेरे भजन को मैं शामिल नहीं करूँगा। भजन तो मैंने कभी शामिल नहीं किया। भजन को मैं व्यक्तिगत आवश्यकताओं में मानता हूँ। शरीर में हम साबुन लगाते हैं, बालों में कंघी करते हैं, कपड़े धोते हैं। बेटे, यह किसी पर अहसान नहीं है। इसे न धोया जाय तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी। दिमाग को धोने के लिए भजन न करूँ, तो बेटे दिमाग गंदा हो जायेगा। भगवान के ऊपर यह कोई अहसान नहीं है और यह जीवन की सार्थकता नहीं है। जीवन की सार्थकता के लिए हमको अपना चरित्र आदर्श बनाने के लिए, लोगों के सामने अपना नमूना पेश करने के लिए क्या करना चाहिए? और समाज को सुखी- समुन्नत बनाने के लिए क्या करना चाहिए? आपको इसकी प्लानिंग करनी चाहिए और इसके लिए योजना बनानी चाहिए। अपने श्रम का उपयोग कैसे करेंगे? समय का उपयोग कैसे करेंगे? आप इस तरीके से बटवारा बनाकर ले जाएँ और यहाँ से जाकर के ईमानदार आदमी की तरीके से जीवन जियें।
बिगाड़ा हमने है, ठीक हमें ही करना है
मित्रो! नये युग के लिए आपको लोगों के सामने नमूना पेश करना है। इसके लिए ढेरों के ढेरों सामान की जरूरत होगी। इसके लिए ढेरों की ढेरों अक्ल चाहिए, ढेरों की ढेरों समय चाहिए। बिगाड़ने के लिए तो थोड़ा सा सामान चाहिए, लेकिन बनाने के लिए ढेरों सामान चाहिए। हमने दुनिया को बिगाड़ा है और हम अभी भी बिगाड़ रहे हैं। बिगाड़ने के लिए हमने दुनिया को बिगाड़ा है और हम अभी भी बिगाड़ रहे हैं। बिगाड़ने के लिए हमने सिनेमा खोला है। सिनेमा की वजह से इसमें हमने कितना पैसा लगाया है, कितनी अक्ल लगायी है, कितने होशियार आदमी इसके लिए हमने इकट्ठे किये हैं। नट इकट्ठे किये हैं, गायन करने वाले इकट्ठे किये हैं, कलाकार इकट्ठे किये हैं। तब इतनी मेहनत करने के बाद हमने अपने बच्चे और बच्चियों को हिप्पी बनना सिखाया है। हमारा बेटा जो हिप्पी हो गया है और बाल रखाये इधर से उधर फिरता रहता है और जिसके बारे में यह पता नहीं चलता कि यह लड़का है या लड़की है। बेटे यह आफत जो हमने पैदा की है, बड़ी मेहनत से पैदा की है।
मित्रो! हमने सिनेमा बनाया और लड़के एवं लड़कियों के दिमागों में यह खुराफातें पैदा की, जिससे उनका शौर्य, उनका साहस, उनका पराक्रम, उनका तेज सब गायब हो गया। जनानियों की तरीके से, जनखों की तरीके से यह नहीं मालूम पड़ता कि ये कमबख्त लड़के हैं या लड़कियाँ हैं। न इनके चेहरे पर कोई तेज है, न सौम्यता। इनकी वही बनावट, वही शृंगार है जो शृंगार सारे दिन वेश्याएँ करती रहती हैं। सारे दिन बालों का शृंगार करते रहते हैं। बेटे, हमने ऐसी पीढ़ी संसार को दी है। यह हमारी जिम्मेदारी है। इसके लिए हमने ढेरों पैसे खर्च किये हैं और करोड़ों की संपत्ति लगाई है, तब हमने अपनी इन पीढ़ियों को खराब किया है। पीढ़ियों को बनाने के लिए बहुत सारी अक्ल चाहिए, बहुत सारा श्रम चाहिए, बहुत सारा धन चाहिए और बहुत सारा समय चाहिए।
आपको जिन्दगी जीकर दिखानी होगी
मित्रो! यह कहाँ से आयेगा? यह जन साधारण के जीवन में से निकल करके आयेगा। यह एक आदमी का काम नहीं है। यह बिड़ला सेठ का काम नहीं है, टाटा का काम नहीं है और यह किसी अमीर आदमी का काम नहीं है। यह जनसाधारण का काम है। हर आदमी को अपनी जिंदगी में से एक हिस्सा देना पड़ेगा, जिसको मैं अंशदान कहता हूँ। इस तरह से हर आदमी को अपना हिस्सा देना पड़ेगा और अपना हक एवं अपना पार्ट अदा करना पड़ेगा। इसके लिए आपको आगे आना चाहिए, क्योंकि आप मार्गदर्शक हैं। क्योंकि आप नेता हैं। क्योंकि आप समाज को आगे बढ़ाने के लिए चल रहे हैं। क्योंकि आप समाज को दिशा देने के लिए चल रहे हैं। इसलिए आपको क्या करना है? लोगों को व्यावहारिक जीवन में प्रयोग करके दिखाना आपका काम है। शिक्षण नहीं, बेटे नमूना पेश करना है। नहीं साहब हम व्याख्यान देंगे? बेटे, व्याख्यान से कोई काम नहीं चलेगा। नहीं साहब! कथा कहेंगे? कथा से बेटे कोई काम नहीं चलेगा। आपका व्याख्यान और आपकी कथा कब सार्थक होगी, जब आप अपनी जिंदगी का नमूना पेश करते हुए क्रिया और विचारों का समन्वय पेश करेंगे, तब आपकी कथा का कोई असर पड़ेगा।
क्रिया व विचार का समन्वय
मित्रो! अगर आपकी क्रिया और विचारों का समन्वय नहीं है, तो मैं कहता हूँ कि आपका कोई असर नहीं पड़ेगा। लोगों के ऊपर वेश्या का असर होता है। वेश्या अपनी जिंदगी में सौ भडुए पैदा कर देती है। उसके विचार और कर्म एक हैं। उसके दिमाग में दुराचार और व्यभिचार की जो वृत्ति है, वही उसके शरीर में भी है। शरीर और मन से वह एक है। एक होने से आदमी में ताकत पैदा होती है, कूबत पैदा होती है। इसी आधार पर वेश्या अपने ढाँचे में सैकड़ों आदमियों को ढाल ले जाती है। शराबी अपने ढाँचे में ढेरों आदमियों को ढाल लेते हैं। जुआरी अपने ढाँचे में ढेरों आदमियों को ढाल लेते हैं। जुआरी अपने ढाँचे में ढेरों को ढाल लेते हैं। ये सभी लोग ढाल लेते हैं, लेकिन हम किसी को नहीं ढाल पाये। कथा तो हमने बहुत सारी कही, भागवत् भी बहुत कही, रामायण की कथा कही, कहीं अमुक कथा कही, लेकिन हमारे कथा की वजह से कोई भी न हनुमान पैदा हो सके, न अर्जुन पैदा हो सके। न तुलसी दास पैदा हो सके, न सूरदास पैदा हो सके। कोई भी पैदा न हो सका। हमारी कथा कैसी निकम्मी है। न उसमें कोई जान है, न उसमें कोई जीवन है, न उसमें कोई प्रकाश है, न उसमें कोई प्रेरणा है। जीभ की लपलप, बेकार की लपलप हम करते रहते हैं। सिद्धान्तों की दुहाई, आदर्शों की दुहाई देते रहते हैं।
आपके पीछे भी ढेरों चलेंगे
मित्रो! पहले यह बताइये कि आपकी जिंदगी कैसी है? भगवान की भक्ति आपके जीवन में कैसी है? अपनी जिंदगी में भगवान की भक्ति उतार कर दिखाइये, फिर हम आपके पीछे पीछे चलेंगे। गाँधी जी ने अपनी जिंदगी में सत्याग्रह का जीवन जी करके दिखाया था, तब लोगों ने कहा कि हम भी आपके पीछे- पीछे चलेंगे। विनोबा ने सत्याग्रह का जीवन जिया, तब लोगों ने कहा कि हम भी आपके पीछे- पीछे चलेंगे। भगवान बुद्ध ने त्यागी का, संन्यासी का जीवन जिया और दिखाया कि भीतर से और बाहर से हम एक हैं। आपके पीछे भी ढेरों के ढेरों आदमी क्यों नहीं चलेंगे? जरूर चलेंगे, क्योंकि आप उन्हें नया युग, नया प्रकाश देने चले हैं। इसके लिए बेटे, आपको शुरुआत वहाँ से करनी पड़ेगी। नया युग लाने के लिए, नये युग के निर्माण के लिए जो समय की जरूरत पड़ेगी, अक्ल की जरूरत पड़ेगी, पैसे की जरूरत पड़ेगी, वह हम कहाँ से लायेंगे? हम चन्दा कहाँ से करेंगे? किसके ऊपर दबाव डालेंगे? किसको प्रेस करेंगे? हम प्रयास कहाँ से करेंगे? कौन देगा और कब तक देगा? बेटे, यह माँगने से नहीं मिलेगा। स्वेच्छा से जो अनुदान उत्पन्न होंगे, नया युग उसी से आरंभ होगा। उसी के आधार पर आगे बढ़ना संभव होगा।
