Thursday 19, December 2024
कृष्ण पक्ष चतुर्थी, पौष 2024
पंचांग 19/12/2024 • December 19, 2024
पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | चतुर्थी तिथि 10:03 AM तक उपरांत पंचमी | नक्षत्र आश्लेषा 01:59 AM तक उपरांत मघा | वैधृति योग 06:33 PM तक, उसके बाद विष्कुम्भ योग | करण बालव 10:03 AM तक, बाद कौलव 10:20 PM तक, बाद तैतिल |
दिसम्बर 19 गुरुवार को राहु 01:29 PM से 02:45 PM तक है | 01:59 AM तक चन्द्रमा कर्क उपरांत सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:12 AM सूर्यास्त 5:16 PM चन्द्रोदय 9:22 PM चन्द्रास्त 11:02 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष चतुर्थी - Dec 18 10:06 AM – Dec 19 10:03 AM
- कृष्ण पक्ष पंचमी - Dec 19 10:03 AM – Dec 20 10:49 AM
नक्षत्र
- आश्लेषा - Dec 19 12:58 AM – Dec 20 01:59 AM
- मघा - Dec 20 01:59 AM – Dec 21 03:47 AM
नैतिकता का उदय, Naitikta Ka Uday
भगवान के साथ सौदा | Bhagwan Ke Sath Sauda
किसी देश में एक बार वर्षा कम हुई। किसान नालियाँ काट-काटकर दूर से पानी लाते थे। एक किसान बडा़ हठी था। उसने एक दिन शपथ ली कि जब पानी न आने लगे, नहर से नाली का योग न हो जाए, तब तक बराबर नाली खोदूँगा। इधर नहाने का समय हुआ। उसकी स्त्री ने लड़की को उसे बुलाने भेजा। लड़की बोली, 'पिताजी, दोपहर हो गयी, चलो तुमको माँ बुलाती है। 'उसने कहा, तू चल, हमें अभी काम है।' दोपहर ढल गयी, पर वह काम पर हटा रहा। नहाने का नाम न लिया।
तब उसकी स्त्री खेत में जाकर बोली, 'नहाओगे कि नहीं? रोटियाँ ठण्डी हो रही हैं। तुम तो हर काम में हठ करते हो। काम कल करना या भोजन के बाद करना।' गालियाँ देता हुआ कुदाल उठाकर किसना स्त्री को मारने दौडा़ बोला, 'तेरी बुद्धि मारी गयी है क्या? देखती नहीं कि पानी नहीं बरसता; खेती का काम सब पडा़ है; अब की बार लड़के-बच्चे क्या खाएँगे? सब को भूखों मरना होगा। हमने यही ठान लिया है कि खेत में पहले पानी लायेंगे, नहाने-खाने की बात पीछे होगी।' मामला टेढा़ देखकर उसकी स्त्री वहाँ से लौट पडी़।
किसान ने दिनभर जी तोड़ मेहनत करके शाम के समय नहर के साथ नाली का योग कर दिया। फिर एक किनारे बैठकर देखने लगा, किस तरह नहर पानी खेत में 'कलकल' स्वर से बहता हुआ आ रहा है, तब उसका मन शान्ति और आनन्द से भर गया। घर पहुँचकर उसने स्त्री को बुलाकर कहा, 'ले आ अब डोल और रस्सी।' स्नान भोजन करके निश्चिन्त करके निश्चिन्त होकर फिर वह सुख से खुर्राटे लेने लगा। जिद यह है और यही तीव्र वैराग्य की उपमा है।
"खेत में पानी लाने के लिए एक और किसान गया था। उसकी स्त्री जब गयी और बोली, 'धूप बहुत हो गयी, चलो अब, इतना काम नहीं करते', तब वह चुपचाप कुदाल एक ओर रखकर बोला, 'अच्छा, तू कहती है तो चलो।' (सब हँसते हैं।) वह किसान खेत में पानी न ला सका। यह मन्द वैराग्य की उपमा है।
हठ बिना जैसे किसान खेत में पानी नहीं ला सकता, वैसे ही मनुष्य ईश्वरदर्शन नहीं कर सकता।"
रामकृष्ण परमहंस
(रामकृष्ण वचनामृत से)
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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
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!! आज के दिव्य दर्शन 19 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
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!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 19 December 2024 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
