Thursday 15, May 2025
कृष्ण पक्ष तृतीया, जेष्ठ 2025
पंचांग 15/05/2025 • May 15, 2025
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष तृतीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | तृतीया तिथि 04:03 AM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र ज्येष्ठा 02:07 PM तक उपरांत मूल | शिव योग 07:01 AM तक, उसके बाद सिद्ध योग | करण वणिज 03:19 PM तक, बाद विष्टि 04:03 AM तक, बाद बव |
मई 15 गुरुवार को राहु 01:55 PM से 03:36 PM तक है | 02:07 PM तक चन्द्रमा वृश्चिक उपरांत धनु राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:28 AM सूर्यास्त 6:59 PM चन्द्रोदय 9:47 PM चन्द्रास्त 7:42 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
- अमांत - बैशाख
तिथि
- कृष्ण पक्ष तृतीया
- May 15 02:29 AM – May 16 04:03 AM
- कृष्ण पक्ष चतुर्थी
- May 16 04:03 AM – May 17 05:13 AM
नक्षत्र
- ज्येष्ठा - May 14 11:47 AM – May 15 02:07 PM
- मूल - May 15 02:07 PM – May 16 04:07 PM

ब्रह्मविद्या किसे कहते हैं ? | Bhrahamavidya Kise Kehte Hai

खर्चीली शादी हमें दरिद्र बनाती हैं | Kharchili Shadiyan Hame Beiman Banati Hai

किसी को नीचा दिखने से अच्छा आप अपने को ऊंचा उठाएं | Kisi Ko Nicha Dikhne Se Acha Aap Apne Ko Uncha Utaye

अपने आपको पहचानिए | Apne Aapko Pahchaniye | Pt Shriram Sharma Acharya
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन












आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 15 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 15 May 2025 !!

