Magazine - Year 1943 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
रजत-कण
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री बटेश्वर दयाल जी वकेवरिया, शास्त्री, भिंड)
संयम और स्वतंत्रता जिस तरह एक ही सिक्के के दो बाजू हैं, उसी प्रकार नम्रता और निर्भयता भी एक ही वस्तु के दो रूप हैं। स्वतन्त्रता में जिस प्रकार अपने अधिकारों की रक्षा की प्रतिज्ञा है, उसी प्रकार संयम में दूसरे के अधिकारों की रक्षा का आश्वासन है। जो किसी को डराता नहीं, वास्तव में वह किसी से डरता नहीं है। जो औरों को डरा सकता है, वह जरूर दूसरों से डरता है।
जो अपनी गलती को खुद ही देखकर सुधार लेता है, और उसका प्रायश्चित कर लेता है, वह साधु है। जो गलती बताने पर मान लेता, और खेद प्रकाशित करता है, वह सज्जन और सद्गृहस्थ है। अपनी गलती महसूस होने पर भी हठ करता है, वह नर पशु है। जो सही और गलती की तमीज ही नहीं कर पाता, या जो गलत को सही, और सही को गलत मानता है, वह पशु है।
धार्मिक, राजकीय, अथवा वैज्ञानिक दलीलें जो किसी एक स्थान और एक समय में सही मान ली गई हैं, वही दूसरे स्थान और दूसरे समय में गलत भी हो सकती हैं। परन्तु व्यवहार नीति एक चिरकाल सत्य है। इससे लोगों को सच्चा सुख-प्रेम और शान्ति प्राप्त हो सकती है।
जीवन क्षणभंगुर अवश्य है, पर जिस जीवन में जैसा आकर्षण है, दीपक जैसा प्रकाश है, और पुष्प जैसा पराग है, वही अमरता है।
स्त्री, पुत्र और धन से किसी को भी सच्ची तृप्ति नहीं हो सकती। यदि हो सकती होती तो अब तक किसी न किसी को अवश्य हुई होती। सच्ची तृप्ति का विषय है केवल निजात्मा तत्व की प्राप्ति। आत्म तत्व की प्राप्ति हो जाने पर वह प्राणी सदा के लिये तृप्त हो जाता है।