Monday 23, December 2024
कृष्ण पक्ष अष्टमी, पौष 2024
पंचांग 23/12/2024 • December 23, 2024
पौष कृष्ण पक्ष अष्टमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | अष्टमी तिथि 05:08 PM तक उपरांत नवमी | नक्षत्र उत्तर फाल्गुनी 09:09 AM तक उपरांत हस्त | सौभाग्य योग 07:54 PM तक, उसके बाद शोभन योग | करण कौलव 05:08 PM तक, बाद तैतिल 06:30 AM तक, बाद गर |
दिसम्बर 23 सोमवार को राहु 08:30 AM से 09:45 AM तक है | चन्द्रमा कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:14 AM सूर्यास्त 5:18 PM चन्द्रोदय 12:09 AM चन्द्रास्त 12:22 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष अष्टमी - Dec 22 02:32 PM – Dec 23 05:08 PM
- कृष्ण पक्ष नवमी - Dec 23 05:08 PM – Dec 24 07:52 PM
नक्षत्र
- उत्तर फाल्गुनी - Dec 22 06:14 AM – Dec 23 09:09 AM
- हस्त - Dec 23 09:09 AM – Dec 24 12:17 PM
समाधि और आत्मिक मिलन: समाधि का सत्य | जीवन पथ के प्रदीप
गुरु चेतना के प्रकाश में स्वयं को परखें : गुरु के प्रकाश में स्वयं को पहचाने |
आदि जिज्ञासा शिष्य का प्रथम प्रश्न (गुरु गीता) | Aadi Jigyasa Shishya Ka Pratham Prashn
समाधि और आत्मिक मिलन | समाधि का सत्य* *जीवन पथ के प्रदीप | Jeevan Path Ke Pradeep*
जिज्ञासु व्यक्ति किसी भी बात की तह तक बैठकर उसमें से किसी न किसी प्रकार की उपयोगिता खोज लाता है। जिज्ञासा शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक चारों उन्नतियों की हेतु होती है। मनुष्य को अपनी जिज्ञासा को प्रमादपूर्वक नष्ट नहीं करना चाहिए। उसे विकसित एवं प्रयुक्त करना चाहिए और जिसमें नहीं है, उसे चाहिए कि वह तन्मय एवं गहरे पैठने के अभ्यास से उसे पैदा करे, क्योंकि जिज्ञासा भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में प्रगति एवं उन्नति का आधार बनती है।*
एक बादशाह का एक बहुत ही मुँह लगा नौकर था। वह दिन-रात बादशाह की सेवा में लगा रहता था। एक दिन उसे विचार आया कि वह बादशाह की सेवा में दिन-रात लगा रहता है, तब भी उसे केवल पाँच रुपये ही मिलते हैं और मीर मुँशी जो कभी कुछ नहीं करता पाँच सौ रुपये वेतन पाता है। इस भेद का क्या कारण है? उनने अपने यह उलझन बादशाह को कह सुनाई।*
बादशाह ने हँसकर कह दिया- “किसी दिन मौके पर बतलाऊँगा।“ एक दिन एक घोड़ों का काफिला उसकी सीमा से गुजरा। बादशाह ने अपने सेवक को भेजा कि “जाकर मालूम कर यह काफिला कहाँ जा रहा है?”*
*नौकर गया और आकर बतलाया कि “हुजूर वह काफिला सीमा के कंधार देश जा रहा है।“*
*अब बादशाह ने मीर मुंशी को भेजा। उसने आकर बतलाया कि “यह काफिला काबुल से आ रहा है और कंधार जा रहा है। उसमें पाँच सौ घोड़े और बीस ऊँट भी है। मैंने अच्छी तरह पता लगा लिया है कि वे सब सौदागर हैं और घोड़े बेचने जा रहें हैं। खरीदना चाहें तो कम कीमत पर मिल सकते हैं। मैंने पचास ऐसे घोड़ों को छाँट लिया है, जो नौजवान और बड़ी ही उत्तम नस्ल के हैं।“*
बादशाह ने तुरंत ही पचास घोड़े खरीद लिए, जिससे उसे कम दामों पर अच्छे घोड़े मिल गए। काफिले के विषय में चिंता जाती रही और उन परदेशी सौदागरों पर बादशाह की गुण-ग्राहकता का बड़ अनुकूल प्रभाव पड़ा। बादशाह ने नौकर से कहा- “देखा तुम्हें पाँच रुपये क्यों मिलते हैं और मीर मुँशी को पाँच सौ क्यों?”*
*नौकर ने इस अंतर के रहस्य को समझा और सदा के लिए सावधान हो गया।*
अखण्ड ज्योति Nov 1999 से साभार*
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आज के माता-पिता की जिम्मेदारी | Aaj Ke Mata Pita Ki Jimmedari
आत्मविश्वास की साधना | Atmavishwas Ki Sadhana
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 23 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
