Monday 18, November 2024
कृष्ण पक्ष तृतीया, मार्गशीर्ष 2024
पंचांग 18/11/2024 • November 18, 2024
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष तृतीया, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), कार्तिक | तृतीया तिथि 06:56 PM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र म्रृगशीर्षा 03:49 PM तक उपरांत आद्रा | सिद्ध योग 05:21 PM तक, उसके बाद साध्य योग | करण वणिज 07:56 AM तक, बाद विष्टि 06:56 PM तक, बाद बव 06:06 AM तक, बाद बालव |
नवम्बर 18 सोमवार को राहु 08:07 AM से 09:26 AM तक है | चन्द्रमा मिथुन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:49 AM सूर्यास्त 5:15 PM चन्द्रोदय 7:26 PM चन्द्रास्त 10:25 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - मार्गशीर्ष
- अमांत - कार्तिक
तिथि
- कृष्ण पक्ष तृतीया - Nov 17 09:06 PM – Nov 18 06:56 PM
- कृष्ण पक्ष चतुर्थी - Nov 18 06:56 PM – Nov 19 05:28 PM
नक्षत्र
- म्रृगशीर्षा - Nov 17 05:22 PM – Nov 18 03:49 PM
- आद्रा - Nov 18 03:49 PM – Nov 19 02:56 PM
लोक कल्याण कैसे हो सकता है |
गायत्री की 24 शक्तियां |
हमको समय चाहिए आपका |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 18 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
गायत्री मंत्र का एक एक अक्षर एक एक भगवान के अवतार के बराबर है। इसलिए हिंदू धर्म में प्रत्येक गायत्री के अक्षर को एक अवतार माना गया है और एक एक अक्षर की क्या व्याख्यान हो सकता है क्या कथा हो सकती है क्या चरित्र हो सकता है क्या रहस्य हो सकता है यह सारे का सारा हमको 24 अवतारों के पुराणों में कथानक में वर्णन किया गया है। जो कुछ भी है यह सारे का सारा गायत्री मंत्र है गायत्री मंत्र को गायत्री मंत्र के जो तीन फल हैं अमृत, पारस और कल्पवृक्ष, ये तीन फल हैं पारस उसे कहते हैं जिस को छूकर के कुछ का कुछ हो जाता है। गायत्री मंत्र ऐसा है जिसको छू करके आदमी कुछ से कुछ हो जाता है और कायाकल्प हो जाता है। लोहा, लोहा नहीं रहता सोना बन जाता है कायाकल्प हो जाता है जिसका नाम कल्पवृक्ष है और वो असली जिसका नाम है पारस है, पारस है गायत्री मंत्र और गायत्री मंत्र को गायत्री मंत्र को कल्पवृक्ष कहा है।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
संसार में जितना भी वैभव, उल्लास दिखाई पड़ता है या प्राप्त किया जाता है, वह शक्ति के मूल्य पर ही मिलता है। जिसमें, जितनी क्षमता होती है, वह उतना ही सफल होता और वैभव उपार्जित कर लेता है। जीवन में शक्ति का इतना महत्त्वपूर्ण स्थान है कि उसके बिना कोई आनंद नहीं उठाया जा सकता, यहाँ तक कि अनायास उपलब्ध हुए भोगों को भी नहीं भोगा जा सकता। इन्द्रियों में शक्ति रहने तक ही विषय भोगों का सुख प्राप्त किया जा सकता है। यदि ये किसी प्रकार अशक्त हो जाएँ, तो आकर्षक से आकर्षक भोग भी उपेक्षणीय और घृणास्पद लगते हैं। नाड़ी संस्थान की क्षमता क्षीण हो जाय, तो शरीर का सामान्य क्रियाकलाप भी ठीक तरह नहीं चल पाता।*
मानसिक शक्ति घट जाने पर मनुष्य की गणना विक्षिप्तों और उपहासास्पदों में होने लगती है। धन-शक्ति न रहने पर दर-दर का भिखारी बनना पड़ता है। मित्र शक्ति न रहने पर एकाकी जीवन सर्वथा निरीह और निरर्थक लगने लगता है। आत्म-बल न होने पर प्रगति के पथ पर एक कदम भी यात्रा नहीं बढ़ती। जीवनोद्देश्य की पूर्ति आत्म-बल से रहित व्यक्ति के लिए सर्वथा असंभव ही है।
