Thursday 08, May 2025
शुक्ल पक्ष एकादशी, बैशाख 2025
पंचांग 08/05/2025 • May 08, 2025
बैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | एकादशी तिथि 12:29 PM तक उपरांत द्वादशी | नक्षत्र उत्तर फाल्गुनी 09:06 PM तक उपरांत हस्त | हर्षण योग 01:56 AM तक, उसके बाद वज्र योग | करण विष्टि 12:29 PM तक, बाद बव 01:41 AM तक, बाद बालव |
मई 08 गुरुवार को राहु 01:54 PM से 03:34 PM तक है | चन्द्रमा कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:33 AM सूर्यास्त 6:54 PM चन्द्रोदय 3:18 PM चन्द्रास्त 3:25 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - बैशाख
तिथि
- शुक्ल पक्ष एकादशी
- May 07 10:20 AM – May 08 12:29 PM
- शुक्ल पक्ष द्वादशी
- May 08 12:29 PM – May 09 02:56 PM
नक्षत्र
- उत्तर फाल्गुनी - May 07 06:17 PM – May 08 09:06 PM
- हस्त - May 08 09:06 PM – May 10 12:09 AM

विचार ही जीवन की आधार शिला हैं | विचारों की अपार और अद्भुद शक्ति |

स्त्रियों की शिक्षा का महत्व | गृहलक्ष्मी की प्रतिष्ठा | गायत्री के 24 अक्षरों की व्याख्या

ज्ञान की प्यास | श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या Gyan Ki Pyas | Shraddheya Dr. Pranav Pandya

सज्जनता का सौन्दर्य | Sajjanta Ka Suandraya पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

विचारों की शक्ति अपरिमित है, Vicharon Ki Shakti Aparimit Hai

अमृतवाणी:- युग बदल रहा है | Yug Badal Raha Hai परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

बिना संघर्ष किए जीवन संभव नहीं | Bina Sangrash Kiye Jivan Sambhav Nhi

द्रश्य दर्शक और द्रष्टा | Drashya Darshak aur Drashta | Dr Chinmay Pandya, Rishi Chintan
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन












आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 08 May 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! अखण्ड दीपक Akhand Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) एवं चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 08 May 2025 !!

