Sunday 05, January 2025
शुक्ल पक्ष षष्ठी, पौष 2025
पंचांग 05/01/2025 • January 05, 2025
पौष शुक्ल पक्ष षष्ठी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), पौष | षष्ठी तिथि 08:15 PM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र पूर्वभाद्रपदा 08:18 PM तक उपरांत उत्तरभाद्रपदा | व्यातीपात योग 07:32 AM तक, उसके बाद वरीयान योग 04:50 AM तक, उसके बाद परिघ योग | करण कौलव 09:09 AM तक, बाद तैतिल 08:15 PM तक, बाद गर |
जनवरी 05 रविवार को राहु 04:10 PM से 05:27 PM तक है | 02:34 PM तक चन्द्रमा कुंभ उपरांत मीन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:18 AM सूर्यास्त 5:27 PM चन्द्रोदय 10:58 AM चन्द्रास्त 11:10 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु शिशिर
V. Ayana उत्तरायण
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - पौष
तिथि
- शुक्ल पक्ष षष्ठी - Jan 04 10:01 PM – Jan 05 08:15 PM
- शुक्ल पक्ष सप्तमी - Jan 05 08:15 PM – Jan 06 06:23 PM
नक्षत्र
- पूर्वभाद्रपदा - Jan 04 09:23 PM – Jan 05 08:18 PM
- उत्तरभाद्रपदा - Jan 05 08:18 PM – Jan 06 07:06 PM
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नव सृजन के साथ जुड़ी ध्वंस की अनिवार्यता | Nav Srijan Ke Sath Judi Dhawans Ki Anivaryata
वैज्ञानिक, राजनेता, भविष्यवक्ता, अन्वेषक अपने-अपने तर्क और तथ्य आगे रखकर यह प्रमाणित करने का प्रयत्न कर रहे हैं कि महाविनाश में अब उँगलियों पर गिनने जितने समय को देर है किसी सीमा तक उठे हुए कदम अब वापस नहीं लौटेंगे। इन प्रवक्ताओं के कथन अनुमान, विश्लेषण पर कोई आक्षेप न करते हुए हमें यह पूरी हिम्मत के साथ कहने ही छूट मिली है कि आतंक के समय रहते शान्त होने की भविष्यवाणी करें और जन साधारण से कहें कि विकसित होने की अपेक्षा सृजन की बात सोचें। दुनिया यह नहीं रहेगी जो आज है। उसकी मान्यताएं, भावनाएं, विचारणाएं। आकांक्षाएं ही नहीं, गतिविधियाँ भी इस तरह बदलेंगी कि सब कुछ नया-नया प्रतीत होने लगे।
आज से पाँच सौ वर्ष पुराना कोई मनुष्य कहीं जीवित हो और आकर अबकी भौतिक प्रगति के दृश्य देखे तो उसे आश्चर्यचकित होकर रह जाना पड़ेगा और कहना पड़ेगा कि यह उसके जानने वाली दुनिया नहीं रही। यह तो भूतो की बस्ती जैसी बन गई है। सचमुच पिछले दिनों बुद्धिवाद और भौतिकवाद की सम्मिलित संरचना हुई भी ऐसी ही है जिसे असाधारण अद्भुत, अनुपम और आश्चर्यजनक परिवर्तन कहा जा सके।
ठीक इसी के समतुल्य दूसरा परिवर्तन होने जा रहा है। उसके लिए पाँच सौ वर्ष प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। इस नये परिवर्तन के लिए एक शताब्दी पर्याप्त है। आज की चकाचौंध जैसी परिस्थितियाँ और आसुरी मायाचार जैसी समस्याएँ अब इन दिनों भयावह लगती है और उनके चलते प्रवाह को देखकर लगता है कि सूर्य अस्त हो चला और निविड़ निशा से भरा अंधकार अति समीप आ पहुँचा पर ऐसा होगा नहीं। यह ग्रहण की युति है। बदली की छाया है, जिसे हटा देने वाले प्रचंड आधार विद्यमान भी हैं और गतिशील भी। लंका काण्ड की नृशंसता के उपरान्त रामराज्य का सतयुग वापस आया था। वैसी ही पुनरावृत्ति की हम अपेक्षा कर सकते हैं।
विनाश की सोचते और चेष्टा करते हुए मनुष्य का बुद्धि संसार थक जायेगा और वैभव के साधन स्रोत सूख जायेंगे। उन्हें नये सिरे से नई बातें सोचनी पड़ेगी कि प्रवाह की इस दिशा को उलट दिया जाय और उपलब्ध साधनों को सृजन के लिए लगाया जाय। ऊपर से पड़ने वाले दबाव ऐसी ही उलट फेर संभव करेंगे। उनने उलटे को उलट कर सीधा करने का निश्चय कर लिया है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, अगस्त 1986 पृष्ठ 19-20
डॉ. चिन्मय पंड्या जी का छत्तीसगढ़ आगमन।
हमको विश्वास देकर के विश्वासघात करेंगे तो मेरा शाप है आपको चैन नहीं पड़ेगा |
किशोरावस्था में उचित मार्गदर्शन की भूमिका | Kishoravastha Me Uchit Margdarshan Ki Bhumika
वास्तविक अध्यात्म क्या है? | Vastavik Adhyatm Kya Hai?
