Friday 02, May 2025
शुक्ल पक्ष पंचमी, बैशाख 2025
पंचांग 02/05/2025 • May 02, 2025
बैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | पंचमी तिथि 09:14 AM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र आद्रा 01:04 PM तक उपरांत पुनर्वसु | सुकर्मा योग 05:38 AM तक, उसके बाद धृति योग 03:19 AM तक, उसके बाद शूल योग | करण बालव 09:15 AM तक, बाद कौलव 08:27 PM तक, बाद तैतिल |
मई 02 शुक्रवार को राहु 10:35 AM से 12:14 PM तक है | चन्द्रमा मिथुन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:37 AM सूर्यास्त 6:50 PM चन्द्रोदय 9:20 AM चन्द्रास्त 12:12 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - बैशाख
तिथि
- शुक्ल पक्ष पंचमी
- May 01 11:23 AM – May 02 09:14 AM
- शुक्ल पक्ष षष्ठी
- May 02 09:15 AM – May 03 07:52 AM
नक्षत्र
- आद्रा - May 01 02:20 PM – May 02 01:04 PM
- पुनर्वसु - May 02 01:04 PM – May 03 12:34 PM

स्वाध्याय एवं सत्संग। Swadhyay evam Satsang | Pt Shriram Sharma Acharya

जीवात्मा का तेज ही ब्रह्म बल हैं | Jivatama Ka Tej Hi Bhramha Bal Hai
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 02 may 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!(गुरू का ध्यान क्यों करना चाहिए )
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
जीवन को सफल, उच्च एवं पवित्र बनाने के लिए स्वाध्याय की बड़ी आवश्यकता है। किसी भी ऐसे व्यक्ति का जीवन क्यों न देख लिया जाये, जिसने उच्चता के सोपानों पर चरण रखा है। उसके जीवन में स्वाध्याय को विशेष स्थान मिला होगा। स्वाध्याय के अभाव में कोई भी व्यक्ति ज्ञानवान नहीं बन सकता। प्रतिदिन नियमपूर्वक सद्ïग्रन्थों का अध्ययन करते रहने से बुद्धि तीव्र होती है, विवेक बढ़ता है और अन्त:करण की शुद्धि होती है। इसका स्वस्थ एवं व्यावहारिक कारण है कि सद्ïग्रन्थों के अध्ययन करते समय मन उसमें रमा रहता है और ग्रन्थ के सद्ïवाक्य उस पर संस्कार डालते रहते हैं।
स्वाध्याय द्वारा अन्त:करण के निर्मल हो जाने पर मनुष्य के बाह्यï अन्तर पट खुल जाते हैं, जिससे वह आत्मा द्वारा परमात्मा को पहचानने के लिए जिज्ञासु हो उठता है। मनुष्य की यह जिज्ञासा भी स्वाध्याय के निरन्तर बढ़ती एवं बलवती होती रहती है और कर भी लेता है। परमात्मा के साक्षात्कार का उपाय भी स्वाध्याय से ही पता चल सकता है।
स्वाध्यायशील व्यकित का जीवन अपेक्षाकृत अधिक पवित्र हो जाता है। ग्रन्थों में सन्निहित सद्ïवाणी तो अपना प्रभाव एवं संस्कार डालती ही है, साथ ही अध्ययन में रुचि होने से व्यक्ति अपना शेष समय पढऩे में ही लगाता है। वह या तो अपने कमरे में बैठा हुआ एकांत अध्ययन करता है अथवा किसी पुस्तकालय अथवा वाचनालय में पुस्तकों के बीच रहता है। उसके पास फालतू समय नहीं रहता जिसमें जाकर इधर-उधर बैठे अथवा घूमें और फिर वायु मण्डल अथवा संगति से अवांछित संस्कार ग्रहण करें। जब मनुष्य निरर्थकों की संगति में न जाकर जीवनोपयोगी सद्ïसाहित्य के अध्ययन में ही संलग्न रहेगा तो उसका आचार शुद्ध हो जायेगा।
अध्ययनशील व्यक्ति स्वयं तो बेकार रहकर कहीं नहीं जाता, उसके पास बेकार के निठल्ले व्यक्ति भी नहीं आते और वे यदि कभी आ भी जाते हैं तो अध्ययनशील व्यक्ति के आस-पास का व्यस्त वायुमण्डल उनके अनुकूल नहीं होता और वे शीघ्र उसका अधिक समय खराब किये बिना खिसक जाते हैं। इस प्रकार फिजुल के व्यक्तियों के संग से उत्पन्न होने वाली विकृतियों से अध्ययनशील व्यक्ति सहज ही बच जाता है जिससे उसके आचार-विचार पर कुसंस्कार नहीं पडऩे पाते।
