Magazine - Year 1943 - Version 2
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Language: HINDI
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दृढ़ विश्वास से भगवत दर्शन
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(श्री माधव तिवारी पटवारी, कमदपुर)
किसी गाँव में एक चोर रहता था। वह रात को चोरी करने के लिये निकला। एक महाराज के यहाँ हरि कथा हो रही थी, उसमें पंडित जी भगवान के आभूषणों का वर्णन कर रहे थे, कि उनके शरीर पर बेशकीमती आभूषण धारण किये हैं, सोने का रत्न जटित मुकुट है, गले में कीमती कंठे शोभायमान हैं। ये शब्द चोर के कान में पड़े, उसने वह माल चुराने का निश्चय किया, उसने सोचा इसका पता पंडितजी को है। वह वहीं छिपकर बैठ गया। कथा-समाप्ति के बाद पंडित जी सामान बटोरकर घर रवाना हुए, चोर ने रास्ते में घेर लिया और कहा कि या तो जो तुम्हारे पास माल है दे दो, नहीं तो उस आदमी का पता बताओ कि जिसके शरीर पर करोड़ों का माल है जिसकी चर्चा तुमने अभी की थी। पंडित जी घबरा गए, उन्होंने पीछा छुड़ाने के लिये कहा कि वह आदमी जमुना किनारे जंगल में गौं वें चराता है व बंसी बजाता है। बस चोर पंडित जी को छोड़ जमुना किनारे खोज में चल दिया, व इधर उधर ढूँढ़ने लगा। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते पाँच-छः दिन बीत गये परन्तु कहीं पता नहीं लगा। भूख से पीड़ित व हताश होकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद भगवान कृष्ण आभूषण युक्त (जैसा की पंडितजी ने कहा था) गोपों के झुँड में नजर आये। उनको देखते ही चोर प्रसन्न हो गया और हाथ में डंडा लेकर भगवान पर लपका। भगवान उसका मतलब समझ गये, उन्होंने पूछा कि तू कौन है? यहाँ किस लिये आया है? उसने कहा कि मैं चोर हूँ, जो तुमने आभूषण पहिने हैं, उनको मैं चुराने आया हूँ। भगवान ने वहीं पास में खजाना बतला दिया कि तुझसे जितना माल उठे उतना ले जा। बस चोर प्रसन्न होकर उससे जितना धन उठा, गठरी में बाँध कर घर ले आया। फिर पंडित जी को इनाम देने के लिये आया और कहने लगा कि पंडित जी साहूकार तो अच्छा मालदार बतलाया। पंडित जी आश्चर्य में डूब गये और कहने लगे कि भाई वह साहूकार नहीं हैं, वह भगवान कृष्ण थे। उनके दर्शन हमें भी कराओ। बस पंडित जी चोर के पीछे हो लिये व वहाँ जाकर छिप गये। थोड़ी देर के बाद चोर को भगवान दीख गये परन्तु पंडित जी को नहीं दीखे। तब चोर भगवान से प्रार्थना करने लगा कि प्रभो आप पंडित जी को क्यों नहीं दर्शन देते। भगवान कहने लगे कि जिस प्रकार तेरा विश्वास है वैसा पंडित जी का नहीं है इसलिये उनको दर्शन नहीं होते।
जिस प्रकार चोर ने पंडितजी के कहने पर दृढ़ विश्वास कर लिया। उसी प्रकार हर एक मनुष्य को चाहिये कि संत महात्मा विद्वान पुरुषों के विवेक युक्त वचनों का नियम से पालन करें। उसको अवश्य इच्छित सफलता मिल सकती है। जो काम दृढ़ विश्वास भावना से किया जाता है वह अवश्य ही फलीभूत होता है।