Sunday 12, January 2025
शुक्ल पक्ष चतुर्थी, पौष 2025
पंचांग 12/01/2025 • January 12, 2025
पौष शुक्ल पक्ष चतुर्दशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), पौष | चतुर्दशी तिथि 05:03 AM तक उपरांत पूर्णिमा | नक्षत्र म्रृगशीर्षा 11:24 AM तक उपरांत आद्रा | ब्रह्म योग 09:09 AM तक, उसके बाद इन्द्र योग 06:44 AM तक, उसके बाद वैधृति योग | करण गर 05:46 PM तक, बाद वणिज 05:03 AM तक, बाद विष्टि |
जनवरी 12 रविवार को राहु 04:15 PM से 05:32 PM तक है | चन्द्रमा मिथुन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:18 AM सूर्यास्त 5:32 PM चन्द्रोदय 3:52 PM चन्द्रास्त 6:50 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - पौष
तिथि
- शुक्ल पक्ष चतुर्दशी - Jan 12 06:34 AM – Jan 13 05:03 AM
- शुक्ल पक्ष पूर्णिमा - Jan 13 05:03 AM – Jan 14 03:56 AM
नक्षत्र
- म्रृगशीर्षा - Jan 11 12:29 PM – Jan 12 11:24 AM
- आद्रा - Jan 12 11:24 AM – Jan 13 10:38 AM
प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा
आत्मोन्नति का उपाय | Aatamounnti Ka Upay
मनोबल द्वारा रोग का निवारण, Manobal Dwara Rogno ka Nivaran
लोहड़ी के इस पावन अवसर पर आपको ढेर सारी खुशियाँ और समृद्धि मिले,
Illuminate Every Home | Shantikunj Rishi Chintan | The Angelic Light Of Rishi Thought
सफल बना देगी स्वामी विवेकानंद की ये 10 बाते |
खेतडी नरेश ने स्वामी विवेकानंद को एक बार अपनी सभा में आमंत्रित किया। स्वामीजी वहाँ गये भी और लोगों को तत्त्वज्ञान का उपदेश भी किया। समाज सेवा का प्रसंग आया और वे समझाने लगे कि मनुष्य छोटा हो या बड़ा, शिक्षित हो या अशिक्षित उसका अस्तित्व समाज में टिका हुआ है, इसलिए बिना किसी भेदभाव के ईश्वर उपासना की तरह ही समाज-सेवा का व्रत भी पालन करना चाहिए। उसमें कोई व्यक्ति छोटा नहीं होता, वरन् उपासना की तरह सेवा भी मानव अंतकरण को विशाल ही बनाती है।
आगे की बात स्वामी जी पूरी नहीं कर सके, क्योंकि उधर से नर्तकियों का एक दल आ पहुँचा। सामंतों का स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है कि उनका ध्यान उधर चला गया, इसलिये प्रवचन अपने आप समाप्त हो गया। इधर नर्तकियों के नृत्य की तैयारी होने लगी। जैसे ही एक नर्तकी ने सभा मंडप में प्रवेश किया कि स्वामी जी का मन धृणा और विरक्ति से भर गया। वे उठकर वहाँ से चल दिए। स्वामी जी की यह उदासीनता और किसी के लिए कष्टकारक प्रतीत हुई हो या नही, पर उस नर्तकी के हृदय को आघात अवश्य पहुँचा।
घृणा चाहे जिस व्यक्ति के प्रति हो, अच्छी नहीं। बुरे कर्मों का फल कर्ता आप भोगता है, भगवान् की सृष्टि ही कुछ ऐसी है कि खराब काम के दंड से कोई भी बच नहीं सकता, पर यह दंड-व्यवस्था उसी के हाथों तक सीमित रहनी चाहिए, वह सर्वद्रष्टा है पर मनुष्य की पहुँच किसी के सूक्ष्म अंतःकरण तक नहीं, इसलिए उसे केवल कानूनी दण्ड़ का ही अधिकार एक सीमा तक प्राप्त है। घृणा तो दुश्मनी ही पैदा करती है, भले ही वह कोई दलित या अशक्त व्यक्ति क्यों न हो। प्रतिशोध कभी भी अहित कर सकता है। स्वाम
