Tuesday 24, December 2024
कृष्ण पक्ष नवमी, पौष 2024
पंचांग 24/12/2024 • December 24, 2024
पौष कृष्ण पक्ष नवमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | नवमी तिथि 07:52 PM तक उपरांत दशमी | नक्षत्र हस्त 12:17 PM तक उपरांत चित्रा | शोभन योग 08:53 PM तक, उसके बाद अतिगण्ड योग | करण गर 07:52 PM तक, बाद वणिज |
दिसम्बर 24 मंगलवार को राहु 02:48 PM से 04:03 PM तक है | 01:51 AM तक चन्द्रमा कन्या उपरांत तुला राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:15 AM सूर्यास्त 5:19 PM चन्द्रोदय 1:01 AM चन्द्रास्त 12:48 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतुशिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष नवमी - Dec 23 05:08 PM – Dec 24 07:52 PM
- कृष्ण पक्ष दशमी - Dec 24 07:52 PM – Dec 25 10:29 PM
नक्षत्र
- हस्त - Dec 23 09:09 AM – Dec 24 12:17 PM
- चित्रा - Dec 24 12:17 PM – Dec 25 03:22 PM
अहंकार को छोड़कर ही ईश्वरीय मार्ग पर चलना संभव है।*
*अफ्रीका के दयार नोवा नगर में जगत प्रसिद्ध हकीम लुकमान का जन्म हुआ था। हब्शी परिवार में जन्म होने के कारण उन्हें गुलामों की तरह जीवन बिताने के लिए बाध्य होना पड़ा। मिश्र देश के एक अमीर ने तीस रुपयों में अपनी गुलामी करने के लिए लुकमान को खरीद लिया ओर उनसे खेती बाड़ी का काम लेने लगा।*
यह अमीर बड़ा क्रूर और निर्दयी था वह जरा सी बात पर अपने गुलामों को बहुत सताता था। किन्तु बाहर से उसने धर्म का बड़ा आडम्बर रच रखा था। दिखाने के लिए वह ईश्वर की रट लगाता और खूब धर्म शास्त्र सुनता ताकि लोग उसे बड़ा धर्मात्मा समझें। अमीर का ख्याल था कि धार्मिक कर्मकाण्डों को करके ही मैं स्वर्ग का अधिकारी हो जाऊंगा।*
एक बार मालिक ने हुक्म किया कि अमुक खेत में जाकर जौ बो आओ लुकमान उस खेत में गये और चने बो आये जब खेत उगा और मालिक ने चने के पौधे खड़े देखे तो वह बहुत नाराज हुआ और लुकमान से पूछा कि मैंने तो तुझे जौ बोने के लिये कहा था। तूने चने क्यों बो दिये लुकमान ने शिर झुकाकर नम्रता से कहा मालिक मैंने यह समझ कर चने बोये थे कि इसके बदले जौ उपजेंगे।*
*मालिक का पारा बहुत गरम हो गया। उसने गरज कर कहा- ‘मूर्ख कहीं दुनिया भर में आज तक ऐसा हुआ है कि चने बोये जायं और जौ उपजें?’*
लुकमान और नम्र हो गये उन्होंने मन्द स्वर में कहा- ‘मालिक मेरा कसूर माफ हो। मैं देखता हूँ कि आप दया के खेत में हमेशा पाप के बीज बोते हैं और सोचते हैं कि ईश्वर मुझे अच्छे फल देगा। इसलिए मैंने भी सोचा कि जब ईश्वर के खेतों में पाप बोने पर भी पुण्य फल मिल सकते हैं, तो मेरे चने बोने पर जौ भी पैदा हो सकते हैं।”*
*अमीर के दिल में लुकमान की बात तीर की तरह गई उसने निश्चय किया कि अब मैं अपना आचरण करूंगा और शुभ कर्म करने में दत्त चित्त रहूँगा, क्योंकि बिना पुण्य फल प्राप्त नहीं हो सकता। अमीर को धन के उपदेश से बहुत शिक्षा मिली उसने उन्हें पूर्वक गुलामी से मुक्त कर दिया।*
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!! आज के दिव्य दर्शन 24 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