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 15 May 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आपको एक कार्यक्रम करना चाहिए कि अपने गांव में, अपने नगर में, अपने मोहल्ले में प्रत्येक घर के साथ संपर्क बनाना चाहिए और प्रत्येक घर में एक यज्ञ कराने का कार्यक्रम जो है इन छः महीनों में जारी रखना चाहिए। आवश्यकता हुई तो फिर कहेंगे आपको कि छः महीने से भी ज्यादा भी जारी रखिए, पर फिलहाल आपको छः महीने का संकल्प तो दिला ही रहे हैं।
इन छः महीने में अपने नगर में, अपने गांव में, अपने मोहल्ले में कोई घर ऐसा मत रहने दीजिए जहाँ एक कुंडीय यज्ञ ना हुआ हो। एक कुंडीय यज्ञ का मतलब तो आप समझ ही गए हैं न? थाली में पाँच धूप बत्तियाँ और पाँच दीपक रखे भी जा सकते हैं।
पाँच दीपक की स्थापना तो करनी ही पड़ेगी क्योंकि पंचदेवों का आवाहन है, इसमें पाँच प्राणों का आवाहन है, इसमें पांच तत्वों का आवाहन है। इसीलिए स्थापना तो पाँच दीपकों की करनी पड़ेगी। धूपबत्तीयों के संबंध में भी यही बात है। अगर आपको किफायत की बात मालूम पड़े तो यह मालूम पड़े कि अब गरीबी बहुत ज्यादा है, लोगों का पैसा खर्च नहीं होता है। तो पाँच धूपबत्तीयों में से एक धूप बत्ती जला दीजिए, चार बिना जली रहने दीजिए। फिर एक धूपबत्ती जलकर खत्म हो जाए, फिर दूसरी जला दीजिए, फिर वो खत्म हो जाए, तीसरी जला दीजिए। इस तरीके से पाँच बार में पाँच धूपबत्तीयों के जो आपने बंडल बनाए हैं और पाँच दीपक जो बनाए हैं, उसको एक-एक करके हिस्से करेंगे।
तो पांचवें हिस्से से ही आपका काम चल जाएगा, उसमें भी किफायत हो जाएगी। इसलिए मैं किफायत की बात यह कह रहा हूँ कि अगले दिनों पैसे की तंगी पड़ेगी, लोगों को ज्यादा खर्च करना मुसीबत का आएगा।
जो आदमी ज्यादा खर्च करता है वह ज्यादा फायदे की उम्मीद भी करता है, लेकिन जिसका थोड़ा खर्च हुआ है उसे बेचारे को थोड़ा समाधान हो जाए तो भी काम चल जाता है। इसलिए लोगों का खर्च यज्ञों के नाम पर हमें कम से कम कराना चाहिए। जो विधियाँ आपको बताई गई हैं, उसी के हिसाब से हर घर में जाकर के कराना चाहिए। घरों में जो आप यज्ञ कराएं उसमें कुछ बातें शामिल करें कि यह वास्तव में परिवार गोष्ठियाँ हैं। परिवार गोष्ठियों के रूप में हम पारिवारिक यज्ञ कर रहे हैं, इसमें परिवार निर्माण का उद्देश्य छिपा हुआ है।
जो कि समाज निर्माण से भी संबंधित है और व्यक्ति निर्माण से भी संबंधित है। व्यक्ति निर्माण और समाज निर्माण के बीच की इकाई यह परिवार निर्माण है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
दूसरों की बुराइयाँ सभी देखते हैं परन्तु अपनी ओर देखने का अभ्यास बहुत कम लोगों को होता है। सुप्रसिद्ध विचारक इमर्सन का कथन है- ‘बहुत कम लोग मृत्यु से पूर्व अपने आपको पहिचान पाते हैं’ बहुत कम व्यक्ति अपने जीवन में सभी शक्तियों को प्रकट करते हैं; बाकी तो उन्हें साथ लिए ही मर जाते हैं। हममें से अनेकों तो ईश्वर के सन्देश को संसार में दिये बिना ही यहाँ से चले जाते हैं’।
वस्तुतः तथ्य तो यह है कि हमारे अन्दर असंख्य गुप्त शक्तियाँ सोई पड़ी हैं परन्तु हमें उन योग्यताओं तथा क्षमताओं का पता ही नहीं और न ही उन्हें जानने का प्रयास करते हैं। यह ठीक है कि बाहर की अनेकों वस्तुएं जानकर हम ज्ञानवान् कहलाएँ, परन्तु यह भी कम आवश्यक नहीं कि हम अपने आपको पहचानना भी सीखें। जो अपनी और देखने का अभ्यास डालता है, वही महान् बनता है। ऐसा व्यक्ति कठिनाइयों तथा बाधाओं पर विजय पाकर सतत् उन्नति करता रहता है।
महापुरुषों का जीवन इस बात का साक्षी है कि वे सतत् आत्म-निरीक्षण करते रहें तथा अपनी भूलों से सदैव शिक्षाएँ ग्रहण करते रहें। यदि आप भी महान् बनना चाहते हैं तो दूसरों को तुच्छ समझने की, उनमें छिद्रान्वेषण करने की दृष्टि का परित्याग कर दीजिए। दूसरों को तुच्छ समझने वाला मनुष्यत्व खो देता है। अन्यों की गलतियाँ खोजने की अपेक्षा अपनी त्रुटियाँ खोजिए और उन्हें दूर कीजिए। अपनी शक्तियों को पहचानिए और उनका सदुपयोग कीजिए।
ईश्वर ने अनेकों दिव्य शक्तियाँ देकर आपको संसार में भेजा है, उनका सदुपयोग कीजिए। पेट और प्रजनन जैसे क्षुद्र कार्यों में उन्हें व्यर्थ न होने दीजिए। आप जो भी कार्य कर रहे हैं उनसे हजारों गुना अधिक कार्य करने की सामर्थ्य आपके अन्दर है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि अपना महत्व समझे, शक्तियों को पहिचाने तथा समय का सदुपयोग करें। जीवन का एक-एक क्षण बहुमूल्य है, उसे व्यर्थ न जाने दें।
जो कार्य करने की इच्छा रखते हैं, उसे आज से ही प्रारम्भ कर दीजिए। अपनी समस्त शक्तियाँ उसमें एकाकार। वह क्षण आपके जीवन का अत्यन्त महत्वपूर्ण क्षण होगा जब आपको यह अनुभव होगा कि संसार को आपकी आवश्यकता है। आपके अन्दर एक और व्यक्तित्व समाहित है जो आपके बाहरी व्यक्तित्व से कहीं अधिक महान है। जिस क्षण व्यक्ति अपनी महानता की झलक पा लेता है; वह मानव से महामानवत्व की ओर अग्रसर हो जाता है।
हो सकता है कि किन्हीं कठिनाइयों या बाधाओं के कारण आपका व्यक्तित्व पूरी तरह से विकसित न हो सकता हो। परन्तु आपत्तियाँ आने पर घबराएं मत। जिस प्रकार से अग्नि में तप कर सोना निखर जाता है, और भी अधिक चमकने लगता है, उसी प्रकार बाधाएँ और कठिनाईयाँ मनुष्य को खरा कुन्दन बना देती है। कई पादप ऐसे होते हैं, जब तक उन्हें मसला न जाए सुगन्धि नहीं देते। उसी प्रकार कुछ व्यक्ति भी ऐसे होते हैं, जब तक वे विपत्तियों से आक्रान्त न किये जायें, उनकी योग्यताओं की सुगन्धि फैल ही नहीं पाती। अतएव आत्म-निरीक्षण के द्वारा अपनी योग्यताओं को पहचानिये।
किसी भी प्रतिभा का अंकुर आपको अपने अन्दर दिखलाई पड़े उसको पुष्पित पल्लवित होने का अवसर दीजिये। कौन जाने एक दिन आप संसार के महान कलाकार बन जायें, विश्वप्रसिद्ध लेखक बन जायें, दार्शनिक या राजनीतिज्ञ बन जायें। चलिये और सतत् बढ़ते रहिए। जो स्वयं को जान लेता है, वही साक्षात् परमेश्वर को जान सकता है। वही व्यक्ति ईश्वरीय प्रयोजनों को पूरा कर सकता है तथा उसके संदेशों को जनसाधारण तक पहुँचा सकता है।
.... समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति मार्च 1972 पृष्ठ 5
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