शुरुआत करें अपने आपसे
मित्रो! यह काम कौन शुरू करेगा? यह काम शुरू करेगा- मुर्गा। मुर्गा कौन? मुर्गा आप और कौन? आप अपने से शुरू कीजिए। गुरुजी! यह कैसे शुरू करना पड़ेगा, मुझे तो अभ्यास भी नहीं है। हाँ बेटे, आपको अभ्यास नहीं है। इसीलिए मैंने कहा था कि आपको वानप्रस्थ का जीवन जीना चाहिए, जिसकी दीक्षा ले करके आप यहाँ से जा रहे हैं। यहाँ से विदा होकर जा रहे हैं। आप अपने कलेजे में इतनी हिम्मत ले करके जाइये कि शरीर से कहिए कि अब आपको केवल आपका हिस्सा मिलेगा, ज्यादा नहीं मिल सकता। हमारा शेयर होल्डर मरा जा रहा है ओर उस पार्टनर के हिस्से में जरा सा भी नहीं आ रहा है। आप चौबीस घंटे खा जाते हैं और हमारी सारी कमाई खा जाते हैं और हमारी सारी अक्ल खा जाते हैं। अब ऐसा नहीं हो सकेगा। अब हम अपनी जीवात्मा को भी देंगे। उसके लिए भी पचास प्रतिशत का शेयर सुरक्षित रखेंगे। आप यहाँ से जाने के बाद इस तरह हिम्मतवाला सिद्धान्त, हिम्मतवाला आदर्श अगर आप जीवन में ले करके विदा हों, तो मैं समझूँगा कि आपको जिस उद्देश्य के लिए और जिस काम के लिए बुलवाया गया था, उस काम में हमें सफलता मिल गयी। और जो आपको करना चाहिए, जो आप करने के लिए इच्छा करते हैं, आकांक्षा करते हैं, उसके बारे में मुझे यह विश्वास हो जायेगा कि आप यह कार्य जरूर करके दिखा सकते हैं, क्योंकि आपने अपने आपसे शुरुआत की है।
साथियो जो आदमी अपने आप से शुरुआत कर देता है, उसको सफलता मिल जाती है। जो परायों से सफलता की उम्मीदें करता रहता है कि आप वह कीजिए, आप ज्ञानवान बन जाइये, आप तपस्वी बन जाइये, आप महात्मा बन जाइये। और हम? हम जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे, तब तक बेटे आपकी बातें कोई नहीं सुनेगा। केवल आपका मजाक उड़ाया जायेगा। लेकिन जिस दिन आप यह कहेंगे कि आपको करना हो तो करना, नहीं करना हो तो न करना, हम करेंगे। और देखिये हम करके दिखाते हैं। जिस दिन आप इस तरीके से निश्चय कर लेंगे, मेरा विश्वास है कि आपके अन्दर क्षमताएँ, आपके अन्दर लोगों पर प्रभाव डालने की शक्ति जरूर पैदा हो जायेगी। और आप जहाँ कहीं भी जायेंगे, फिर आपको बातें करनी आती हो, चाहे न आती हो, बोलना आता हो चाहे न आता हो। आपको कथा कहनी आती हो या ना आती हो, आपका प्रभाव जरूर पड़ेगा। आपमें से प्रत्येक आदमी को मैं चाहता हूँ कि इस तरीके से आप यहाँ से विचार करके जाएँ।
बदलते युग में जिम्मेदारी
मित्रो! फिर आप क्या करेंगे? करने के लिए हमारी पुरानी पीढ़ियों के लिए एक काम काफी था। कौन सा? धर्मोपदेश। कथा कहना- भागवत् की कथा कहना, सत्यनारायण भगवान की कथा कहना, गंगाजी नहाना, भगवान जी के दर्शन करना। हमारी पहली वाली पीढ़ियाँ, जो हमारे बुजुर्ग थे, उनके लिए यही काफी था। क्योंकि उस जमाने में न चालाकियाँ थी, न उस जमाने में चोरियाँ थी, न उस जमाने में बदकारियाँ थीं, न बदमाशियाँ थीं। अब हमारे लिए एक नया काम आ गया है, एक नयी आफत आ गयी है। जिस जमाने में हम रह रहे हैं, उसमें हमको दो काम करने पड़ेंगे। क्या काम करने पड़ेंगे? यह काम करने पड़ेंगे कि भगवान ने जब कभी अवतार लिए हैं, ऐसे ही गंदे समय में लिए हैं जिसमें हम और आप पैदा हुए हैं। अवतारों में से प्रत्येक भगवान को दो काम करने पड़े हैं। भगवान का एक भी ऐसा अवतार नहीं हुआ है, जिसे दो काम न करने पड़े हों और वह एक ही काम करके चले गये हों। कथा करके चले गये हों, स्नान करा करके चले गये हों, कथा करके चले गये हों, स्नान करा करके चले गये हों, जप कराकर चले गये हों और तीर्थयात्रा कराकर चले गये हों। बेटे, ऐसा एक भी भगवान हमको दिखाई नहीं पड़ता।
भगवान के जितने भी अवतार हुए हैं, उन्होंने दो काम किये हैं। कौन- कौन से काम किये हैं-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥
दोनों काम जरूरी
भगवान कौन सा दो काम करता है? अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना। धर्म की स्थापना आवश्यक है। कथा कहना आवश्यक है। अखण्ड कीर्तन और ज्यादा आवश्यक है। गंगा नहाना उससे भी ज्यादा आवश्यक है, लेकिन एक और काम भी आवश्यक है। वह कौन सा है? आज अवांछनीयताएँ घर- घर में और मन- मन में समा गयी हैं। इनके विरुद्ध लोहा लेना और संघर्ष करना भी आवश्यक है। अब हमको दो काम करने पड़ेंगे। हमको लड़ाई भी लड़नी पड़ेगी और धर्म की स्थापना भी करनी पड़ेगी। हमको जमीन खोदनी भी पड़ेगी, ताकि नींव रखी जा सके और हमको चिनाई भी करनी पड़ेगी। बेटे, हमको दो काम करने पड़ेंगे। अपने खेत में गोड़ाई भी करनी पड़ेगी और बोवाई भी करनी पड़ेगी। हम यह दोनों काम करेंगे।
एक आँख दुलार की, एक सुधार की
मित्रो! हम ऐसे ही समय में पैदा हुए हैं जिसमें दो काम किये बिना हमारी कोई गति नहीं है। हमको एक आँख प्यार की और एक आँख सुधार की लेकर चलना पड़ेगा। बच्चों के लिए हम इसी तरह के तरीके काम में लाते हैं, नहीं तो हमारे बच्चे खराब हो जायेंगे। एक आँख से हम बच्चे को प्यार करते हैं कि तू हमारा प्यारा बच्चा है, बहुत प्यारा लड़का है। अच्छा हम तुझे मिठाई खिलायेंगे। लेकिन जब वह यहाँ- वहाँ पेशाब कर देता है, घड़ी तोड़ने की कोशिश करता है, तो हम दूसरी आँख से काम लेते हैं और कहते हैं कि मारे चाँटे के तेरे होश ठिकाने लगा देंगे और कान उखाड़ देंगे। चुपचाप बैठ, नहीं तो तेरे कान उखाड़ दिये जायेंगे। इस तरह बच्चे को डराते भी हैं। अगर आप बच्चे को डरायेंगे नहीं, और प्यार ही प्यार करते रहेंगे, तो देख लेना आपके बच्चे का क्या होता है? बच्चा खराब हो जायेगा। इस जमाने में हमको दोनों को लेकर चलना है। एक सुधार का लेकर चलना पड़ेगा और एक प्यार का लेकर चलना पड़ेगा।
हर भगवान ने यही किया
मित्रो! हर एक भगवान ने यही किया है। श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को कथा सुनाई, बेशक। गोवर्धन पहाड़ उठाया- बेशक। गोपियों के सामने नृत्य किया- बेशक। लेकिन महाभारत भी रचाया। उसे क्यों भूल जाते हैं? नहीं महाराज जी! मैं तो रास करूँगा। बेटे, रास भी कर और महाभारत भी लड़ और पहाड़ भी उठा। नहीं महाराज जी! मैं तो पहाड़ नहीं उठा सकता, केवल रास- नाच करूँगा। तो बेटे, यह भी बंद कर और नाच भी बंद कर। नहीं महाराज जी। यह नाच तो मैं जरूर करूँगा और उसे नहीं करूँगा। बेटे, उसे भी कर। रामचंद्र जी ने दो काम किये। उन्होंने रीछ- बंदरों को राक्षसों से लड़ने के लिए खड़ा कर दिया था। और क्या कर दिया था? उन्होंने शबरी के भक्ति की कथा भी बताई और रामगीता भी बताई थी। और यह भी किया था- ऋषियों के आश्रमों में तत्त्वज्ञान की शिक्षा भी पायी थी और शिक्षा दी थी। वह रामचन्द्र जी का काम था। उन्होंने रामराज्य बनाया था, लेकिन दुष्टों से लोहा भी लिया था।
