Magazine - Year 1946 - August 1946
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Language: HINDI
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श्री भगवान् किस पर प्रसन्न रहते हैं।
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विष्णु पुराण में लिखा है कि जो जितेन्द्रिय पुरुष दोष के समस्त हेतुओं को त्याग देता है उसके धर्म, अर्थ और काम की थोड़ी भी हानि नहीं होती। जो विद्या-विनय से युक्त सदाचार परायण पुरुष पापी के प्रति पाप का बर्ताव नहीं करता, कुटिल मनुष्यों से भी प्रिय भाषण करता है तथा जिसका अन्तःकरण मित्रता के भाव से सदा द्रवित रहता है, मुक्ति उसकी मुट्ठी में रहती है। जो वैराग्यवान् महापुरुष कभी काम, क्रोध और लोभ आदि के वश में नहीं होकर सदा सर्वदा सदाचार में स्थित है, यह पृथ्वी उन्हीं के प्रभाव से टिकी हुई है, इसलिए प्राज्ञ पुरुष को वही सत्य कहना चाहिए जो दूसरों की प्रसन्नता का कल्याण कारण हो। यदि किसी सत्य वाक्य से दूसरों दुःख होता हो तो वहाँ मौन रहना चाहिये, यदि प्रिय वाक्य भी अहित करने वाली जान पड़े तो नहीं कहना चाहिये। उस अवस्था में तो हितकर वाक्य ही कहना उत्तम है चाहे वह अत्यन्त अप्रिय ही क्यों न हो। जो कार्य इस लोक और परलोक में प्राणियों का हित करने वाला हो, बुद्धिमान पुरुष को मन, वचन और शरीर से उसी का आचरण करना चाहिये।