Saturday 12, April 2025
शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, चैत्र 2025
पंचांग 12/04/2025 • April 12, 2025
चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | पूर्णिमा तिथि 05:52 AM तक उपरांत प्रतिपदा | नक्षत्र हस्त 06:07 PM तक उपरांत चित्रा | व्याघात योग 08:40 PM तक, उसके बाद हर्षण योग | करण विष्टि 04:36 PM तक, बाद बव 05:52 AM तक, बाद बालव |
अप्रैल 12 शनिवार को राहु 09:07 AM से 10:43 AM तक है | चन्द्रमा कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:57 AM सूर्यास्त 6:38 PM चन्द्रोदय 6:15 PM चन्द्रास्त 5:47 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - चैत्र
तिथि
- शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
- Apr 12 03:21 AM – Apr 13 05:52 AM
- कृष्ण पक्ष प्रतिपदा
- Apr 13 05:52 AM – Apr 14 08:25 AM
नक्षत्र
- हस्त - Apr 11 03:10 PM – Apr 12 06:07 PM
- चित्रा - Apr 12 06:07 PM – Apr 13 09:10 PM

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 12 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
महाराज जी, ऐसा ध्यान बताइए, कैसा ध्यान बताए, ऐसा ध्यान बताइए, एक जगह एकाग्र हो जाए, कहीं मन भागे नहीं। बेटे, ऐसा एकाग्र जैसा तू चाहता है, तूने मनोविज्ञान को पढ़ा नहीं है, अभी साइकोलाजी पढ़ी नहीं है, तैने मन की संरचना बखड़ा रहता है, खड़ा रहता है, एक बिंदु पर। बेटा, हो ही नहीं सकता कभी साकार उपासना, जो हम बताते हैं, गायत्री माता की उपासना बताते हैं। गायत्री माता एक हाथ में कमण्डल, एक हाथ में पुस्तक, एक हंस, एक मोर मुकुट, ये क्या चक्कर है, महाराज जी, ये चक्कर है।
बेटे, मन को सीमा-बद्ध करने के लिए इतने बड़े दायरे में घुमाना पड़ेगा। कभी कमण्डल देख, कभी हंस को देख, कभी उनके मुकुट को देख, कभी उनके होंठों को देख, कभी साड़ी को देख, कभी इसको देख। इतने वाले दायरे में, जब मन भागेगा, तो रुकेगा नहीं कहीं, एक बिंदु पर तो रुकता नहीं, कभी कहीं। इतने दायरे में, यहाँ वहाँ, यहाँ वहाँ, यहाँ वहाँ भागता रहेगा, चल, एक सीमा में घुमता रहेगा। मन सीमा में घुमाया जाता है।
एक मिनट अगर मनुष्य का मन एकाग्र हो जाएगा, तो समाधि में चला जाएगा। एक मिनट अगर एक मनुष्य का एकाग्रचित हो जाए, एक बिंदु पर एकत्र हो जाए, हो जाए, तो समाधि में चला जाएगा और बेहोश हो जाएगा। एक मिनट, एक मिनट की एकाग्रता से।
फिर, वो जो हम कहते हैं, एकाग्रता, उसका मतलब होता है, एक धारा, एक दिशा। सबेरे हम आपको ध्यान कराते हैं, एक धारा देते हैं, एक दिशा देते हैं। मन को एकाग्र होने का दावा नहीं करते, एक दिशा देते हैं। वैज्ञानिकों को एक दिशा होती है, एक धारा होती है। मन कितना भागता है, कितना भागता है, कितना भागता है, विवेक कहाँ भागता है, बेटे? वैज्ञानिक का पर दिशा एक रहती है, ये रिसर्च कर लीजिए, इसमें से ये कैलिकल इस में मिल जाएगा तो ये हो सकता है, इस में ये मिल जाएगा तो ये हो सकता है, न, ये नहीं हो सकता है। इसको ऐसे मिला देने से कोई बात बनेगी, इस चीज को ऐसे बना देंगे तो ऐसे हो सकता है। सारे का सारा शतरंज इतनी बनी हुई है, पड़ोस में किसके यहाँ से आएगी, मालूम नहीं।
अपने काम में एकाग्र हो गया, एकाग्र हो गया। महाराज जी, अभी तो आप कह रहे थे कि वह हजारों तरह के विचार करता है। हाँ, बेटे, हजारों तरह के विचार करता है, लेकिन एकाग्र कहलाएगा क्योंकि उसकी दिशाधारा एक दिशा, एक होना, धारा एक होना। बस, इतनी ही एकाग्रता हो सकती है कि आप जो विचार करते, वो असंभव पर विचार करते हैं। मन कहीं भागने न पावे, एक विशेष दिशा में लगा दें, ये हो सकता है।
अखण्ड-ज्योति से
