यह प्रेरक प्रवचन शांतिकुंज, हरिद्वार की पावन भूमि पर 17 नवंबर को आदरणीय श्री चिन्मय पंड्या जी द्वारा प्रस्तुत किया गया। प्रवचन में ज्योति कलश यात्रा के आध्यात्मिक उद्देश्य, जीवन में दिव्यता के प्रसार, और गुरुदेव-माताजी के तपोमय जीवन की अनुकंपा को सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया। हरिद्वार के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को दृष्टिगत रखते हुए, यह संदेश मानवता के कल्याण और आत्मोत्थान का आह्वान करता है।
महत्वपूर्ण बिंदु
- ज्योति का आध्यात्मिक अर्थ:
- बाहरी अंधकार को समाप्त करने वाली ज्योति, जो प्रत्येक हृदय में दिव्यता जागृत करती है।
- गुरुदेव द्वारा प्रतिष्ठित अखंड ज्योति, समाज की चेतना को आलोकित करती है।
- समुद्र मंथन की कथा से प्रेरणा:
- विष और अमृत के मंथन का गूढ़ संदेश: कष्टों के बाद ही अमृत की प्राप्ति।
- हरिद्वार की भूमि पर अमृत कलश के छलकने की कथा।
- गुरुदेव-माताजी का योगदान:
- आत्मबलिदान और तपस्या के माध्यम से युग निर्माण की दिव्य गाथा।
- हर व्यक्ति को देवतुल्य गुणों से परिपूर्ण बनाने का संकल्प।
हमारी भूमिका
- ज्योति कलश को ले जाने का दायित्व:
- गुरुदेव और माताजी के संदेश को प्रत्येक घर, गली और मोहल्ले में फैलाना।
- हर गांव और शहर को ज्योतिर्मय बनाने का संकल्प।
- दिव्यता का प्रसार:
- जिस प्रकार अमृत कलश छलका था, उसी प्रकार ज्योति कलश के माध्यम से सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार।
- गिरने पर भी नई चेतना का संचार करना, जैसे रक्तबीज कथा में प्रत्येक बूंद से नई शक्ति उत्पन्न होती थी।
- समर्पण का भाव:
- अपने जीवन की अंतिम शक्ति तक गुरुदेव के कार्यों को आगे बढ़ाने का प्रण।
- अपने प्रत्येक कर्म से गायत्री परिवार की नई शाखाएं विकसित करना।
संकल्प
- हरिद्वार की पुण्य भूमि से प्रेरणा लेकर समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का व्रत लें।
- हर गली, गांव, और मोहल्ले में गुरुदेव का संदेश और माताजी का आशीर्वाद पहुंचाने का दृढ़ संकल्प करें।
- अपने जीवन को रक्तबीज की भांति बनाएँ, जहाँ भी जाएं, वहां एक नया गायत्री परिजन तैयार हो।
- त्याग और समर्पण के साथ युग निर्माण के महान कार्य में अपनी भूमिका सुनिश्चित करें।
सारांश
यह प्रवचन आध्यात्मिक ज्योति के महत्व को समझाने का एक प्रेरक प्रयास है। हरिद्वार की भूमि पर अमृत कलश की कथा के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि जैसे देवताओं ने अपने सामर्थ्य को पुनः अर्जित किया, वैसे ही हमें भी ज्योति कलश के माध्यम से अपने भीतर और समाज में दिव्यता का संचार करना है। गुरुदेव और माताजी के महान तप और अनुकंपा से प्रेरणा लेते हुए, हमें अपने जीवन को समर्पण और सेवा का माध्यम बनाना है।