Thursday 10, April 2025
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, चैत्र 2025
पंचांग 10/04/2025 • April 10, 2025
चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | त्रयोदशी तिथि 01:00 AM तक उपरांत चतुर्दशी | नक्षत्र पूर्व फाल्गुनी 12:24 PM तक उपरांत उत्तर फाल्गुनी | वृद्धि योग 06:58 PM तक, उसके बाद ध्रुव योग | करण कौलव 11:56 AM तक, बाद तैतिल 01:01 AM तक, बाद गर |
अप्रैल 10 गुरुवार को राहु 01:53 PM से 03:27 PM तक है | 07:04 PM तक चन्द्रमा सिंह उपरांत कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:00 AM सूर्यास्त 6:37 PM चन्द्रोदय 4:29 PM चन्द्रास्त 4:56 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - चैत्र
तिथि
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
- Apr 09 10:55 PM – Apr 11 01:00 AM
- शुक्ल पक्ष चतुर्दशी
- Apr 11 01:00 AM – Apr 12 03:21 AM
नक्षत्र
- पूर्व फाल्गुनी - Apr 09 09:57 AM – Apr 10 12:24 PM
- उत्तर फाल्गुनी - Apr 10 12:24 PM – Apr 11 03:10 PM

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!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 10 April 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 10 April 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार

!! आज के दिव्य दर्शन 10 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हमारी कमाई का एक अंश ब्याज के रूप में, कर्जा चुकाने के रूप में, अपने शेयर होल्डर का, पार्टनर का हिस्सा, और शेयरदारी के हिस्से के रूप में हमको निरंतर देना पड़ेगा। निरंतर देंगे, निरंतर देंगे। भगवान को हम रिश्तेदार मानते हैं, ये रिश्तेदार हैं, तो क्या मानेंगे भगवान? आप भगवान हैं। भगवान क्या मानेंगे? अगर आप बेटा भी मान लें तो बेटे, फिर आपको नए तरीके से विचार करना पड़ेगा। कई बेटे हैं आपके, हमारे बेटे साहब चार हैं, पाँचवाँ बेटा, एक भगवान को हम मान सकते हैं। नहीं, भगवान तो हमारा गुरू है। नहीं बेटे, गुरू मत माने, तू अपना बेटा मान ले। बेटा मानने से तुझे क्या करना पड़ेगा? चार बेटों को खिलाता पिलाता है। हाँ, महाराज जी, चार को तो खिलाता पिलाता हूँ, कपड़े पहनाता है। हाँ, पहनाता हूँ, पाँचवाँ को भी पहना। पाँचवाँ कौन सा है? भगवान। अच्छा, उस बेटे पर कितना खर्च आता है तेरा? महाराज जी, किसी को पढ़ाई में ढाई सौ रुपये महीना खर्च करता हूँ, किसी में सवा सौ करता हूँ, किसी में पौने दो सौ खर्च करता हूँ, चालीस रुपये खर्च करता हूँ। एक भगवान को भी दे? नहीं, महाराज जी, भगवान को तो मैं धूपबत्ती खिलाऊँगा। तो अपने बेटे को भी धूपबत्ती खिला। नहीं साहब, बेटे को तो जलेबी खिलाऊँगा, तो भगवान को जलेबी खिला। नहीं साहब, भगवान को तो धूपबत्ती खिलाएगा और बेटे को तो जलेबी खिलाएगा। बदमाश कहीं का! मित्रों, क्या करना पड़ेगा? हमें वास्तविकता के धरातल पर उतरना पड़ेगा, हमें यथार्थता पर आना पड़ेगा, वास्तविकता पर चलना पड़ेगा। ये मानना पड़ेगा कि अगर हमारा कोई रिश्तेदार है भगवान, भगवान ने हमारे जीवन में जितनी ज्यादा सुविधाएं और संपदाएं दी हैं, उसके लिए हमें कुछ करना चाहिए। उसके लिए कुछ करना चाहिए। हमारा अक्षत और हमारे चावल, हमारा श्रम, हमारी कमाई और हमारा उपार्जन, जिसमें पैसा भी शामिल है, अकल भी शामिल है, बुद्धि भी शामिल है, प्रभाव भी शामिल है, प्रतिभा भी शामिल है, इसका एक हिस्सा लोकहित के लिए, समाज कल्याण के लिए, देश के लिए, धर्म और संस्कृति के लिए खर्च होना चाहिए।