नृत्य प्रारंभ हुआ। नर्तकी ने अलाप किया- "प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो" और वह ध्वनि स्वामी जी के कानों में पडी़। स्वामी जी चौंक पडे। मस्तिष्क में जोर के झटके से विचार उठा-परमात्मा का अवगाहन हम इसीलिये तो करते है कि पाप परिस्थितियों के कारण हमारे अंतकरण कलुषित हुए पडे हैं, हम उनमे निर्मल और निष्पाप बने। सामाजिक परिस्थितियों से कौन बचा है' यह बेचारी नर्तकी ही दोषी क्यों ? मालूम नहीं समाज की किस अवस्था के कारण इस बेचारी को इस वृत्ति का सहारा लेना पडा़ अन्यथा वह भी किसी प्रतिष्ठित घराने की बहू और बेटी होती।
अब तक मस्तिष्क में जो स्थान घृणा ने भर रखा था, वह अब भस्मीभूत हो गया। अब स्वच्छ करुणा और विवेक का उदय हुआ-संसार में व्यक्ति घृणा का पात्र नहीं, वृत्ति को ही धृणित मानना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद वापस लौटे, अपना स्थान पुन-ग्रहण किया। लोगों के मन में उनके प्रति जो श्रद्धा थी वह और द्विगुणित हो उठी। स्वामी जी जब तक नृत्य हुआ, कला की सूक्ष्मता और उससे होने वाली मानसिक प्रसन्नता का अध्ययन करते रहे। विद्यार्थी के समान उन्होंने संपूर्ण रास केवल अध्ययन दृष्टि से देखा, न कोई मोह था न आसक्ति। नृत्य समाप्त होने पर ही वापस अपने डेरे को लौटे।
इतनी भूल सुधार के कारण उन्होंने सभी सभासदो और नर्तकी को भी यह शिक्षा तो दी ही दी कि "व्यक्ति को घृणास्पद मानने का अर्थ यह नहीं कि वृत्ति को भी घृणा न की जाए। उससे तो बचना ही चाहिए। आजीविका के लिए वह नर्तकी कला प्रदर्शन तो करती रही, पर उस दिन उसे स्वामी जी के प्रति श्रद्धा ने वासना से विरक्ति दे दी और उसने आजीवन व्रतशील जीवनयापन किया। सभासदों में से अनेक ने अपनी दोष दृष्टि का परित्याग किया।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
संस्मरण जो भुलाए न जा सकेंगे पृष्ठ 139, 140
स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर कोटि कोटि नमन |
जो हमारे पास है, वह बोया जाए | Jo Hamare Pas Hai Wah Boya Jaye
नवनिर्माण की विचारधारा | Navnirman Ki Vichardhara |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 12 January 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 12 January 2025 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 12 January 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! गायत्री माता मंदिर Gayatri Mata Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 12 January 2025 !!
!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 12 January 2025 !!
!! महाकाल महादेव मंदिर #Mahadev_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 12 January 2025 !!
!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 12 January 2025 !!
