Thursday 14, November 2024
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, कार्तिक 2024
पंचांग 14/11/2024 • November 14, 2024
कार्तिक शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), कार्तिक | त्रयोदशी तिथि 09:43 AM तक उपरांत चतुर्दशी तिथि 06:19 AM तक उपरांत पूर्णिमा | नक्षत्र अश्विनी 12:33 AM तक उपरांत भरणी | सिद्धि योग 11:29 AM तक, उसके बाद व्यातीपात योग | करण तैतिल 09:43 AM तक, बाद गर 08:01 PM तक, बाद वणिज 06:19 AM तक, बाद विष्टि |
नवम्बर 14 गुरुवार को राहु 01:20 PM से 02:39 PM तक है | चन्द्रमा मेष राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:46 AM सूर्यास्त 5:17 PM चन्द्रोदय 4:04 PM चन्द्रास्त 5:51 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - कार्तिक
- अमांत - कार्तिक
तिथि
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी - Nov 13 01:01 PM – Nov 14 09:43 AM
- शुक्ल पक्ष चतुर्दशी [ क्षय तिथि ] - Nov 14 09:43 AM – Nov 15 06:19 AM
- शुक्ल पक्ष पूर्णिमा - Nov 15 06:19 AM – Nov 16 02:58 AM
नक्षत्र
- अश्विनी - Nov 14 03:11 AM – Nov 15 12:33 AM
- भरणी - Nov 15 12:33 AM – Nov 15 09:55 PM
आप हनुमान की तरह जो कार्य कर रहे हैं।
पूज्यवर की अभिलाषा |
मानसिक संतुलन आवश्यक |
लेना नहीं देना सीखे |
मानसिक सन्तुलित अवस्था मन की स्थिर बुद्धि सम्पन्न शान्तिमय स्थिति है, जिसमें विवेक पूर्णरूप से जाग्रत रहता है। जैसे तराजू के दोनों पलड़े समान रूप से भारी होने के कारण डण्डी को सन्तुलित रखते हैं, वैसे ही मन की पूर्ण सन्तुलित अवस्था में मानसिक उत्तेजना, वितर्क व्यर्थ की उथल−पुथल चिन्ता वासना आदि से मुक्त रहती है। इस अवस्था में मनुष्य अच्छी तरह विवेक को जाग्रत रख कर सोच विचार कर सकता है।
यह पूर्ण आनन्द की स्थिति है। इस अवस्था में मनुष्य अपने भले बुरे को अच्छी तरह समझता है। वह अपने शुभ संकल्पों का निर्माण करता है, कर्त्तव्य बुद्धि से उसे अपने भले बुरे का ज्ञान रहता है। उसका आत्म विश्वास बढ़ जाता है। स्थिरता एवं शान्ति के कारण उसकी मानसिक शक्ति में भी अभिवृद्धि होती है। व्यर्थ चिन्ताएँ नष्ट हो जाती हैं। मिथ्या दुःखों से मुक्ति प्राप्त होती है। हम अनुचित माया−मोह के विकारों से बचे रहते हैं।
पूर्ण सन्तुलित व्यक्ति मानसिक उद्वेगों से मुक्त रहता है। उद्वेग एक प्रकार का उफान है, मन में उठने वाला विद्रोह है। यह मन की असाधारण अशान्त स्थिति है। उद्वेग में मनुष्य का शरीर एक प्रकार की कम्पनों से परिपूर्ण हो उठता है और वह थरथराहट से भरा रहता है। उद्वेग में धैर्य नष्ट हो जाता है, क्रोध ऊँचा उठ आता है और व्यर्थ की शंकाएँ बुद्धि को भ्रष्ट कर देती हैं। भय, चिन्ता, ईर्ष्या, लोभ, वासना के ताण्डव विवेक को अपना कार्य नहीं करने देते। वही मन सन्तुलित हो जाने पर स्थिर बुद्धि ग्रहण करता है, प्रसन्न और उदार बनता है, सन्तुष्ट और शान्त बनता है। उसे भविष्य से बड़ी बड़ी आशाएँ होती हैं।
.... क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति, फरवरी 1955 पृष्ठ 12
कायाकल्प का स्वरुप |
