Tuesday 21, January 2025
कृष्ण पक्ष सप्तमी, माघ 2025
पंचांग 21/01/2025 • January 21, 2025
माघ कृष्ण पक्ष सप्तमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), पौष | सप्तमी तिथि 12:40 PM तक उपरांत अष्टमी | नक्षत्र चित्रा 11:36 PM तक उपरांत स्वाति | धृति योग 03:49 AM तक, उसके बाद शूल योग | करण बव 12:40 PM तक, बाद बालव 02:00 AM तक, बाद कौलव |
जनवरी 21 मंगलवार को राहु 03:04 PM से 04:22 PM तक है | 10:03 AM तक चन्द्रमा कन्या उपरांत तुला राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:16 AM सूर्यास्त 5:40 PM चन्द्रोदय 12:39 AM चन्द्रास्त 11:43 AM अयनउ त्तरायण द्रिक ऋतु शिशिर
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - माघ
- अमांत - पौष
तिथि
- कृष्ण पक्ष सप्तमी - Jan 20 09:58 AM – Jan 21 12:40 PM
- कृष्ण पक्ष अष्टमी - Jan 21 12:40 PM – Jan 22 03:18 PM
नक्षत्र
- चित्रा - Jan 20 08:30 PM – Jan 21 11:36 PM
- स्वाति - Jan 21 11:36 PM – Jan 23 02:34 AM
भगवान के प्रति निष्ठा और समर्पण | Bhagwan Ke Parti Nistha Aur Samarpan
अमृतवाणी:- समाज निर्माण से पहले व्यक्ति निर्माण | Pujay Gurudev Pt Shriram Sharma Acharya
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 21 January 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
देवी देवता संत हमारी समस्याओं का हल कर देंगे, इस बहम को हम हटा दें तो संत बाबा जी खत्म हो जाएंगे। लोगों को इस संसार में एक और भी बहम हावी हो गया है, जिसमें हमारा धर्म और जाति टिका हुआ है। वह यह है कि कोई बाजीगर होते हैं, संत बाजीगर होते हैं। बालों में से भभूत निकालते हैं, और कानों में से जुएं निकलते हैं, और मुंह में से कबूतर निकालते हैं, और बगल में से पिटारे निकालते हैं। बाजीगर का तमाशा देखने जाते हैं। इसी तरीके से हमारे देश की बेइज्जती बहुत बेहूदी है, गंदी बात। यह बात तलाश करती रहती है कि कौन सा बाबा जी और कौन सा संत ऐसा है जो ज्यादा तमाशा दिखा सकता है, और ज्यादा जादू कर सकता है, और ज्यादा अचंभे की बात दिखा सकता है। बड़ी वाहियात जनता है, बड़ी बेवकूफ जनता है, बड़ी बेहूदी जनता है, जिसका इस तरह का ख्याल है। कि जो आदमी तमाशा दिखाता हो, और जादू दिखाता हो, और यह काम करता हो, और हाथ पे रख के रोटी खाता हो, वह आदमी तो संत है, और जो आदमी थाली में रख कर के खा ले, वह असंत है। इस तरीके से वाहियात और बेवकूफ लोग समाज में भरे हुए पड़े हैं।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
समाज निर्माणः
(१) हममें से हर व्यक्ति अपने को समाज का एक अविच्छिन्न अंग मानें। अपने को उसके साथ अविभाज्य घटक मानें। सामूहिक उत्थान और पतन पर विश्वास करें। एक नाव में बैठे लोग जिस तरह एक साथ डूबते या पार होते हैं, वैसी ही मान्यता अपनी रहे। स्वार्थ और परमार्थ को परस्पर गूँथ दें। परमार्थ को स्वार्थ समझें और स्वार्थ सिद्धि की बात कभी ध्यान में आये तो वह संकीर्ण नहीं उदात्त एवं व्यापक हो। मिल जुलकर काम करने और मिल बाँटकर खाने की आदत डाली जाय।