निराई- गुड़ाई
मित्रो! हमको भी अपनी जिंदगी में दो काम लेकर के चलना पड़ेगा, आप लोग ध्यान रखना। दो काम लेकर के आप नहीं चलेंगे, तो बड़ी भारी आफत आ जायेगी और हमारा उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा। हमारे जिम्मे माली का काम है। माली को पौधों में पानी लगाना पड़ता है, सिंचाई करनी पड़ती है। दूसरा एक काम और भी करना पड़ता है, उसका नाम है- निराई। यह क्या कर रहे हैं? साहब खर- पतवार उखाड़ रहे हैं। और यह क्या कर रहे हैं? पेड़ की काट- छाँट कर रहे हैं। क्यों? खूबसूरती लाने के लिए इसकी काट- छाँट जरूरी है। और डंडा लेकर क्यों घूम रहे हैं? डंडा लेकर इसलिए हम घूम रहे हैं कि चिड़िया आयेंगी और इस बाग को खत्म कर देंगी। जंगली जानवर आयेंगे, सुअर आयेंगे और बाग को खत्म कर देंगे। आपको क्या करना पड़ेगा? खेत में खाद- पानी देना पड़ेगा, लेकिन साथ ही रखवाली और गुड़ाई करना भी जरूरी है, नहीं तो बगीचा नहीं बच सकता।
यह भी करना होगा
आज सब जगह जिस तरीके से दुष्टताएँ चारों और फैलती चली जा रही हैं, उनको शिक्षा देकर के और अखण्ड कीर्तन करके, रामायण की कथा सुना करके आप ठीक करना चाहते हैं? अच्छा करना चाहते हैं? तो वहाँ चले जाइये जहाँ आपके खेत में जंगली सुअर आ जाते हैं। आप वहाँ खड़े हो जाना और अखण्ड कीर्तन करना शुरू करना, रामायण पढ़ना शुरू करना और यह कहना कि सुअर भगवान जी, बाराह भगवान जी। देखना हम आपको भागवत् की कथा सुनाते है। तो सुनाइए। आप चले जाइये, गन्ने का खेत मत खाइये। अगर गन्ने का खेत बिना खाये सुअर वहाँ से चला जाय तो मैं समझता हूँ कि आपके कथा कहने से सब काम चल सकता है और कथा कहने से धर्म का उद्धार हो सकता है, धर्म की सेवा हो सकती है। अगर आपको यह मालूम पड़े कि इससे काम नहीं चल सकता और हमको नया हथियार काम में लाना पड़ेगा, तब फिर आप डंडा ले करके खड़े हो जाना। आप यह समझना कि डंडा ले करके प्रत्येक क्षेत्र में खड़े होना पड़ेगा। अन्यथा आप जो धर्म के बीज बोना चाहते हैं, धर्म की स्थापना करना चाहते हैं, वह फल- फूल नहीं सकेगा।
शास्त्रादपि शरादपि
मित्रो! आपको दोनों काम करने पड़ेंगे जैसे कि प्राचीनकाल में ऋषियों ने किये थे। एक ऋषि का नाम था- द्रोणाचार्य। उनके पास हथियार थे। वे दो हथियारों को लेकर लड़ने जाते थे। आपको भी मैं द्रोणाचार्य की तरीके से दो हथियारों को लेकर लड़ने के लिए कहता हूँ। वे एक हाथ में वेद ले करके चलते थे और पीठ पर धनुष लेकर चलते थे। ‘‘अग्रतः चतुरोवेदाः पृष्ठतः शसरो धनुः। इदम् ब्राह्मम् इदम् क्षात्रम् शास्त्रादपि शरादपि॥’’ आगे वे वेदों को लेकर चलते थे, ज्ञान को लेकर चलते थे। शिक्षा को लेकर चलते थे, उपदेश को लेकर चलते थे। कथा लेकर चलते थे, अखण्ड कीर्तन लेकर चलते थे। अनुवादों को लेकर चलते थे। यह भी एक बड़ा हथियार है। यह किसके लिए है? यह भले आदमियों के लिए है, शरीफों के लिए है, सज्जनों के लिए है। भावनाशीलों के लिए है, शरीफों के लिए है, सज्जनों के लिए है। भावनाशीलों के लिए है, हृदयवानों के लिए है। जिनके पास भलमनसाहत हो, जिनके पास हृदय हो, उनके लिए यह हथियार बिलकुल ठीक है। आप उनको कथा कह करके, प्रेम की बातें कह करके, सज्जनता की शिक्षा दे करके, अच्छी बातें कह करके काबू में ला सकते हैं और समझा सकते हैं और सफलता पा सकते हैं।
दूसरा तरीका भी जरूरी
बेटे, मैं वेद की तारीफ करूँगा। ज्ञान की, कथा की और भागवत् की तारीफ करूँगा, लेकिन एक और चीज है, जिसकी बनावट अजीब तरह की होती है। उसकी बनावट ऐसे तरीके से होती है जिनके लिए वेद एक ही है, पुराण एक ही है और कथा एक ही है और उसका नाम है- जूता। जूते के अलावा उनके लिए कोई वेद नहीं है, जूते के अलावा उनके लिए कोई पुराण नहीं है। जूते के अलावा कोई शिक्षा नहीं है। जूते के अलावा कोई कथा नहीं है। उनके लिए जूते के अलावा कोई भगवान नहीं है। इस तरह के भी लोग होते है। उनके लिए क्या करना पड़ेगा? उनके लिए- ‘‘पृष्ठतः शसरो धनुः’’ पीठ पर धनुष लेकर चलना पड़ेगा। ‘‘इदम् ब्राह्मम्, इदम् क्षात्रम्’’ यह हमारा ब्रह्म है और ‘इदम् क्षात्रम्’ है। यह दुनिया दो चीजों से बनी हुई है- एक देव और एक दैत्य। एक तमोगुण और एक सतोगुण। जहाँ सतोगुण है, बेटे, हमको वहाँ प्यार की बातें कहना चाहिए। क्षमा की बात कहनी चाहिए, दया की बात करनी चाहिए। करुणा की बात कहनी चाहिए, स्नेह की बात कहनी चाहिए। और जहाँ साँप, बिच्छू हैं, खटमल, मच्छर हैं, वहाँ क्या करना चाहिए? बेटा वहाँ दूसरा तरीका अपनाना चाहिए।
उभय पक्षीय दृष्टि
मित्रो! बिच्छू पर दया करेंगे, तो बच्चे जिन्दा नहीं रह सकते। बिच्छू को पालिए, सँभालिए, साँप को दूध पिलाइए और अपने बच्चों को मौत के मुँह में धकेलिए। बेटे, इन दो में से कोई एक जियेगा। या तो खटमल जियेगा या तो तू जियेगा। नहीं महाराज जी! मैं तो खटमल पालूँगा, तो बेटे पाल ले और फिर देख ले। शान्तिकुञ्ज से मैं और एक पार्सल भेज दूँगा, तू उन्हें भी पाल लेना। नहीं साहब! मैं तो सब पर दया करूँगा, क्षमा करूँगा। तू कर, चल तेरी दया को देखूँगा और तेरी क्षमा को देखूँगा। मित्रो! क्या करना पड़ेगा? आपको इन बातों के बारे में कड़ा और स्पष्ट रुख ले करके चलना पड़ेगा। एकांगी धर्म से, एकांगी उपदेश से और एकांगी ज्ञान से काम चलने वाला नहीं है। ज्ञान और विज्ञान दोनों का समन्वय लेकर चलना पड़ेगा। हमको अपने भीतर जप का माद्दा पैदा करना चाहिए और ध्यान का माद्दा पैदा करना चाहिए और अपने भीतर जो बुराइयाँ हैं, कमजोरियाँ है, उनके प्रति लोहा लेकर खड़ा हो जाना चाहिए और अपने साथ में कड़ाई से पेश आना चाहिए। अब हम नहीं कर सकते और यह अब नहीं होगा, बेटे इस तरीके से अब बात बनने वाली नहीं है। नहीं साहब! यह भी चलता रहेगा और वह भी चलता रहेगा। पाप भी चलता रहेगा और पुण्य भी चलता रहेगा और वह भी चलता रहेगा। पाप भी चलता रहेगा और पुण्य भी चलता रहेगा और चोरी भी चलती रहेगी। बेटे, अब इस तरीके से गड़बड़ नहीं चल सकती। अब एक के विरुद्ध लोहा ले और एक को ही बढ़ाने की कोशिश कर।
दण्ड नहीं दिया जाना चाहिए क्या?