भारतीय मनीषियों ने विभिन्न शक्तियों को देवनामों से संबोधित किया है। ये समस्त देव-शक्तियाँ उस परम शक्ति की किरणें ही हैं, उनका अस्तित्व इस महत्तत्त्व के अंतर्गत ही है। विद्यमान सभी देव शक्तियाँ उस महत्तत्त्व के ही स्फुलिंग हैं, जिसे अध्यात्म की भाषा में गायत्री कहकर पुकराते हैं। जैसे जलते हुए अग्रिकुण्ड में से चिनगारियाँ उछलती हैं, उसी प्रकार विश्व की महान् शक्ति सरिता गायत्री की लहरें उन देव शक्तियों के रूप में देखने में आती हैं। संपूर्ण देवताओं की सम्मिलित शक्ति को गायत्री कहा जाय, तो यह उचित होगा।
हमारे पूर्वजों ने चरित्र को उज्ज्वल तथा विचारों को उत्कृष्ट रखने के अतिरिक्त अपने व्यक्तित्व को महानता के शिखर तक पहुँचाने के लिए उपासना का मोहात्मक संबल गायत्री महामंत्र को पकड़ा था और इसी सीढ़ी पर चढ़ते हुए वे देव पुरुषों में गिने जाने योग्य स्थिति प्राप्त कर सके थे। देवदूतों, अवतारों, गृहस्थियों, महिलाओं, साधु ब्राह्मïणों, सिद्ध पुरुषों की ही नहीं, साधारण सद्गृहस्थों की उपास्य भी गायत्री ही रही है और उस अवलम्बन के आधार पर न केवल आत्म-कल्याण का श्रेय साधन किया है, वरन् भौतिक सुख-संपदाओं की सांसारिक आवश्यकताओं को भी आवश्यक मात्रा में उपलब्ध किया है।
संसार में कुछ भी प्राप्त करने की एकमेव महाशक्ति ने इस निखिल ब्रह्मण्ड में अपनी अनंत शक्तियाँ बिखेर रखी हैं। उनमें से जिनकी आवश्यकता होती है, उन्हें मनुष्य अपने प्रबल पुरुषार्थ द्वारा प्राप्त कर सकता है। विज्ञान द्वारा प्रकृति की अनेकों शक्तियों को मनुष्य ने अपने अधिकार में कर लिया है। विद्युत्, ताप, प्रकाश, चुम्बक, शब्द, अणु- शक्ति जैसी प्रकृति की कितनी ही अदृश्य और अविज्ञात शक्तियों को उसने ढूँढ़ा और करतलगत किया है; पर ब्रह्म की चेतनात्मक शक्तियाँ भी कितनी ही हैं, उन्हें आत्मिक प्रयासों द्वारा करतलगत किया जा सकता है।
मनुष्य का अपना चुम्बकत्व असाधारण है। वह उसी क्षमता के सहारे भौतिक जीवन में अनेकों को प्रभावित एवं आकर्षित करता है। उसी आधार पर वह साधन जुटाता, सम्पन्न बनता और सफलताएँ उपलब्ध करता है। इसी चुम्बक शक्ति के सहारे वह व्यापक ब्रह्म-चेतना के महासमुद्र में से उपयोगी चेतन तत्त्वों को आकर्षित एवं करतलगत कर सकता है।
इन शक्तियों में सर्वप्रमुख और सर्वाधिक प्रभावशाली प्रज्ञा-शक्ति है। प्रज्ञा की अभीष्ट मात्रा विद्यमानï हो, तो फिर और कोई ऐसी कठिनाई शेष नहीं रह जाती, जो नर को नारायण, पुरुष को पुरुषोत्तम बनाने से वंचित रख सके। श्रम और मनोयोग तो आत्मिक प्रगति में भी उतना ही लगाना पर्याप्त होता है, जितना की भौतिक समस्याएँ हल करने में आये दिन लगाना पड़ता है।
महामानवों को उससे अधिक कष्ट नहीं सहने पड़ते, जितने कि सामान्य जीवन में आये दिन हर किसी को सहने पड़ते हैं। लोभ और मोह की पूर्ति में जितना पुरुषार्थ और साहस करना पड़ता है, उससे कम में ही उत्कृष्ट आदर्शवादी जीवन का निर्माण-निर्धारण किया जा सकता है। मूल कठिनाई एक ही है- प्रज्ञा प्रखरता की। यदि वह प्राप्त हो सके, तो जीवन में ऋद्धि-सिद्धियों की उपलब्धियों से भर देने वाली संभावनाओं को प्राप्त कर सकने में अब कोई कठिनाई शेष नहीं रह गई।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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