Magazine - Year 1947 - Version 2
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Language: HINDI
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आइए, आन्तरिक गुलामी के बन्धनों को भी काट डालें
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पिंजड़े में बन्द पक्षी को कई प्रकार की सुविधायें भी होती हैं। शिकारी जानवरों से उसकी प्राण रक्षा वह लोगों की घड़ों का मजबूत पिंजड़ा करता रहता है। वर्षा, धूप, भूख, प्यास से भी पालने वाला मनुष्य उस पक्षी को बचाता है, स्वतंत्र होने पर पक्षी को अपने रहने और पेट भरने के लिये जो कठिन श्रम करना पड़ता है, उस सबसे पिंजड़े में बंद रहने वाले को छुटकारा मिल जाता है। इस पर भी पक्षी निरन्तर यही प्रयत्न करता रहता है कि मुझे इस बन्धन से मुक्ति मिले और स्वतंत्र आकाश में उड़ जाऊं। पिंजड़े की सुविधाओं को वह स्वच्छन्द जीवन की असुविधाओं के ऊपर निछावर कर देना चाहता है। स्वाधीनता सचमुच ऐसी ही वस्तु है, उसका मूल्य बुद्धिहीन पक्षी भी समझता है।
मनुष्य को पशु पक्षियों से अधिक चेतना प्राप्त है। इसलिये उसके लिये स्वाधीनता का महत्व और भी अधिक है। ऋषियों का अनुभव है-”पराधीनता सपनेहु सुख नाहीं।” स्वाधीन को ही सुख मिल सकता है। आज हम राजनैतिक पराधीनता से बहुत हद तक मुक्ति प्राप्त कर रहे हैं। इस शुभ अवसर पर हर भारतवासी का प्रसन्न होना स्वाभाविक है। पर अभी बौद्धिक पराधीनता, इन्द्रियों की पराधीनता एवं कुविचारों की पराधीनता शेष है। आइए, इन बन्धनों को भी तोड़ने का प्रयत्न करें तभी सर्वतोमुखी मुक्ति का आनन्द मिल सकेगा।