कबीर कम पढ़े थे मीरा कम पढ़ी थी दूसरे लोग कम पढ़े आदमी थे लेकिन कम पढ़े होते हुए भी व्यक्तित्व उनके साथ में जुड़ा हुआ था इतना शानदार व्यक्तित्व जुड़ा हुआ था इसकी वजह से वह इतनी प्रभावशाली उनकी वस्तुएं हुई गुरु गोविंद साहब संतों का, संतों का संकलन है संतों का संकलन है और उनका भगवान के बराबर का महत्व दिया गया है कैसे दिया गया है इसलिए दिया गया है केवल इसलिए कि वह संतो ने लिखी हैं मीरा गायक थी गायक गायक नहीं थी लता मंगेशकर नहीं थी वह मीरा कौन थी कैसा गाती थी ऐसे ही गाती होंगी जैसे गांव की लड़कियां गाती हैं औरतें गाती रहती है ऐसे ही गाती होंगी तो फिर मीरा का कंठ अच्छा नहीं था नहीं मीरा का कंठ कोई अच्छा नहीं था चैतन्य महाप्रभु का कंठ अच्छा था नहीं कंठ अच्छा नहीं था तो फिर उन्होंने अपने कीर्तनों से कैसे दुनिया को कैसे फहराया दिया उनका व्यक्तित्व था कौन का चैतन्य महाप्रभु का व्यक्तित्व था कीर्तन के पीछे तो हम भी कीर्तन करेंगे आप भी कीर्तन कीजिए पर आप चैतन्य महाप्रभु तो नहीं है |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
अपनी जन्म−जात ईश्वर प्रदत्त अनेकानेक अद्भुत किन्तु प्रसुप्त विशेषताओं और विभूतियों को जागृत करना भी अध्यात्म साधनाओं का लक्ष्य है। उसमें लगता भर ऐसा है मानो बाहर के किसी देवी−देवता को प्रसन्न करने के लिए अनुनय विनय की, भेंट उपहार की, गिड़गिड़ाहट भरी दीनता की, अभिव्यक्ति की जा रही है और साधक उसी का ताना−बाना बुनता है। पर वस्तुतः ऐसा कुछ होता नहीं। देवी−देवताओं को अपने निजी कार्य उत्तरदायित्व और झंझट भी तो कम नहीं होंगे।
हमारी ही तरह वे भी अपने निजी गोरख−धन्धे में लगे होंगे। जब हमें अपने थोड़े से सगे−संबंधियों की सहायता ठीक तरह करते नहीं बन पड़ती तो असंख्य भक्त उपासकों की चित्र−विचित्र मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए दौड़े−दौड़े फिरना उनके लिए भी कठिन ही पड़ेगा और वे सम्भवतः उतना कर भी न पायेंगे जितनी कि अपेक्षा की जाती है।
साधना का क्षेत्र अन्तःजगत है। अपने ही भीतर इतने खजाने दबे पड़े हैं कि उन्हें उखाड़ लेने पर ही कुबेर जितना सुसंपन्न बना जा सकता है। फिर किसी बाहर वाले से माँगने जाँचने की दीनता दिखाकर आत्म−सम्मान क्यों गँवाया जाय? भीतरी विशिष्ट क्षमताओं को ही तत्वदर्शियों ने देवी−देवता माना है और बाह्योपचारों के माध्यम से अन्तः संस्थान के भांडागार को करतलगत करने का विधि−विधान बताया है। शारीरिक बल वृद्धि के लिए डम्बल, मुद्गर उठाने घुमाने जैसे कर्मकाण्ड करने पड़ते हैं। बल इन उपकरणों में कहाँ होता है? वह तो शरीर की मांस पेशियों से ही उभरता है। उस उभार में व्यायामशाला के साधन−प्रसाधन सहायता भर करते हैं। उनसे मिलना कुछ नहीं।
जो मिलना है वह भीतर से ही मिलना है। ठीक यही बात आत्म−साधना के संबंध में भी कही जा सकती है। इस सन्दर्भ में प्रयुक्त होने वाले देवी−देवता एवं विधि−विधान अपनी जेब से कुछ नहीं देते। साधक की निष्ठा भर पकाते हैं उसे कार्य−पद्धति भर सिखाते हैं। इतने का अभ्यस्त बनना ही साधनात्मक कर्मकाण्डों का प्रयोजन है। इतने भर से बात बन जाती है और राह मिल जाती है। साधक अपनी मूर्छना जगाकर उज्ज्वल भविष्य की असीम सम्भावनाएं स्वयं जगा लेता है।
आत्म−चेतना की जागृति ही साधना विज्ञान का लक्ष्य है। इसके लिए अपने चिन्तन एवं कर्तव्य का बिखराव रोककर अभीष्ट प्रयोजन के केन्द्र बिन्दु पर केन्द्रीभूत करना पड़ता है। इसके लिए अपनी गति विधियाँ लगभग उसी स्तर की रखनी पड़ती हैं जैसे कि भौतिक क्षेत्र में सफलताएँ पाने वाले लोगों को अपनानी होती हैं।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1976 पृष्ठ 12
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