Magazine - Year 1940 - Version 2
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Language: HINDI
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मैस्मरेजम द्वारा दूसरों की सेवा
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(ले. प्रो. धीरेन्द्र कुमार चक्रवर्ती बी.एस.सी.)पिछले अंकों में मैस्मरेजम के मूल सिद्धान्ती और उसकी कार्य शक्ति के सम्बन्ध में प्रकाश डाला गया है। यह विषय अत्यन्त गहन है इसे पूरी तरह से समझाये बिना अभ्यास के साधनों का वर्णन करने लग जाना उचित न होता। इस मास अखण्ड ज्योति संपादक की मारफत पाठक के करीब नो दर्जन पत्र मुझे मिले हैं जिनमें पाठकों ने अभ्यास में लाने में शीघ्रता करने का अनुरोध किया है। उनकी उत्सुकता का आदर करता हूँ। किन्तु एक बात कहूँगा कि केवल उत्सुकता और जल्दबाजी से काम न चलेगा। दृढ़ संकल्प और लगातार साधन करने योग्य धैर्य उन्हें प्राप्त करना होगा तभी इस साधन में कुछ सफलता मिल सकेगी। मानसिक अभ्यासों के लिए श्रद्धा और अविचलता अनिवार्य है। पाठक विश्वास रखें अब तक के लेखों में जो वर्णन किये गये थे वे आधार प्रस्तर थे, बिना उन बातों को समझाये यदि में अभ्यास मार्ग को बताने लगता तो पाठकों को ऐसे ऊबड़- खाबड़ रास्ते पर ला खड़ा करता जहाँ वे यह न जान सकते कि हमें यहाँ किस उद्देश्य से किस प्रकार ले आया गया है। अगले अंक में मैस्मरेजप के अभ्यास का विधान बताया जायेगा। इस लेख में यह बात बतानी रह गई है कि मैस्मरेजम द्वारा दूसरों की क्या सेवा हो सकती है?मैस्मरेजम एक मानसिक बल है। शारीरिक बल के लाभों से आप परिचित हैं, बलवान शरी अपने लिये पर्याप्त सुख सुविधाऐं प्राप्त कर सकता है एवं सुन्दर प्रतीत होता है। जो अपनी सेवा कर सकता है वहीं दूसरों की सेवा भी कर सकता है। नीरोग और सशक्त शरीर ही दूसरों की सेवा कर सकने लायक योग्यता रखता है। किसी दुर्बल को अत्याचारी के पंजे से छुड़ाने, जालिम को दण्ड देने, रोगी की तीमरदारी करने, किसी के कामकाज में मदद देने, प्यासों को पानी पिलाने आदि के कार्य शारीरिक बल द्वारा पूरे होते हैं। रोगी और निर्बल तो अपने लिए ही मदद मांगेगा दूसरों का उससे क्या भला हो सकता है। यही बात मानसिक बल के बारे में है। जिनका मनोबल दृढ़ है वे अपने शारीरिक और मानसिक यन्त्रों को ठीक प्रकार चलाकर सुख सफलता प्राप्त कर सकते हैं और साथ ही दूसरों पर भी अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं। अब मुझे यह कहने की जरुरत नहीं हैं कि मनोबल को इच्छानुसार काम में ला सकने की योग्यता ही मैस्मरेजम है।