Saturday 10, May 2025
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, बैशाख 2025
पंचांग 10/05/2025 • May 10, 2025
बैशाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | त्रयोदशी तिथि 05:30 PM तक उपरांत चतुर्दशी | नक्षत्र चित्रा 03:15 AM तक उपरांत स्वाति | सिद्धि योग 04:00 AM तक, उसके बाद व्यातीपात योग | करण तैतिल 05:30 PM तक, बाद गर |
मई 10 शनिवार को राहु 08:52 AM से 10:33 AM तक है | 01:42 PM तक चन्द्रमा कन्या उपरांत तुला राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:31 AM सूर्यास्त 6:55 PM चन्द्रोदय 5:04 PM चन्द्रास्त 4:19 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - बैशाख
तिथि
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
- May 09 02:56 PM – May 10 05:30 PM
- शुक्ल पक्ष चतुर्दशी
- May 10 05:30 PM – May 11 08:02 PM
नक्षत्र
- चित्रा - May 10 12:09 AM – May 11 03:15 AM
- स्वाति - May 11 03:15 AM – May 12 06:17 AM

नृसिंह गायत्री, Narsimha Gayatri Mantra | पराक्रम, वीरता, शत्रु नाश, आतंक, आक्रमण से रक्षा।

निराश मत होइए अन्यथा सब कुछ खो बैठेंगे | Nirash Mat Hoiye Anyatha Sab Kuch Kho Baithenge

गीदड़ का विवाह | Gidrah Ka Vivah | बाल निर्माण की कहानी | Shantikunj Rishi Chintan Channel

विचार शक्ति को कैसे परिष्कृत करें | Vichar Shakti Ko Kaise Pariskrit Kare

आत्मपरिष्कार से परब्रह्म की प्राप्ति | AatamPariskar Se Parambharm Ki Prapti

मन्त्र का विज्ञान | Mantra Ka Vigyan

मानव जीवन आध्यात्मिक रहस्यों से भरा | Manav Jivan Adhyatmaik Rahshayno Se Bhara

जो मन से जीता वही विजेता हैं | Jo Man Se Jita Wahi Vijeta Hai |

मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ | Mai Vyakti Nahin Vichar Hun | Pt Shriram Sharma Acharya
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

अमृत सन्देश: सिद्धियों को कैसे प्राप्त करें ? | Siddhiyon Ko Kaise Prapt Kare|परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