तीर्थों का एक खास वह है मकसद कि लोगों से संपर्क बनाया जाए और संपर्क बनाकर के उनको वो बातें बताई जाएं जो कि उनको मालूम नहीं है ध्रुव को मालूम नहीं था कि राजकुमार बनना ज्यादा शानदार है अथवा भगवान की भक्ति ज्यादा शानदार है प्रहलाद को मालूम नहीं था बाप के कहने के मुताबिक उसके बाप का नाम हिरण कश्यप था सोना ही देखता था सोना ही सपने में सोना ही दिन में सोना ही रात में सोना ही ध्यान में होता था उसके बेटे ने उनका कहना नहीं माना उसको सही रास्ता मालूम नहीं था बेचारे को उसको बताने के लिए नारद जी उनके पास गए थे ध्रुव गया था नारद जी के पास नहीं ध्रुव नहीं गया था नारद जी ही गए थे आपको भी अब यही करना पड़ेगा कि जन जन के पास आपको जाना पड़ेगा और जन-जन के पास में संपर्क बनाना पड़ेगा काहे का संपर्क बनाना पड़ेगा किस काम के लिए आपको माँगने के लिए नहीं देने के लिए देने को हमारे पास क्या है आपके पास तो बहुत है आपके पास आपके पास इतना है जितना कि किसी के पास नहीं है |
अखण्ड-ज्योति से
अपने आपको एक साल के छोटे बच्चे की स्थिति में अनुभव करना चाहिए। छोटे बालक का हृदय सर्वथा शुद्ध, निर्मल और निश्चिंत होता है, जैसा ही अपने बारे में भी सोचना चाहिए। कामना-वासना, भय, लोभ, चिंता, शोक, द्वेष, आदि से अपने को सर्वथा मुक्त और संतोष, उल्लास एवं आनंद से ओत-प्रोत स्थिति में अनुभव करना चाहिए। साधक का अंतःकरण साधना काल में बालक के समान शुद्ध एवं निश्छल रहने लगे तो प्रगति तीव्र गति से होती है। भजन में तन मन लगता है और वह निर्मल स्थिति व्यावहारिक जीवन में भी बढ़ती जाती है।
माता और बालक परस्पर जैसे अत्यंत आत्मीयता और अभिन्न ममता के साथ सुसंबद्ध रहते हैं। हिल-मिलकर प्रेम का आदान-प्रदान करते हैं वैसा ही साधक का भी ध्यान होना चाहिए। “हम एक वर्ष के अबोध बालक के रूप में माता की गोदी में पड़े हैं और उसका अमृत सदृश दूध पी रहे हैं। माता बड़े प्यार से अपनी छाती खोलकर उल्लासपूर्वक अपना दूध हमें पिला रही है। वह दूध, रक्त बनकर हमारी नस-नाड़ियों से घूम रहा है और अपने सात्विक तत्वों से हमारे अंग-प्रत्यंगों को परिपूर्ण कर रहा है।” यह ध्यान बहुत ही सुखद है। छोटा बच्चा अपने नन्हें-नन्हें हाथ पसारकर कभी माता के बाल पकड़ता है, कभी अन्य प्रकार अटपटी क्रियाएँ माता के साथ करता है, वैसे ही कुछ अपने द्वारा किया जा रहा है, ऐसी भावना करनी चाहिए।
माता भी जब वात्सल्य प्रेम से ओत-प्रोत होती है तब बच्चे को छाती से लगाती है। उसके सिर पर हाथ फिराती है, पीठ खुजलाती है, थपकी देती है, पुचकारती है, उछालती तथा गुदगुदाती है, हँसती और हँसाती है। वैसी ही क्रियाएँ गायत्री माता के द्वारा अपने साथ हो रही है, यह ध्यान करना चाहिए। “इस समस्त विश्व में माता और पुत्र केवल मात्र दो ही हैं। और कहीं कुछ नहीं है। कोई समस्या, चिंता, भय, लोभ आदि उत्पन्न करने वाला कोई कारण और पदार्थ इस संसार में नहीं है, केवल माता और पुत्र दो ही इस शून्य नीले आकाश में अवस्थित होकर अनंत प्रेम का आदान-प्रदान करते हुए कृतकृत्य हो रहे हैं।”
जप के समय आरंभिक साधक के लिए यही ध्यान सर्वोत्तम है। इससे मन को एक सुन्दर भावना में लगे रहने का अवसर मिलता है और उसकी भाग दौड़ बंद हो जाती है। प्रेमभावना की अभिवृद्धि में भी यह ध्यान बहुत सहायक होता है। मीरा, शबरी, चैतन्य महाप्रभु, सूरदास, रामकृष्ण परमहंस आदि सभी भक्तों ने अपनी प्रेमभावना के बल पर भगवान को प्राप्त किया था। प्रेम ही वह अमृत है, जिसके द्वारा सींचे जाने पर आत्मा की सच्चे अर्थों में परिपुष्टि होती है और वह भगवान को अपने में और अपने को भगवान में प्रतिष्ठित कर सकने में समर्थ बनती है। यह ध्यान इस आवश्यकता की पूर्ति करता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति – मई 2005 पृष्ठ 20
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