मित्रो! आगे बढ़ने के लिए जीवन की नीति आपकी स्पष्ट होनी चाहिए। अगर स्पष्ट नहीं होगी, तो आप भ्रम में पड़ेंगे और ऐसे जंजाल में फँसेंगे कि आप दार्शनिक भ्रम में ही फँसे हुए रह जायेंगे। एक महात्मा जी ने पानी में बहते हुए एक बिच्छू को निकाला और बिच्छू ने उन्हें काट खाया। अच्छा तो आप महात्मा हैं। ईसा ने कहा था कि जिसने पहले कोई पाप न किया हो, वही इस महिला को पत्थर मारे। अच्छा, तो फिर कचहरी को बंद करा दीजिए, अदालत को बंद करा दीजिए, जेलखाने को बंद करा दीजिए। मुकदमा चलाना बंद करा दीजिए। डाकुओं की छुट्टी कर दीजिए और दुष्टों की छुट्टी कर दीजिए। आपकी मनमर्जी है, कोई भी आपको मार नहीं सकता, कोई सता नहीं सकता। कोई आपको दंड नहीं दे सकता है, क्योंकि कोई ऐसा आदमी नहीं है जिसने कोई न कोई बुरे काम न किये हों। इसलिए हम दण्ड दिलाने से आपको छुट्टी दिलाते है, मुक्ति दिलाते हैं। फिर चाहे आम जो काम कर सकते हैं, कोई रोकथाम नहीं है। फिर आपको दंड देने की बात कोई नहीं कहेगा। न अदालत कहेगी, न हम कहेंगे।
गुरु गोविन्द सिंह जी, गाँधी एवं बुद्ध
मित्रो! मुझे गुरु गोविन्द सिंह जी की नीति बहुत पसंद है- ‘‘एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला’’। गाँधी जी वह नीति मुझे पसंद है, जिसके आधार पर उन्होंने अहिंसा की शिक्षा दी, सत्य की शिक्षा दी, खादी की शिक्षा दी। उसके साथ में उन्होंने जहाँ बुराइयाँ फैली हुई थी, उसके विरुद्ध लोहा भी लिया और सत्याग्रह की मुहिम खड़ी कर दी। यह उभयपक्षीय सर्वांगपूर्णता थी। अगर यह उभयपक्षीय सर्वांगपूर्णता अध्यात्म में न आयी, तो फिर आपकी मिट्टी पलीद होगी। मुझे याद है- कि बुद्ध एक ऐसे तपस्वी का नाम था, एक ऐसे तेजस्वी का नाम था, जिनका खून खौलने लगा था। जब उनका जन्म हुआ, तब उन्होंने देखा कि यज्ञों के नाम पर हिंसा फैल रही थी। बुद्ध ने कहा कि भाई। यह क्या बात है? आप लोग हवन करते हैं और जानवरों को मारकाट करके हवन करा देते हैं। यह भी कोई बात है? उस समय लोग ज्यादा पढ़े हुए तो थे नहीं, उन्होंने कहा कि साहब! यह तो यज्ञ है। यज्ञ में हिंसा होती है। यज्ञ में तो जानवर कटेंगे ही। बुद्ध ने कहा- तो फिर यज्ञ करने की भी जरूरत नहीं है। जिसमें हत्या होती हो, उस यज्ञ को क्यों करना चाहिए?
पंडितों और दूसरे लोगों ने कहा कि यज्ञ करना- कराना तो वेदों में लिखा हुआ है। बुद्ध ने कहा कि तो फिर ऐसे वेदों को मानने की जरूरत नहीं है, जिसमें ऐसी गंदी बातें लिखी हो। फिर लोगों ने कहा कि वेद तो भगवान ने बनाये है। उन्होंने कहा कि, तो फिर ऐसे भगवान को मानने की जरूरत नहीं है, जो यह कहता है कि जीवों को, जानवरों को काट करके यज्ञ की भेंट चढ़ा दो। गैर मुनासिब बातें करने वाले भगवान से मना कर दीजिए।
अपने समय के क्रान्तिकारी थे बुद्ध
मित्रो! भगवान बुद्ध ने नास्तिकवाद फैलाया, शून्यवाद फैलाया और उन्होंने कहा कि ईश्वर कोई नहीं होता। उन्होंने वेद के विरुद्ध बहुत सारी बातें कहीं। तो क्या वे वेद विरुद्ध थे? नहीं बेटे, वे वेद विरुद्ध नहीं थे। उन्होंने उस समय जो स्वरूप देखा, सो मना कर दिया। वे क्या थे? बुद्ध ऐसे क्रान्तिकारी थे, ऐसे संघर्षशील योद्धा थे कि उन्होंने जहाँ कहीं भी अवांछनीयता देखी, हमला बोल दिया। उन्होंने हिन्दुस्तान के कोने- कोने में हमला करने के लिए लाखों लोगों को भेजा। अनीति के खिलाफ, अवांछनीयता के खिलाफ लोहा लेने के लिए भेजा। हिन्दुस्तान के अतिरिक्त बाहर एशिया के सारे के सारे देशों में और दूसरे देशों में जहाँ अनीति और अज्ञान फैला था, वहाँ लाखों आदमी भेजे। ऐसे लड़ाकू, ऐसे योद्धा और ऐसे शक्तिशाली थे बुद्ध भगवान कि मैं क्या कह सकता हूँ। उन्होंने क्षत्रिय के घर में जन्म लिया था। वे बहादुर थे, लेकिन थोड़े दिनों बाद क्या हुआ? कुछ लोगों ने- कैसे लोगों ने? जैसे हम और आप लोगों ने बुद्ध की ऐसी मिट्टी पलीद की कि भगवान करे कोई ऐसी किसी की न करे।
अहिंसा की मिट्टी पलीद
लोगों ने क्या किया? उन्होंने एक छोटा वाला हिस्सा, कमजोर वाला हिस्सा ले लिया, उसे लिख लिया, जिसके भीतर हम अपनी कमजोरियों को छिपा सकते हैं। कमजोरियों को छिपा सकने वाला अहिंसा वाला हिस्सा उन्होंने ले लिया और कहा कि हम हिंसा नहीं करेंगे। अगर कोई मारे तो? मारे तो मारता रहे, हम नहीं मारेंगे। अच्छा, तो अहिंसा को तू निभा लेगा, यह अच्छी बात है। इसमें कोई आफत तो नहीं है? इसमें कोई आफत नहीं है। कोई पीटता है तो तू पिटता रहे, नहीं तो अहिंसा खंडित हो जायेगी। अहिंसा पाल लीजिए। यह बड़ा सरल है। इसमें कोई आफत नहीं, इसमें कोई त्याग नहीं करना पड़ेगा और कोई कष्ट सहन नहीं करना पड़ेगा ।। बेटे, इसी तरह से भगवान बुद्ध की जितनी विचारधारा थी, जितना मजहब था, लोगों ने उसका सत्यानाश कर दिया और दुनिया को खतम कर दिया। फिर क्या हुआ? हुआ यह कि जैसे तिब्बत में आप चले जाइये, वहाँ अहिंसा धर्म का पालन करने वाले मिलेंगे। सारा तिब्बत बौद्धों का देश है। वहाँ अहिंसा पाली जाती है, लेकिन माँस सब खाते हैं और अहिंसा का पालन करते हैं। इसका क्या मतलब है। बेटे, वे हत्या नहीं करते। तो बिना हत्या के माँस मिल जाता है? अभी मैं बताता हूँ कि बिना हत्या के भी माँस मिल सकता है? कैसे?
सरल रास्ता ढूँढ़ते हैं आप!