मैस्मरेजम को प्रयोग करने वाले आम तौर से अपने से निर्बल इच्छा शक्ति वालों और प्रभावित हो जाने की इच्छा रखने वालों को बेहोश कर देते हैं। वे कुछ देर तक दूसरे आदमी की आँखों से आँखे लड़ा कर उसके शरीर में अपनी इतनी विद्युत शक्ति प्रवेश कर देते हैं कि वह सावधान न रह सके और एक प्रकार की योगनिद्रा में गिर पड़े। इय निद्रित व्यक्ति को शरीर और मन पर प्रयोग कर्त्ता का पूरा अधिकार हो जाता है, वह उनका वैसा ही उपयोग कर सकता है जैसा अपने शरीर और मन का करता है। यदि उसे आज्ञा दें कि अपनी जीभ बाहर निकाले रहो तो वह इस व्यर्थ बात को भी पूरी तरह से स्वीकार करेगा। जब तक प्रयोक्ता चाहे अपनी जीभ बाहर निकाले रहेगा। मन का भी ऐसा ही उपयोग हो सकता है। मिट्टी खिला कर मिठाई जैसा स्वाद अनुभव करने को कहा जाय तो वह खुशी- खुशी वैसा स्वीकार करेगा। यह बातें मनोरंजन सा खेल मताशा न समझनी चाहिये। दिल बहलाव करने या भीख मांगने के लिए इनका प्रयोग करना गुनाह हैं।जरा गंभीरता पूर्वक विचार कीजिए कि जिस विद्या द्वारा दूसरे के शरीर और मन पर इतना कब्जा किया जा सकता है, क्या उसके द्वारा उनका नफा नुकसान कुछ नहीं किया जा सकता है? जो आदमी किसी दूसरे की तिजोरी पर पूर्ण अधिकार रखता है उस पर पूरी तरह कब्जा कर लेता है, यदि वह चाहे तो क्या उस तिजोरी में से कुछ ले दे नहीं सकता? निश्चय ही वह उसमें से चाहे जितना निकाल या रख सकेगा। आवश्यकता इतनी ही है कि इस क्रिया में भी उसने कुशलता प्राप्त कर रखी हो। बिना उस क्रिया को जाने उस रखने उठाने का कार्य नहीं हो सकता।मैस्मरेजम की कुछ ऊँची योग्यता रखने वाला प्रयोक्ता दूसरों के मनोगत भावों को पढ़ सकता है, और जान सकता है कि उसे क्या मानसिक वेदनाऐं सता रही है। बुरी आदतें जिनके कारण उसका जीवन नरक तुल्य बना हुआ है उन्हें वह समझ सकता है और निदान कर सकता है कि मन की कितनी गहरी भूमिका में वह गड़ चुकी हैं। भय, भ्रम और संशय मस्तिष्क को चिंतित बता देते हैं। बार- बार विश्वास कराये जाने पर साधारण कोटि के मन किसी- किसी पर अन्ध श्रद्धा कर लेते हैं और उसके द्वारा जीवन भर दुख पाते रहते हैं। मैस्मरेजन का सिद्ध यह जान जाता है कि मस्तिष्क में कहाँ क्या गाँठें पड़ी हुई हैं और उनके द्वारा किस प्रकार कहाँ विकृति अटकी हुई हैं। एक टूटी हुई मशीन के असंतोष जनक कार्य से उसको काम में लाने वाला दुखी रहता है और अपने भाग्य को कोसता हुआ ईश्वर को गाली देता है। उसकी यह दशा एक चतुर इंजीनियर के सामने एक मजाक है। क्योंकि वह वास्तविक कारण को जानता है। मशीन को देखते ही उसे पता लग जाता है कि इसका अमुक पुर्जा घिस या टूट गया है, अमुक पेंच ढीले हो गये हैं और अमुक जगह पर धूल जमा हो गई है। वह अपने विद्या बल से मशीन को खोल कर उसको दुरुस्त कर देता है तो मशीन ठीक से चलने लगती है।