Sunday 06, April 2025
शुक्ल पक्ष नवमी, चैत्र 2025
पंचांग 06/04/2025 • April 06, 2025
चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | नवमी तिथि 07:23 PM तक उपरांत दशमी | नक्षत्र पुष्य | सुकर्मा योग 06:55 PM तक, उसके बाद धृति योग | करण बालव 07:20 AM तक, बाद कौलव 07:23 PM तक, बाद तैतिल |
अप्रैल 06 रविवार को राहु 05:00 PM से 06:34 PM तक है | चन्द्रमा कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:04 AM सूर्यास्त 6:34 PM चन्द्रोदय 12:37 PM चन्द्रास्त 2:59 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - चैत्र
तिथि
- शुक्ल पक्ष नवमी
- Apr 05 07:26 PM – Apr 06 07:23 PM
- शुक्ल पक्ष दशमी
- Apr 06 07:23 PM – Apr 07 08:00 PM
नक्षत्र
- पुष्य - Apr 06 05:32 AM – Apr 07 06:24 AM

माँ सिद्धिदात्रि नौ दिन की नवरात्रि के दिन पूजा जाने वाली देवी हैं। ये देवी शक्ति का स्वरूप मानी जाती हैं और सिद्धियों के प्रदान करने वाली हैं। इन्हें "सिद्धियों की दात्री" भी कहा जाता है, क्योंकि ये अपने भक्तों को आध्यात्मिक और भौतिक सिद्धियाँ प्रदान करती हैं।

🚩 🌹 राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं एक विशेष अवसर है जब हम भगवान श्री राम के पावन जन्म का उत्सव मनाते हैं। यह दिन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है और हिंदू पंचांग के अनुसार बहुत ही शुभ माना जाता है।🌹🚩

🌺*रामनवमी के दिन जन्में एक अतुल्य व्यक्तित्व, करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत, गुरुदेव के विचारों एवं भारतीय संस्कृति के सशक्त प्रचारक परम आदरणीय डॉ. चिन्मय पंडया जी को अवतरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।🌺*

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गायत्री मंत्र के महत्त्व और लाभ | Gayatri Mantra Ke Mahatva Aur Labh | Rishi Chintan
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन









आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! गायत्री माता मंदिर Gayatri Mata Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 06 April 2025

!! महाकाल महादेव मंदिर #Mahadev_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 06 April 2025

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!

!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 06 April 2025 !!

!! आज के दिव्य दर्शन 06 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 06 April 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 06 April 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 06 April 2025 !!