वे बकरी का मुँह बाँध देते हैं, जिससे वह चिल्लाती नहीं है, तो हत्या कैसे हुई? एक काम और वे करते हैं कि उसके गले में फाँसी लगाकर टाँग देते हैं और उसे मार डालते हैं। इससे उसको खून भी नहीं निकलता, तो फिर हिंसा कैसे हुई? चिल्लाएगी नहीं, खून निकला नहीं, तो ये अहिंसा हुई। इस तरह उन्होंने अपने लिए अहिंसा का मतलब निकाल लिया। सारे के सारे तिब्बत में इसी तरह की अहिंसा फैल गयी। बेटे, इस तरह की विडम्बनाएँ करने में हम बड़े माहिर हैं। इन मामलों में हम बड़े माहिर हैं। देखिए हम भगवान रामचंद्र जी की भक्ति के बारे में, श्रीकृष्ण जी की भक्ति के बारे में हम बड़े माहिर हैं। हमने ऐसा तरीका ढूँढ़ निकाला है। कि दोनों की भक्ति एक ही ढेले से हम दोनों का शिकार खेल सकते हैं। कैसे? ‘हरे रामा, हरे कृष्णा- हरे रामा- हरे कृष्णा से। हार गये रामा, हार गये कृष्णा- देख लीजिए- एक ही ढेले में हमने दो शिकार मार दिये। हाँ महाराज जी। कौन सा मारा? एक मारा राम और एक मारा कृष्ण। बेटे, इनमें राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे कृष्ण भगवान पूर्ण पुरुष थे। राम मर्यादाओं की स्थापना करने आये थे, तो श्रीकृष्ण पूर्ण पुरुष बनाने के लिए आये थे। आप मर्यादाओं का पालन करेंगे? ‘‘हरे रामा करूँगा।’’ अऽऽहा..........देखा, सबसे सुगम वाला रास्ता ढूँढ़ लिया। सबसे सरल वाला रास्ता ढूँढ़ लिया।
कमजोर अहिंसा
मित्रो! भगवान बुद्ध के जमाने में ऐसा ही हुआ। केवल अहिंसा वाला हिस्सा रह गया। लोगों ने बाकी सब हथियार फेंक दिये। साहब! हम अहिंसा करेंगे और जप करेंगे। अहिंसा करेंगे और जप करेंगे। इसका परिणाम यह हुआ कि मध्य एशिया से पन्द्रह सौ आदमी आये और पन्द्रह सौ आदमी सारे हिन्दुस्तान पर एक के बाद एक कब्जा करते चले गये। अस्सी वर्ष के अन्दर सारे हिन्दुस्तान को पैरों तले रौंदकर फेंक दिया, केवल पन्द्रह सौ डाकुओं ने। क्यों आती है अहिंसा? यह कौन सी वाली अहिंसा है, जिसमें डाकुओं को छूट, दुष्टों को छूट, बेईमानों को छूट, अत्याचारियों को छूट- सबको छूट है। बेटे, यह थी अहिंसा, जिसने हिन्दुस्तानियों को शाप दिया कि वे हजारों वर्षों तक गुलामी के बंधनों में जकड़े पड़े रहें। आप उस अहिंसा का चमत्कार देखिए जिसने हिन्दुस्तान को हजार वर्ष के लिए गुलाम बना दिया। हिन्दुस्तान से वही अहिंसा दौड़ती हुई चली गयी और उस अहिंसा के ऊपर पंद्रह सौ डाकू बढ़ते हुए चले गये। वे सिंगापुर में चले गये, मलेशिया चले गये, जावा चले गये, सुमात्रा चले गये, इंडोनेशिया चले गये। वे सब मुसलिम देश हैं, जहाँ आप जाकर के देखिए। वहाँ अभी भी सारे मंदिर बने हुए हैं। हिन्दू सभ्यता की रामायण की रामलीलाएँ होती हैं। वहाँ नब्बे- पंचानवे फीसदी मुसलमान हैं। नहीं साहब! सारे के सारे देशों में मुसलमान बड़े ताकतवर थे। नहीं बेटे ये डाकू ताकतवर नहीं थे, मुसलमान ताकतवर नहीं थे, वरन् हम कमजोर थे, हमारी अहिंसा कमजोर थी।
भीतरी एवं बाहरी दो मोर्चे
मित्रो! क्या करना पड़ेगा? आपको यहाँ से जाने के बाद दोहरी बातों को लेकर चलना पड़ेगा। हमारे भीतर कमजोरियों के जखीरे भरे पड़े हैं। हमको यहाँ से जाते ही कसम खानी पड़ेगी कि हम अपने विरुद्ध मोर्चा खड़ा करेंगे। हम अपने विचारों के विरुद्ध, अपने गुणों के विरुद्ध, अपने कर्म के विरुद्ध ओर अपने स्वभाव के विरुद्ध मोर्चा खड़ा करेंगे और उनसे लड़ाई लड़ेंगे। अपने आपसे लड़ाई लड़ेंगे ओर एक भले आदमी की जिंदगी, शरीफ आदमी की जिंदगी जियेंगे। हमारे भीतर जो कमजोरियाँ हैं, उन्हें पैरों तले रौंद कर बाहर फेंक देंगे। आपका एक यह भीतरी मोर्चा है, जिस पर आपको चलना है और बाहर का मोर्चा? हाँ बेटे, मैं बाहर का भी बताता हूँ। आपके घर के भीतर जो दुष्ट परम्पराएँ चलती हैं, मैं उसके लिए भी आपको सलाह देता हूँ। आप उसके लिए भी लोहा लेने की कोशिश करना। डॉक्टर दोनों काम को लेकर चलता है। डॉक्टर को आपरेशन करना पड़ता है, मरहम लगाना पड़ता है। आप डॉक्टर की तरीके से चलें। घरवालों को प्यार करें, दुलार करें, सहयोग करें। घरवालों की सेवा करें, लेकिन जहाँ कहीं भी घर वाले वह काम कर रहे हों, जो उन्हें नहीं करना चाहिए तो उनके विरुद्ध खड़े हों। न केवल घरवालों के विरुद्ध वरन् सारे समाज के विरुद्ध लोहा लें। सारे समाज में जो अच्छाइयाँ हैं, उनको समर्थन करना चाहिए, प्रोत्साहित करना चाहिए, लेकिन जहाँ कहीं भी हमको गलतियाँ दिखाई पड़ती हैं, कुरीतियाँ दिखाई पड़ती हैं, अवांछनीयता दिखाई पड़ती हैं, उनसे हमको लोहा लेना चाहिए।
ब्रह्मक्षत्र
प्राचीनकाल में ब्रह्मक्षत्र नाम की एक कौम थी। फिर उसके दो हिस्से हो गये। पहले वह एक कौम थी, जिसमें ब्राह्मण और क्षत्रिय का सम्मिश्रण था। जैसे- परशुराम ब्राह्मण भी थे और क्षत्रिय भी थे अर्थात् ब्राह्मण- क्षत्रिय थे। विश्वामित्र कौन थे? ब्रह्मर्षि और राजर्षि- दोनों का मिला हुआ जोड़ा था। बेटे, प्राचीनकाल में ब्राह्मणों को ही दोनों काम करने पड़ते थे। ऋषियों को ही दोनों काम करने पड़ते थे। उन्हें अवांछनीयता को उखाड़ना भी पड़ता था और धर्म की स्थापना भी करनी पड़ती थी। हवन कराना, गायत्री का जप कराना, अनुष्ठान कराना- ये सभी कार्य आप जरूर कराना। अखण्ड कीर्तन कराना, सत्यनारायण की कथा भी कहना- जो भी कर सकते हों करना, लेकिन यह ध्यान रखना कि इस अकेले से काम नहीं चलेगा। लोगों के अंदर वह वृत्ति भी जगानी पड़ेगी, वह शौर्य भी जगाना पड़ेगा, वह साहस भी जगाना पड़ेगा, वह हिम्मत भी जगानी पड़ेगी, वह रोष, वह मन्यु भी जगाना पड़ेगा, जिसके बिना इस दुनिया का संतुलन कायम नहीं रह सकता।
दुहरी रणनीति
मित्रो! आप लोगों को पहला हिस्सा- पहला काम यह बताया कि आप बटवारे के लिए तैयार हों और अपनी जिंदगी में बँटवारा करें। यहाँ से जाते ही आप अपने क्रियाकलापों में दोनों तरह की चीजों को शामिल रखें। ज्ञान वाली चीज को, धर्म की स्थापना वाली चीज को, पूजा- पाठ वाली चीज को और साथ में संघर्ष वाली चीज को- जिसमें अपने भीतर संघर्ष करना और अपने गुण, कर्म, स्वभाव एवं आदतों को ठीक करना शामिल है। अपने आप में संघर्ष करना पहला चरण है। इसके बाद हमारा बहिरंग जीवन आता है। आपको बहिरंग जीवन में भी संघर्ष खड़ा करना पड़ेगा। संघर्ष के लिए मैं आपको शुभ कामना देता हूँ और आशीर्वाद भेजता हूँ और चाहता हूँ कि आप लड़ाकू की तरीके से, गुरुगोविन्द सिंह जी की तरीके से और दूसरे समर्थ लोगों की तरीके से समाज में एक इस तरह का उदाहरण पेश करें- पैदा करें, जिससे यह मालूम पड़ता हो कि इन्होंने नीति और धर्म की स्थापना में भी मदद की और अनीति तथा पाप के उन्मूलन में भी उतनी ही बहादुरी से और उतने ही साहस से काम लिया।
