Tuesday 15, October 2024
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, आश्विन 2081
पंचांग 15/10/2024 • October 15, 2024
आश्विन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), आश्विन | त्रयोदशी तिथि 12:19 AM तक उपरांत चतुर्दशी | नक्षत्र पूर्वभाद्रपदा 10:08 PM तक उपरांत उत्तरभाद्रपदा | वृद्धि योग 02:13 PM तक, उसके बाद ध्रुव योग | करण कौलव 02:03 PM तक, बाद तैतिल 12:19 AM तक, बाद गर |
अक्टूबर 15 मंगलवार को राहु 02:52 PM से 04:17 PM तक है | 04:49 PM तक चन्द्रमा कुंभ उपरांत मीन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:23 AM | सूर्यास्त 5:42 PM | चन्द्रोदय 4:27 PM चन्द्रास्त 4:44 AM अयनदक्षिणायन द्रिक ऋतु शरद
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - आश्विन
- अमांत - आश्विन
तिथि
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी - Oct 15 03:42 AM – Oct 16 12:19 AM
- शुक्ल पक्ष चतुर्दशी - Oct 16 12:19 AM – Oct 16 08:40 PM
नक्षत्र
- पूर्वभाद्रपदा - Oct 15 12:42 AM – Oct 15 10:08 PM
- उत्तरभाद्रपदा - Oct 15 10:08 PM – Oct 16 07:17 PM
युग परिवर्तन की इस युगांतकारी वेला में युगनायक पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की प्रेरणा एवं संरक्षण में अखिल विश्व गायत्री परिवार युवाप्रतिनिधि एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी विश्वभर में युगऋषि के संदेश एवं निर्दिष्ट क्रियाकलापों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। यूरोप स्थित बाल्टिक देशों के प्रवास के इसी क्रम आदरणीय डॉ. पंड्या विल्नियस, लिथुआनिया पहुंचे एवं उपस्थित जनसमूह के मध्य दीपयज्ञ संपन्न कराया।
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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 15 October 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
संकल्प किसे कहते हैं द्रोपदी ने बाल बिखेर दिए थे और यह कहा था बाल मैं तब बांधूगी कब बाधूंगी जब कि मैं इसका इन बालों को उखाड़ने वाले और बालों का अपमान करने वालों का बदला ले लूँ और चाणक्य ने अपनी चोटी, उखाड़ खोल दी थी उन्होंने कहा अब चोटी में गांठ लगाऊँगा तब जब नन्द साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दूँ। तब तक तब तक चोटी नहीं बाधूँगा संकल्प की शक्ति। अरे आपने ये प्रतिज्ञा की थी पहाड़ खोदकर के नहर लेकर के आऊंगा और उसने पहाड़ खोदकर के नहर लेके आया संकल्प बड़े बड़े करो संकल्पों की शक्ति कुछ कम नहीं होती संकल्पों की शक्ति का अवतरण हमारे ऊपर होता रहा है हर साल और हम निश्चय करते हैं हम करेंगे और हमने करके दिखा दिया। व्यक्ति को संकल्प का मोह, संकल्प की क्षमता, संकल्प की सामर्थ्य, संकल्प का तेज, संकल्प का प्रभाव बताने के लिए प्रयत्न किया जाए आपको कुछ करना है तो एक ही तरीका है संकल्प कीजिए और फिर देखिए आपके भीतर कितनी शक्ति आती है संकल्प की शक्ति बड़ी कमजोरियां है आपकी सब कमजोरियां दूर हो जाएंगी संकल्प की शक्ति से।
अखण्ड-ज्योति से
