Friday 20, December 2024
कृष्ण पक्ष पंचमी, पौष 2024
पंचांग 20/12/2024 • December 20, 2024
पौष कृष्ण पक्ष पंचमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | पंचमी तिथि 10:49 AM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र मघा 03:47 AM तक उपरांत पूर्व फाल्गुनी | विष्कुम्भ योग 06:11 PM तक, उसके बाद प्रीति योग | करण तैतिल 10:49 AM तक, बाद गर 11:30 PM तक, बाद वणिज |
दिसम्बर 20 शुक्रवार को राहु 10:59 AM से 12:15 PM तक है | चन्द्रमा सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:13 AM सूर्यास्त 5:17 PM चन्द्रोदय 10:20 PM चन्द्रास्त 11:30 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष पंचमी - Dec 19 10:03 AM – Dec 20 10:49 AM
- कृष्ण पक्ष षष्ठी - Dec 20 10:49 AM – Dec 21 12:21 PM
नक्षत्र
- मघा - Dec 20 01:59 AM – Dec 21 03:47 AM
- पूर्व फाल्गुनी - Dec 21 03:47 AM – Dec 22 06:14 AM
Udaharaon Aur Kathanako Ke Madhyam Se Sikshan
Amrit Varsha Rasanubhuti Dhyan Sadhna
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 20 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
गायत्री मंत्र का हम पूजा करना चाहते थे पर कोई नौकर नहीं मिला इसलिए हमने नहीं कराई अच्छा और हम खाना खाना चाहते थे और हमको खाना खाने के लिए कोई नौकर नहीं मिला सामने 3 दिन से खाना ही नहीं खाया है अच्छा यह बात है सोए नहीं है साहब हम क्या सोए हैं 3 दिन से जग रहे हैं कोई नौकर मिल जाता तो नौकर यह करता और आप स्वयं नहीं कर सकते स्वयं ये काम नहीं करेंगे नहीं साहब महीने भर से नहाए भी नहीं है हम तो क्यों नहीं नहाए कोई नौकर नहीं मिला कोई नौकर नहाया था बदले का हमारे का क्यों भाई कुछ पढ़ते लिखते नहीं हो नहीं साहब हम तो नहीं पढ़ते क्यों कोई नौकर नहीं मिला नौकर जाता है स्कूल और पढ़ाई पढ़कर के बी ए पास हो जाता और सर्टिफिकेट लाकर हमको थमा देता अच्छा यह बात है यह बात नहीं है यह काम कुछ ऐसे हैं जो आपको ही करनी चाहिए जो आपको स्वयं करना चाहिए यह नौकरों के करने के काम नहीं है नौकरों से आप काम कर आएंगे तो वह नौकरों जैसा ही होगा स्वयं आप जाएंगे तो आप स्वयं चले जाएंगे |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
उपरोक्त ध्यान गायत्री उपासना की प्रथम भूमिका में आवश्यक है। भजन के साथ भाव की मात्रा भी पर्याप्त होनी चाहिए। इस ध्यान को कल्पना न समझा जाए, वरन् साधक अपने को वस्तुतः उसी स्थिति में अनुभव करे और माता के प्रति अनन्य प्रेमभाव के साथ तन्मयता अनुभव करे। इस अनुभूति की प्रकटता में अलौकिक आनंद का रसास्वादन होता है और मन निरंतर इसी में लगे रहने की इच्छा करता है। इस प्रकार मन को वश में करने और एक ही लक्ष्य में लगें रहने की एक बड़ी आवश्यकता सहज ही पूरी हो जाती है।
साधना की दूसरी भूमिका तब प्रारंभ होती है, जब मन की भाग-दौड़ बंद हो जाती है और चित्त जप के साथ ध्यान में संलग्न रहने लगता है। इस स्थिति को प्राप्त कर लेते पर चित्त को एक सीमित केंद्र पर एकाग्र करने की और कदम बढ़ाना पड़ता है। उपर्युक्त ध्यान के स्थान पर दूसरी भूमिका में साधक सूर्यमंडल के प्रकाश में गायत्री माता के सुँदर मुख की झाँकी करता है। उसे समस्त विश्व में केवल मात्र एक पीतवर्ण सूर्य ही दीखता है और उसके मध्य में गायत्री माता का मुख हँसता-मुखमंडल को ध्यानावस्था में देखता है। उसे माता के अधरों से, नेत्रों से, कपोलों की रेखाओं से एक अत्यंत मधुर स्नेह, वात्सल्य, आश्वासन, साँत्वना एवं आत्मीयता की झाँकी होती रहती है। वह उस झाँकी होती रहती है। वह उस झाँकी को आनंदविभोर होकर देखता रहता है और सुधि-बुधि भुलाकर भुलाकर चंद्र-चकोर की भाँति उसी में तन्मय होता है।
इस दूसरी भूमिका की सीमा सीमित हो गई। पहली भूमिका में माता-पुत्र दोनों का क्रीड़ा विनोद काफी विस्तृत था। मन को भागने-दौड़ने के लिए उस ध्यान में बहुत बड़ा क्षेत्र पड़ा था। दूसरी भूमिका में वह संकुचित हो गया। सूर्यमंडल के मध्य माता की भावपूर्ण मुखाकृति पहले ध्यान की अपेक्षा काफी सीमित है। मन को एकाग्र करने की परिधि को आत्मिक विकास के साथ-साथ क्रमशः सीमित ही करते जाना होता है।
इस दूसरी भूमिका की सीमा सीमित हो गई। पहली भूमिका में माता-पुत्र दोनों का क्रीड़ा विनोद काफी विस्तृत था। मन को भागने-दौड़ने के लिए उस ध्यान में बहुत बड़ा क्षेत्र पड़ा था। दूसरी भूमिका में वह संकुचित हो गया। सूर्यमंडल के मध्य माता की भावपूर्ण मुखाकृति पहले ध्यान की अपेक्षा काफी सीमित है। मन को एकाग्र करने की परिधि को आत्मिक विकास के साथ-साथ क्रमशः सीमित ही करते जाना होता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति – मई 2005 पृष्ठ 20
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