नंगा होना पड़ेगा
मित्रो! दोनों काम के लिए मैं आपको यहाँ से भेजता हूँ और एक काम और सौंपकर के आज की बात खतम करता हूँ। वह काम यह है कि जब आप यहाँ से लोगों के सामने इस रूप में जायेंगे कि हम आपको कोई शिक्षण देने आये हैं, तब हर कोई आपको ज्यादा बारीकी से देखेगा और बहुत पैनी नजर से देखेगा। आपकी शकल को भी देखेगा, चेहरे को भी देखेगा। माला तो पहनाएगा, पर आपको जरूर बारीकी से देखेगा। हम यहाँ स्टेज पर बैठे हुए हैं। आपमें से हर एक की नजर हमारे ऊपर है। आप सब हमारी तरफ देख रहे हैं। इसका क्या मतलब है? क्या पाँच सो आदमी हमारा इंटरव्यू ले रहे हैं? गुरुजी को कैसे बोलना आता है? उनकी नाक कैसी है? उनके बाल कैसे हैं? हर आदमी की आँख हमारे ऊपर लगी हुई है। तो बेटे, आप जनता के सामने इंटरव्यू देने जा रहे हैं जैसे कि कम्पटीशन में इंटरव्यू होता है। हर आदमी आपको देखेगा। क्या चीज देखेगा? आपकी आवाज? हाँ, बेटे आवाज भी देखेगा। आपकी हर चीज देखेगा, आपको नंगा करके देखेगा। कैसे नंगा करके? जैसे मिलिट्री में भर्ती किये जाते हैं ।। पहले तो लंबाई, ऊँचाई देखते हैं। फिर कमरे में ले जाते हैं। क्यों साहब! यहाँ किसलिए लाये हैं? अब आपको नंगा करेंगे। इससे क्या मतलब है आपका? अब हम आपके शरीर का वह हिस्सा देखेंगे, जो आपको नहीं दिखाई पड़ते हैं। पहले हम उसे देखेंगे, तब फिर आपको मिलिट्री में भर्ती करेंगे। बेटे, जनता आपको नंगा करके देखेगी। जनता में अगर आप नंगा होने के लिए तैयार नहीं हैं, तो आप विश्वास रखिये आपकी इज्जत नहीं हो सकती और आपके अन्दर प्रभाव उत्पन्न नहीं हो सकता। हमको प्रभाव उत्पन्न करने के लिए, नंगा होने के लिए तैयार होना चाहिए।
नीयत परखी जाएगी
मित्रो! क्या करना पड़ेगा? कई चीजें ऐसी हैं जो आपके ईमान से ताल्लुक रखती हैं। वह शायद उनकी समझ में न आवें। मैं पहले ही आपको समझा चुका हूँ कि आपको अपना दृष्टिकोण कैसे बनाना चाहिए। आपको मालूम है न कि रिटन टेस्ट के अलावा वाइवा भी होता है। इंटरव्यू में बातचीत से भी पूछा जाता है और मौखिक बात भी होती है। इसमें लोग आपकी बाहर की बातों की भी देख−भाल करेंगे और इससे आपका वजन, आपकी इज्जत के बारे में पता लगायेंगे। गुरुजी! और क्या- क्या बातें जाँचेंगे- परखेंगे? बेटे, सबसे पहले तो वे आपका व्यक्तित्व देखेंगे। सब बातों में आपका इम्तिहान लेंगे और हर बात में से आपके नम्बर काट लेंगे। जब लोग आपको- वानप्रस्थों को खाना खिलायेंगे ओर यह जानेंगे कि शान्तिकुञ्ज के वानप्रस्थी आये हैं, तो जो घर में रोटी खाते होंगे, उसकी अपेक्षा आपको अच्छी रोटी खिलायेंगे। अपने घर में अगर वह मक्के की रोटी खाता होगा, तो आपको गेहूँ की खिलायेगा, आपको पराठा खिलायेगा। तो महाराज जी! पराठा खाऊँ कि न खाऊँ? खाना तो सही बेटे, पर क्या करेगा? तेरी इज्जत और तेरा इंटरव्यू उसके ऊपर टिका हुआ है। मैंने तुझे यहाँ सिखाया था कि जिह्वा का हमें संयमी होना चाहिए और जिह्वा पर हमें कंट्रोल करना चाहिए। वह आदमी, जिसने मिठाई ला करके परोस दी है, वह यह देखेगा कि इसका तरीका क्या है? इसकी नीयत क्या है? इसका ढंग क्या है? वह आपका इम्तहान लेगा।
हमारी इज्जत तुम्हारे हाथ
मित्रो! क्या करना चाहिए? खानपान के सम्बन्ध में कभी आपको मौका आये, तो आप प्रशंसा तो करना, परन्तु किसकी करेंगे? आप उसकी भावना की, खिलाते समय उसका जो प्रेम है, उसकी प्रशंसा करना, लेकिन पदार्थों की प्रशंसा मत करना। आपने पदार्थों की प्रशंसा करना शुरू किया कि आपकी मिठाई बहुत अच्छी है, पूरी बहुत अच्छी बनी हुई है और जलेबी बहुत अच्छी बनी हुई है, तो आपकी इज्जत दो कौड़ी की हो जायेगी और आपको जो संयमी व्यक्ति मानना चाहिए, वह नहीं माना जायेगा। बेटे, इज्जत खराब हो जायेगी। आप जीभ पर काबू रखना। आप हमारे प्रतिनिधि हो करके जा रहे हैं। आप जहाँ चीजें परोसी जा रही हों, वहाँ इस बात को देखना कि आपका इंटरव्यू लिया जा रहा है जायके के ऊपर कि आपको यह चीज पसंद है या अमुक चीज पसंद है। आपको तो नहीं बता सकते, पर देवकन्याओं को- लड़कियों को हमने पढ़ा दिया था कि बेटे, तुझे कुछ खाना हो, तो यहाँ खा लेना, पर वहाँ जा करके शान से रहना, जैसे तुम यहाँ रहती हो। वहाँ कोई मिठाई वगैरह परोसता हो तो उसके सम्मान के लिए- स्वागत के लिए जरा सी चीज ले लेना, लेकिन यह मत करना कि सारी की सारी मिठाइयाँ तुम्हीं खाती रहो और तुम्हें उल्टी होने लगे। बेटे जब तुम्हें उल्टियाँ होने लगेंगी, तुम बीमार पड़ जाओगी, तब हमारी बेइज्जती हो जायेगी।
बाराती बनकर मत जाना
मित्रो! देवकन्याएँ यहाँ से जीभ पर काबू ले करके गयीं थीं। आप भी जीभ पर काबू ले करके जाना, क्योंकि आपका जनता के सामने इंटरव्यू होने वाला है। आप जनता के सामने अपनी बातचीत पर लगाम रख करके जाना। आपस में आप जब दो आदमी बात करते हों, तो आप दो आदमियों के अतिरिक्त तीसरा आदमी भी आपकी बातचीत को सुनता रहता है कि ये वानप्रस्थी आपस में क्या बात कर रहे हैं? स्टेज पर तो हम बढ़िया- बढ़िया बात कहेंगे और आपस में कैसी- कैसी अनर्गल बातें कर रहे हैं। बेटे, आपस की बात ही आपके असली स्वरूप का बखान करती है। आपस की बात ही असली होगी, जिसके द्वारा लोग आपकी इज्जत को देखेंगे, परखेंगे कि आपस में ये लोग क्या बातें करते हैं। आपके रहन- सहन का ढंग भी देखेंगे। बेटे, हम आपको बाराती बनाकर नहीं भेज रहे हैं। कहाँ? लोगों के पास। लोगों के पास आप जाना, तो बाराती बनकर मत जाना। बाराती किसे कहते हैं? बाराती उसे कहते हैं, जो फरमाइशें करते जाते हैं। साहब! कोका कोला लाइये। छः बजे चाय लाइये। हमको माला नहीं पहनाई, हमको यह नहीं दिया आदि विभिन्न तरह की फरमाइशें करते जाते हैं।
वालंटियर बनकर सभी काम
