Thursday 16, January 2025
कृष्ण पक्ष तृतीया, माघ 2024
पंचांग 16/01/2025 • January 16, 2025
माघ कृष्ण पक्ष तृतीया, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), पौष | तृतीया तिथि 04:06 AM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र आश्लेषा 11:16 AM तक उपरांत मघा | आयुष्मान योग 01:05 AM तक, उसके बाद सौभाग्य योग | करण वणिज 03:39 PM तक, बाद विष्टि 04:06 AM तक, बाद बव |
जनवरी 16 गुरुवार को राहु 01:44 PM से 03:01 PM तक है | 11:16 AM तक चन्द्रमा कर्क उपरांत सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:18 AM सूर्यास्त 5:36 PM चन्द्रोदय 8:06 PM चन्द्रास्त 9:29 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु शिशिर
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - माघ
- अमांत - पौष
तिथि
- कृष्ण पक्ष तृतीया - Jan 16 03:23 AM – Jan 17 04:06 AM
- कृष्ण पक्ष चतुर्थी - Jan 17 04:06 AM – Jan 18 05:30 AM
नक्षत्र
- आश्लेषा - Jan 15 10:28 AM – Jan 16 11:16 AM
- मघा - Jan 16 11:16 AM – Jan 17 12:44 PM
रात्रि सोने से पूर्व प्रार्थना | विधाता तू हमारा है, तू ही विज्ञान दाता है | Vidhata Tu Hamara Hai
प्रयागराज महाकुम्भ को सफल बनाने हेतु जुटे गायत्री परिजन
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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
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!! आज के दिव्य दर्शन 16 January 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 16 January 2025 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 16 January 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
संसार के महापुरुषों के इतिहास पर हम जब निगाह डाल के देखते हैं तो हमको यह मालूम होता है कि 100 में से 80 महापुरुष गरीबों के घर में पैदा हुए थे, कहां पैदा हुए, जहां उन्नति के लिए कोई माध्यम ही नहीं ठहरे, शौक नहीं थे, उन्नति के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी, वह गरीब थे और कंगाल थे। तो मैं आपको एडिशन का हवाला दे रहा था, आपको एक दिन मैंने ज्ञान भारती का हवाला दिया था, मैंने एक दिन अब्राहम लिंकन का हवाला दिया था और मैंने आपको कबीर से लेकर के रैदास तक उन लोगों के हवाले दिए हैं, जो गरीब घरों में से पैदा हुए थे। गरीबी किसी की हिम्मत पर रुकावट डालने वाली नहीं है। रुकावट डालने वाली क्या है? रुकावट डालने वाली यह है कि उसके स्वभाव, उसके गुण और उसके कर्मों को पीछे से कमजोर करते जाएंगे, तो बच्चे अपने आप में स्वयं विकसित ना हो सकेंगे। स्वयं की बात कह रहा हूं ना? वह धनी बन सकेंगे, ना वह सुखी रह सकेंगे, ना वह गृहस्थ को अच्छा बना सकेंगे, ना कोई औलाद का पालन कर सकेंगे, ना वह काम कर सकेंगे, जिसको हम समाज की सेवा कहते हैं।
अखण्ड-ज्योति से
(६) सम्पदा-विभूतियों में इन दिनों सर्वोपरि मान्यता पूँजी को मिली है। धन का वर्चस्व सर्वविदित है। सम्पत्ति में स्वयं कोई दोष नहीं। दोष उसके दुरुपयोग में है। व्यक्तिगत विलासिता में, अहंता की वृद्धि में यदि उसका उपयोग होता है, संग्रह बढ़ता है एवं उसका लाभ बेटे-पोतों तक ही रखने का प्रयत्न किया जाता है, तो निस्संदेह ऐसा धन निन्दनीय है। अगले दिनों समता के आधार पर ही समाज व्यवस्था बनेगी। सामर्थ्य भर श्रम एवं आवश्यकता भर साधन प्राप्त करने का क्रम चले तभी सम्पदा पर व्यक्ति का नहीं समाज का अधिकार होगा। न कोई गरीब दिखाई देगा न अमीर। पर जब तक वह स्थिति नहीं बन जाती तब तक संग्रहीत पूँजी को लोकमंगल के लिए लगाने की दूरदर्शिता दिखाने के लिए धनपतियों को कहा जायेगा।
दान न सही कम से कम इतना तो होना ही चाहिए कि युग परिवर्तित का पथ प्रशस्त करने वाले प्रचारात्मक कार्यक्रमों में पूँजी की कमी न पड़े। भले ही यह व्यवसाय बुद्धि से किया जाय तो भी इतना होना ही चाहिए कि युग परिवर्तन के प्रवाह में अनुकूलता उत्पन्न करने वाला विनियोग इस पूँजी का हो सके। पिछले पृष्ठों पर ऐसे कितने ही क्रिया कलापों की चर्चा की गई है, जिसमें पूँजी के रूप में भी यदि धन लग सके, यदि उन क्रिया कलापों को व्यावसायिक रूप में खड़ा किया जा सके तो भी बहुत कुछ हो सकता है। (१) साहित्य प्रकाशन (२) चित्र प्रकाशन (३) अभिनय मंडलियाँ (४) ग्रामोफोन रिकार्ड (५) फिल्म निर्माण। यह पाँच कार्य ऐसे हैं, जिनके लिए विशालकाय अर्थसंस्थान खड़े किये जाने चाहिए और लोकमानस को परिष्कृत बनाने की आवश्यकता पूरी की जानी चाहिए।\
(७) प्रतिभायें-प्रतिभा एक वशिष्ठ और अतिरिक्त विभूति है। कुछ लोगों के व्यक्तित्व ऐसे साहसी, स्फूर्तिवान् सूक्ष्मदर्शी, मिलनसार, क्रियाकुशल और प्रभावशाली होते हैं कि वे जिस काम को भी हाथ में लें उसी को अपने मनोयोग एवं व्यवहार कुशलता के आधार पर गतिशील बनाते चले जाते है और सफलता के उच्च शिखर तक पहुँचा देते हैं। इस विशेषता को प्रतिभा कहते हैं। सूझबूझ, आत्म विश्वास, कर्मठता जैसे अनेक सद्गुण उनमें भरे रहते हैं। आमतौर से ऐसे ही लोग महान कार्यों के संस्थापक एवं संचालक होते हैं। सफलतायें उनके पीछे छाया की तरह फिरती हैं, क्योंकि उन्हें ज्ञान होता है कि कठिनाइयों से कैसे निपटा जाता है, उन्हें सरल कैसे बनाया जाता है।
प्रतिभाशाली व्यक्ति ही सफल सन्त, राजनेता, समाजसेवी, साहित्यकार, कलाकार, व्यवसायी, व्यवस्थापक होते देखे गये हैं। प्रतिभाएँ ही डाकू, चोर, ठग जैसे दुस्साहस पूर्ण कार्य करती हैं। सेनाध्यक्षों के रूप में, लड़ाकू योद्धाओं के रूप में उन्हें ही अग्रिम पंक्ति में देखा जाता है। क्रान्तिकारी भी इसी तरह के लोग बनते हैं। प्रतिभाशाली तत्व जहाँ कहीं भी चमक रहे हो वहाँ से उन्हें आमंत्रित किया जा रहा है कि वे अपने ईश्वरीय अनुदान को निरर्थक विडम्बनाओं में खर्च न करें वरन् उसे नव निर्माण के ऐसे महान प्रयोजन में नियोजित कर दें जिसमें उनका, उनकी प्रतिभा का तथा समस्त संसार का हित साधन हो सके।
.....समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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