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
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!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
व्यक्तित्व का विकास गुणों के ऊपर टीका है, पर उसका व्यक्तित्व वजनदार बन सकता है। व्यक्तित्व ही वो संपदा है, जिसके आधार पर मनुष्य आध्यात्मिक जीवन व सांसारिक जीवन में सफल होता है। सफलता के लिए धन काफी नहीं है; सफलता के लिए साधन काफी नहीं है; सफलता के लिए दूसरों का सहयोग काफी नहीं है। इन चीजों की जरूरत तो है, लेकिन सबसे ज्यादा आदमी के पास जो हथियार है; सबसे बड़ा जो वैभव है, आदमी का व्यक्तित्व है। व्यक्त्वि को कैसे विकसित किया जाए; उसे सद्गुणों से— सत्प्रवृत्तियों से संपन्न कैसे किया जाए? एक प्रश्न यही है सबसे बड़ा, जिसका अगर कोई आदमी समाधान कर लेता है, तो समझ लीजिए, उसने अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने की आधी मंजिल पार कर ली |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
सामान्य लोगों के बीच प्रायः यह भ्रम फैला हुआ है कि अध्यात्मवाद का लौकिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। वह तो योगी तपस्वियों का क्षेत्र है, जो जीवन में दैवी वरदान प्राप्त करना चाहते है। जो साँसारिक जीवनयापन करना चाहते है। घर-बार बसाकर रहना चाहते है, उनसे अध्यात्म का सम्बन्ध नहीं। इसी भ्रम के कारण बहुत से गृहस्थ भी, जो दैवी वरदान की लालसा के फेर में पड़ जाते है, अध्यात्म मार्ग पर चलने का प्रयत्न करते है। किन्तु अध्यात्म का सही अर्थ न जानने के कारण थोड़ा -सा पूजा-पाठ कर लेने को ही अध्यात्म मान लेते है।
यह बात सही है कि अध्यात्म मार्ग पर चलने ये उसकी साधना करने से दैवी वरदान भी मिलते है और ऋद्धि-सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। किन्तु वह उच्च स्तरीय सूक्ष्म-साधना का फल है। कुछ दिनों पूजा-पाठ करने अथवा जीवन भर यों ही कार्यक्रम के अंतर्गत पूजा करते रहने पर भी ऋषियों वाला ऐश्वर्य प्राप्त नहीं हो सकता। उस स्तर की साधना कुछ भिन्न प्रकार की होती है। वह सर्व सामान्य लोगों के लिये सम्भव नहीं। उन्हें इस तपसाध्य अध्यात्म में न पड़कर अपने आवश्यक कर्तव्यों में ही आध्यात्मिक निष्ठा रखकर जीवन को आगे बढ़ाते रहना चाहिये। उनके साधारण पूजा-पाठ का जो कि जीवन का एक अनिवार्य अंग होना चाहिये, अपनी तरह से लाभ मिलता रहेगा।
थोड़ी सी साधारण पूजा, उपासना करके जो जीवन में अलौकिक ऋद्धि-सिद्धि पाने की लालसा रखते है, वे किसी जुआरी की तरह नगण्य सा धन लगाकर बहुत अधिक लाभ उठाना चाहते है। बिना श्रम के मालामाल होना चाहते हैं। लोभी उपासकों की यह अनुचित आशा कभी भी पूरी नहीं हो सकती और हो वह भी सकता है कि इस लोभ के कारण उनकी अपनी उस सामान्य उपासना का भी कोई फल न मिले। देवताओं का वरदान वस्तुतः इतना सस्ता नहीं होता, जितना कि लोगों ने समझ रखा हे। वे मन्दिर में जाकर हाथ जोड़ जाने या अक्षत-पुण्य जैसी तुच्छ वस्तुएँ चढ़ा देने से प्रसन्न हो जायेंगे और अपने वरदान लुटाने लगेंगे-ऐसा सोचना अज्ञान के सिवाय और कुछ नहीं है। सामान्य पूजा-पाठ का अपना जो पुरस्कार है, मिलेगा वही, उससे अधिक कुछ नहीं।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1969 पृष्ठ 8
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