!! देवात्मा हिमालय मंदिर Devatma Himalaya Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 12 January 2025 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
ईंट को पकाने के लिए एक गरम अवे की जरूरत है और गरम अवा न हो तब ? तब आप कैसे ईंट पका लेंगे? मनुष्यों को पकाने के लिए घर का वातावरण चाहिए। आपने अगर जिस तरीके से अपनी दुकान को चलाने के लिए व्यापार को चलाने के लिए खेती-बाड़ी को बनाने के लिए अपना इज्जत बढ़ाने के लिए अपनी नेतागिरी बनाने के लिए बहुत से काम किए हैं,उसमें से एक काम अगर आप ये भी कर लें कि हम अपने घर का वातावरण ऐसे बनाएँगे, जिसमें जो कोई भी रहे, उन सबको गरम होने का मौका मिले। आप अपने यहाँ घर में एक ऐसा वातावरण बना सकते हों,जिसमें आदमी समझदारी के साथ जिंदगी जिएँ; ईमानदारी की जिंदगी जिएँ और जिम्मेदारी की जिंदगी जिएँ। जिम्मेदारी की जिंदगी एक ईमानदारी की जिंदगी दो समझदारी की जिंदगी तीन ये ऐसी जिंदगियाँ हैं कि अगर किसी को जीने का मौका मिले,आप विश्वास मानिए, ये आदमी बड़ा मजबूत, बड़ा समर्थ,बड़ा सही और सफल हो करके रहेगा।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
(२) शिक्षा एवं साहित्य-व्यक्ति की समस्त गरिमा उसकी मनःस्थिति पर, विचार प्रक्रिया पर निर्भर है। इस जीवन प्राण के मर्म स्थल को शिक्षा एवं साहित्य के माध्यम से ही परिष्कृत बनाया जा सकता है। व्यक्ति और समाज के निर्माण में शिक्षा और साहित्य की महत्ता सर्वविदित है। युग परिवर्तन की इन घड़ियों में दोनों माध्यमों का समुचित उपयोग किया जाना चाहिए।
सरकारों को अपने ढंग से काम करने देना चाहिए। वर्तमान वातावरण में उनके लिये यह कठिन ही है। नये युग के अनुरूप मस्तिष्क ढालने वाली वाली शिक्षा पद्धति के बारे में वे सही ढंग से कुछ सोच सकें और वैसा ही कुछ सही कदम उठा सकें। सरकारें भौतिक जानकारियाँ देने वाली जो शिक्षा प्रक्रिया चला रही हैं उससे लाभ उठाना चाहिये, किन्तु भाव परिष्कार की पूरक धर्म शिक्षा, नैतिक शिक्षा, भावनात्मक नव निर्माण की शिक्षा पद्धति का संचालन जनता स्तर पर होना चाहिए। प्रौढ़ शिक्षा का कार्य भी जनता को ही अपने हाथ में लेना चाहिए। ये सरकारी स्तर पर नहीं, जन स्तर पर ही हल हो सकता है। विवाहित महिलाओं की शिक्षा का प्रबन्ध सरकारी विद्यालय कर सकेंगे, यह आशा रखनी व्यर्थ है।
दृष्टिकोण का परिष्कार, आज की परिस्थितियों में चरित्र निर्माण का व्यवहार पक्ष, समाज संरचना की अगणित समस्याएँ और हल, विश्व परिवार के लिए बाध्य करने वाले प्रचण्ड वातावरण का निर्माण, यह सब प्रयोजन जन स्तर के विद्यालय ही पूरा कर सकेंगे। पूरे या अधूरे समय के-जहाँ वे जिस स्तर पर भी खुल सकें खोले जायें। जनता अपनी रोटी, कपड़ा, दवा, मनोरंजन आदि का खर्च स्वयं उठाती है, इसके लिए सरकार से अनुदान नहीं माँगती, तो फिर भावनात्मक नव-निर्माण की शिक्षा के लिए सरकार का मुँह ताका जाय, इसकी क्या आवश्यकता है?
साहित्यकारों से इसी दिशा में लेखनी उठाने के लिए कहा जा रहा है। कवियों से मूर्छना को जागृति में परिणित कर सकने वाले अग्नि गीत लिखने के लिए कहा गया है। कहानीकार कथा माध्यमों से हृदयग्राही चित्रण प्रस्तुत कर सकते हैं। पत्रकार अपने पत्र-पत्रिकाओं में इस प्रकार के समाचारों और लेखों को स्थान देना आरम्भ करें। प्रकाशक ऐसी ही पुस्तकें छापें। संसार में लगभग ६०० भाषाएँ हैं। भारत में ही सरकारी मान्यता प्राप्त १४ भाषाएँ है और इससे कई गुनी संख्या उन भाषाओं की है जिन्हें मान्यता प्राप्त नहीं है। इन सभी भाषाओं में प्रचुर साहित्य लिखा जाना, अनुवादित किया जाना, छापा जाना और विक्रय किया जाना आवश्यक है। इस प्रकाशन व्यवसाय के लिए पूँजी और प्रतिभा दोनों की ही जरूरत है। मात्र लेखक नहीं प्रकाशक भी जब इस क्षेत्र में उतरेंगे तो उनके परस्पर सहयोग, समन्वय से कुछ काम चलेगा।
.....क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
Newer Post | Home | Older Post |