Magazine - Year 1944 - Version 2
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Language: HINDI
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गौ हत्या को रोको
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(महामना पं. मदनमोहनजी मालवीय)
गौ के समान उपकारी जीव मनुष्य के लिए दूसरा कोई भी नहीं है। अति प्राचीन काल से ही गौ ने मनुष्य जाति को सुखी और समृद्ध बनाने में बहुत बड़ा काम किया है। मनुष्य के लिए सर्वोत्तम आहार अर्थात् दूध गौ ही देती है; और गौ के बछड़े ही हमारे खेतों को जोतते और हमारे लिए अस्त्र-वस्त्र पैदा करते हैं। इसके सिवा अन्य कितने ही प्रकारों से गौ हमारा उपकार करती है। सर्वप्रथम भारतवर्ष के ऋषियों ने ही गौ दूध की महिमा को ठीक-ठीक जाना और गौ को लोकमाता कह कर उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की। संसार के सब से प्राचीन ग्रन्थ वेदों ने गौ को अवधनीय कहा है। अर्थात् यह वह है जिसकी कोई हत्या न करे भारतवर्ष में सर्वत्र हिन्दुओं द्वारा गौ पूज्य मानी जाती है और वास्तव में करोड़ों मनुष्य यथावत इसकी पूजा करते हैं। सचमुच यह बड़े दुःख की बात है कि ऐसे देश में वर्तमान शासन की अवस्था में अनेक वर्षों से बे-रोकटोक गौओं की हत्या होती रहने के कारण गोवंश का बड़ा ही भीषण ह्रास हुआ है। अकेले कलकत्ते में एक वर्ष में एक लाख गाय, बैल और भैंस की हत्या हुई हैं। अभी तक कुछ वर्ष ही पहले बम्बई के समीप बान्द्रा के कसाई खाने में कत्ल की जाने वाली गौओं की संख्या बढ़ती-बढ़ती 63000 तक बढ़ गई। इस प्रकार विविध स्थानों में गौओं की जो हत्या होती है उसके सिवाय हरियाणा तथा अन्यान्य स्थानों से विदेश में जो गाएँ भेजी जाती हैं उससे भी गौओं की संख्या बहुत घट गई हैं। गत 3 वर्षों में राज-पूताना और आस-पास के प्रदेशों में जो दुर्भिक्ष पड़ा उससे भी कितनी ही गायें नष्ट हो गई। उसका परिणाम यह हुआ है कि भारत में हमारे बच्चों को चाहे वे हिंदु, मुसलमान, सिख या ईसाई कोई हों, पर्याप्त दूध नहीं मिलता और इस कारण बच्चों की मृत्यु-संख्या बहुत बढ़ गई है। यह बात बहुत पहिले से ही सिद्ध है कि बच्चों की शारीरिक बाढ़ के लिये दूध का मिलना जरूरी है। हमारे देश के लोगों के शरीर बहुत ही कृश और कमजोर हो गये हैं, क्षय रोग दिन-दिन विशेष कर स्त्रियों में बढ़ता जा रहा है। भारत में अपने जीवन के पहिले ही वर्ष में मरने वाले बच्चों की संख्या 1000 में 198 है। इंग्लैंड जापान और डेनमार्क में यही संख्या केवल 50 है। भारत में औसत आयु 23 वर्ष है और इंग्लैंड में 52 वर्ष है। इंग्लैंड में औसत हिसाब से प्रत्येक मनुष्य को आधा सेर दूध मिलता है अमेरिका में सवा सेर, स्विट्जरलैंड में 1 पाव और भारत में केवल 1 छटाँक। इसी तरह मक्खन की खपत इंग्लैंड में हर साल प्रति आदमी 12 पौंड है, अमेरिका में 17 पौंड, स्विट्जरलैंड में 13 पौंड, कनाडा में 27 पौंड और भारत में केवल 2 पौंड।
दूध की इस कमी के मुख्य चार कारण हैं-
1. दूध देनेवाली गौओं की बे रोकटोक हत्या।
2. अच्छे साँडों की कमी।
3. शहरों के लिये दूध इकट्ठा करना और शहर में सब जगह पहुँचाने के लिये शहर के बाहर डेरियों का इन्तजाम न होना।
