Wednesday 30, April 2025
शुक्ल पक्ष तृतीया, बैशाख 2025
पंचांग 30/04/2025 • April 30, 2025
बैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | तृतीया तिथि 02:12 PM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र रोहिणी 04:18 PM तक उपरांत म्रृगशीर्षा | शोभन योग 12:01 PM तक, उसके बाद अतिगण्ड योग | करण गर 02:12 PM तक, बाद वणिज 12:43 AM तक, बाद विष्टि |
अप्रैल 30 बुधवार को राहु 12:14 PM से 01:53 PM तक है | 03:14 AM तक चन्द्रमा वृषभ उपरांत मिथुन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:39 AM सूर्यास्त 6:49 PM चन्द्रोदय 7:15 AM चन्द्रास्त 10:13 PM अयनउत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - बैशाख
तिथि
- शुक्ल पक्ष तृतीया
- Apr 29 05:31 PM – Apr 30 02:12 PM
- शुक्ल पक्ष चतुर्थी
- Apr 30 02:12 PM – May 01 11:23 AM
नक्षत्र
- रोहिणी - Apr 29 06:47 PM – Apr 30 04:18 PM
- म्रृगशीर्षा - Apr 30 04:18 PM – May 01 02:20 PM

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 30 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!(शानदार जिन्दगी जिएँ)
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
मित्रों! दीपक जब हम जलाते हैं, ये विचारणा जो मैं आपको दे रहा हूँ, ये विचारणाएं आपके मस्तिष्क में गूँजती रहें, गूँजती रहें, गूँजती रहें। दीपक आप जलाते चले जाएं और ये विचार करते चले जाएं। हमारे, हमारी छगाम जैसी हैसियत और औकात हमारे भीतर, हमारे भीतर उसने चिकनाई जो भरी हुई है, लबालब, चिकनाई भरी हुई है, और हम अपने आपको जलाते हैं, जला करके रोशनी पैदा करते हैं, दिशायें देते हैं।
रोशनी कैसे पैदा करते हैं, जैसे प्रकाश स्तम्भ बीच समुद्र में जलते रहते हैं और जल करके निकलने वाली राहों को, निकलने वाली नावों को, निकलने वाला रास्ता बताते रहते हैं। आप इधर से मत जाना, इधर से जाना, इधर से मत जाना, इधर से जाना। रास्ता बताते रहते हैं और स्वयं रात भर प्रकाश स्तम्भ, लाइट हाउस जलते रहते हैं। सितारे ऊपर रात में जलते रहते हैं, प्रजलते रहते हैं, और हमको निकलने वालों को रास्ता बताते रहते हैं। आप इधर से चले जाइए, आप इधर से चले जाइए।
आपका क्या फायदा? हमारा यही फायदा है कि आपको ठोकर नहीं लगे और आराम से रास्ते पर चले जाएं, इसलिए हम जलते रहते हैं। कौन जलता रहता है? तारे जलते रहते हैं और बच्चे, छोटे वाले बच्चे उनके लिए धन्यवाद देते रहते हैं। "थैंक यू फार अस टिनी स्पॉट ट्विंकिल ट्विंकिल लिटिल स्टार, हेल्प द ट्रैवलर इन द डार्क, हाऊ आई वंडर व्हाट यू आर, अप एबव द वल्र्ड सो हाई, लाइक ए डायमंड इन द स्काई।"
आसमान में चमकने वाले सितारे! चमको, चमको, तुम ऊपर चमकते हो, लेकिन तुम्हारी वजह से हमको रास्ता मिलता है, हम राहत पा सकते हैं। राजा हरिश्चंद्र सितारे की तरह जले, जले और गांधी ने, गांधी ने उनका ड्रामा देखा और ये कहा हम भी जलेंगे, इसी तरीके से गांधी ने उसी तारे को देख करके, राजा हरिश्चंद्र जैसे तारे को देख करके निश्चय किया हम ऐसी शानदार जिंदगी जियेंगे।
बेटे, दीपक जलाने से मतलब हमारा ये है कि हम जलें और दूसरों को जलने के लिए प्रोत्साहित करें। हम जिंदगी में रोशनी पैदा करें, रोशनी की जिंदगी जियें और दूसरों को रोशनी दें। ये विचार दीपक जलाते समय होना चाहिए।
अखण्ड-ज्योति से
इस प्रकार जिस प्रकार का विश्वास और जिस प्रकार के विचार लेकर मनुष्य अपने भविष्य के प्रति उपासना करता है, उसी प्रकार के तत्त्व उसकी जीवन परिधि में सजग और सक्रिय हो उठते हैं। अतएव मनुष्य को सदैव ही कल्याणकारी चिन्तन ही करना चाहिए। निराशापूर्ण चिन्तन जीवन के उत्थान और विश्वास के लिए अच्छा नहीं होता।
दुःख मनाने से दुःख के कारणों का निवारण नहीं हो सकता। दुःख के कारण उद्विग्न और मलीन रहने के कारण मन की शक्तियाँ नष्ट होती हैं। अधोगत व्यक्ति के भौतिक साधन प्रायः नगण्य हो जाते हैं। उस स्थिति में उसके पास मनोबल के सिवाय अन्य कोई साधन नहीं रह जाता। मनोबल का साधन कुछ कम बड़ा साधन नहीं होता। मनोबल के बने रहने पर मनुष्य में प्रसन्नता, विश्वास और उत्साह बना रहता है। इन गुणों को साथ लेकर जब किसी स्थान पर व्यवहार किया जाता है तो दूसरों पर उसके धैर्य सहिष्णुता और साहस का प्रभाव पड़ता है। लोग उसे एक असामान्य व्यक्ति मानने लगते हैं। उन्हें विश्वास रहता है कि इसको दिया हुआ सहयोग सार्थक होगा। यह परिस्थितियों से हार न मानने वाला दृढ़ पुरुष है। इस प्रतिक्रिया से लोग उस व्यक्ति की ओर स्वतः आकर्षित हो उठते हैं—ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार उपासक की ओर परमात्मा की करुणा आकर्षित हो उठती है।
विगत वैभव का सोच करना किसी प्रकार भी उचित नहीं। क्योंकि अतीत का चिन्तन न तो वर्तमान में कोई सहायता करता है और न भविष्य का निर्माण। बल्कि वह उस व्यामोह को और भी सघन तथा दृढ़ बना देता है, जिसके अधीन मनुष्य विगत वैभव का सोच किया करते हैं। उत्थान अथवा अवनति के माया जाल से बचने के लिए आवश्यक है कि उनके प्रति व्यामोह के अंधकार से बचे रहा जाय। इस सत्य में तर्क की जरा भी गुँजाइश नहीं है कि संसार परिवर्तन के चक्र से बँधा हुआ घूम रहा है।
यहाँ पर कोई भी सदैव एक जैसी स्थिति के प्रति आश्वस्त रहने का अधिकार नहीं रखता। उसे परिवर्तन का अटूट नियम सहन ही करना पड़ेगा। यह सोचकर इस सत्य को स्वीकार करना ही होगा कि पहले गरीब थे, फिर अमीरी आई और अब उसी चक्र के अनुसार पुनः गरीबी आ गई है। पुनरपि यह निश्चित है कि यदि पूर्ववत पुरुषार्थ का प्रमाण दिया जाए तो संपन्नता निश्चित है। इस सहज संयोग में रहते हुए सम्पन्नता, विपन्नता से विचलित होना किसी प्रकार भी बुद्धिसंगत नहीं है।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1970 पृष्ठ 57
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