Thursday 26, December 2024
कृष्ण पक्ष एकादशी, पौष 2024
पंचांग 26/12/2024 • December 26, 2024
पौष कृष्ण पक्ष एकादशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | एकादशी तिथि 12:44 AM तक उपरांत द्वादशी | नक्षत्र स्वाति 06:09 PM तक उपरांत विशाखा | सुकर्मा योग 10:23 PM तक, उसके बाद धृति योग | करण बव 11:40 AM तक, बाद बालव 12:44 AM तक, बाद कौलव |
दिसम्बर 26 गुरुवार को राहु 01:33 PM से 02:49 PM तक है | चन्द्रमा तुला राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:15 AM सूर्यास्त 5:20 PM चन्द्रोदय 2:50 AM चन्द्रास्त 1:45 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष एकादशी - Dec 25 10:29 PM – Dec 27 12:44 AM
- कृष्ण पक्ष द्वादशी - Dec 27 12:44 AM – Dec 28 02:26 AM
नक्षत्र
- स्वाति - Dec 25 03:22 PM – Dec 26 06:09 PM
- विशाखा - Dec 26 06:09 PM – Dec 27 08:28 PM
वीर बाल दिवस साहिबजादों की शह्दात को कोटि कोटि नमन |
वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें | Vah Shakti Hame Do Dayanidhe
फ्रांस और रूस का इतिहास | France Aur Roosh Ka Etihash
साधना से सिद्धि | Sadhna Se Siddhi
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 26 December 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 26 December 2024 !!
!! आज के दिव्य दर्शन 26 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 26 December 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आपसे भी अच्छा व्याख्यान दिलवा लेंगे जरूर दिलवा लेंगे हम यह थोड़ी कहते हैं कि आप हमसे अच्छा व्याख्यान नहीं दिलवा सकते तो फिर अब क्या है तो साहब आप किसी अच्छी शक्ल का ले आएंगे तो ले आइए हम कब मना करते हैं अच्छी शक्ल का हमसे जरूर मिल जाएगा आपको और हमसे अच्छा वक्ता भी मिल जाएगा लेकिन जीवन तो नहीं मिलेगा ना अनुभव तो नहीं मिलेगा ना 24 साल का हमारा जो तपश्चर्या और पुरश्चरण वह तो नहीं मिलेगा ना हमने जो बोया और काटा है उसकी जो ऋद्धियाँ और सिद्धियां हमारे पास है वह तो नहीं मिलेगी ना और हमारा दर्द जो हमारे साहित्य के साथ जुड़ा हुआ है वह तो आपको नहीं मिलेगा ना तो इन सब चीजों को मिला देने से आप उसको किताब मत कहिए दर्शन कहिए उसको एक आप चिराग कहिए रोशनी कहिए उसको उसी तरीके से बांटिये जैसे भगवान की भक्ति को नारद जी ने स्वयं बांटा था नहीं साहब एक नौकर रख लेंगे सो वह भगवान की भक्ति के गीत गाया करेगा अच्छा तो आप नौकर से गवाने का मन है आपका नौकर रखना चाहते हैं नहीं नौकर से नहीं मिलेगा नारदजी से मिलेगा चैतन्य महाप्रभु ने भगवान की भक्ति पैदा की थी इन लोगों ने रैदास ने भक्ति पैदा की थी |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
गायक और वादक एक दिन में अपने विषय में पारंगत नहीं हो जाते, उन्हें स्तर की, नाद की साधना नित्य निरन्तर करनी पड़ती है। ‘रियाज’ न किया जाय तो गायक का स्वर छितराने लगता है और वादक की उँगलियाँ जकड़−मकड़ दिखाने लगती हैं। संगीत सम्मेलन तो यदा−कदा ही होते हैं, पर वहाँ पहुँचने पर सफलता का श्रेय देने वाली स्वर साधना को नित्य ही अपनाये रहना पड़ता है। गीत सुनने वालों ने कितनी प्रशंसा की और कितनी धन राशि दी यह बात गौण रहती है।
संगीत साधक, आत्म−तुष्टि की नित्य मिलने वाली प्रसन्नता को ही पर्याप्त मानता है और बाहर से कुछ भी न मिले तो भी वह एकान्त जंगल की किसी कुटिया में रहकर भी आजीवन बिना ऊबे संगीत साधना करता रह सकता है। आत्म−साधक की मनः−स्थिति इतनी तो होनी ही चाहिए।
नर्तक, अभिनेता अपना अभ्यास जारी रखते हैं। शिल्पी और कलाकार जानते हैं कि उन्हें अपने प्रयोजन के लिए नित्य नियमित अभ्यास करना चाहिए। फौजी सैनिकों को अनिवार्य रूप से ‘परेड’ करनी पड़ती है। अभ्यास छूट जाने पर न तो गोली का निशाना ठीक बैठता है और न मोर्चे पर लड़ने के लिए जिस कौशल की आवश्यकता पड़ती है वह हाथ रहता है। किसी विशेष प्रयोजन के लिए नियत संख्या तथा नियत अवधि की साधना से किसी पूजा प्रयोजन का संकल्प लेने वाला समाधान हो सकता है पर आत्म−साधक को इतने भर से सन्तोष नहीं मिलता। वह जानता है कि प्यास बुझाने के लिए रोज ही कुँए से पानी खींचना पड़ता है और सफाई रखने के लिए रोज ही कमरे को बुहारना पड़ता है।
मानवी सत्ता की स्थिति भी ऐसी ही है, उसकी हीरों भरी खदान को हर दिन खोदना, कुरेदना चाहिए। तभी नित्य नये उपहार मिलने सम्भव होंगे। शरीर को स्नान कराना , दाँत माँजना , कपड़े धोना नित्य कर्म है। उसकी उपेक्षा नहीं हो सकती। संसार का विक्षोभ भरा वातावरण हर किसी की अन्तःचेतना को प्रभावित करता है। उसकी नित्य सफाई न की जाय तो क्रमशः गन्दगी बढ़ती ही चली जायगी और अन्ततः कोई बड़ी विपत्ति खड़ी करेगी।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1976 पृष्ठ 14
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