(२) मनुष्यों के बीच सज्जनता, सद्भावना एवं उदार सहयोग की परम्परा चले। दान विपत्ति एवं पिछड़ेपन से ग्रस्त लोगों को पैरों पर खड़े होने तक के लिए दिया जाय। इसके अतिरिक्त उसका सतत प्रवाह सत्प्रवृत्ति सम्वर्धन के लिए ही नियोजित हो। साधारणतया मुफ्त में खाना और खिलाना अनैतिक समझा जाय। इसमें पारिवारिक या सामाजिक प्रीति भोजों का जहाँ औचित्य हो, वहाँ अपवाद रूप से छूट रहे। भिक्षा व्यवसाय पनपने न दिया जाय। दहेज, मृतक भोज, सदावर्त धर्मशाला आदि ऐसे दान जो मात्र प्रसन्न करने भर के लिये दिये जाते हैं और उस उदारता के लाभ समर्थ लोग उठाते हैं, अनुपयुक्त माने और रोके जायें। साथ ही हर क्षेत्र का पिछड़ापन दूर करने के लिए उदार श्रमदान और धनदान को अधिकाधिक प्रोत्साहित किया जाय।
(३) किसी मान्यता या प्रचलन को शाश्वत या सत्य न माना जाय, उन्हें परिस्थितियों के कारण बना समझा जाय। उनमें जितना औचित्य, न्याय और विवेक जुड़ा हो उतना ग्राह्य और जो अनुपयुक्त होते हुए भी परम्परा के नाम पर गले बंधा हो, उसे उतार फेंका जाय। समय- समय पर इस क्षेत्र का पर्यवेक्षण होते रहना चाहिये और जो असामयिक, अनुपयोगी हो उसे बदल देना चाहिये। इस दृष्टि से लिंग भेद, जाति भेद के नाम पर चलने वाली विषमता सर्वथा अग्राह्य समझी जाय।
(४) सहकारिता का प्रचलन हर क्षेत्र में किया जाय। अलग- अलग पड़ने की अपेक्षा सम्मिलित प्रयत्नों और संस्थानों को महत्त्व दिया जाय। संयुक्त परिवार से लेकर संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त विश्व को लक्ष्य बनाकर चला जाय। विश्व परिवार का आदर्श कार्यान्वित करने का ठीक समय यही है। सभी प्रकार के विलगावों को निरस्त किया जाय। व्यक्ति की सुविधा की तुलना में समाज व्यवस्था को वरिष्ठता मिले। प्रशंसा ऐसे ही प्रयत्नों की हो जिन्हें सर्वोपयोगी कहा जाय। व्यक्तिगत समृद्धि, प्रगति एवं विशिष्टता को श्रेय न मिले। उसे कौतूहल मात्र समझा जाय।
(५) अवांछनीय मूढ़ मान्यताओं और कुरीतियों को छूत की बीमारी समझा जाय। वे जिस पर सवार होती है उसे तो मारती ही हैं, अन्यान्य लोगों को भी चपेट में लेती और वातावरण बिगाड़ती हैं। इसलिए उनका असहयोग, विरोध करने की मुद्रा रखी जाय और जहाँ सम्भव हो उनके साथ समर्थ संघर्ष भी किया जाय। समाज के किसी अंग पर हुआ अनीति का हमला समूचे समाज के साथ बरती गई दुष्टता माना जाय और उसे निरस्त करने के लिए जो मीठे- कड़ुवे उपाय हो सकते हों, उन्हें अपनाया जाय। अपने ऊपर बीतेगी तब देखेंगे, इसकी प्रतीक्षा करने की अपेक्षा कहीं भी हुए अनीति के आक्रमण को अपने ऊपर हमला माना जाय और प्रतिकार के लिए दूरदर्शितापूर्ण रणनीति अपनायी जाय।
व्यक्तिगत परिवार और समाज क्षेत्र के उपरोक्त पाँच- पाँच सूत्रों को उन- उन क्षेत्रों के पंचशील माना जाय और उन्हें कार्यान्वित करने के लिए जो भी अवसर मिले उन्हें हाथ से जाने न दिया जाय।
आवश्यक नहीं कि इस सभी का तत्काल एक साथ उपयोग करना आरम्भ कर दिया जाय। उनमें से जितने जब जिस प्रकार कार्यान्वित किये जाने सम्भव हों, तब उन्हें काम में लाने का अवसर भी हाथ से न जाने दिया जाय। किन्तु इतना काम तो तत्काल आरम्भ कर दिया जाये कि उन्हें सिद्धान्त रूप से पूरी तरह स्वीकार कर लिया जाये। आदर्शवादी महानता से गौरवान्वित होने वाले जीवन इन्हीं सिद्धान्तों के आधार पर जिये जाते हैं। अनुकरणीय प्रयास करने के लिए जिन्होंने भी श्रेय पाया है, उनने त्रिविधि पंचशीलों में से किन्हीं सूत्रों को अपनाया और अन्यान्यों द्वारा अपनाये जाने का वातावरण बनाया है।
.....समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
(गुरुदेव के बिना पानी पिए लिखे हुए फोल्डर-पत्रक से)
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