!! देवात्मा हिमालय मंदिर Devatma Himalaya Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 06 April 2025 !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
देवपूजन किसे कहते हैं? देवपूजन बेटे तुझे बताते तो रहते हैं। गायत्री माता का फोटो धर लेना। हाँ, वो तो मैंने धर लिया है। बेटा, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, चंदन लगा दिया कर। हाँ, महाराज जी, वह तो मैं लगा देता हूँ, इसमें क्या रखा है? वह तो मैंने एक चावल की डिबिया में छोटी डिबिया में चावल रख लिए हैं। ये तो अच्छा कर लिया। और छोटी सी डिबिया में बत्ती वो रख लिए। यह और भी अच्छा है। और महाराज जी, मैंने नैवेद्य भी रखा हुआ है। नैवेद्य कै पैसे का लाया था। 25 पैसे का ले आया था, सो महीने भर काम दे जाता है। दो इलायचीदाना धर देता हूँ। तेरा तो बहुत ही बढ़िया काम है, तेरी प्रक्रिया बहुत अच्छी चल जाती है। हाँ, महाराज जी, देखिए जो आपने बताया था, उसमें कोई कमी हो तो मुझसे कहिए। बेटे, तेरे पास एक ही कमी है। ये सारे के सारे क्रिया करने के साथ-साथ में मन तू नहीं लगाए रहता। जब भी चीजों को चढ़ाया कर, अपना मन लगा दिया कर, मन को लगा दिया कर। इसके लिए इन्हीं तत्वों के साथ-साथ में जो शिक्षण दिया हुआ है, क्या शिक्षण दिया हुआ है? पाँच चीजें जो पंचोपचार की हैं। जब इसमें एक चीज चढ़ाया करे, तो अपने विचारों को, विचारों को, विचारों को वस्तुओं के साथ-साथ में उसी तरीके से लगा दिया कर, जिस प्रकार से उस शिक्षण के लिए उसका आधार बनाया गया है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
कोई भी व्यक्ति जितना कुछ वैभव, उल्लास और साधन सम्पत्ति अर्जित करता है, वह उपार्जन एक ही मूल्य पर होता है। वह मूल्य है- शक्ति। जिसमें जितनी क्षमता है, जितनी शक्ति है, वह उतना ही वैभव और उल्लास अर्जित कर लेता है। इन्द्रियों में शक्ति हो तो विभिन्न भोगों को भोगा जा सकता है और इन्द्रियाँ यदि अशक्त, असमर्थ हो जायें, तो आकर्षक से आकर्षक भोग भी उपेक्षणीय लगते हैं। उनकी ओर देखने का भी जी नहीं करता। नाड़ी संस्थान की क्षमता यदि क्षीण हो जाय, तो शरीर का सामान्य क्रियाकलाप भी ठीक प्रकार से नहीं चल पाता।
मानसिक शक्ति यदि घट जाय, तो मनुष्य की गणना विक्षिप्त व्यक्तियों में होने लगती है और विक्षिप्तों जैसी नहीं भी हो, तो वह ऐसी हरकतें करने लगता है कि उसकी स्थिति उपहासास्पद बन जाती है। धन की शक्ति में यदि कोई व्यक्ति, शून्य हो तो वह दीन-हीन बना रहता है। अभावग्रस्तता से उसकी स्थिति दयनीयों जैसी बनी रहती है और वह जीवन की सामान्य आवश्यकतायें भी भली प्रकार पूरी नहीं कर पाता। मित्रता को भी शक्ति कहा जा सकता है, जिसका स्वरूप सामाजिक होता है। यदि सच्चा मित्र शक्ति न रहे, तो व्यक्ति अपने आप को एकाकी अनुभव करने लगता है और जीवन निरर्थक-निरीह लगने लगता है।
इन सभी शक्तियों में प्रधान है- आत्मबल। आत्मबल आध्यात्मिक पक्ष से संबंधित होने के कारण अन्य सभी शक्तियों से उच्च स्तर का समझा जाता है। यदि यह शक्ति पास में न रहे, तो मनुष्य प्रगति के पथ पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता। जीवनोद्देश्य की पूर्ति आत्मबल से रहित व्यक्ति के लिए प्राय: असंभव ही रहती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि क्या आध्यात्मिक और क्या भौतिक, सभी क्षेत्रों में अभीष्टï सफलता प्राप्त करने के लिए शक्ति का संपादन नितांत आवश्यक है। शक्ति संपादन के संबंध में यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिए कि इनका स्वरूप चाहे जो हो, स्रोत एक ही है।
आभूषण चाहें कान के बने या गले का, सोना का ही उपयोग किया जाता है। पृथ्वी पर व्याप्त समस्त ऊष्माओं का केन्द्र सूर्य ही है, चाहे वह शरीर की गर्मी हो या आग की। भारतीय मनीषियों ने इसी प्रकार समस्त शक्तियों का स्रोत साधन एक ही माना है और उसे गायत्री नाम दिया है। भौतिक जगत में पंचभूतों को प्रभावित करने वाली जितनी भी शक्तियाँ हैं और आध्यात्मिक जगत में जितनी भी विचारात्मक, भावनात्मक तथा संकल्पनात्मक शक्तियाँ हैं, उन सब का मूल उद्ïगम एवं अजस्र भण्डार एक ही है, जिसे गायत्री नाम से संबोधित किया गया है। इस भण्डार में शक्ति सागर में जितना भी गहरे उतरा जाय, उतना ही बहुमूल्य रत्न राशि उपलब्ध होने की संभावना बढ़ती चली जाती है।
मनीषियों ने परब्रह्मï परमात्मा की चेतना, प्रेरणा सक्रियता एवं समर्थता को गायत्री कहा है तथा इसे विश्व की सर्वोपरि शक्ति बताया है। विभिन्न देवशक्तियाँ जो अन्यान्य प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होती हैं और विभिन्न देवनामों से पुकारी जाती हैं, इसी शक्ति के ज्योति स्फुलिंग है। वे समस्त शक्तियाँ उस परम शक्ति की ही किरणें हैं। उत्पादन, विकास एवं संहार में संलग्ïन ब्राह्मïी, वैष्णवी और शांभवी शक्तियों के प्रतीक प्रतिनिधि ब्रह्मïा, विष्णु, महेश परमब्रह्मï की इसी सर्वोपरि शक्ति से अपना काम चलाते हैं और अभीष्टï कार्यों को पूरा करने के लिए शक्तियाँ प्राप्त करते हैं। पंचतत्त्वों की चेतना को आदित्य, वरुण, मरुत, द्यौ और अंतरिक्ष कहकर पुकारते हैं। उनकी शक्ति का स्रोत भी परमब्रह्मï की वही चेतना है, जिसे गायत्री कहा गया है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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