मनुष्य के हृदय भण्डार का द्वार खोलने वाली, निम्नता से उच्चता की ओर ले जाने वाली यदि कोई वस्तु है, तो प्रसन्नता ही है। यही वह साँचा है, जिसमें ढ़लकर मनुष्य अपने जीवन का सर्वतोमुखी विकास कर सकता है। जीवन-यापन के लिए जहाँ उसे धन, वस्त्र, भोजन एवं जल की आवश्यकता पड़ती है, वहाँ उसे हलका-फुलका एवं प्रगतिशील बनाने के लिए प्रसन्नता भी आवश्यक है। प्रसन्नता मरते हुए मनुष्य में प्राण फूँकने के समान है। प्रसन्न और संतुष्ट रहने वाले व्यक्तियों का ही जीवन ज्योतिपुंज बनकर दूसरों का मार्गदर्शन करने में सक्षम होता है।
प्रसिद्ध दार्शनिक इमर्सन ने कहा है- वस्तुतः हास्य एक चतुर किसान है, जो मानव जीवन-पथ के काँटों, झाड़-झंखाड़ों को उखाड़ कर अलग करता है और सद्गुणों के सुरभित वृक्ष लगा देता है, जिसमें हमारी जीवन यात्रा एक पर्वोत्सव बन जाती है।
जीवन यात्रा के समय में मनुष्य को अनेक कठिनाइयों एवं समस्याओं का सामना करना पड़ता है, किन्तु हँसी का अमृत पान कर मनुष्य जीवन संग्राम में हँसते-हँसते विजय प्राप्त कर सकता है। इतिहास के पृष्ठों पर निगाह डालें, तो पता चलेगा कि महान व्यक्तियों के संघर्षपूर्ण जीवन की सफलता का रहस्य प्रसन्नता रूपी रसायन का अनवरत सेवन करते रहना ही है।
हँसना जीवन का सौरभ है। जो व्यक्ति आनन्द के खदान को जान लेता है, उसे श्रेष्ठ वातावरण की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। वर्तमान समय में जो परिस्थिति उसके सम्मुख होती है, उसी में वह सुख अनुभव कर लेता है। संतुलित मनुष्य यह नहीं सोचता कि जब वह धनी होगा, तभी उसे सुख मिल सकता है। धन मनुष्य को कभी सुखी बनाए नहीं रख सकता। प्रसन्नता तो मनुष्य के अन्तस् का स्रोत है, उसके फूटते ही व्यक्ति को सब जगह तथा हर परिस्थिति में खुशी ही खुशी परिलक्षित होती है। स्वर्ग की चाह है, तो आनन्द के जल से आत्मा को स्नान कराना पड़ेगा। स्वर्ग कहीं और नहीं है, वह मनुष्य के अन्दर ही छुपा हुआ है। अन्दर के आनन्द से ही मनुष्य अनंत आनन्द की प्राप्ति कर सकता है।
एक विचारक का कथन है कि अगर तुम हँसोगे तो सारी दुनिया तुम्हारे साथ हँसेगी और अगर तुम रोओगे तो कोई तुम्हारा साथ न देगा।
प्रसन्न व्यक्ति को देखकर दूसरे व्यक्ति स्वयं ही खुश होने लगते हैं। प्रसन्न चित्त व्यक्ति के पास बैठकर दुःखी व्यक्ति भी थोड़ी देर के लिए प्रसन्नता के प्रवाह में अपने दुःख को भूल जाता है। जो व्यक्ति हर समय मुँह फुलाए रहता है, वह जीवन के प्राण उसके संजीवनी तत्त्व को नष्ट कर देता है। ऐसे व्यक्तियों के पास उठना-बैठना कोई पसंद नहीं करता। खिन्नता नरक की भयानक ज्वाला की भाँति मनुष्य को दीन, हीन, दुःखी एवं दरिद्र बना देती है।
अप्रसन्न प्रकृति का व्यक्ति दूसरों को भी हँसता नहीं देख सकता। दूसरे हँसते हैं, तो ऐसा लगता है कि ये सभी लोग हमारा मजाक बना रहे हैं। ऐसे लोग, प्रसन्नता की जीवन में क्या उपयोगिता है, इस तथ्य को भली-भाँति समझ नहीं पाते। उनका स्वभाव बन जाता है, दूसरों को देखकर हँसना, दूसरों का मजाक बनाना, दूसरों के नुकसान पर हँसना। समय, परिस्थिति एवं वातावरण का ध्यान किये बिना असभ्य ढंग से हँसने का हमें ध्यान रखना चाहिए कि यह हास्य, जीवन-विकास में सहायक नहीं होता, उलटे मनुष्य के अन्दर आसुरी प्रवृत्तियों को जन्म देता है और जीवन को दुरूह बना देता है। हमें ऐसी हँसी को अपने अंदर स्थान देना चाहिए, जो मनहूसों को भी हँसा दे, दुःखी को खुश कर दे।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य