Sunday 22, December 2024
कृष्ण पक्ष सप्तमी, पौष 2024
पंचांग 22/12/2024 • December 22, 2024
पौष कृष्ण पक्ष सप्तमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | सप्तमी तिथि 02:32 PM तक उपरांत अष्टमी | नक्षत्र उत्तर फाल्गुनी | आयुष्मान योग 07:00 PM तक, उसके बाद सौभाग्य योग | करण बव 02:32 PM तक, बाद बालव 03:48 AM तक, बाद कौलव |
दिसम्बर 22 रविवार को राहु 04:02 PM से 05:17 PM तक है | 12:55 PM तक चन्द्रमा सिंह उपरांत कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:14 AM सूर्यास्त 5:18 PM चन्द्रोदय 12:09 AM चन्द्रास्त 12:22 PM अयनदक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष सप्तमी - Dec 21 12:21 PM – Dec 22 02:32 PM
- कृष्ण पक्ष अष्टमी - Dec 22 02:32 PM – Dec 23 05:08 PM
नक्षत्र
- उत्तर फाल्गुनी - Dec 22 06:14 AM – Dec 23 09:09 AM
तुम्हारे पाँव के नीचे दबी चींटी का वही हाल होता है, जो यदि तुम हाथी के नीचे दब जाओ तो तुम्हारा हो। दूसरे के दुख को अपने दुख से तुलना किये बिना, हम उसकी प्रकृत अवस्था का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते।”*
*किसी बादशाह को भयंकर रोग था। कई यूनानी हकीमों ने मिल कर यह राय ठहराई कि एक खास तरह के आदमी के खून के सिवाय इस बीमारी का और इलाज नहीं है। बादशाह ने इस तरह के आदमी की तलाश करने का हुक्म दिया। लोगों ने एक किसान के लड़के में वह सब गुण मौजूद पाये। बादशाह ने उस लड़के के माँ-बाप को बुलवाया और उन्हें बहुत सा इनाम देकर राजी कर लिया। काजी ने यह फैसला किया कि बादशाह को बीमारी से आराम करने के लिए एक रिआया का खून बहाना न्याय संगत है।*
जब जल्लाद ने उसे मारने की तैयारी की, तब वह बालक आकाश की ओर देख कर हँसा। बादशाह ने उस बालक से पूछा, “इस अवस्था में ऐसी क्या बात हुई, जिससे तुझे खुशी हुई? “उसने जवाब दिया “बालक माँ-बाप के प्रेम पर निर्भर रहते हैं, मुकदमों का समावंश काजी करता है। मेरे माता-पिता की मति थोथे साँसारिक लोभ से भ्रष्ट हो गई है कि मेरा खून बहाने पर राजी हो गये हैं। काजी ने मुझे प्राण दण्ड की सजा दे दी है और बादशाह, अपनी स्वास्थ्य-रक्षा के लिये, मेरी मृत्यु पर राजी हो गये हैं। ऐसी दशा में, अब ईश्वर के सिवाय किसकी शरण जाऊं?*
*“बादशाह इस बात को सुनकर बहुत ही दुखी हुये और आंखों में आंसू भर कर बोला, “निर्दोष मनुष्य का खून बहाने की अपेक्षा मेरा ही मर जाना अच्छा है।” बादशाह ने उस बालक के सिर और आंखें चूम कर गले से लगाया और उसको बहुत सा इनाम देकर छोड़ दिया।*
*लोग कहते हैं, कि बादशाह उसी सप्ताह रोग मुक्त हो गया।
“अगर तुम्हें अपने पैर के नीचे दबी हुई चींटी की अवस्था का ज्ञान हो, तो तुमको समझना चाहिए कि चींटी की वैसी हालत है जैसी हाथी के पैर के नीचे दबने पर तुम्हारी हो।”*
*तात्पर्य यह है कि हमें सब जीवों को अपने समान समझना चाहिये। दूसरों को कष्ट न पहुँचाते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिये, कि यदि हमें कोई ऐसा ही कष्ट दे तो हमें कैसा दुख होगा।*
पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