मित्रो! हम आपको वालंटियर बना करके भेज रहे हैं। इसलिए भेज रहे हैं कि जहाँ कहीं भी आप जाएँ, वहाँ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना। एक वालंटियर की तरीके से उनको बताना कि आपको काम करना नहीं आता है, देखिये हमको आता है। हम यहाँ काम करेंगे। शाम को हमें स्टेज पर दो घंटे व्याख्यान देना है। बाकी बाइस घंटे बचते हैं। इसमें क्या हम बैठे रहेंगे? नहीं, हम आपके साथ एक स्वयंसेवक की तरीके से काम करेंगे। बेटे आप ऐसा ही करना, इससे ही आपकी इज्जत है। नहीं साहब! हम मेहनत करेंगे, तो हमारी इज्जत खराब हो जायेगी। हम तो बड़े आदमी हैं। हम तो नेता है और हम तो व्याख्यान देने आये हैं। नहीं बेटे, अगर आप व्याख्यान देने जायेंगे, नेता बनने के लिए जायेंगे, तो अपनी इज्जत गँवा बैठेंगे। अगर वालंटियर की तरीके से जायेंगे और साथ- साथ में आप काम करेंगे, कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे, तो अपनी इज्जत खरीद करके लायेंगे। आप अपनी नियमितता के सम्बन्ध में, पूजा और भजन के सम्बन्ध में, जो हमारा मुख्य उद्देश्य है, जिसे हमने लोगों को सिखाया है, उसके प्रति हमारी बड़ी निष्ठा है; इस सम्बन्ध में अपनी नियमितता को बनाये रखना। बेटे, मैं जो भजन सिखाता हूँ, वह हमारी जीवात्मा का साबुन है। वह हमारे जीवन का ध्रुव तारा है। वह हमारा प्राण है। हम रोटी खाये बिना जिंदा रह सकते हैं, लेकिन भजन के बिना जिंदा नहीं रह सकते। क्योंकि जिस तरह से हमारे लिए श्वास की जरूरत है, उसी तरह से भगवान के प्रकाश की जरूरत है। श्वास और भगवान का प्रकाश हमारी दृष्टि से दोनों ही बराबर है, लेकिन आपकी दृष्टि में अलग- अलग हैं, जिससे मुझे नाराजगी है।
नागा नहीं
मित्रो! आप जहाँ कहीं भी बाहर जाएँ, अपनी नियमितता के बारे में इन बातों को ध्यान रखना कि कहीं किसी चीज में नागा न हो जाय। आज तो थके हुए हैं, लाओ आज सो जाते हैं। नहीं बेटे, संध्या का समय है, तो पहले संध्या करना। इस सम्बन्ध में देखिए- रामचन्द्र जी जब सीता जी को तलाश करने गये, तो उन्होंने वियोग में बिलखते हुए देखा कि संध्याकाल हो गया है। सीता कहीं भी होंगी, किसी भी हैसियत में होंगी, लेकिन भजन करने के लिए और संध्या करने के लिए इस नदी के तट पर जरूर आयेंगी। बेटे, आप भी संध्या के बारे में नागा मत करना, गैर हाजिरी मत करना, भजन के बारे में कहीं नागा मत करना। जवान से आप मिठास बरसाना, अमृत बरसाना, लोगों की प्रशंसा करना। कहीं ऐसा न हो कि आप में जो आदत जिंदगी भर रही है और वही आदत वहाँ भी प्रकट होने लगे, तो बेटे हमारी भी इज्जत भी खराब हो जायेगी और आपकी भी इज्जत खराब हो जायेगी। बाहर जहाँ कहीं जायें, तो आपका पहला काम है लोगों की प्रशंसा करना। साहब! आपने बड़ी मशक्कत से यज्ञ किया। अच्छे ढंग से पंडाल बनाया। आपने कैसी तैयारी की, जिसमें महीनों लग गया। जहाँ कमियाँ दिखाई दें, वहाँ कहिए कि भाई साहब! इसकी जगह पर अगर हम यह काम कर लें, अगर ऐसा संभव हो जाय, तो कैसा अच्छा रहेगा? बताइये आपकी क्या राय है? हाँ आप कहते हैं, तो ठीक है, पर यहाँ कुछ इंतजाम नहीं हो सका। देखिए कोशिश करते हैं, शायद इंतजाम हो जाय।
प्रशंसा की सृजनात्मक शक्ति
मित्रो! अगर आप इस तरह से कहेंगे और उसके ‘अहं’ को, ‘प्रेस्टीज’ को चोट पहुँचाये बिना काम करेंगे तो इससे उसको इज्जत मिलेगी और आपका काम भी आसान हो जायेगा। लेकिन अगर आप नुक्ता- चीनी करेंगे, उस आदमी की गलतियों को बतायेंगे, तब आप अपना घटियापन साबित करेंगे। लोगों को तब बतायेंगे कि आप बड़े घटिया आदमी हैं। आपको प्यार करना नहीं आता, आपको मोहब्बत नहीं आती, आपको दुलार करना नहीं आता, आपको प्रोत्साहन देना नहीं आता और आपकी जबान में बिच्छू का डंक है। आप बिच्छू का डंक ले करके वहाँ मत जाना। हमने ऐसा कोई वानप्रस्थी नहीं बनाया है और न कोई ऐसा नेता हम बनाना चाहते हैं जो बिच्छू का डंक जीभ में ले करके जाये। आप वहाँ विनम्र हो करके जाना, सज्जन हो करके जाना और सही होकर के जाना। दो बातों को और ध्यान रखना। इसमें चूक मत करना। इसमें अगर आपने चूक कर डाली, तो बेटे हम मर जायेंगे।
सवाल ईमान का है
मित्रो! पैसे के सम्बन्ध में आप यह छाप डाल कर आना कि आप पैसे के बारे में निस्पृह हैं। कहीं आपने ऐसा करना शुरू कर दिया कि आरती उतरी और लोगों ने पैसा देना शुरू किया और बहुत सारा पैसा जमा हुआ। आपने उसमें से एक मुट्ठी जेब में डाल लिया, तो बेटे, हर आदमी की आँखें देख लेंगी और आपकी इज्जत चली जायेगी। हमारी भी इज्जत चली जायेगी, भगवान की इज्जत चली जायेगी, हिन्दू धर्म और संस्कृति की, परम्परा की इज्जत चली जायेगी, गायत्री माता की इज्जत चली जायेगी। इसलिए पैसे के बारे में क्या करना चाहिए? आप अपने घर में दुकानदारी करते हैं, या नहीं करते हैं, बेईमानी करते हैं, जो चाहें कर सकते हैं। लेकिन जहाँ आपको हजारों आदमी देख रहे हैं और भगवान देख रहा है और जहाँ पर आप ऋषि की वेदी पर बैठे हुए हैं, वहाँ पैसे की चालाकी मत करना। पैसे की चालाकी करेंगे, तो बेटे आपकी मिट्टी पलीद हो जायेगी। यहाँ पैसे का सवाल नहीं है, वरन् ईमान का सवाल है। सवाल इस बात का है कि आपका तौल और आपका वजन इस लायक है या नहीं है? आप दो पैसे के ऊपर अपना ईमान खराब करते हैं, तो हम कैसे मानेंगे कि आप ऐसे चरित्रवान आदमी हैं, जो नया युग लाने के लिए लोगों के सामने अपना नमूना पेश कर सकते हैं। इसलिए पैसे के बारे में आप कुछ मत करना। जहाँ कहीं से भी एक- एक पैसा आये, आप उसकी रसीद काटकर देना। वहाँ आपके पास रसीद न हो तो हाथ से पर्ची काट कर दे देना और कहना कि देखिए हम शान्तिकुञ्ज हरिद्वार जा रहे हैं वहाँ से हम आपसे ग्यारह रुपये मिलने की रसीद काटकर भेज देंगे। तब तक आपकी जानकारी के लिए हम अपने हाथ की लिखी पर्ची देकर जाते हैं, ताकि हम बेईमानी न कर सकें। बेटे, कोई आपको रेलवे का टिकट देता है तो आप उसकी भी रसीद दे देना।
इस आकर्षण से बचना
मित्रो! अगर पैसे के बारे में आप अपना खरापन कायम रख सकें, तो हमारी इज्जत कायम रहेगी। हमारे मिशन की इज्जत कायम रहेगी। लेकिन अगर लोगों ने आपके बारे में यह ख्याल बनाना शुरू कर दिया कि पैसे के मामले में यह आदमी बड़ा ढीला है, बड़ा चालाक है, तो बेटे फिर आपका श्लोक बोलना बेकार है, मंत्र बोलना बेकार है। आपका अमुक काम करना सब एक ओर पैसे की चालाकी एक ओर। दूसरी एक और बात बताता हूँ कि आप जहाँ जायेंगे, वहाँ आपके प्रति आकर्षण पैदा होगा। आपको मिलने के लिए सभी लोग आयेंगे। लेकिन एक बात का आप विशेष ध्यान रखना अगर आप मरद हैं तो आप स्त्रियों के बारे में होशियार रहना। कोई भाई- बहन भी रिक्शे में बैठकर अगर हँसते हुए साथ- साथ जाते हैं, तो हर आदमी यह कहता है कि यह प्रेमी- प्रेमिका जा रहे हैं। देखने वाला हर आदमी कहता है कि किसी सयानी लड़की को बार- बार बुलाते हैं और बार- बार आवाज देते हैं कि तुम यह काम कर लेना, तो भाई साहब! वही लड़की क्यों कर लेगी? इतने आदमी बैठे हुए हैं, उनसे आप क्यों नहीं कहते?
