Magazine - Year 1945 - Version 2
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Language: HINDI
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अन्तःकरण को मत कुचलिए।
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जिस प्रकार हम दूसरे के दाँतों से नहीं खाते अथवा दूसरे के कानों से नहीं सुनते उसी प्रकार दूसरे के अन्तःकरण पर भी निर्भर मत रहो। साधु और महात्मा, पुरोहित और राजनीतिज्ञ, माता-पिता और सम्बन्धी तथा मित्र ओर साथी भी यदि आपके अन्तःकरण के निर्णय की निन्दा करें तो आपको अपने अन्तःकरण का ही अनुगमन करना चाहिये, न कि दूसरों के अन्तःकरण का। दूसरों के अन्तःकरण आपके व्यक्तित्व में नहीं है। वह आपसे बाहर है और इसीलिए आपके लिए विदेशी हैं। किन्तु आपका मंत्री आपके अन्दर है और वह आपके हृदय के समान सदा आपके साथ ही रहेगा। अतएव यदि आपके पुरोहित और राजनीतिज्ञ, माता-पिता और सम्बन्धी आप से अपने को प्रसन्न करने और अपनी आज्ञा पालन करने के लिए आपके अन्तःकरण के प्रति आपको झूठा करना चाहें, तो आपको उन्हें सदा यह उत्तर दे देना चाहिये, ‘मैं आप नहीं हूँ, आप मैं नहीं हो।’ जिस प्रकार आपका अन्तःकरण आपका है, उसी प्रकार मेरा अन्तःकरण निर्वाध रूप से बिना किसी शर्त के मेरा है। जिस प्रकार मैं आपके वस्त्र नहीं पहन सकता अथवा आपके सिर दर्द को स्वयं नहीं ले सकता, उसी प्रकार मैं आपके उस अन्तःकरण का अनुगमन नहीं कर सकता, जिसके विषय में मैं कुछ भी नहीं जानता। मैं आपके आदेश पर अपने व्यक्तित्व के एक भाग को क्यों तोड़-फोड़ कर नष्ट करूं। यदि मैं अपने अन्तःकरण का इस समय उल्लंघन करूंगा तो यह मुझे शाँति से नहीं सोने देगा। क्या उस समय आप सबके अन्तःकरण मिलकर मुझे बचा लेंगे? नहीं, वह यहाँ निश्चय से नहीं होंगे, क्योंकि वह तुम्हारे हैं, मेरे नहीं। इस प्रकार मैं उन आपत्तियों और लज्जा में पड़ जाऊँगा, जो मेरा अन्तःकरण मेरे आज्ञापालन न करने के कारण अपमानित होकर मुझे देगा। “अन्तःकरण के समान मनुष्य को अधिक दुःखी ओर कोई नहीं बना सकता। दाढ़ का दर्द भी उसकी तुलना में कुछ नहीं है। बेचैन अन्तःकरण मनुष्य की अंतड़ियों में अत्यन्त निर्दय, और प्रतिहिंसाशील कीड़ा होता है। उसका कुतरना खरोंचना और हल्का कष्ट उन सब बड़ी-बड़ी भारी यातनाओं की अपेक्षा भी असह्य होता है। जो नूरेमवर्ग के अस्त्रागार में रखे हुए शस्त्रों से दी जाती है। यदि मैं अन्तःकरण को मारता हूँ तो निश्चय से वह स्वयं मरते हुए भी मुझको उसी प्रकार मारेगा। जिस प्रकार हैमलेट ने अपने प्रतिद्वन्द्वी चाचा को मार डाला था। आपको एक क्षण के लिए प्रसन्न करने के लिये मैं अपने अन्तःकरण का निःसहाय अपराधी क्यों बनूँ? अपने अन्तःकरण को कभी न साने देने वाला आजीवन शत्रु बनाने की अपेक्षा अपना मित्र बनाने में ही मेरा हित है, और यही मेरी इच्छा है। अतएव आपका, मेरा और हम सबका यह कर्त्तव्य है कि हम संसार भर के महान पुरुषों और सम्राटों से भी अधिक अपने-अपने अन्तःकरण का आज्ञा पालन करें, और उसकी पुकार को अपनी प्रेमिका की प्रेम भरी पुकार, अथवा माता-पिता और मित्रों की मधुर शिक्षा से भी अधिक शीघ्रता और सत्यता से सुनकर उसके अनुसार आचरण करें।”
यदि कोई निर्बल मनुष्य तुम्हारा निरादर कर दे, तो उसे क्षमा कर दो। क्षमा करना ही सज्जनों का काम है। हाँ! बलवान को निश्चय दंड देना चाहिए।
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जो बुद्धिमानी और धैर्य से काम करता है। उसके साथ सारी उत्तम वस्तुएं सहानुभूति रखती हैं।
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