Wednesday 02, April 2025
शुक्ल पक्ष पंचमी, चैत्र 2025
पंचांग 02/04/2025 • April 02, 2025
चैत्र शुक्ल पक्ष पंचमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), चैत्र | पंचमी तिथि 11:50 PM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र कृत्तिका 08:49 AM तक उपरांत रोहिणी | आयुष्मान योग 02:49 AM तक, उसके बाद सौभाग्य योग | करण बव 01:07 PM तक, बाद बालव 11:50 PM तक, बाद कौलव |
अप्रैल 02 बुधवार को राहु 12:20 PM से 01:53 PM तक है | चन्द्रमा वृषभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:09 AM सूर्यास्त 6:32 PM चन्द्रोदय 8:34 AM चन्द्रास्त 11:24 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - चैत्र
- अमांत - चैत्र
तिथि
- शुक्ल पक्ष पंचमी
- Apr 02 02:32 AM – Apr 02 11:50 PM
- शुक्ल पक्ष षष्ठी
- Apr 02 11:50 PM – Apr 03 09:41 PM
नक्षत्र
- कृत्तिका - Apr 01 11:06 AM – Apr 02 08:49 AM
- रोहिणी - Apr 02 08:49 AM – Apr 03 07:02 AM

Ma Kushmanda.

