Magazine - Year 1947 - Version 2
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Language: HINDI
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आत्मबल या पारस
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(श्री राजर्षि महिपालसिंह जी, निमदीपुर स्टेट)
गिरनार की गुफाओं में घूमते हुये एक बार मुझे एक महात्मा मिले-मेरे सामने उनसे एक दूसरे आदमी ने पूछा कि बाबा पहाड़ों में पारस पत्थर खोज रहे हो? वह सफेद दाढ़ी वाले ओजपूर्ण मुख को ऊंचा करके तेज से तप्त नेत्रों को एकत्र भावना से खोलकर बोले कि मैं तुम से बोलना नहीं चाहता-मेरी तरफ संकेत करके कहा कि आप चाहें तो मैं कुछ कहूँ इस व्यंग वाणी की कहानी समझा सकता हूँ। स्वच्छ, स्वतंत्र सुविचार के आधार पर आत्मिक शक्ति साधन द्वारा अनेक प्रकार के धन प्राप्त होते हैं अनन्त शक्तिशाली का कोष कभी खाली नहीं हो सकता अभाव भासित करने वालों को चाहिए कि वह अपनी आत्मिक प्रभाव वाली कमी को पूरा करे, क्योंकि उसी के साथ क्रमानुसार इसमें घटती-बढ़ती होती है इसके प्रमाण की आवश्यकता नहीं जो चाहें इम्तहान लेकर देख ले। विचारकों के लिये स्वयं अपनी आत्मिक और आर्थिक आदि शक्तियों का संतुलन एक प्रत्यक्ष प्रमाण हो सकता है केवल द्रव्य से ही इसकी भव्यता नहीं होती कर्तव्यशीलता को सम्मिलित करते हुये सम्मानित संतोष का कोष पूरा होता है। क्योंकि जघन्य कर्मों द्वारा उपार्जित धन उसे सम्मानित नहीं बना सकता।
सब धातुओं से पत्थर में धारण शक्ति विशेष होती है इसी से उसका मूल्य सबसे बढ़ा-चढ़ा होता है जब गुप्त शक्ति का सामूहिक प्रकाश उस पर पड़ता है तो वह उसके प्रभाव को अधिक अंश में धारण कर लेता है और स्पर्श के साथ अपने आदर्श गुणों को दूसरी धातुओं में भी वितरण कर सकता है। हर एक के हृदय में पारस से कहीं अधिक प्रभाव वाली विद्युत शक्ति रहती है जिसको जागृत करके जगत के सभी साधनों को वह सुगमता से प्राप्त कर सकता है केवल सोना उस अपार कोष भंडार के एक कोने की कमी को भी नहीं पूरा कर सकता एवं अपने संपर्क में आने वालों को भी वह गुणवान बना देता है परन्तु कठिनाई यह है कि प्रथम तो वह इन निःसार वस्तुओं पर ममता नहीं रखता दूसरे अज्ञानियों की व्यंग वाणी उसके हृदय में इतनी घृणा उत्पन्न करा देती है कि किसी तरह वह ऐसे नारकी संपर्क को स्वीकार नहीं कर पाता। जब से मैंने उनके आदेशिक उपदेश को सुना आत्मिक शक्ति के साथ साँसारिक साधनों का संतुलन करता रहा मुझे तिल भर भी कभी अन्तर नहीं मिला।
हर एक की आत्मिक शक्ति के साथ उसके स्वाभाविक साधनों का अथवा सम्मानित साधनों के साथ उसकी आत्मिक शक्ति का सही पता मालूम हो सकता है। जिनको इस संतुलन का अभ्यास हो जाता है कुवासना उनके आस-पास नहीं पहुँच पाती। दृश्य की दासता को वह दूर ही रखना चाहता है-उसका प्रयास दिव्य प्रकाश में अखंड आनन्द के अभ्यास में लगा होता है-जिनकी हृदय कली संसार की खलबली में भी खिली रहती है उनकी अगम्य ज्ञान वाली मंद मुस्कान ही उनकी अहानता की पहिचान होती है। विचारवान पाठक इस पर ध्यान देकर देखने का अभ्यास करें। अधिक समय न लगा पाने वाले अपनी डायरी को ही पथ प्रदर्शक मान लें। सुविचारों और कुविचारों दोनों की एक सूची बना लें नित्य प्रातःकाल उठकर 24 घंटे में होने वाली आत्मिक आधार की घटनाओं को यथा तथ्य रूप में निःसंकोच नोट करके आत्मिक शक्ति अधिकारी से मिलने वाले सुविचारों के लिये आभारी हों तथा दूसरों के संसर्ग से होने वाले कुविचारों के लिये आत्मग्लानि के साथ क्षमा प्रार्थी होकर भविष्य में सतर्क रहने का दृढ़ निश्चय बनावें। थोड़े समय में उनको भासित होने लगेगा कि उनका किया जाने वाला आत्मिक शक्ति साधन का अभ्यास उनकी आँतरिक शक्ति को आगे बढ़ा रहा है।