शील और मर्यादा बनी रहे
गुरुजी! आप तो लड़कियों को बुरा मानते हैं और उनको दूर करना चाहते हैं। बेटे, मैं दूर नहीं करना चाहता। लड़कियों को आगे बढ़ाने वाला मुझसे ज्यादा कौन हो सकता है? कौन है जो मुझसे ज्यादा प्रोत्साहन करेगा? लेकिन आप आँखें नीचे रखिए। आँख से आँख मिलाकर लड़कियों की तरफ मत देखिए। जहाँ तक हो सके, शरीर से काफी दूर रहिए। जहाँ तक हो सके, आप यह कोशिश कीजिए कि लड़कियों से बातचीत करनी पड़े तो कई लड़कियाँ हों या कई लड़के हों, तब बात कीजिए। अकेले में बात मत कीजिए। अकेले में जब आप बात कर रहे होंगे, तब चाहे आप कोई भी बात कर रहे हों- खाने की बात कर रहे हों कि हमको बैगन की शाक अच्छा नहीं लगता, हमारे लिए टमाटर की चटनी बना देना। आप कह यही रहे होंगे, लेकिन हर आदमी यही समझेगा कि ये लोग कोई गलत बात कर रहे हैं। खराब बात कर रहे हैं। लड़कियों के बारे में, महिलाओं के बारे में प्राचीन परम्परा यही थी कि साधु किसी स्त्री से अपना शरीर छुला नहीं सकता। गुजरात में स्वामी नारायण सम्प्रदाय है। उन लोगों की यही मर्यादा- नियम है कि कोई साधु किसी स्त्री से अपना शरीर स्पर्श नहीं करा सकता। मैं उतना ज्यादा अतिवादी तो नहीं हूँ, लेकिन मैं यह जरूर चाहता हूँ कि आपकी आँखों में शील और मर्यादा स्त्रियों के बारे में होनी ही चाहिए।
नारियो! आप भी तपस्वी के रूप में जाना
मित्रो! महिलाओं से भी मैं यही कहता हूँ कि लड़कियों। तुम अगर कहीं शाखाओं में प्रचार करने जा रही हो, कही भी प्रचार करने जा रही हो, तो लड़कियों हमारी इज्जत का ध्यान रखना। तुम क्या कहती हो, क्या बकती हो, क्या व्याख्यान देती हो, उसकी कीमत दो कौड़ी की है। सबसे बड़ी कीमत यह है कि ये शान्तिकुञ्ज की लड़कियाँ हैं। इनमें तमीज है कि नहीं है? शौर्य है कि नहीं है? मुँह फाड़- फाड़ करके ही- ही करेंगी और गलत तरीके से उलटे- सीधे कपड़े पहन कर बैठेंगी। ऐसा किया, तो बेटे हम मर जायेंगे। आप अच्छे तरीके से जाना। आपने देखा नहीं है कि जहाँ हम लड़कियों को भेजते हैं, उनको रुद्राक्ष की माला पहनाकर भेजते हैं और पीले कपड़े पहनाकर भेजते हैं। हम उनको तपस्वी के रूप में भेजते हैं। इसलिए महिला जागृति की लड़कियाँ जहाँ कहीं जाना, आप सब तपस्वी के रूप में जाना। अपने घर में जो चाहे, सो पहनना, लेकिन स्टेज के ऊपर, किसी मंच के ऊपर, किसी सार्वजनिक सभा में कभी भी इस तरह का लिबास पहनकर मत जाना, जो हमारी शान के खिलाफ है। अगर तुम हमारी शान के खिलाफ जाओगी, इस तरीके से बातचीत करोगी, लोगों से घुल−मिल कर बातें करोगी। भइया जी- भइया जी करती रहोगी......तो बेटे, बात बिगड़ जायेगी। अतः सीधे ढंग से, अनुशासित तरीके से रहना।
ईसाई नन
बेटे, एक बार क्रिश्चियन कॉलेज, इंदौर में हमारा व्याख्यान हुआ पादरियों ने फिलॉसफी के ऊपर वहाँ पर हमारा व्याख्यान कराया। वहाँ हमने ईसाइयों की ननों को देखा। वे सबसे आगे बैठी थीं। बड़ी- बड़ी सयानी लड़कियाँ थीं, पर प्रत्येक लड़की को मैंने देखा, जो आगे की लाइन में बैठी हुई थीं, उन सब की आँखें नीची थीं। मैंने उनसे पूछा कि यह क्या बात है? आपके यहाँ तो कोई घूँघट नहीं मारता, फिर यह क्या बात है। उन्होंने कहा कि हमारे यहाँ घूँघट तो नहीं मारा जाता, पर हमारी आँखें नीची रहती हैं। मर्दों के बारे में ये जो ननें हैं, घूँघट नहीं करतीं, लेकिन इस बात का ध्यान रखती हैं कि कहीं इस ढंग से तो बात नहीं कर रहे हैं, जिसको देखने वाला आदमी कोई गलत अंदाज लगा सके। उनको हमेशा यह शिक्षा दी जाती है और यह बताया जाता है कि आपको आँखें नीची रखनी पड़ेगी। मर्दों से बात करना है तो आप इस तरीके से मुँह जरा टेढ़ा करके करेंगी, कोई जरूरी बात होगी तो इस ढंग से करेंगी, जिसमें कोई आदमी गलत अंदाज न लगा ले।
सार्वजनिक क्षेत्र की मर्यादाएँ
मित्रो! आपसे भी कहता हूँ, लड़कियों आपसे भी कहता हूँ और लड़कों आपसे भी कहता हूँ। चूँकि आपको सार्वजनिक क्षेत्र में भेजता हूँ और खासतौर से धार्मिक क्षेत्र में भेजता हूँ और वानप्रस्थ बनाकर भेजता हूँ। आप उपरोक्त बातों से बेहद सावधान रहिए। स्त्रियों के बारे में आपको किसी ने कलंक लगा दिया, तो बेटे हमारा मरना हो जायेगा और अगर आपके बारे में किसी ने पैसे के सम्बन्ध में कलंक लगा दिया तो हमारा मरना हो जायेगा। फिर हम यह मिशन बंद कर देंगे। फिर हम खोमचा लगा लेंगे, रिक्शा चला लेंगे और हम यह मिशन बंद कर देंगे, अगर आप हमारी इज्जत खराब करेंगे, तब! आप हमारी इज्जत मत खराब कीजिए। हमने ऋषि का बाना पहना है, साधु का बाना पहना है, हमने ब्राह्मण का बाना पहना है और हमने यह घोषणा की है कि हम धर्मतंत्र से लोकशिक्षण करेंगे। धर्म की शालीनता की, धर्म के गौरव की हम रक्षा करेंगे। इसलिए आवश्यक है कि आप इन मोटी- मोटी मर्यादाओं को समझें। स्त्रियों के सम्बन्ध में, पैसे के सम्बन्ध में, आपको जहाँ कहीं भी जाना है, इन मर्यादाओं का ध्यान रखना।
चरित्र व क्रिया द्वारा शिक्षण
अगर आप इन बातों को ध्यान रखेंगे तो बेटे आपका पीला कपड़ा, जो हमने पहनाया है, उसकी भी इज्जत रह जायेगी और आप जो वानप्रस्थ के माध्यम से कार्य करने वाले हैं, उसमें भी सफलता मिलती चली जायेगी। मुझे उम्मीद है कि आप इन बातों को पूरी तरह से ध्यान में रखेंगे और यहाँ से जाने के बाद में ऐसे कदम बढ़ायेंगे कि आपके अपने वैयक्तिक जीवन में और सामाजिक जीवन में इससे वह उद्देश्य पूरा होना संभव हो जायेगा, जिसको आप व्याख्यानों के द्वारा करना चाहते हैं। लेकिन व्याख्यानों के द्वारा नहीं, वरन् अपने चरित्र और क्रियाकलाप के द्वारा अगर आप करेंगे, तो हमें खुशी होगी और हमारे उद्देश्य की पूर्ति हुए बिना नहीं रहेगी। नया युग आ रहा है और नये युग के संदेशवाहकों को कैसा व्यक्तित्व वाला होना चाहिए, इसके सम्बन्ध में आप तैयारी कीजिए और ऐसे ढलने की कोशिश कीजिए, ताकि आपके व्यक्तित्व की प्रत्येक नस और प्रत्येक रोम- रोम उपदेश देता चले और लोग अनायास ही आपकी तरफ खिंचते चले आयें। अनायास ही मिशन की तरफ खिंचते और जुड़ते चले जाएँ। अगर आप इतना कर सके तो आपका वानप्रस्थ जीवन धन्य हो जायेगा और हमारा उद्देश्य ‘‘मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण’’ पूर्ण होने में देर नहीं लगेगी।
आज की बात समाप्त।
॥ ॐ शान्तिः॥