!! आज के दिव्य दर्शन 02 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

हिम्मत और साहस का सच्चा प्रतीक | Himmat Aur Sahas_Ka Sachha Pratik

गायत्री मंत्र के 24 अक्षर के 24 देवता | Gayatri Mantra Ke 24 Akshar
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 02 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आत्मशोधन की क्रिया पाँच पंचमुखी गायत्री हैए और पाँच कोशों में पाँच मुख उसके हैं। ये पाँच चरणों में गायत्री उपासना बंटी हुई है। पहला कृत्य आत्मसंशोधन की क्रिया है। आत्मसंशोधन की क्रिया में हम पाँच कृत्य आचमन कराते हैंए प्राणायाम कराते हैंए न्यास कराते हैंए पवित्रीकरण कराते हैंए शिखा वंदन कराते हैं। पाँचों क्रियाओं का एक उद्देश्य है कि हम अपने पाँचों प्राणों को पाँचों तत्वों का शुद्धिकरण करें। पहला काम है सफाई करना। पहला काम है सफाई करना। हमारे दिमाग पर एक बात आनी चाहिएए हमें भगवान के चरणों में जाने के लिए नहा.धो के जाना चाहिएए स्वच्छ और पवित्र होकर के जाना चाहिए। हमारे जीवन की क्रियाएं पवित्र होनी चाहिएए हमारे चिंतन पवित्र होने चाहिएए हमारे साधन पवित्र होने चाहिएए हमारे जीवन की गतिविधियां पवित्र होनी चाहिए। अगर हम पवित्रता का पहला उद्देश्य पूरा कर लेते हैंए तो समझना चाहिए कि पाँच मुख वाली गायत्री और गायत्री के पाँच कोश जागरण करने की प्रक्रिया पूरी हो गई।
गुरू जीए आपने तो ब्रह्मवर्चस की बात कही थी। बेटेए हम बताते हैंए ये ब्रह्मवर्चस तेरे लिए यहीं से शुरू होता है। औरों के लिए आगे से हम बता देंगेए औरों के लिए कुण्डलिनी जागरण बता देंगेए पर तेरे लिए कुण्डलिनी जागरण बेकार है। तेरे लिए यहीं से शुरू होता है। देख लियाए जिसने अपना मनए अपना शरीर और अपनी जिह्वा को संशोधन करने के लिए इस लायक बना लिया कि यह हमारी गोदी में आ सकता है। तो उसने अपनी लंबी वाली भुजाएं बढ़ाई और कहाए ष्अब तुझे मेरे पास आना चाहिए।ष् मैंने कहाए ष्पहले क्यों नहीं बुलाया थाघ्ष् ष्आपने मुझे 24 साल हो गएए जब तक मैं जवान भी थाए तब तक तो मेरा बड़ा उत्साह भी था। उस वक्त आपने क्यों नहीं बुलायाघ्ष् बेटेए उस वक्त तक तू संशोधित नहीं हो सका था। मैंने देखा थाए तेरी सफाई में अभी कमी हैए तेरी शुद्धता में कमी हैए तेरी शारीरिक और मानसिक शुद्धता का जो स्तर होना चाहिएए उसमें कमी पाई। इसीलिए मैंने कहा और इंतजार देखूँ। तेरे कपड़े भी धुल गएए तेरा मन भी धुल गयाए तेरी टट्टी भी धूल गईए तेरे सब धुल गए। अब मेरा मन आता है तुझे गोदी में लूँए अपने पिता से लिपटता हुआ चला गयाए उनका दूध पीता हुआ चला गयाए शक्ति और सामर्थ्य प्राप्त करता हुआ चला गया। वो काम आवश्यक है। किसकाघ् उपासना से भी ज्यादा आवश्यक हैए भजन से भी ज्यादा आवश्यक हैए कर्मकाण्डों से भी ज्यादा आवश्यक हैए उपवास से भी ज्यादा आवश्यक हैए हर चीज से ज्यादा आवश्यक है अपना आत्मसंशोधन। अगर आप कर लेंए तो बात बने।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
गायत्री का विज्ञान और भी अधिक महत्वपूर्ण है उसके शब्दों का गुँथन स्वर शास्त्र के अनुसार सूक्ष्म विज्ञान के रहस्यमय तथ्यों के आधार पर हुआ है। इसका जप ऐसे शब्द कंपन उत्पन्न करता है जो उपासक की सत्ता में उपयोगी हलचलें उत्पन्न करे−प्रसुप्त दिव्य शक्तियों को जगाये और सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने की उमंग उत्पन्न करे। गायत्री जप के कम्पन साधक के शरीर से निसृत जाकर समस्त वातावरण में ऐसी हलचलें उत्पन्न करते हैं जिनके आधार पर संसार में सुख−शान्ति की परिस्थितियां उत्पन्न हो सकें।
भारतीय धर्म की उपासना में प्रातः सायं की जाने वाली ‘संध्या विधि’ मुख्य है। संख्या कृत्य यों सम्प्रदाय मद में कई प्रकार किये जाते हैं, पर उन सब में गायत्री का समावेश अनिवार्य रूप से होता है। गायत्री को साथ लिए बिना संध्या सम्पन्न नहीं हो सकती। गायत्री को गुरु मन्त्र कहा गया है। यज्ञोपवीत धारण करते समय गुरु मन्त्र देने का विधान है। देव मन्त्र कितने ही हैं। सम्प्रदाय भेद से कई प्रकार के मन्त्रों के उपासना विधान हैं पर जहाँ तक गुरु मन्त्र शब्द का सम्बन्ध है वह गायत्री के साथ ही जुड़ा हुआ है। कोई गुरु किसी अन्य मन्त्र की साधना सिखाये तो उसे गुरु का दिया मन्त्र तो कहा जा सकता है, पर जब भी गुरु मन्त्र शब्द को शास्त्रीय परंपरा के अनुसार प्रयुक्त किया जायगा तो उसका तात्पर्य गायत्री मन्त्र से ही होगा। इस्लाम धर्म में कलमा का −ईसाई धर्म में बपतिस्मा का जो अर्थ है वही हिन्दू धर्म में अनादि गुरु मंत्र गायत्री को प्राप्त है।
साधना की दृष्टि से गायत्री को सर्वांगपूर्ण एवं सर्व समर्थ कहा गया है। अमृत, पारस, कल्प−वृक्ष और कामधेनु के रूप में इसी महाशक्ति की चर्चा हुई है। पुराणों में ऐसे अनेकानेक कथा प्रसंग भरे पड़े हैं जिनमें गायत्री उपासना द्वारा भौतिक ऋद्धियाँ एवं आत्मिक सिद्धियाँ प्राप्त करने का उल्लेख है। साधना विज्ञान में गायत्री उपासना को सर्वोपरि माना जाता रहा है। उसके माहात्म्यों का वर्णन सर्वसिद्धिप्रद कहा गया है और लिखा है कि तराजू के एक पलड़े पर गायत्री को और दूसरे पर समस्त अन्य उपासनाओं को रखकर तोला जाय तो गायत्री ही भारी बैठती है। राम, कृष्ण आदि अवतारों की−देवताओं और ऋषियों की उपासना पद्धति गायत्री ही रही है। उसे सर्वसाधारण के लिए उपासना अनुशासन माना गया है और उसकी उपेक्षा करने वाली की कटु शब्दों में भर्त्सना हुई है।
सामान्य दैनिक उपासनात्मक नित्यकर्म से लेकर विशिष्ट प्रयोजनों के लिए की जाने वाली तपश्चर्याओं तक में गायत्री को समान रूप से महत्व मिला है। गायत्री, गंगा, गीता, गौ और गोविन्द हिन्दू धर्म के पाँच प्रधान आधार माने गये हैं, इनमें गायत्री प्रथम है। बाल्मीक रामायण और श्रीमद्भागवत में एक−एक शब्द का सम्पुट लगा हुआ है। इन दोनों ग्रन्थों में वर्णित रामचरित्र और कृष्णचरित्र को गायत्री का कथा प्रसंगात्मक वर्णन बताया जाता है इन सब कथनोपकथनों का निष्कर्ष यही निकलता है कि गायत्री मन्त्र के लिए भारतीय धर्म में निर्विवाद रूप से सर्वोपरि मान्यता मिली है।
उसमें जिन तथ्यों का समावेश है उन्हें देखते हुए निकट भविष्य में मानव जाति का सार्वभौम मन्त्र माने जाने की पूरी−पूरी सम्भावना है। देश धर्म, जाति समाज और भाषा की सीमाओं से ऊपर उसे सर्वजनीय उपासना कहा जा सकता है। जब कभी मानवी एकता से सूत्रों को चुना जाय तो आशा की जानी चाहिए गायत्री को महामन्त्र के रूप में स्वीकारा जायगा। हिन्दू धर्म के वर्तमान बिखराव को समेटकर उसके केन्द्रीकरण की एक रूपता की बात सोची जाय तो उपासना क्षेत्र में गायत्री को ही प्रमुखता देनी होगी।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति मार्च 1976
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