लेखक के व्यक्तित्व की पहचान |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 14 November 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! आज के दिव्य दर्शन 14 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 14 November 2024 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
”गायत्री मंत्र भारतीय संस्कृति का बीज मंत्र है।” बीज छोटा सा होता है और वृक्ष उसका विशाल बन करके खड़ा हो जाता है यह मंत्र बीज और इसमें हिंदू धर्म का सार्वभौम ज्ञान और विज्ञान का जो पक्ष है वह दोनों के दोनों में भरे हुए पड़े हैं एक ज्ञान वाला भाग है और विज्ञान वाला भाग है। दोनों ही भाग हैं। ज्ञान वाला भाग क्या है? ज्ञान वाला भाग वह है जिसको हम ब्रह्मविद्या कहते हैं, दर्शन कहते हैं, तत्वज्ञान कहते हैं, विचारणा कहते हैं। यह उसका ज्ञान वाला भाग है गायत्री का। गायत्री छोटा सा धर्मशास्त्र है। इससे बड़ा धर्मशास्त्र, इससे बड़ा अध्यात्म शास्त्र, इससे छोटा धर्मशास्त्र इससे छोटा अध्यात्म शास्त्र दुनिया में कोई नहीं हो सकता है। गीता के बारे में कहा जाता है गीता में 700 श्लोक हैं 700 श्लोक हैं और 700 श्लोकों का सबसे छोटा वाला धर्मशास्त्र है ऐसे कहा जाता है लेकिन गायत्री मंत्र में तो 24 अक्षर हैं वह धर्मशास्त्र और भी छोटा है और वह सार्वभौम है, सार्वभौम है।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
मनुष्य उतना तुच्छ नहीं है जितना कि वह अपने को समझता है। वह सृष्टा की सर्वोपरि कलाकृति है। न केवल वह प्राणियों का मुकुटमणि है वरन् उसकी उपलब्धियाँ भी असाधारण हैं। प्रकृति की पदार्थ सम्पदा उसके चरणों पर लोटती है। प्राणि समुदाय उसका वशवर्ती और अनुचर है। उसकी न केवल संरचना अद्भुत है वरन् इन्द्रिय समुच्चय की प्रत्येक इकाई अजस्र आनन्द-उल्लास हर जगह उड़ेलते रहने की विशेषताओं से सम्पन्न है। ऐसा अद्भुत शरीर इस सृष्टि में कहीं भी, किसी भी जीवधारी के हिस्से नहीं आया।
मनः संस्थान उससे भी विलक्षण है। जहाँ अन्य प्राणी मात्र अपने निर्वाह तक की सोच पाते हैं, वहाँ मानवी मस्तिष्क भूत-भविष्य का तारतम्य मिलाते हुए वर्तमान का श्रेष्ठतम सदुपयोग कर सकने में समर्थ है। ज्ञान और विज्ञान के दो पंख उसे ऐसे मिल हैं जिनके सहारे वह लोक-लोकान्तरों का परिभ्रमण करने, दिव्य लोक तक पहुँचने का अधिकार जमाने में समर्थ है।
इतना सब होते हुए भी स्वयं को तुच्छ मान बैठना एक विडम्बना ही है। यह दुर्भाग्य जिस कारण उस पर लदता है, वह है आत्म-विश्वास की कमी। अपने ऊपर भरोसा न कर पाने के कारण वह समस्याओं को सुलझाने, कठिनाइयों से उबरने और सुखद सम्भावनाओं को हस्तगत करने में दूसरों का सहारा तकता है। दूसरे कहाँ इतने फालतू होंगे कि हमारी सहायता के लिए दौड़ पड़ें। बात तभी बनती है, जब मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा होता है, अपनी क्षमताओं पर भरोसा करके, अपने साधनों व सूझ-बूझ के सहारे आगे बढ़ने का प्रयत्न करता है। यह भली-भाँति समझा जाना चाहिए कि आत्म-विश्वास संसार का सबसे बड़ा बल है, एक शक्तिशाली चुम्बक है जिसके आकर्षण से अनुकूलताएँ स्वयं खिंचती चली आती हैं।
अखण्ड ज्योति, जुलाई 1983
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