Saturday 04, January 2025
शुक्ल पक्ष पंचमी, पौष 2025
पंचांग 04/01/2025 • January 04, 2025
पौष शुक्ल पक्ष पंचमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), पौष | पंचमी तिथि 10:01 PM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र शतभिषा 09:23 PM तक उपरांत पूर्वभाद्रपदा | सिद्धि योग 10:08 AM तक, उसके बाद व्यातीपात योग | करण बव 10:51 AM तक, बाद बालव 10:01 PM तक, बाद कौलव |
जनवरी 04 शनिवार को राहु 09:50 AM से 11:06 AM तक है | चन्द्रमा कुंभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:18 AM सूर्यास्त 5:26 PM चन्द्रोदय 10:26 AM चन्द्रास्त 10:07 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - पौष
तिथि
- शुक्ल पक्ष पंचमी - Jan 03 11:39 PM – Jan 04 10:01 PM
- शुक्ल पक्ष षष्ठी - Jan 04 10:01 PM – Jan 05 08:15 PM
नक्षत्र
- शतभिषा - Jan 03 10:21 PM – Jan 04 09:23 PM
- पूर्वभाद्रपदा - Jan 04 09:23 PM – Jan 05 08:18 PM
अत्यधिक चिंतन |
मानव-जीवन की महानता एवं उपयोगिता | Maanav Jeevan Ki Mahaanta Evam Upyogita
Ep:12 ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थ क्या है? | ब्रह्मचर्य
EP: 14 Technique of Sublime Transformation Part 03 | My Life its & Legacy Message
अमृतवाणी:- विरोध भी करना पड़ेगा | Virodh Bhi Karna Padega
बुराइयों में कितनी ही ऐसी हैं जिन्हें एक दिन भी सहन नहीं किया जाना चाहिए। नशेबाजी इनमें प्रमुख है। स्वास्थ्य, पैसा, इज्जत और अक्ल यह चारों ही वस्तुएँ इस कारण बर्बाद होती हैं। पीढ़ियाँ खराब होती हैं और रुग्णता बढ़ती है। नशा न कोई उगाए न कोई पिए इसके लिए प्रायः गाँधीजी के सत्याग्रह आन्दोलन जैसा ही रोकथाम कर सकने वाला मोर्चा खड़ा करना होगा।
विवाह-शादियों में होने वाला अपव्यय-दहेज अपने देश में एक बुरी किस्म का अभिशाप है। उसी से मिलती-जुलती मृतक-भोज जैसी अन्य कुरीतियाँ प्रचलित हैं। इन सबको एक बार में ही एक साथ उखाड़ फेंकने की आवश्यकता है। भिक्षा-व्यवसाय भी एक ऐसी ही लानत है जिसके कारण समर्थ व्यक्ति भी स्वाभिमान खोकर वेश्या वेष की आड़ में भिखारियों की पंक्ति में जा बैठता है। तलाश करने पर हर क्षेत्र में अपने अपने ढंग की चित्र-विचित्र कुरीतियों का प्रचलन है। आलस्य और प्रमाद ऐसा दुर्गुण है जिसके कारण अच्छे-खासे प्रगतिशील मनुष्य भी अपंग असमर्थों की स्थिति में जा पहुँचते हैं और दरिद्रता का पिछड़ेपन का अभिशाप भुगतते हैं। इन मुद्दतों से जन-जीवन में घुसी हुई बुराइयों की जड़ उखाड़ फेंकना एक व्यक्ति का काम नहीं है। इसके लिए मोर्चा बंदी करनी होगी और देखना होगा कि इस कुचक्र में फँसे हुए जन-जीवन को किस तरह मुक्त कराया जाए।
सृजन से संबंधित हजारों काम हैं और उससे भी अधिक उन्मूलन स्तर के। इन्हें कर सकना मात्र जीभ चलाने या विरोध व्यक्त करने भर से नहीं हो सकता। कितने लोगों द्वारा व्यवहार में लाए जाने पर यह कुरीतियाँ प्रथा बन चुकी हैं। इन्हें स्थानांतरित करने के लिए उससे कम नहीं वरन् अधिक ही पुरुषार्थ की अपेक्षा होगी।
अपने भारत की तरह ही हर देश की हर क्षेत्र की अपने-अपने ढंग की अनगिनत समस्याएँ हैं। उनके समाधान में आगे आगे कदम बढ़ा सकने वाले शूरवीरों की पग-पग पर आवश्यकता पड़ेगी। यह कहाँ से आएँ? आज तो उनका अभाव दीखता है। रात्रि के सन्नाटे को चीरती हुई प्रातःकाल में जिस प्रकार चिड़ियों की चहचहाट सुनाई पड़ती है वैसा ही कुछ अगले दिनों सर्वत्र माहौल बनेगा। जन-जन को इसका पाठ कौन पढ़ायेगा? हर किसी को स्वार्थ में कटौती करके परमार्थ में हाथ डालने के लिए कौन विवश करेगा?