!! शांतिकुंज दर्शन 10 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
अबकी बार हिमालय चले तो गुरु जी, हमको भी ले चलना।
हां बेटे, हम ले चलेंगे बेटे। हमें क्या दिक्कत है?
तो फिर गुरु जी, कृपा मिलेगी कि नहीं?
मिलेगी नहीं, बेटे। कृपा नहीं मिल सकती।
तो फिर हम क्या फायदा करेंगे?
बेटे, तू विचार कर ले पहले कि कृपा का वादा नहीं दे सकता। मैं ले तो चल सकता हूं, दिखा तोलाऊंगा। पर दिखाने के साथ-साथ में, यूं कहिए कि कोई वरदान आशीर्वाद देंगे?
नहीं देंगे, बेटे। वरदान नहीं देंगे तुझे।
क्यों नहीं देंगे?
इसलिए नहीं देंगे कि तू वरदान को हजम नहीं कर सकता। वरदान हजम करने लायक स्थिति नहीं है तेरी।
वरदान को हजम करने लायक स्थिति हम पैदा करें तो?
बेटे, हमारे गुरु का अनुग्रह जो हिमालय पर रहते हैं, जहां जाकर हम लेकर आते हैं, आपको यहीं बैठे-बैठे मिल सकता है। ब्रह्मवर्चस आरण्यक में हमने इसीलिए बनाया है। वो व्यक्ति उपासना करने के लिए आएं हैं, जो हमने सारी जिंदगी भर की उपासना की।
आप थोड़े समय में भी प्राप्त कर सकते हैं।
विवेकानंद ने, रामकृष्ण परमहंस ने, जन्म-जन्मांतरों की उपासना की, जिसे कि उसे विवेकानंद ने थोड़े दिन में प्राप्त कर लिया। आप थोड़ी देर में प्राप्त कर सकते हैं।
जो हमने मुद्दतों से पाया, वो आप कुछ ही समय में पा सकते हैं।
गाय ने 24 घंटे घास खाकर के हजम करके जो दूध पेट में जमा किया है, आप उसको 5 मिनट में पी सकते हैं।
यह आपका सौभाग्य है कि आप पी सकते हैं। लेकिन, आपको इतना तो करना ही पड़ेगा।
गाय के दूध पीने के लिए गाय के बच्चे के समतुल्य होना चाहिए।
गाय के बच्चे के समतुल्य आप होते हैं कि नहीं?
अगर हैं तो आप विश्वास रखिए। ब्रह्मवर्चस आरण्यक, इस शिविर के साथ हमने जोड़ा है।
इसमें कुंडलिनी जागरण भी शामिल है।
इसमें पंचकोशों के साथ हमने जोड़ा है।
मनुष्य के भीतर से देवत्व का उदय होना भी शामिल है।
और जिसके अंदर से आपके समीपवर्ती वातावरण में स्वर्गीय परिस्थितियों का पैदा होना भी शामिल है।
यह सारी की सारी जो विभूतियां, विशेषताएं बताई गई थी, वो सारी की सारी सिद्धियां आपका स्वागत करती हैं और आप को बुलाती हैं।
आप चाहे तो हमारा स्वीकार कर सकते हैं।
आपको प्रार्थना करने की जरूरत नहीं है।
आप हमको स्वीकार कीजिए।
लेकिन उसकी कीमत आपको इसी रूप में चुकानी पड़ेगी।
आप अपना परिष्कृत जीवन, श्रेष्ठ दृष्टिकोण, ऊँचा चिंतन, आदर्श जीवन का स्वरूप अगर बनाएं,
तो आपको वो सिद्धियां आएंगी।
वह और चमत्कार आएंगे, जिसके बाबत ऋषियों ने बहुत सारे माहात्म्य बताए, वर्णन किए।
अखण्ड-ज्योति से
जानने योग्य इस संसार में अनेक वस्तुएँ हैं, पर उन सबमें प्रधान अपने आपको जानना है। जिसने अपने को जान लिया उसने जीवन का रहस्य समझ लिया। भौतिक विज्ञान के अन्वेषकों ने अनेक आश्चर्यजनक आविष्कार किए हैं। प्रकृति के अन्तराल में छिपी हुई विद्युत शक्ति, ईश्वर शक्ति, परमाणु शक्ति आदि को ढूँढ़ निकाला है। अध्यात्म जगत के महान अन्वेषकों ने जीवन सिन्धु का मन्थन करके आत्मा रूपी अमृत उपलब्ध किया है। इस आत्मा को जानने वाला सच्चा ज्ञानी हो जाता है और इसे प्राप्त करने वाला विश्व विजयी मायातीत कहा जाता है। इसलिए हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने आपको जाने।
मैं क्या हूँ, इस प्रश्न को अपने आपसे पूछे और विचार करे, चिन्तन तथा मननपूर्वक उसका सही उत्तर प्राप्त करे। अपना ठीक रूप मालूम हो जाने पर, हम अपने वास्तविक हित-अहित को समझ सकते हैं। विषयानुरागी अवस्था में जीव जिन बातों को लाभ समझता है, उनके लिए लालायित रहता है, वे लाभ आत्मानुरक्त होने पर तुच्छ एवं हानिकारक प्रतीत होने लगते हैं और माया लिप्त जीव जिन बातों से दूर भागता है, उसमें आत्म-परायण को रस आने लगता है। आत्म-साधन के पथ पर अग्रसर होने वाले पथिक की भीतरी आँखें खुल जाती हैं और वह जीवन के महत्वपूर्ण रहस्य को समझकर शाश्वत सत्य की ओर तेजी के कदम बढ़ाता चला जाता है।
अनके साधक अध्यात्म-पथ पर बढऩे का प्रयत्न करते हैं पर उन्हें केवल एकांगी और आंशिक साधन करने के तरीके ही बताये जाते हैं। आत्म-दर्शन का यह अनुष्ठान साधकों को ऊँचा उठायेगा, इस अभ्यास के सहारे वे उस स्थान से ऊँचे उठ जायेंगे जहाँ कि पहले खड़े थे। इस उच्च शिखर पर खड़े होकर वे देखेंगे कि दुनियाँ बहुत बड़ी है। मेरा राज्य बहुत दूर तक फैला हुआ है। जितनी चिन्ता अब तक थी, उससे अधिक चिन्ता अब मुझे करनी करनी है। वह सोचता है कि मैं पहले जितनी वस्तुओं को देखता था, उससे अधिक चीजें मेरी हैं।
अब वह और ऊँची चोटी पर चढ़ता है कि मेरे पास कहीं इससे भी अधिक पूँजी तो नहीं है? जैसे-जैसे ऊँचा चढ़ता है वैसे ही वैसे उसे अपनी वस्तुएँ अधिकाधिक प्रतीत होती जाती हैं और अन्त में सर्वोच्च शिखर पर पहुँचकर वह जहाँ तक दृष्टि फैला सकता है, वहाँ तक अपनी ही अपनी सब चीजें देखता है। अब तक उसे एक बहिन, दो भाई, माँ बाप, दो घोडे, दस नौकरों के पालन की चिन्ता थी, अब उसे हजारों गुने प्राणियों के पालने की चिन्ता होती है। यही अहंभाव का प्रसार है। दूसरे शब्दों में इसी को अहंभाव का नाश कहते हैं।
आत्मा के वास्तविक स्वरूप की एक बार देख लेने वाला साधक फिर पीछे नहीं लौट सकता। प्यास के मारे जिसके प्राण सूख रहे हैं ऐसा व्यक्ति सुरसरि का शीतल कूल छोडक़र क्या फिर उसी रेगिस्तान में लौटने की इच्छा करेगा? जहाँ प्यास के मारे क्षण-क्षण पर मृत्यु समान असहनीय वेदना अब तक अनुभव करता रहा है। भगवान कहते हैं- जहाँ जाकर फिर लौटना नहीं होता, ऐसा मेरा धाम है। सचमुच वहाँ पहुँचने पर पीछे को पाँव पड़ते ही नहीं। योग भ्रष्ट हो जाने का वहाँ प्रश्न ही नहीं उठता। घर पहुँच जाने पर भी क्या कोई घर का रास्ता भूल सकता है?
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
Newer Post | Home | Older Post |