ईश्वर की उपासना का अर्थ है- जैसा ईश्वर महान है वैसे ही महान बनने के लिए हम कोशिश करें। हम अपने आप को भगवान में मिलाएँ। यह विराट विश्व भगवान का रूप है और हम इसकी सेवा करें, सहायता करें ओंर इस विश्व उद्यान को समुन्नत बनाने की कोशिश करें, क्योंकि हर जगह भगवान समाया हुआ है। सर्वत्र भगवान विद्यमान है यह भावना रखने से '' आत्ववत्सर्वभूतेषु '' की भावना मन में पैदा होती है। गंगा जिस तरीके से अपना समर्पण करने के लिए समुद्र की ओर चल पड़ती है, आस्तिक व्यक्ति, ईश्वर का विश्वासी व्यक्ति भी अपने आप को भगवान में समर्पित करने के लिए चल पड़ता है। इसका अर्थ यह हुआ कि भगवान की इच्छा? मुख्य हो जाती हैं। व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाएँ, व्यक्तिगत कामनाएँ भगवान की भक्ति समाप्त कराती हैं और यह सिखाती हैं कि ईश्वर के संदेश, ईश्वर की आज्ञाएँ ही हमारे लिए सब कुछ होनी चाहिए।
हमें अपनी इच्छा भगवान पर थोपने की अपेक्षा, भगवान की इच्छा को अपने जीवन में धारण करना चाहिए। आस्तिकता के ये बीज हमारे अंदर जमे हुए हों, तो जिस तरीके से वृक्ष से लिपटकर बेल उतनी ही ऊँची हो जाती है जितना कि ऊँचा वृक्ष है। उसी प्रकार से हम भगवान की ऊँचाई के बराबर ऊँचे चढ़ सकते हैं। जिस तरीके से पतंग अपनी डोरी बच्चे के हाथ में थमाकर आसमान में ऊँचे उड़ती चली जाती है। जिस तरीके से कठपुतली के धागे बाजीगर के हाथ में बँधे रहने से कठपुतली अच्छे से अच्छा नाच- तमाशा दिखाती है। उसी तरीके से ईश्वर का विश्वास, ईश्वर की आस्था अगर हम स्वीकार करें, हृदयंगम करें और अपने जीवन की दिशाधाराएँ भगवान के हाथ में सौंप दें अर्थात भगवान के निर्देशों को ही अपनी आकांक्षाएँ मान लें तो हमारा उच्चस्तरीय जीवन बन सकता है, और हम इस लोक में शांति और परलोक में सद्गति प्राप्त करने के अधिकारी बन सकते हैं।
आस्तिकता गायत्री मंत्र की शिक्षा का पहला वाला चरण है। इसका दूसरा वाला चरण है आध्यात्मिकता। अध्यात्मिकता का अर्थ होता है आत्मावलम्बन, अपने आप को जानना, आत्मबोध। 'आत्माऽवारेज्ञातव्य '' अर्थात अपने आप को जानना। अपने आप को न जानने से -हम बाहर- बाहर भटकते रहते हैं। कई अच्छी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, अपने दु:खो का कारण बाहर तलाश करते फिरते रहते हैं। जानते नहीं किं हमारी मन स्थिति के कारण ही हमारी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। अगर हम यह जान पाएँ, तब फिर अपने आप को सुधारने के लिए कोशिश करें। स्वर्ग और नरक हमारे ही भीतर हैं। हम अपने ही भीतर स्वर्ग दबाए हुए हैं अपने ही भीतर नरक दबाए हुए हैं। हमारी मन की स्थिति के आधार पर ही परिस्थितियाँ बनती हैं। कस्तूरी का हिरण चारों तरफ खुशबू की तलाश करता फिरता था, लेकिन जब उसको पता चला कि वह तो नाभि में ही है, तब उसने इधर- उधर भटकना त्याग दिया और अपने भीतर ही ढूँढने लगा।
फूल जब खिलता है तब भौरे आते ही हैं, तितलियों आती हैं। बादल बरसते तो हैं लेकिन जिसके आँगन में जितना पात्र होता है, उतना ही पानी देकर के जाते हैं। चट्टानों के ऊपर बादल बरसते रहते हैं, लेकिन घास का एक तिनका भी पैदा नहीं होता। छात्रवृत्ति उन्हीं को मिलती है जो अच्छे नंबर से पास होते हैं। संसार में सौंदर्य तो बहुत हैं पर हमारी ओंख न हो तो उसका क्या मतलब? संसार में संगीत गायन तो बहुत हैं, शब्द बहुत हैं, पर हमारे कान न हों, तो उन शब्दों का क्या मतलब? संसार में ज्ञान- विज्ञान तो बहुत हैं, पर हमारा मस्तिष्क न हो तो उसका क्या मतलब ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते हैं। इसलिए आध्यात्मिकता का संदेश यह है कि हर आदमी को अपने आप को देखना, समझना, सुधारने के लिए भरपूर प्रयत्न करना चाहिए। अपने आपको हम जितना सुधार लेते हैं, उतनी ही परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल बनती चली जाती हैं। यह सिद्धांत गायत्री मंत्र का दूसरा वाला चरण है।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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