ऐसी किताब तो हमने कई और भी पढ़ी है और ऐसे किस्से कहानियां और पढ़े हैं और पढ़े हैं पर व्यक्तित्व कहां है इनके साथ जुड़ा हुआ गीता हमने पढ़ी है गीता आपने पढ़ी है तो श्री कृष्ण जुड़े हैं अगर श्रीकृष्ण को आप निकाल दे तब तब फिर एक और हम पंडित से लिखवायेंगे नई गीता नई गीता लिखवा लीजिए आप उससे भी अच्छी गीता लिखवा देंगे हमारे पंडित जी है संस्कृत के पढ़ाने वाले हैं और हमारे मास्टर साहब उससे अच्छी गीता लिख देंगे हां लिख देंगे लेकिन श्री कृष्ण भगवान को आप लाएंगे कहां से श्री कृष्ण भगवान को गीता के साथ में जुड़ जाने की वजह से गीता वह हो गई जो जन-जन को और जिसको कि सारी दुनिया में सारे मुल्कों में सारी भाषा में अनुवाद जिसका हुआ क्यों उसके साथ में व्यक्तित्व जुड़ा हुआ था कृष्ण का कार्ल मास्क का व्यक्तित्व जुड़ा हुआ था नहीं साहब कार्ल मास्क पे हम तो पीएचडी करेंगे और थीसिस लिखेंगे अरे मर थिसिस लिखेगा चुप बेवकूफ कहीं का थीसिस लिखेंगे हम तो बहुत जोर का थीसिस लिखा है हमने थीसिस लिखा है तो उसको गुरु जी के यहां दे आ थीसिस लिखा है तूने थीसिस यों नहीं लिखे जाते किसने लिखा है क्या लिखा है इसका भी कीमत है और किसने लिखा है इसकी भी कीमत है |
अखण्ड-ज्योति से
साधना आत्मिक क्षेत्र में भी होती है और भौतिक क्षेत्र में भी। कदम जिस भी दिशा में बढ़ते हैं प्रगति उसी ओर होती है। अपनी सतर्कता पूर्ण सुव्यवस्था जिस भी मार्ग पर गतिशील कर दी जाय उसी में एक के बाद एक सफलता के मील पत्थर मिलते चले जायेंगे।
साधना का महत्व किसान जानता है। पूरे वर्ष अपने खेत की मिट्टी के साथ अनवरत गति से लिपटा रहता है और फसल को स्वेद कणों से नित्य ही सींचता रहता है। सर्दी−गर्मी की परवाह नहीं—जुकाम−खाँसी की चिन्ता नहीं। शरीर की तरह ही खेत उसका कर्म क्षेत्र होता है। एक−एक पौधे पर नजर रहती है। खाद−पानी, निराई, गुड़ाई से लेकर रखवाली तक के अनेकों कार्य करने से पूर्व वह उनकी आवश्यकता समझता है और किसी के निर्देश से नहीं अपनी गति से ही निर्णय करता है कि कब, क्या और कैसे किया जाना चाहिए। किसी के दबाव से नहीं—अपनी इच्छा और प्रेरणा से ही उसे खेत की, उसे संभालने वाले बैलों की, हल, कुदाल आदि संबंधी उपकरणों की व्यवस्था जुटाये रहने की सूझ−बूझ सहज ही उठती और स्वसंचालित रूप से गतिशील होती रहती है। यह सब होता है बिना थके, बिना ऊबे, बिना अधीर हुए।
आज का श्रम कल ही फलप्रद होना चाहिए इसका आग्रह उसे तनिक भी नहीं होता। फसल अपने समय पर पकेगी—तब तक उसे धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा ही करनी होगी यह जानने के कारण अनाज की ढेरी कोठे में भरने की आतुरता भी उसे नहीं होती। इतने मन अनाज निश्चित रूप से होना ही चाहिए, इसके लंबे−चौड़े मनसूबे बाँधना भी उसे अनावश्यक प्रतीत होता है। मनोयोग पूर्वक सतत् श्रम की साधना चलती ही रहती है, विघ्न अवरोध न आते हों सो बात भी नहीं—उनसे भी जैसे बनता है निपटता रहता है, पर उपेक्षा कभी भी खेत की नहीं होती। उसकी आवश्यकता पूरी किये बिना चैन ही नहीं पड़ता। समयानुसार फसल पकती भी है। अनाज भी पैदा होता है।
उसे ईश्वर को धन्यवाद देता हुआ घर ले जाता है। कितने मन अनाज पैदा होना है यह कभी सोचा ही नहीं तो फिर असन्तोष का कोई कारण भी नहीं। जो मिला उसे ईश्वरीय उपहार समझा गया। यही है किसान की साधना जिसे वह होश संभालने के दिन से लेकर मरणपर्यन्त सतत् निष्ठा के साथ चलाता ही रहता है। न विश्राम, न थकान, न ऊब, न अन्यमनस्कता। साधना कैसे की जाती है और साधक को कैसा होना चाहिए यह किसान से सीखा जा सकता है।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1976 पृष्ठ 12
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