इसका उत्तर आज तो नहीं दिया जा सकता। किन्तु कल-परसों ऐसा समय अवश्य ही आवेगा जिसमें सत्प्रवृत्ति संवर्धन और दुष्प्रकृति उन्मूलन की आँधी-तूफान जैसी हवा चलेगी। आँधी चलती है तो तिनके, पत्ते और धूल कण तक आकाश चूमने लगते हैं। अगले ही दिनों ऐसी बासंती बयार चलेगी जिससे ठूंठ कोपलें फोड़ने लगें और कोपलों पर फूल आने लगें।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति- फरवरी 1984 पृष्ठ 21
गुरु शिष्य की पात्रता को पहचानते है | Guru Shishya Ki Patrata ko Pehchante Hai
संसार क्या है और हम कैसा जीवन जिये? | Sansaar Kya Hai Aur Hum Kaisa Jeevan Jiyen
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 04 January 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आप घरवाले हमारी क्यों नहीं बनते हमारे काम क्यों नहीं आते हमारी मुसीबतों में सहायता क्यों नहीं कर सकते आप कैसे कुटुंबी होंगे हमारी इच्छाओं को पूरा करने में आप सहायक क्यों नहीं होते करिष्ये वचनं तव करिष्ये कीजिए हम को देखिए मत और सुनिए मत हम तो गुरु जी के दर्शन करेंगे मत करिए दर्शन हमारा और और हम गुरु जी को सुनेंगे मत सुनिए हमको लेकिन कीजिए जो हम कहते हैं वह कीजिए हमारे गुरु जी ने जो कहा है वह हमने किया है जो श्री कृष्ण भगवान ने कहा था सो अर्जुन ने किया था रामचंद्र जी ने जो कहा था सो हनुमान जी ने किया था आप करने से क्यों करनी काटते हैं हम सुनेंगे देखेंगे सुनेंगे देखेंगे सुनेंगे देखेंगे मत आप सुनिए मत आप देखिए कीजिए बस करेंगे आप तो हमको बहुत प्रसन्नता होगी और हम को यह मालूम पड़ेगा कि आप जो आए और ठीक आए और ठीक आदमियों के लिए हमारा समय लगा और ठीक आदमी हमारे कुटुंब में है ठीक आदमी हमारे कुटुंब में है तो हम धन्य हो जायेंगे और बहुत प्रसन्न होंगे और आप को सच्चे मन से आशीर्वाद देंगे |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
इस संसार में मानव-जीवन से अधिक श्रेष्ठ अन्य कोई उपलब्धि नहीं मानी गई है। एकमात्र मानव-जीवन ही वह अवसर है, जिसमें मनुष्य जो भी चाहे प्राप्त कर सकता है। इसका सदुपयोग मनुष्य को कल्पवृक्ष की भाँति फलीभूत होता है।
जो मनुष्य इस सुरदुर्लभ मानव-जीवन को पाकर उसे सुचारु रूप से संचालित करने की कला नहीं जानता है अथवा उसे जानने में प्रमाद करता है, तो यह उसका एक बड़ा दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। मानव-जीवन वह पवित्र क्षेत्र है, जिसमें परमात्मा ने सारी विभूतियाँ बीज रूप में रख दी है, जिनका विकास नर को नारायण बना देता है। किन्तु इन विभूतियों का विकास होता तभी है, जब जीवन का व्यवस्थित रूप से संचालन किया जाय। अन्यथा अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो विभूतियों के स्थान पर दरिद्रता की वृद्धि कर देता है।
जीवन को व्यवस्थित रूप से चलाने की एक वैज्ञानिक पद्धति है। उसे अपनाकर चलने पर ही इसमें वाँछित फलों की उपलब्धि की जा सकती है। अन्यथा इसकी भी वही गति होती है, जो अन्य पशु-प्राणियों की होती है। जीवन को सुचारु रूप से चलाने की वह वैज्ञानिक पद्धति एकमात्र अध्यात्म ही है। जिसे जीवन जीने की कला भी कहा जा सकता है। इस सर्वश्रेष्ठ कला को जाने बिना जो मनुष्य जीवन को अस्त-व्यस्त ढंग से बिताता रहता है। उसे, उनमें से कोई भी ऐश्वर्य उपलब्ध नहीं हो सकता, जो लोक से लेकर परलोक तक फैले पड़े है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जिनके अंतर्गत आदि से लेकर अन्त तक की सारी सफलतायें सन्निहित है, इसी जीवन कला के आधार पर ही तो मिलते है।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1969 पृष्ठ 8
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