Friday 10, January 2025
शुक्ल पक्ष एकादशी, पौष 2025
पंचांग 10/01/2025 • January 10, 2025
पौष शुक्ल पक्ष एकादशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), पौष | एकादशी तिथि 10:19 AM तक उपरांत द्वादशी | नक्षत्र कृत्तिका 01:45 PM तक उपरांत रोहिणी | शुभ योग 02:36 PM तक, उसके बाद शुक्ल योग | करण विष्टि 10:20 AM तक, बाद बव 09:20 PM तक, बाद बालव |
जनवरी 10 शुक्रवार को राहु 11:08 AM से 12:24 PM तक है | चन्द्रमा वृषभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:18 AM सूर्यास्त 5:31 PM चन्द्रोदय 1:59 PM चन्द्रास्त 4:46 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - पौष
तिथि
- शुक्ल पक्ष एकादशी - Jan 09 12:22 PM – Jan 10 10:19 AM
- शुक्ल पक्ष द्वादशी - Jan 10 10:19 AM – Jan 11 08:21 AM
नक्षत्र
- कृत्तिका - Jan 09 03:07 PM – Jan 10 01:45 PM
- रोहिणी - Jan 10 01:45 PM – Jan 11 12:29 PM
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 10 January 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
कुटुंब में क्या-क्या सीखा जा सकता है? लोक-व्यवहार, जिसको शिष्टाचार कहते हैं, अनेक स्तर के लोगों के साथ में अनेक प्रकार के व्यवहार कैसे किये जा सकते हैं, इसको आप छोटी प्रयोगशाला में देख सकते हैं। कोई बच्चे गड़बड़ी भी फैलाते हैं; कोई बात भी हो जाती है; कोई नाराज भी हो जाता है। नाराज हुए आदमी को समझाया कैसे जाना चाहिए और मनाया कैसे जाना चाहिए? गड़बड़ी पैदा करने वाले आदमियों के साथ सहस्रों के साथ में टेढ़ी आँख कैसे करनी चाहिए? उनको धमकाना कैसे चाहिए?अपनी नाराजगी जाहिर कैसे करनी चाहिए? ये बातें आप कुटुंब में रह करके सीख सकते हैं। बाहरवाले लोगों के साथ में सीखेंगे तो गड़बड़ी फैल जाएगी और झगड़े खड़े हो जाएँगे और आपको आदमी तलाश करने पड़ेंगे। फिर बार-बार चक्कर कैसे काटेंगे उनके पास अथवा वो कैसे आपके पास आएँगे? इसका अच्छा तरीका और सहज तरीका यही है कि अपने कुटुंब में आप अपने आप के कई वो बातें सीखें और सारे कुटुंब को वो बातें सिखाएँ, जो आदमी के मानवीय गुणों के साथ में संबद्ध हैं।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
आज उस समय की उन मान्यताओं का समर्थन नहीं किया जा सकता जिनमें संतान वालों को सौभाग्यवान और संतानरहित को अभागी कहा जाता था। आज तो ठीक उलटी परिभाषा करनी पड़ेगी। जो जितने अधिक बच्चे उत्पन्न् करता है, वह संसार में उतनी ही अधिक कठिनाई उत्पन्न करता है और समाज का उसी अनुपात से भार बढ़ाता है, जबकि करोड़ों लोगों को आधे पेट सोना पड़ता है, तब नई आबादी बढ़ाना उन विभूतियों के ग्रास छीनने वाली नई भीड़ खड़ी कर देना है। आज के स्थित में संतानोत्पादन को दूसरे शब्दों में समाज द्रोह का पाप कहा जाय तो तनिक भी अत्युक्ति नहीं होगी।
राजनैतिक परतंत्रता दूर हो गई, पर आज जीवन के हर क्षेत्र में बौद्धिक पराधीनता छाई हुई है। गरीबी, बीमारी, अशिक्षा, अनैतिकता, अधार्मिकता, अनीति, उच्छृंखलता, नशेबाजी आदि अगणित दुष्प्रवृत्तियों से लोहा लेने की आवश्यकता है। यह कार्य भी यदि कोई पूरा कर सकता है तो वह नई पीढ़ी ही हो सकती है। अगले दिनों जिन प्रभा संपन्न महापुरुषों की राष्ट्र को आवश्यकता पड़ेगी, वह वर्तमान पीढ़ी से ही निकलेंगे, पर यह कसौटी यह होगी कि वे सामाजिक क्रान्ति के लिए कितनी हिम्मत रखते हैं। दहेज विरोधी आन्दोलन उसका एक आवश्यक अंग है, इससे युवकों की विचारशीलता एवं समाज के प्रति दर्द का प्रमाण मिलेगा।
अपनी तपश्चर्या और ईमानदारी में कहीं कोई कमी ही होगी जिसके कारण जिन व्यक्तियों के साथ पिछले ढेरों वर्षों से संबन्ध बनाया, उनमें कोई आध्यात्मिक साहस उत्पन्न न हो सका। वह भजन किस काम का, जिसके फलस्वरूप आत्मनिर्माण एवं परमार्थ के लिए उत्साह उत्पन्न न हो ।। किन्हीं को हमने भजन में लगा भी दिया है पर उनमें भजन का प्रभाव बताने वाले उपरोक्त दो लक्षण उत्पन्न न हुए हों तो हम कैसे माने कि उन्हें सार्थक भजन करने की प्रक्रिया समझाई जा सकी? हमारा परिवार संगठन तभी सफल कहा जा सकता था जब उसमें ये सम्मिलित व्यक्ति उत्कृष्टता और आदर्शवादिता की कसौटी पर खरे सिद्ध होते चलते। अन्यथा संख्या वृद्धि की विडम्बना से झूँठा मन बहलाव करने से क्या कुछ बनेगा?
आपको वह काम करना चाहिए, जो कि हमने किया है। हमने आस्था जगाई, श्रद्धा जगाई, निष्ठा जगाई। निष्ठा, श्रद्धा और आस्था किसके प्रति जगाई? व्यक्ति के ऊपर? व्यक्ति तो माध्यम होते हैं। हमारे प्रति, गुरुजी के प्रति श्रद्धा है। बेटा! यह तो ठीक है, लेकिन वास्तव में सिद्धांतों के प्रति श्रद्धा होती है। हमारी सिद्धान्तों के प्रति निष्ठा रही। वहाँ से जहाँ से हम चले, जहाँ से विचार उत्पन्न किया है, वहाँ से लेकर आजीवन निरन्तर अपनी श्रद्धा की लाठी को टेकते-टेकते यहाँ तक चले आए। यदि सिद्धान्तों के प्रति हम आस्थावान न हुए होते तो सम्भव है कि कितनी बार भटक गए होते और कहाँ से कहाँ चले गए होते और हवा का झोंका उड़ाकर हमको कहाँ ले गया होता? लोभों के झोंके, मोहों के झोंके, नामवरी के झोंके, यश के झोंके, दबाव के झोंके ऐसे हैं कि आदमी को लम्बी राह पर चलते हुए भटकने के लिए मजबूर कर देते हैं और कहीं से कहीं घसीट ले जाते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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