शारीरिक रोगों पर भी मैस्मरेजम चिकित्सा प्रणाली अन्य किसी भी उत्तम चिकित्सा प्रणाली से कम असर नहीं करती। शरीर स्वयं कुछ नहीं है वह तो पाँच तत्वों की गठरी मात्र है। इसमें जो चेतना है वह मन की है। मन और शरीर का सम्बन्ध किस प्रकार है और किस प्रका यह शासन चलता है इस विषय को समझने का आज अवकाश नहीं है। इस समय तो एक शब्द में पाठकों को इतना ही समझ लेना चाहिये कि मन का शरीर पर शासन है। समाधि के बारे में आप सब लोग जानते हैं कि इस दशा में योगी लोग शरी की सारी क्रियाओं को बन्द कर देते हैं। और फिर भी जीवित रहते हैं। कई साधक कुछ समय के लिए रक्त और हृदय की गति बन्द कर देते हैं। मन पर काबू पा लेने के साथ शरीर पर भी कब्जा हो जाता हैं। जिस प्रकार मैस्मरेजम द्वारा मानसिक रोग मिट सकते हैं, उसी प्रकार शारीरिक बीमारियों को भी दूर किया जा सकता हैं।इस प्रकार आप समझ गये होंगे कि शरीर और मन की विकृत्तियों को मैस्मरेजम विद्या द्वारा झाड़ बुहार कर साफ किया जा सकता है, उन्हें निर्मल और निरोग बनाया जा सकता है। इतना ही नहीं बल्कि इससे भी कुछ अधिक हो सकता है। तिजोरी को खोलकर उसमें से कूड़ा झाड़ने रद्दी चीजों को फेंकने का काम जो कर सकता है वह इसमें रखे हुए वह मूल्य रत्नों को सजा कर भी रख सकता है, जिससे उसका प्राचीन रूप रंग ही बदल जाय और नवीन सौन्दर्य प्रकटित होने लगे। वह उसमें कुछ और नई चीजें भी रख सकता है, लौकिक व्यवहार के अनुसार हम दूसरों के खेत में बीज डाल सकते हैं और वह फल फूल कर बड़ा हो सकता है। चतुर मैस्मरेज्मी किसान किसी के मस्तिष्क की भूमि को उपजाऊ बनाकर उसमें सदगुणों की बीज बो सकता है और प्रयत्न पूर्वक सींच- सींच कर इस योग्य कर सकता है कि वह फलने फूलने लगें, सद्गुणों की कृपा से कितने तुच्छ जीव महापुरुष हो गये और लौकिक पारलौकिक सम्पत्ति उपार्जित कर सके।इस विद्या का एक काला पहलू भी है भ्रष्ट मैस्मराइजर, जिन्हें पिशाच या ब्रह्म राक्षस कहना चाहिये। अपनी इस शक्ति का दुरुपयोग भी कर सकते हैं। नीच वासनाओं से प्रेरित होकर ये किसी के मानस पटल पर ऐसा असह्य आक्रमण कर सकते हैं कि वह बेचारा नष्ट- भ्रष्ट हो जाय, अंग- भंग हो जाय, रोगी हो जाय, शारीरिक मानसिक शक्तियाँ खो बैठे, उसके जाल में जकड़ जाय, पागल हो जाय या प्राणों से हाथ धो बैठे। यह पैशाचिक प्रहार किया क्रिया भी होती हैं इनसे सावधान रखने के लिए इन पंक्तियों का उल्लेख किया गया हैं। अखण्ड ज्योति के इन पृष्ठों में लगातार कितने ही मास तक चलने वाली इस लेख माला में उस अनैतिक आक्रमण की शिक्षा किसी को न मिलेगी। क्योंकि हम जानते हैं कि ऐसा पाजीपन लौट कर प्रयोक्ता को भी चबा डाल सकता है और उसकी सारी शक्ति को न्यायी प्रभु की सर्वशक्तिमान सत्ता द्वारा एक ही झटके में छीन लिया जा सकता है। समयानुसार हम अपने पाठकों को यह शिक्षा देंगे कि वे किस प्रकार दूसरों की शारीरिक एवं मानसिक सेवा कर सकने की योग्यता प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही यह भी बताया जायेगा कि किसी के किये हुए मानसिक आघात से अपना बचाव किस प्रकार करना चाहिये।