परिचय:
१७ नवंबर को शांतिकुंज की पुण्य धरा पर, आदरणीय श्री चिन्मय पंड्या जी के द्वारा ज्योति कलश यात्रा के रूप में आगामी वर्ष २०२६ में अखण्ड-ज्योति व वंदनीय माताजी की शताब्दी वर्ष हेतु एक दिव्य कार्ययोजना प्रदान की गई। इसके संदेश में आत्मिक जागृति, राष्ट्र कल्याण, तथा मानवीय चेतना के पुनरुत्थान की आवश्यकता को प्रस्तुत किया गया। यह योजना, हर मनुष्य को अपने भीतर की ज्योति को प्रज्वलित कर, समाज में प्रेम, सहिष्णुता और सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार करने हेतु प्रेरित करती है।
उस प्रवचन के सारांश बिंदु निम्न अनुसार हैं:-
उद्देश्य:
ज्योति कलश यात्रा का परम उद्देश्य है—
- आत्मिक आलोक का प्रसार: हर अंतःकरण में ज्योति प्रज्वलित करना, जिससे अज्ञान और अशांति का अंधकार समाप्त हो।
- मानवता का उत्थान: अखंड ज्योति के प्रकाश द्वारा समाज में सतोगुण, शांति और दिव्यता का समावेश।
- गुरुदेव के दृष्टांत का अनुसरण: प्रत्येक घर-आँगन में गुरुदेव और माताजी की प्रेरणा को स्थापित करना।
संदर्भ:
- समुद्र मंथन की कथा: विषम परिस्थितियों से संघर्ष कर, जीवन के अमृत को प्राप्त करने की शिक्षा।
- अमृत कलश का प्रतीक: हरिद्वार की भूमि पर छलके अमृत की भांति, ज्योति कलश को समाज में आलोकित करना।
- गायत्री परिवार का संदेश: हर स्थान पर सत्य, शिव, और सुंदर के आदर्शों को स्थापित करना।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- ज्योति कलश की दिव्यता: यह कलश मानव मन में छिपी ज्योति को पुनः प्रज्वलित करने का माध्यम है।
- समुद्र मंथन का आध्यात्मिक प्रतीक: विष और अमृत के माध्यम से आत्मसंयम और समाजोत्थान का संदेश।
- देवत्व का आवाहन: हर साधक स्वयं को देवत्व का वाहक माने और समाज में सत्कर्मों का प्रसार करे।
- रक्तबीज बनने की प्रेरणा: जैसे रक्तबीज असुर पैदा करता था, वैसे ही साधक हर स्थान पर एक नया गायत्री परिजन खड़ा करे।
हमारी भूमिका:
- ज्योति का संचार: अपने जीवन को गुरुदेव और माताजी के आदर्शों का जीवंत उदाहरण बनाएं।
- हर गली और मोहल्ले में आलोक फैलाएं: ज्योति कलश को गांव-गांव, नगर-नगर में लेकर जाएं और सकारात्मकता का संचार करें।
- आत्मिक अनुशासन: अपने विचार, आचरण और कर्म में सत्यनिष्ठा और सेवा भावना का समावेश करें।
- समर्पण का आदर्श: गुरुदेव और माताजी के प्रति पूर्ण समर्पण भाव रखते हुए, हर क्षेत्र में सत्कर्मों को स्थापित करें।
संकल्प:
- मैं ज्योति कलश को संपूर्ण भारत में आलोकित करने हेतु स्वयं को समर्पित करता हूँ।
- मैं अपने प्रत्येक कर्म और विचार को गुरुदेव के उद्देश्यों के अनुरूप बनाऊंगा।
- जहां-जहां मेरी उपस्थिति होगी, वहां एक नए गायत्री परिजन का जन्म होगा।
- मैं आत्मिक जागृति और सामाजिक समरसता के लिए अपने जीवन को समर्पित कर, मानवता की सेवा करूंगा।
सार:
आदरणीय श्री चिन्मय पंड्या जी के प्रवचन ने हमें ज्योति कलश यात्रा के माध्यम से आत्म-प्रकाश और समाजोत्थान का संदेश दिया। उन्होंने समुद्र मंथन की कथा के माध्यम से समझाया कि विषमताओं से संघर्ष करके ही जीवन के अमृत का अनुभव संभव है। गुरुदेव और माताजी के आदर्शों पर चलते हुए, हर व्यक्ति को देवत्व का वाहक बनकर, इस ज्योति को समाज के हर कोने में पहुंचाना चाहिए।
प्रेरणादायक संदेश:
"जहां-जहां ज्योति कलश का प्रकाश पहुंचे, वहां-वहां प्रेम, शांति और चेतना का आलोक हो। हर साधक स्वयं को रक्तबीज की तरह समाज में नवजीवन और नवचेतना का माध्यम बनाए।"
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