4.ग्रामों के लिये पर्याप्त गोचर भूमि का अभाव।
गोचर भूमि के सम्बन्ध में यहाँ यह ध्यान दिलाना है कि इंग्लैंड में जोतने योग्य भूमि का लगभग आधा हिस्सा गाय-बैलों के लिये चरने को छोड़ा जाता है। न्यूजीलैंड में एक-तिहाई हिस्सा जापान और जर्मनी में छठा हिस्सा और भारत में केवल 27 वाँ हिस्सा ही इस काम के लिये छोड़ा जाता हैं। इस छोड़े हुए हिस्से का भी कुछ हिस्सा गाँव के लोग जोत ही लेते हैं। परिणाम यह होता है कि गौएं जब वृद्ध हो जाती हैं, तब किसान उनका खर्च नहीं चला सकते और वे कसाई या गुमाश्तों के हाथ बेच दी जाती हैं। भारतीय कृषि विषयक रायल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है-”गोवंश के सुधार में बातें मुख्य 2 हैं उनको खिलाना और अच्छी नस्ल पैदा करना। खिलाने के विषय को हम पहला स्थान देते हैं। क्योंकि अच्छी नस्ल पैदा करने के सम्बन्ध में कोई महत्वपूर्ण सुधार तब तक नहीं हो सकता है, जब तक गाय बैलों को आज की अपेक्षा अच्छा-अच्छा खाना न खिलाया जाए। कमीशन ने यह भी लिखा है कि बहुत से साथियों ने गोचर भूमि वृद्धि को ही आवश्यक बताया है। अभी की हमारी कलकत्ते की यात्रा में ग्वालों के प्रतिनिधियों ने हमसे कहा कि हम लोग एक एक गाय को कसाई के हाथ से बचा सकते हैं, यदि हमें पर्याप्त गोचर भूमि मिल जाए। दूध देने वाली गौओं की हत्या रोकने के सम्बन्ध में मैंने एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट की ओर ध्यान दिलाया था यह कमेटी बम्बई सरकार ने नियुक्त की थी। कमेटी ने लिखा-”कमेटी की यह राय है कि आज की अवस्था में जब दूध देने वाली गाय, भैंस दूध के लिये शहर के अन्दर ही रखी जाती हैं उपयोगी पशुओं की हत्या रोकने के लिये कानून का होना आवश्यक है।” कमेटी का यह भी कहना है कि यदि प्राँतीय सरकारें, म्युनिसिपैलिटियाँ आदि शहरों के बाहर ऐसे डेअरी केन्द्र स्थापित कर सकें, जहाँ ग्वाले दूध उत्पन्न न करे अच्छी गौओं की उत्पत्ति बढ़ाकर पालन करें। और वृद्ध गौओं को भी तब तक खिलावें जब तक वे फिर से दूध न देने लग जाए तो उपयोगी पशुओं की हत्या का प्रश्न बहुत कुछ आसान हो जाएगा और कुछ समय में रह ही न जाएगा। अर्थात् कमेटी की यह राय है कि उपयोगी दूध देने वाले’ पशुओं की हत्या शहर में जो गाय-बैलों के गोठ हैं उन्हीं का प्रत्यक्ष परिणाम है। और कमेटी का यह दृढ़ता-पूर्वक कहना है कि गोठों की पद्धति बदल कर शहर के बाहर दूध उत्पादन का प्रबन्ध होना चाहिये। दूध देने वाले पशुओं की रक्षा और इस प्रान्त के दुग्ध व्यवसाय की सन्तोषजनक उन्नति के लिये जो कुछ भी प्रयत्न किया जाएगा उसमें सबसे पहिला और सबसे महत्वपूर्ण काम यही है।
मैं एक्सपर्ट केंटल कमेटी की यह सिफारिश प्राँतीय सरकार, म्युनिसिपैलिटियों और जिला बोर्डों के सामने रखता हूँ। यह कहा जाता है कि देश में 1000 गौशालाएँ, डेअरी-फार्म और पिंजरा पोल है, तथा 1 करोड़ रुपया प्रतिवर्ष इन संस्थाओं के लिये खर्च किया जाता है, यदि ये सब गौशालाएँ एक सूत्र में आबद्ध हों और जहाँ सम्भव हो वहाँ एक साथ काम करें तो जनता को शुद्ध और सस्ता दूध दे सकती हैं और साथ ही गौओं को बचा सकती हैं। जहाँ गौशालाएं और पिंजरापोल न हों वहाँ उनकी स्थापना यथा सम्भव शीघ्र होनी चाहिये।