Wednesday 15, January 2025
कृष्ण पक्ष द्वितीया, माघ 2025
पंचांग 15/01/2025 • January 15, 2025
माघ कृष्ण पक्ष द्वितीया, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), पौष | द्वितीया तिथि 03:23 AM तक उपरांत तृतीया | नक्षत्र पुष्य 10:28 AM तक उपरांत आश्लेषा | प्रीति योग 01:46 AM तक, उसके बाद आयुष्मान योग | करण तैतिल 03:17 PM तक, बाद गर 03:23 AM तक, बाद वणिज |
जनवरी 15 बुधवार को राहु 12:26 PM से 01:43 PM तक है | चन्द्रमा कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:18 AM सूर्यास्त 5:35 PM चन्द्रोदय 7:06 PM चन्द्रास्त 8:58 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु शिशिर
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - माघ
- अमांत - पौष
तिथि
- कृष्ण पक्ष द्वितीया - Jan 15 03:21 AM – Jan 16 03:23 AM
- कृष्ण पक्ष तृतीया - Jan 16 03:23 AM – Jan 17 04:06 AM
नक्षत्र
- पुष्य - Jan 14 10:17 AM – Jan 15 10:28 AM
- आश्लेषा - Jan 15 10:28 AM – Jan 16 11:16 AM
मन से मन का योग | Man Se Man Ka Yog
स्वामी विवेकानंद प्रारंभ से ही एक मेधावी छात्र थे और सभी लोग उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे। जब वो अपने साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते थे। एक दिन कक्षा में वो कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आए और पढ़ाना शुरू कर दिया। मास्टर जी ने अभी पढऩा शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी।कौन बात कर रहा है? मास्टर जी ने तेज आवाज़ में पूछा। सभी छात्रों ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ इशारा कर दिया। मास्टर जी क्रोधित हो गए।
उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबधित प्रश्न पूछने लगे। जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया। तब अंत में मास्टर जी ने स्वामी जी से भी वही प्रश्न किया, स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों , उन्होंने आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया। यह देख मास्टर जी को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात-चीत में लगे हुए थे।फिर क्या था।
उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बेच पर खड़े होने लगे, स्वामी जी ने भी यही किया। मास्टर जी बोले – नरेन्द्र तुम बैठ जाओ!नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था। स्वामी जी ने आग्रह किया। सभी उनकी सच बोलने की हिम्मत देख बहुत प्रभावित हुए।
स्वामी विवेकानन्द के जीवन के प्रेरक प्रसंग
न मद, न दीनता, Na Mad Na Dinata
आलसी, प्रमादी उन्नति नहीं कर सकते। गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
अमृतवाणी:- गायत्री मंत्र की व्याख्या भाग 4 | गायत्री मंत्र श्रद्धा का सशक्त रूप
अब युग की रचना के लिये ऐसे व्यक्तियों की ही आवश्यकता है जो वाचालता और प्रोपेगैण्डा से दूर रह कर अपने जीवनों को प्रखर एवं तेजस्वी बना कर अनुकरणीय आदर्श उपस्थित करें और जिस तरह चन्दन का वृक्ष आस-पास के पेड़ों को सुगन्धित कर देता है, उसी प्रकार अपनी उत्कृष्टता से अपना समीपवर्ती वातावरण भी सुरभित कर सकें। अपने प्रकाश से अनेकों को प्रकाशवान कर सकें।
धर्म को आचरण में लाने के लिये निस्सन्देह बड़े साहस और बड़े विवेक की आवश्यकता होती है। कठिनाइयों का मुकाबला करते हुये सदुद्देश्य की ओर धैर्य और निष्ठापूर्वक बढ़ते चलना मनस्वी लोगों का काम है। ओछे और कायर मनुष्य दस-पाँच कदम चल कर ही लड़खड़ा जाते हैं। किसी के द्वारा आवेश या उत्साह उत्पन्न किये जाने पर थोड़े समय श्रेष्ठता के मार्ग पर चलते हैं पर जैसे ही आलस्य प्रलोभन या कठिनाई का छोटा-मोटा अवसर आया कि बालू की भीत की तरह औंधे मुँह गिर पड़ते हैं। आदर्शवाद पर चलने का मनोभाव देखते-दीखते अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे ओछे लोग अपने को न तो विकसित कर सकते हैं और न शान्तिपूर्ण सज्जनता की जिन्दगी ही जी सकते हैं।
फिर इनसे युग-निर्माण के उपयुक्त उत्कृष्ट चरित्र उत्पन्न करने की आशा कैसे की जाय? आदर्श व्यक्तियों के बिना दिव्य समाज की भव्य रचना का स्वप्न साकार कैसे होगा? गाल बजाने पर उपदेश लोगों द्वारा यह कर्म यदि सम्भव होता सो वह अब से बहुत पहले ही सम्पन्न हो चुका होता। जरूरत उन लोगों की है जो आध्यात्मिक आदर्शों की प्राप्ति को जीवन की सब से बड़ी सफलता अनुभव करें और अपनी आस्था की सच्चाई प्रमाणित करने के लिये बड़ी से बड़ी परीक्षा का उत्साहपूर्ण स्वागत करें।
