Tuesday 11, March 2025
शुक्ल पक्ष द्वादशी, फाल्गुन 2025
पंचांग 11/03/2025 • March 11, 2025
फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), फाल्गुन | द्वादशी तिथि 08:14 AM तक उपरांत त्रयोदशी | नक्षत्र आश्लेषा 02:15 AM तक उपरांत मघा | अतिगण्ड योग 01:17 PM तक, उसके बाद सुकर्मा योग | करण बालव 08:14 AM तक, बाद कौलव 08:39 PM तक, बाद तैतिल |
मार्च 11 मंगलवार को राहु 03:23 PM से 04:50 PM तक है | 02:15 AM तक चन्द्रमा कर्क उपरांत सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:35 AM सूर्यास्त 6:18 PM चन्द्रोदय 3:45 PM चन्द्रास्त 5:30 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वसंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - फाल्गुन
- अमांत - फाल्गुन
तिथि
- शुक्ल पक्ष द्वादशी
- Mar 10 07:45 AM – Mar 11 08:14 AM
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
- Mar 11 08:14 AM – Mar 12 09:11 AM
नक्षत्र
- आश्लेषा - Mar 11 12:51 AM – Mar 12 02:15 AM
- मघा - Mar 12 02:15 AM – Mar 13 04:05 AM

देने की वृत्ति का क्या अर्थ है? Dene Ki Vritti Ka Kya Arth Hai

ध्यान:- पुन: जन्म का ध्यान Punah Janm Ka Dhyan |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! आज के दिव्य दर्शन 11 March 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
बेटे, हमारा भगवान पर कतई विश्वास नहीं है, भगवान के प्रति श्रद्धा है। बेटे, नाम मात्र को श्रद्धा नहीं है, नाम मात्र को श्रद्धा, विश्वास अगर होता तो शालीनताएं, श्रेष्ठताएं, आदर्श, जिसका दूसरा नाम है भगवान। भगवान मनुष्य नहीं है, मनुष्य भगवान कोई मनुष्य नहीं है। यह तो हमने ध्यान की कल्पना के लिए बनाए हैं। भगवान, आपने हनुमान जी बना लिए हैं, हमने गणेश जी बना लिए हैं, आपने विवेकानंद बना लिए, आपने और बना लिए हैं। कोई तरह के भगवान बनाए जा सकते हैं।
हमने तो एक अजीब किस्म का भगवान बना लिया है। पहले गायत्री माता में बहुत बड़ी हगची चलती थी। गायत्री माता अब माताजी के हिस्से में चली गई है, कन्याओं के हिस्से में चली गई है। हमने भगवान की अलग शक्ल बना लिया है, जो हमको ज्यादा अच्छी लगती है। हमने अपनी गुरु की शक्ल का भगवान बना लिया है। हमारी कोठरी में, कमरे में, हमारा भगवान बैठा रहता है, और अब हमारे ध्यान में केवल गुरु बैठा रहता है। जब हम आंख बंद करते हैं, तो हमारा भगवान उसी शक्ल में, उसी दाढ़ी की शक्ल में, और उसी मूंछ की शक्ल में, उसी तरह का बिल्कुल सामने खड़ा हो जाता है। हमने कहा, भगवान को हमने देखा नहीं है, और वो दिखाई नहीं पड़ता। भगवान हमसे बात नहीं करता, आपने तो हमसे कितनी बार बात की। और आपकी ओर हमारा मन लग जाता है, आपकी शक्ल का हम भगवान बना लेते हैं। हमारा अब भगवान इस समय का, जो हमारा भगवान है, हमारे गुरु की शक्ल का है, और हमने बनाया है। हमने बनाया है, हमारे कमरे में फोटो टंगा हुआ है। पर मित्रों, उसी के आधार पर, हमको जो भगवान से कृपा मिलनी चाहिए, चमत्कार मिलनी चाहिए, सिद्धि मिलनी चाहिए, उसी से मिल जाती है। तो महाराज जी, एक फोटो हमको दे दीजिए। फोटो हम तुझे दे देंगे, बिकता है, आठ आने का ले जाना, कोई खास बात नहीं। हमको भी चमत्कार आएगा। नहीं, तुझे चमत्कार नहीं आ सकता। गुरु का असली गुरु को दिखा देंगे। हां, बेटे, मैं असली गुरु को भी दिखा सकता हूं, तू चाहे ज्यादा आग्रह करें, मैंने तो बता दिया। तुझे बहुत आग्रह है, तो मैं असली गुरु को भी दिखा सकता हूं।
अखण्ड-ज्योति से
एक - जो कोरे नास्तिक हैं, वे स्पष्ट मना करते हैं, कि ईश्वर नहीं है।
दूसरे - वे लोग जो आस्तिक तो हैं, ईश्वर को मानते तो हैं, परंतु ईश्वर का स्वरूप ठीक नहीं समझते। वे वृक्षों में और मूर्तियों में और फोटो में और पता नहीं कहां-कहां ईश्वर की पूजा करते रहते हैं।
तीसरे - वे लोग हैं जो ईश्वर को शब्दों से तो ठीक जानते मानते हैं, परंतु उसके अनुसार आचरण नहीं कर पाते। जैसे कि वे कहते हैं, ईश्वर न्यायकारी है, हमारे पापों का दंड माफ नहीं करेगा। फिर भी वो कहीं ना कहीं पाप कर लेते हैं।
और चौथे - प्रकार के व्यक्ति वे हैं, जो ईश्वर को ठीक तरह से जानते भी हैं, मानते भी हैं, और आचरण भी वैसा ही करते हैं। अर्थात वे पाप नहीं करते।
सच्चे पूर्ण आस्तिक तो यही हैं, चौथे वाले।
यदि आप पहले वर्ग में हैं, अर्थात नास्तिक हैं, तो भी आप ईश्वर से लाभ नहीं उठा पाएंगे।
यदि आप दूसरे वर्ग में हैं, तो भी आप भटकते रहेंगे। आपके पाप नहीं छूटेंगे। और ईश्वर से लाभ नहीं ले पाएंगे। यदि आप तीसरे वर्ग में हैं, तो भी पाप बंद नहीं होंगे, क्योंकि आपका शाब्दिक ज्ञान ठीक होते हुए भी आचरण ठीक नहीं है, और आपको उसका दंड भोगना पड़ेगा।
इसलिए चौथे वर्ग में आना चाहिए। सच्चा आचरणशील आस्तिक बनना चाहिए। जिससे आपका वर्तमान जीवन भी अच्छा बने और आपका भविष्य भी स्वर्णिम हो, सुखदायक हो।
स्वामी विवेकानंद
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