!! शांतिकुंज दर्शन 08 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृत सन्देश:मन को भागने से कैसे रोकें | गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आप जो कर्मकांड करते हैं, जो आप जप करते हैं, उपासना करते हैं, पूजा करते हैं, भजन करते हैं, हनुमान चालीसा पढ़ते हैं, जो भी पढ़ते हों, उसमें एक काम तो ये करें कि अपने विचारों का समन्वय करें। जितने समय तक आपका विचार, जप चलता रहे, उतने समय पर उन प्रत्येक क्रिया के साथ-साथ में जो जप जुड़ा हुआ है, जप के साथ-साथ में जो भावना जुड़ी हुई हैं, विचारणा जुड़ी हुई हैं, अपने मस्तिष्क को पूरी तरीके से उसमें लगाए रखें।
दूसरा विचार न आने दें। दूसरा विचार को रोकिए मत, उस विचार को लगा दीजिए। अपने आप रुकेगा। एक महात्मा ने कह दिया, "देख, तू भजन करते समय पर बंदर का ध्यान मत करना, बंदर का ध्यान मत करना।" बस जैसे ही बैठे, जैसे ही बैठे, खट, बंदर आ जाए। फिर ध्यान करे, फिर आ जाए बंदर। फिर ध्यान करे, बंदर आ जाए। बंदर का ध्यान, बंदर का मत ध्यान आने देना। लो, कर दिया मना कर दिया।
महात्मा ने कहा, "देख, हमने गलत बता दिया। अब तुझे बताते हैं, जब भी तू ध्यान किया कर, गाय का ध्यान किया कर। गौमाता बैठी है, गौमाता। अब तुझे बताते हैं, जब भी तू ध्यान किया कर, गाय का ध्यान किया कर। गौमाता बैठी है, गौमाता। आवेगा बंदर नहीं तो बंदर आ जाएगा।"
मन भाग ले तो रोकिए। मन भागने से बेटे, रुकेगा नहीं। मन नहीं भागने दूँगा। मन भाग जाएगा तो रोकूँगा। मन को पकड़ लूंगा, मन को मार डालूंगा। मन नहीं भागना चाहिए।
तो क्या करूँ? उनको एक काम में लगा दे। किस काम में लगाऊं? वो जो कि हमारे चिंतन के साथ-साथ में भावना जुड़ी हुई पड़ी है। हवन में हम भावना आपको बताते हैं। जप में हम भावना बताते हैं। उपासना में हम भावना बताते हैं। देवपूजन में हम भावना बताते हैं।
आपने पढ़ी नहीं है किताबें। पढ़िए जरा ध्यान से। आप वही तो वही, वही पूछते हैं। वही चीज। सबसे छोटी बात, लक्ष्मी कमाने के लिए "ह्रीं क्लीं" मंत्र क्लीं। उसे पूछते हैं, "बस लक्ष्मी फटाफट कैसे चली आवे?" यह नहीं पूछते कि उपासना के साथ-साथ में जितने भी कर्मकांड हैं, इन कर्मकांडों के पीछे जो शिक्षा भरी पड़ी हैं, प्रेरणा भरी पड़ी हैं, दिशा भरी पड़ी हैं, धारा पड़ी हैं, उनको बता दीजिए।
बेटे, हमने सब भाषाओं को छापा है। बहुत सी किताबें छापा है।
अखण्ड-ज्योति से
दृश्य की जड़ें हमेशा अदृश्य रहती हैं। पत्तों की हरियाली और रंग-बिरंगे फूलों की खुशबू को लिए झूमते हुए पेड़ों की जड़ें हमेशा जमीन के अन्दर रहती हैं। पत्तों से छलकता पौधों का जीवन, उनकी हरियाली, चमक सभी के जीवन में आनन्द बिखेरती हैं। इनके आस-पास से जो भी गुजरता है, वही इन पौधों के जीवन संगीत को अनुभव करता है। हालांकि इस अनुभूति को पाने वालों में से शायद कुछ को ही पता हो कि इस हरियाली और खुशबू से झरने वाले आनन्द का आधार जमीन के अन्दर है। जिसे सतह से कभी देखा नहीं जा सकता।
यह सच तो तब पता चलता है जब कोई इन पेड़ों को, पौधों को उनकी जड़ों से अलग करता है। जड़ों से नाता टूटते ही इन पेड़-पौधों की साँसें टूट जाती हैं। उनकी चेतना और चैतन्यता समाप्त हो जाती है। जमीन से हट जाने पर यही होता है। सारा खेल जड़ों का है। न दिखने पर भी, अदृश्य रहने पर भी, जीवन का सारा रहस्य उन्हीं में है। पेड़-पौधों की ही तरह मनुष्य की भी जड़ें होती हैं। उसके दृश्य जीवन का सारा रहस्य अदृश्य में छुपा होता है। न दिखने वाले संस्कार, कर्मबीज ही जीवन के विविध शुभ-अशुभ घटनाक्रमों में प्रकट होते हैं। यूँ तो चक्र, ग्रन्थियाँ, उपत्यिकायें, ब्रह्मरन्ध्रिकाएँ कहीं ऊपर से नजर नहीं आतीं। परन्तु इन्हीं के माध्यम से हमें विराट्-ब्रह्माण्ड की अदृश्य सूक्ष्मता में व्याप्त प्राण व प्रकाश मिलता है। किसी भी कारण यदि इसमें गतिरोध आ जाए तो दृश्य जीवन का क्रम संकट में पड़ जाता है।
आल्वेयर कामू ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि मनुष्य जीवन की एक मात्र-महत्वपूर्ण समस्या दृश्य जीवन की अदृश्य जड़ों को न समझ पाना है। यही वजह है कि अब मनुष्य को जीवन में कोई प्रयोजन नजर नहीं आता। सब कुछ व्यर्थ और निष्प्रयोजन हो गया है। मूल जीवन स्रोत के खो जाने से यह परिणति स्वाभाविक है। समस्या का समाधान तभी सम्भव है जब इन्सान अपनी जड़ें व जमीन को पा ले। ये जड़ें आत्मा व चित्त की हैं और वह जमीन धर्म की है। ऐसा हो जाए तो मनुष्यता में फिर से फूल खिल सकते हैं।
डॉ. प्रणव पण्ड्या
जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ २००
Newer Post | Home | Older Post |