अखण्ड-ज्योति से
अटूट श्रद्धा और अडिग विश्वास गायत्री माता के प्रति रख -करके और उसकी उपासना के संबंध में अपनी मान्यता और भावना रख करके प्रयत्न किया है और उसका परिणाम पाया हैं। व्यक्तित्व को भी जहाँ तक संभव हु आ है परिष्कृत करने के लिए पूरी कोशिश की है। एक ब्राह्मण को और एक भगवान के भक्त को जैसा जीवन जीना चाहिए, हमने भरसक प्रयत्न किया है कि उसमें किसी तरह से कमी न आने पाए। उसमें पूरी पूरी सावधानी हम बरतते रहे हैं। अपने आप को धोबी के तरीके से धोने में और धुनिये के तरीके से धुनने में हमने आगा पीछा नहीं किया है। यह हमारी उपासना को फलित और चमत्कृत बनाने का एक बहुत बड़ा कारण रहा है। उद्देश्य हमेशा से ऊँचा रहे। उपासना हम किस काम के लिए करते हैं, हमेशा यह ध्यान बना रहा।
पीड़ित मानवता को ऊँचा उठाने के लिए, देश, धर्म, समाज और संस्कृति को समुन्नत बनाने के लिए हम उपासना करते हैं, अनुष्ठान करते हैं। भगवान की प्रार्थना करते हैं। भगवान ने देखा कि किस नीयत से यह आदमी कर रहा है- भगीरथ की नीयत को देखकर के गंगा जी स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गई थीं और शंकर भगवान उनकी सहायता करने के लिए तैयार हो गए थे। हमारे संबंध में भी ऐसा ही हुआ। ऊँचे उद्देश्यों को सामने रख करके चले तो दैवी शक्तियों की भरपूर सहायता मिली। हमारा अनुरोध यह है कि जो कोई भी आदमी यह चाहते हों कि हमको अपनी उपासना को सार्थक बनाना है तो उन्हें इन तीनों बातों को बराबर ध्यान में रखना चाहिए।
हम देखते हैं कि अकेला बीज बोना सार्थक नहीं हो सकता। उससे फसल नहीं आ सकती। फसल कमाने के लिए बीज- एक, भूमि- दो और खाद- पानी तीन, इन तीनों चीजों की जरूरत है। निशाना लगाने के लिए बंदूक- एक, कारतूस- दों और निशाना लगा ने वाले का अध्यास तीन ये तीनों होंगी तब बात बने मूर्ति बनाने के एक पत्थर एक, छेनी हथौडा़ दो और मूर्ति बनाने की कलाकारिता तीन। लेखन कार्य के लिए कागज, स्याही और शिक्षा तीनों चीजों की जरूरत है। मोटर चलाने के लिए मोटर की मशीन तेल और ड्राइवर तीनों चीजों की जरूरत है।
इसी तरीके से उपासना के 'चमत्कार अगर किन्हीं को देखने हों, उपासना को सार्थकता की परख करनी हो तो इन तीनों था तों को ध्यान में रखना पड़ेगा जो हमने अभी निवेदन क्रिया उच्चस्तरीय दृष्टिकोण, परिष्कृत व्यक्तित्व और अटूट श्रद्धा विश्वास। इन तीनों को मिलाकर के जो कोई भी आदमी उपासना करेगा निश्चयपूर्वक और विश्वासपूर्वक हम कह सकते हैं कि आध्यात्मिकता के तत्वज्ञान का जो कुछ भी माहात्म्य बताया गया है- कि आदमी स्वयं लाभान्वित होता है, सर्मथ बनता है, शक्तिशाली बनता है, शांति पाता है स्वर्ग मुक्ति जैसा लाभ प्राप्त करता है और दूसरों की सेवा सहायता करने में समर्थ होता है सही है।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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