निरन्तर अध्ययन करते रहने से मनुष्य का ज्ञान जाग्रत रहता है जिसका उद्रेक उसकी वाणी द्वारा हुए बिना नहीं रहता। अस्तु अध्ययनशील व्यक्ति की वाणी सफल, सार्थक तथा प्रभावोत्पादक बन जाती है। वह जिस सभा समाज में जाता है, उसकी ज्ञान-मुखर वाणी उसे विशेष स्थान दिलाती है। अध्ययनशील व्यक्ति का ही कथन प्रामाणिक तथा तथ्यपूर्ण माना जा सकता है। स्वाध्याय सामाजिक प्रतिष्ठा का संवाहक होता है।
संसार के इतिहास में ऐसे असंख्य व्यक्ति भरे हैं जिनको जीवन में विद्यालय के दर्शन न हो सके किन्तु स्वाध्याय के बल पर वे विश्व के विशेष विद्वान व्यक्ति बने हैं। साथ ही ऐसे व्यक्तियों की भी कमी नहीं है जिनकी जिन्दगी का अच्छा खासा भाग विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में बीता किन्तु उसके बाद स्वाध्याय में प्रमाद करने के कारण उनकी एकत्रित योग्यता भी उन्हें छोडक़र चली गयी और वे अपनी तपस्या का न तो कोई लाभ उठा पाये और न सुख योग्यता को बनाये रखने और बढ़ाने के लिए स्वाध्याय नितान्त आवश्यक है।
स्वाध्याय को मानसिक योग भी कहा गया है। जिस प्रकार प्रभु का नाम जपता हुआ योगी उस परमात्मा के प्रकाश रूप में तल्लीन हो जाता है उसी प्रकार एकाग्र होकर सद्ïविचारों के अध्ययन में तल्लीन हो जाने वाला अध्येता अक्षर ब्रह्मï की सिद्धि से ज्ञान रूप प्रकाश का अधिकारी बनता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
लोगों को शिकायत रहती है, मन भागता रहता है। मन क्या भागना चाहिए, बेटे? जप के साथ-साथ में दो ध्यान हम बताते रहते हैं, अक्सर एक साकार ध्यान बताते रहते हैं, एक निराकार बताते रहते हैं। साकार ध्यान ये है कि हमारी माँ गायत्री, माँ गायत्री, माँ जिसकी कृपा हमारे ऊपर बरसती है, जिसका अनुग्रह हमारे ऊपर बरसता है। गायत्री माता क्या है? गायत्री माता वह है, जिसमें हम जवान स्त्री को माता के रूप में देखना शुरू करते हैं। वह बुद्धि, पराए पैसे को जिसमें हम आँख के रूप से देखना चाहते हैं, वह बुद्धि, सद्विवेक की देवी, सद्विवेक की देवी, सद्विचारणाओं की देवी का नाम गायत्री मंत्र है। गायत्री देवी है, महाराज जी, हाँ, देवी है तो सही। बेटा, गायत्री देवी, देवी आपको आती है, तो खूब सामान लाती है। हाँ, बेटे, देवी कभी-कभी तो आती थी पहले, पर अब देवी को हमने ये कहा न जाने हैं भी कि नहीं। इसीलिए फिर हमने तब ये गुरू का ध्यान करना शुरू कर दिया है। गुरू का ध्यान, हाँ, बेटे, हम गुरू का ध्यान करते हैं। गुरू को हमने देखा है, देखा है उनके बारे में, हमको विश्वास है। गायत्री माता के बारे में तो हमको ये शक हो गया है कि जो शक्ल हमने बना रखी है, ये हमारी कल्पित है। कल्पित है हमारे मन में, ये शक हो गया है। शक हो जाने की वजह से हमारी निष्ठा डावां-डावांडोल हो गई है, और ये कल्पना है। हाँ, ये कल्पना है, किसकी कल्पना है? सिद्धांतों की कल्पना, आदर्शों की कल्पना, आदर्श है कौन सा? आदर्श जिसमें हम जवान औरत को जिस भावना से, जिस बुद्धि से माँ की तरह से देखते हैं, उस भावना का नाम गायत्री है।
अखण्ड-ज्योति से
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