आदर्श व्यक्तित्व ही किसी देश या समाज की सच्ची समृद्ध माने जाते हैं। जमीन में गढ़े धन की चौकसी करने वाले, साँपों की तरह तिजोरी में जमा नोटों की रखवाली करने वाले कंजूस तो गली कूँचों में भरे पड़े हैं। ऐसे लोगों से कोई राष्ट्र न तो महान बनता और न शक्तिशाली। राष्ट्रीय प्रगति के एकमात्र उपकरण प्रतिभाशाली चरित्रवान व्यक्तित्व ही होते हैं। हमें युग-निर्माण के लिए ऐसी ही आत्माएँ चाहिये। इनके अभाव में अन्य सब सुविधा साधन होते हुए भी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति में तनिक भी प्रगति न हो सकेगी।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति- जुलाई 1964 पृष्ठ 56
युग निर्माण की पुण्य प्रक्रिया | Yug Nirman Ki Punya Prakriya
प्रयागराज महाकुंभ में भोजनालय का शुभारंभ
प्रयागराज महाकुम्भ में यज्ञशाला व प्रदर्शनी का निर्माण कार्य
भगवान की भक्ति का उल्लास | Bhagwan Ki Bhakti ka Ullas
इस संसार की श्रेष्ठतम विभूति-ज्ञान | Is Sansar Ki Shresthatam Vibhuti
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 15 January 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हर आदमी को मिलजुलकर काम करना चाहिए। आपके घर में मिलजुलकर काम करने की आदत नहीं है, तो आप आदत को शुरू कीजिए। स्त्रियाँ बेचारी अलग से काम करती रहती हैं; मर्दों का कोई उसमें सहयोग नहीं है। मर्द अपना काम अलग करते रहते हैं; स्त्रियों का कोई सहयोग नहीं है। बच्चे अपने अलग खेलते रहतें है, उनके माँ-बाप के कामों में हाथ बँटाने का कोई सहयोग नहीं है। बड़ा भाई घूमता तो रहता है; ताश तो खेलता रहता है; रेडियो तो सुनता रहता है, पर इस बात का सहकार नहीं है कि हमारे छोटे भाई-बहन, जिसके लिए ट्यूशन लगाया नहीं जा सकता, फालतू समय में अपने छोटे भाई और बहनों को पढ़ाना शुरू करें। बुड्ढे माँ-बाप है; बुड्ढे घर के बाबा-दादी है; उनको छोटे-छोटे कामों के लिए दूसरों की सहायता की जरूरत पड़ती है।बड़ों को अपने बुड्ढों की मदद करनी चाहिए। बच्चों को अपने बड़ों की मदद करनी चाहिए। इस तरीके से घर में वातावरण सहकारिता का बनाया जाए तो आप विश्वास रखिए, जो आदमी आपके घर के मेंबर हैं, जब आप बड़े होंगे, तो एक सहकारी व्यक्ति साबित होंगे।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
विज्ञान-विज्ञान की उपलब्धियाँ आश्चर्यजनक हैं। उसने मानवी सुख सुविधाओं में आश्चर्यजनक अभिवृद्धि की है। पर यह भी सही है कि उसके दुरुपयोग से होने वाली हानियाँ भी कम नहीं उठानी पड़ रही हैं। अस्त्रों के उत्पादन में विशेषतया गैसें, किरणें एवं अणु विस्फोटजन्य अस्त्रों ने तो संसार के अस्तित्व को ही संकट में डालने वाली विभीषिका उत्पन्न कर दी है। यदि यह शोध, आविष्कार सृजनात्मक प्रयोजनों तक ही सीमित रहे, तो उसका प्रतिफल धरती पर स्वर्गीय परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है।
ध्वंसात्मक उपकरण जुटाने में जितने साधन खपाये जा रहे हैं, यदि उन्हें मानवी अभावों और शोक-सन्तापों की निवृत्ति में लगा दिया जाय, तो उसका प्रतिफल इस संसार को स्वर्गोपम बनाने में हो सकता है। समुद्र के खारे पानी से मीठा जल प्राप्त किया जा सकता है। जमीन के नीचे बहने वाली विशाल नदियों का जल धरती पर लाया जा सकता है और सारी दुनियाँ सचमुच शस्यश्यामला बन सकती है। कृषि, पशुपालन, बागवानी, वन सम्पदा, स्वास्थ्य सम्वर्धन और मस्तिष्कीय विकास की दिशा में विज्ञान को अभी बहुत काम करना बाकी है। प्रकृति के प्रकोपों से लोहा लेने के साधन जुटाने में, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, महामारी, भूकम्प, बाढ़, तूफान, शीत-ताप की असहनीयता का सामना करने योग्य शक्ति का उपार्जन हो सकता है। वाहनों को सरल एवं सस्ता बनाया जा सकता है, संचार साधनों के विस्तार की अभी बहुत गुंजायश है।
शासन सत्ता-राज सत्ता जिनके हाथ में इन दिनों है अथवा अगले दिनों आने वाली है, उन्हें संकीर्ण राष्ट्रीयता के अपने प्रिय क्षेत्र या वर्ग के लोगों को लाभान्वित करने की बात छोड़कर समस्त विश्व में समान रूप से सुख शान्ति की बात सोचनी होगी और समस्त संसार को एक परिवार बनाने की नीति अपना कर प्रकृति प्रदत्त साधनों एवं मानवी उपार्जन को समान रूप से सर्वसाधारण के लिए उपलब्ध करना होगा। युद्धों की भाषा में सोचना बन्द कर न्याय का आधार स्वीकार करना होगा। वर्गभेद और वर्णभेद की जड़े उखाड़नी होंगी।
.....क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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