ईसाइयों ने बाइबिल के टुकड़े और खंडों को लेकर के और फिर उसके छोटे-छोटे खंडों में छाप करके दुनिया में फैला दिया दुनिया को जो आदमी पढ़े थे उनको बिना पढ़ों को सुनाया हमारे गांव में पढ़ा दी है अरे पढ़ें की बात नहीं चलती बाबा सुनाइए ना फिर सुना नहीं सकते आप सुना दीजिए फिर सत्यनारायण की कथा आपने पढ़ी है हमने नहीं पढ़ी है साहब हम तो बिना पढ़े हैं हमारी अम्मा भी बिना पड़ी है तो आप सुन लीजिए कथा सत्यनारायण की नहीं साहब हम तो पढ़ेंगे, पढ़ेंगे संस्कृत आती आपको नहीं संस्कृत तो नहीं आती तो फिर सुन लीजिए, सुन लीजिए हमारा साहित्य ऐसा है जिसको पढ़ाया भी जा सकता है और सुनाया भी जा सकता है और यह कार्ल मार्क्स के कैपिटल से कमजोर है नहीं कमजोर नहीं है यकीन रखिए आप यह रूसो के डेमोक्रेसी सिद्धांतों से कमजोर है नहीं हम आपको यकीन दिलाते हैं किसी तरीके से कमजोर नहीं है यह और यह, यह आपके सिद्धांत ईसाई मिशन से कमजोर है नहीं हम आपको यकीन दिलाते हैं किसी तरह से कमजोर नहीं है, कमजोर नहीं है जोरदार है |
अखण्ड-ज्योति से
विश्रृंखलित-अव्यवस्थित, अस्त-व्यस्त स्थिति में भी कुछ न कुछ उत्पादन-विकास तो होता है, पर वह किस गति से- कि क्रम से और किस दिशा में चलेगा यह नहीं कहा जा सकता। कँटीले झाड़-झंखाड़ जंगलों में उगते हैं और बेढंगी रीति से छितराते हुए उस क्षेत्र की भूमि को कंटकाकीर्ण बना देते हैं। इसके विपरीत माली की देख-रेख में सुनियोजित ढंग से लगाये गये पौधे सुरम्य उद्यान बनकर फलते-फूलते हैं।
पौधों को क्रमबद्ध रूप से लगाने और उनको निरन्तर सँभालने वाली माली की सजग कर्त्तव्य-निष्ठा उस की साधना है जिसका प्रतिफल उसे सम्मान तथा अर्थ लोभ के रूप में- पौधों का हरे-भरे, फले-फूले सौन्दर्य के रूप में तथा सर्व साधारण को छाया, सुगन्ध, फल, सुषमा आदि के रूप में उपलब्ध होता है। माली की उद्यान साधना सर्वतोमुखी सत्परिणाम ही प्रस्तुत करती है।
मानवी व्यक्तित्व एक प्रकार का उद्यान है। उसके साथ अनेकों आत्मिक और भौतिक विशेषताएँ जुड़ी हुई हैं। उनमें से यदि कुछ को क्रमबद्ध, व्यवस्थित और विकसित बनाया जा सके तो उनके स्वादिष्ट फल खाते-खाते गहरी तृप्ति का आनन्द मिलता है। पर यदि चित्तगत वृत्तियों और शरीरगत प्रवृत्तियों को ऐसे ही अनियन्त्रित छोड़ दिया जाय तो वे भोंड़े, गँवारू एवं उद्धत स्तर पर बढ़ती हैं और दिशा विहीन उच्छृंखलता के कारण जंगली झाड़ियों की तरह उस समूचे क्षेत्र को अगम्य एवं कंटकाकीर्ण बना देती हैं।
जीवन कल्प-वृक्ष की तरह असंख्य सत्परिणामों से भरा-पूरा है। पर उसका लाभ मिलता तभी है जब उसे ठीक तरह साधा, सँभाला जाय। इस क्षेत्र की सुव्यवस्था के लिए की गई चेष्टा को साधना कहते हैं। कितने ही देवी-देवताओं की साधना की जाती है और उससे कतिपय वरदान पाने की बात पर विश्वास किया जाता है। इस मान्यता के पीछे सत्य और तथ्य इतना ही है कि इस मार्ग पर चलते हुए अन्तःक्षेत्र की श्रद्धा को विकसित किया जाता है। आदतों को नियन्त्रित किया जाता है।
चिन्तन प्रवाह को दिशा विशेष में नियोजित रखा जाता है और सात्विक जीवन के नियमोपनियमों का तत्परता पूर्वक पालन किया जात है। इन सबका मिला-जुला परिणाम व्यक्तित्व पर चढ़ी हुई दुष्प्रवृत्तियों का निराकरण करने तथा सत्प्रवृत्तियों को स्वभाव का अंग बनाने में सहायक सिद्ध होता है। सुसंस्कारों का अभिवर्धन प्रत्यक्षतः दैवी वरदान है। उसके मूल्य पर हर व्यक्ति अभीष्ट प्रयोजन की दिशा में अग्रसर को सकता है और उत्साहवर्धक सत्परिणाम प्राप्त कर सकता है।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1976 पृष्ठ 11
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