ज्योति कलश यात्रा सम्मेलन में अद्भुत दिव्यता और आध्यात्मिक सौभाग्य
परम वंदनीया माताजी भगवती देवी शर्मा जी और दिव्य अखंड ज्योति शताब्दी समारोह के पावन अवसर पर मध्यप्रदेश के ज्योति कलश यात्रा सम्मेलन का भव्य आयोजन देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के मृत्युंजय सभागार में संपन्न हुआ। इस ऐतिहासिक कार्यक्रम की अध्यक्षता देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने की, जिनकी प्रेरणादायक उपस्थिति ने आयोजन को अभूतपूर्व आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।
इस अवसर पर माननीय केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री श्री दुर्गादास उइके जी की गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन में विशेष आध्यात्मिक आयाम जोड़ा। अपने संबोधन में उन्होंने कहा: “अगर हम अपनी अगली पीढ़ी को अपने आदर्शों और मूल्यों को हस्तांतरित नहीं कर पाए, तो यह हमारी असफलता होगी।”
उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि परिवार और समाज के बीच एक संतुलन आवश्यक है। अगर हम अपने परिवार पर ध्यान नहीं देंगे, तो हम समाज को कैसे दिशा देंगे? श्री उइके जी ने आगे कहा, “हमें अपनी पीढ़ियों को सही मार्गदर्शन देने के लिए खुद को और समाज को आत्मविश्लेषण की आवश्यकता है।
आदरणीय डॉ. पंड्या जी ने अपने संबोधन में परमपूज्य गुरुदेव और वंदनीया माताजी की तपस्वी साधना को नमन करते हुए कहा कि “हम सौभाग्यशाली हैं कि इस धरा पर गुरुदेव-माताजी जैसे दिव्य व्यक्तित्व ने जन्म लिया। उनका जीवन हम सभी के लिए मार्गदर्शक है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया: “हममें से हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि गुरुदेव-माताजी की दिव्यता के बिना हम क्या होते? उन्होंने साधारण को असाधारण बनाया है। हमारे जीवन की हर सफलता, हर उन्नति उनके आशीर्वाद का प्रतिफल है। जो साधारण को असाधारण बनाने का काम गुरुदेव ने किया, वही आज हमें भी करना है।”
युगऋषि पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा रचित युग साहित्य, गायत्री महामंत्र चादर और स्मृति चिह्न के माध्यम से मुख्य अतिथि का सम्मान आदरणीय डॉ. पंड्या जी के करकमलों से किया गया।