Magazine - Year 1943 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
आत्म के प्रकाश में चलिए।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(चौ. रतनचन्द्र जैन, गोटे गाँव)
मानव जाति सब योनियों से श्रेष्ठ मानी गई है। जिसका मुख्य कारण मनुष्य के मस्तिष्क का विकास क्रम है। शास्त्र हमें उच्च आदर्श की ओर ले जाने में सहयोग दे रहे हैं, स्वभावतः जीव का स्वभाव उर्ध्वगमन है, किन्तु हम अधोगति की ओर जा रहे हैं इसका कारण सिर्फ हमारी आत्म अवहेलना, चरित्र हीनता ही कही जा सकती है।
मनुष्य के मानसिक जगत में विवेक रूपी पवित्र ईश्वर हमें निरन्तर प्रकाश देता है, किन्तु जिस तरह फिल्म की अश्लीलता को फोकस फेंकने वाला लाइट नहीं बदल सकता, बल्कि उसका कार्य फिल्म की तस्वीर को पटल पर प्रकाश रूप में दिखाना मात्र है इसीलिये इस आत्मा रूपी फोकस लाइट को निर्दोष बताया गया है। हाँ! यह अवश्य है कि संचालक यदि निपुण हो तो फिल्म की अश्लीलता को शीघ्रता से हटाकर बता सकता है ठीक इसी तरह विवेकवान पुरुष अपने कुत्सित संस्कारों को धर्म रूपी शस्त्र से काटकर संसार के पटल क्षेत्र पर कार्य निपुणता, धार्मिकता, एवं सहाचारी कहा जा सकने की शक्ति रखता है पूर्ण संचित कर्मों से इन्कार नहीं किया जा सकता, किन्तु घोड़े का सवार कोड़े के आश्रय से अड़ियल घोड़े को अच्छा बना लेता है तब हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है इस मन रूपी घोड़े का धर्म रूपी चाबुक से अवश्य सुधार कर सकते हैं।
बन्धुओं! सत्य मार्ग ही हमें सत् की ओर आकर्षित करता है जो सत् है वह अविनाशी है, हमारी अमर अविनाशी आत्मा ही सत् शोधक है हमें आत्मा का अनुकरण करना चाहिये यही हमारा सतगुरु है इसी का संग करना ही सतसंग है यह गाँठ में बाँधकर याद कर लीजिये कि मन की चंचल वृत्ति को आत्म प्रेरणा नहीं समझना। आत्म प्रेरणा तो निश्चल होकर मन की चंचल वृत्तियों को रोककर प्रारम्भ होती है ‘योग‘ वगैरह की क्रियायें हमें चित्त को एकाग्र ही बनाने को संकेत करती है।
गीता का उपदेश है कि निष्क्रिय होकर कार्य करते रहो निष्क्रियता से हमें मोह का आभास नहीं होता है इस मोह का कारण दुख है और प्राणी इस दुख से छुटकारा पाना चाहता है। निःस्वार्थ का अर्थ यही है कि जब हमें स्वार्थ से ममत्व नहीं होगा तो हमसे अनुचित कार्य न होगा जिससे हम हमेशा उच्च आदर्शवान् बनते जायेंगे कामना रहित कार्य करते रहने से दुख, चिंता पास नहीं आ सकती तात्पर्य यही है कि इस कर्म क्षेत्र में सचरित्रवान होकर कार्य करो यही सफलता प्रदान करेगी कर्मयोगी के लिये सफलता स्वयं चली आती है सम्पूर्ण धर्म शास्त्र हमें यही शिक्षायें दे रहे हैं। खान पान, रहन सहन, श्रद्धा, पूजा स्तुति यह हमें उच्चतम श्रेणी पर ले जाने के साधन मात्र हैं हमें मूलतः यही ब्राह्मण करना चाहिये कि अपनी आत्मा का कल्याण करें तथा आत्मा के प्रकाश के मार्ग को ग्रहण करें और जो मार्ग हमें भीरु बनाते हो अकर्मण्य बनावे अथवा जो संसार के पटल क्षेत्र में निंदनीय हों त्यागना चाहिए, झूठ चोरी परस्त्री गमन, क्रोध लोभ मोह, जो हमारी आत्मा के प्रकाश को ढ़क लेते हैं उनका सर्वथा त्याग करें और सत्कर्मों को करने को उत्साहपूर्वक प्रवृत्त रहें।
गीता का उपदेश है कि निष्क्रिय होकर कार्य करते रहो निष्क्रियता से हमें मोह का आभास नहीं होता है इस मोह का कारण दुख है और प्राणी इस दुख से छुटकारा पाना चाहता है। निःस्वार्थ का अर्थ यही है कि जब हमें स्वार्थ से ममत्व नहीं होगा तो हमसे अनुचित कार्य न होगा जिससे हम हमेशा उच्च आदर्शवान् बनते जायेंगे कामना रहित कार्य करते रहने से दुख, चिंता पास नहीं आ सकती तात्पर्य यही है कि इस कर्म क्षेत्र में सचरित्रवान होकर कार्य करो यही सफलता प्रदान करेगी कर्मयोगी के लिये सफलता स्वयं चली आती है सम्पूर्ण धर्म शास्त्र हमें यही शिक्षायें दे रहे हैं। खान पान, रहन सहन, श्रद्धा, पूजा स्तुति यह हमें उच्चतम श्रेणी पर ले जाने के साधन मात्र हैं हमें मूलतः यही ब्राह्मण करना चाहिये कि अपनी आत्मा का कल्याण करें तथा आत्मा के प्रकाश के मार्ग को ग्रहण करें और जो मार्ग हमें भीरु बनाते हो अकर्मण्य बनावे अथवा जो संसार के पटल क्षेत्र में निंदनीय हों त्यागना चाहिए, झूठ चोरी परस्त्री गमन, क्रोध लोभ मोह, जो हमारी आत्मा के प्रकाश को ढ़क लेते हैं उनका सर्वथा त्याग करें और सत्कर्मों को करने को उत्साहपूर्वक प्रवृत्त रहें।