Wednesday 26, March 2025
कृष्ण पक्ष द्वादशी, चैत्र 2025
पंचांग 26/03/2025 • March 26, 2025
चैत्र कृष्ण पक्ष द्वादशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), फाल्गुन | द्वादशी तिथि 01:43 AM तक उपरांत त्रयोदशी | नक्षत्र धनिष्ठा 02:29 AM तक उपरांत शतभिषा | सिद्ध योग 12:25 PM तक, उसके बाद साध्य योग | करण कौलव 02:49 PM तक, बाद तैतिल 01:43 AM तक, बाद गर |
मार्च 26 बुधवार को राहु 12:22 PM से 01:54 PM तक है | 03:14 PM तक चन्द्रमा मकर उपरांत कुंभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:17 AM सूर्यास्त 6:28 PM चन्द्रोदय 4:13 AM चन्द्रास्त 3:11 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - फाल्गुन
तिथि
- कृष्ण पक्ष द्वादशी
- Mar 26 03:45 AM – Mar 27 01:43 AM
- कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
- Mar 27 01:43 AM – Mar 27 11:03 PM
नक्षत्र
- धनिष्ठा - Mar 26 03:49 AM – Mar 27 02:29 AM
- शतभिषा - Mar 27 02:29 AM – Mar 28 12:33 AM

गुरू और शिष्य के बीच के संबंध | Guru Aur Shishya Ke Beech Sambdhan

अमृतवाणी:- साधक कैसे बनें? | Amritvanni Sadhak Kaise Banen | Pt Shriram Sharma Acharya
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 26 March 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र से कहा, "बेटे, हां, हम चाहते हैं कि तू हमारा चेला हो, सबसे प्राणों से प्यारा चेला है। तेरा यश इतना फैल जाए दुनिया भर में, और लोग मंदिर बना जाते हैं, मस्जिद बना जाते हैं, 21 रुपया धर्मशाला में दे जाते हैं, पर तेरा यश जिंदगी भर जिंदा रहे।" तो महाराज जी, मुझे क्या करना पड़ेगा? तुझे, बेटे, मुसीबत उठानी पड़ेगी। मुसीबत उठाए बिना कोई आदमी स्थिर नहीं रह सकता। त्याग किए बिना कोई आदमी स्थिर नहीं रह सकता। यश किसी का जिंदा नहीं रहा। हम तुझे यशस्वी बनाना चाहते हैं। भगवान अपने भक्तों का यश बढ़ाते हैं। इसीलिए समय-समय पर इम्तिहान लेने आते हैं। इम्तिहान लिए बिना, इम्तिहान दिए बिना आप एम.ए. का सर्टिफिकेट नहीं पा सकते। एम.ए. का सर्टिफिकेट नहीं पा सकते, तो गजटेड ऑफिसर नहीं हो सकते। गजटेड ऑफिसर होने के लिए एम.ए. का सर्टिफिकेट लाइए। सर्टिफिकेट लाने के लिए इम्तिहान दीजिए। इम्तिहान देने के लिए दिन-रात पढ़ने के लिए मुसीबत उठाइए। इससे कम में कोई रास्ता ही नहीं है, रास्ता ही नहीं है। भगवान ने हमेशा अपने भक्तों का गौरव बढ़ाया है, मान बढ़ाया है, यश बनाया है। उनकी प्रामाणिकता बढ़ाई है, सच्चाई बढ़ाई है। वो देखेंगे, आदमी झूठा है कि सच्चा है। इम्तिहान लिए बिना, हम कैसे मान लें, बेटे, कि यह सोना सच्चा है कि झूठा है? इसलिए भगवान स्वयं इम्तिहान लेने आते हैं, दुनिया को दिखाते हैं, "देखो, हमारा भगत सच्चा है, झूठा नहीं है।"
अखण्ड-ज्योति से
आवश्यकताओं को मर्यादा से बढ़ा देने का नाम अतृप्ति और दुःख है उन्हें कम कर पूर्ति करने से सुख और सन्तोष प्राप्त होता है। मनुष्य एक ही प्रकार के सुख से तृप्त नहीं रहता। अतः असंतोष सदैव बना रहता है। वह असंतोष निंदनीय है जिसमें किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए मनुष्य दिन रात हाय-हाय करता रहे और न पाने पर असंतुष्ट, अतृप्त, और दुःखी रहे।
तृष्णाएं एक के पश्चात् दूसरी बढ़ेगी। एक आवश्यकता की पूर्ति होगी, तो दो नई आवश्यकताएं आकर उपस्थित हो जायेंगी। अतः विवेकशील पुरुष को अपनी आवश्यकताओं पर कड़ा नियंत्रण रखना चाहिए। इस प्रकार आवश्यकताओं को मर्यादा के भीतर बाँधने के लिए एक विशेष शक्ति-मनोनिग्रह की जरूरत है।
एक विचारक का कथन है-“जो मनुष्य अधिकतम संतोष और सुख पाना चाहता है, उसको अपने मन और इन्द्रियों को वश में करना अत्यन्त आवश्यक है। यदि हम अपने आपको तृष्णा और वासना में बहायें, तो हमारे असंतोष की सीमा न रहेगी।”
अनेक प्रलोभन तेजी से हमें वश में कर लेते हैं, हम अपनी आमदनी को भूल कर उनके वशीभूत हो जाते हैं। बाद में रोते चिल्लाते हैं। जिह्वा के आनन्द, मनोरंजन आमोद प्रमोद के मजे हमें अपने वश में रखते हैं। हम सिनेमा का भड़कीला विज्ञापन देखते ही मन को हाथ से खो बैठते हैं और चाहे दिन भर भूखे रहें, अनाप-शनाप व्यय कर डालते हैं। इन सभी में हमें मनोनिग्रह की नितान्त आवश्यकता है। मन पर संयम रखिये। वासनाओं को नियंत्रण में बाँध लीजिये, पॉकेट में पैसा न रखिये। आप देखेंगे कि आप इन्द्रियों को वश में रख सकेंगे।
आर्थिक दृष्टि से मनोनिग्रह और संयम का मूल्य लाख रुपये से भी अधिक है। जो मनुष्य अपना स्वामी है और इन्द्रियों को इच्छानुसार चलाता है, वासना से नहीं हारता, वह सदैव सुखी रहता है।
प्रलोभन एक तेज आँधी के समान है जो मजबूत चरित्र को भी यदि वह सतर्क न रहे, गिराने की शक्ति रखती है। जो व्यक्ति सदैव जागरुक रहता है, वह ही संसार के नाना प्रलोभनों आकर्षणों, मिथ्या दंभ, दिखावा, टीपटाप से मुक्त रह सकता है। यदि एक बार आप प्रलोभन और वासना के शिकार हुए तो वर्षों उसका प्रायश्चित करने में लग जायेंगे।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1950 पृष्ठ 8
Newer Post | Home | Older Post |