Magazine - Year 1943 - Version 2
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Language: HINDI
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नश्वर संसार
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(लेखक-श्री पं. प्रेम नारायण शर्मा, गिर्दावर कानूनगो, अम्वाह)
(1)
जीर्ण शीर्ण पत्तों से निर्मित यह नश्वर संसार।
मृत्यु और जीवन इसके आने जाने के द्वार॥
बड़े बड़े विद्वान, शूर, सामन्त, गुणी, धनवान।
हाथ पसारे चले गये सब, छोड़ साज सामान॥
(2)
वह निर्धन जो जीवन में दो दाने जोड़ न पाया।
वह अमीर जिसकी कोठी में भरी पड़ी थी माया॥
दोनों लोट रहे मरघट में, मिली धूलि में काया।
इस सराय में किसको रहना? एक गया इक आया॥
(3)
जिन महलों में कल तक पुजती थी वैभव की रानी।
आज गूँजती उन्हीं खँडहरों में उलूक की वानी॥
जिन प्रासादों में था कल तक धन का, बल का, डेरा।
आज वहाँ कौए, चमगादड़ करते रैन बसेरा॥
(4)
चलती चक्की में आकर पिसते जाते हैं दाने।
फिर क्यों लगा अभागा मानव, इस पर भी इतराने॥
पानी भरी खाल जिसमें सांसों का ताना-बाना।
कौन ठिकाना इसका बन्दे, आज रहे कल जाना॥
(5)
तृष्णा लोभ, मोह, मद, ममता, मद कर पाप कमाई।
वह कर ले जिसके कारण तूने नर देही पाई॥
पथिक! दूर है तेरी मंजिल, रास्ते को कुछ धर ले।
पल में परलय होगी, जो करना हो सो अब कर ले॥
*समाप्त*