Magazine - Year 1949 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
हास्योपचार सर्वोत्तम है।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
प्रसन्नता जंतु नाशक औषधि है, जिस व्यक्ति ने यह तत्व सर्वप्रथम मालूम किया होगा उसकी गिनती महा चिकित्सकों में होनी चाहिए। हास्य तथा प्रसन्नता शरीर तथा मन पर आश्चर्यजनक प्रभाव डालते हैं और शोक, भय, चित, क्लेश जैसी प्राणघातक वृत्तियों का उन्मूलन क्षण भर में कर डालते हैं। आनन्द ईश्वरीय गुण है, चिंता क्लेश इत्यादि आसुरी तत्व। ईश्वरीय गुण का प्रतीक आनन्द शरीर में मधुर रस उत्पन्न करता है और किसी अव्यक्त मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया से शरीर और मन पर तत्काल शान्ति का अलौकिक प्रभाव डालता है। जिस समय आनन्द तथा प्रसन्नता अपना प्रभाव प्रकट करते हैं तो समस्त प्रतिकूल प्रसंग विलीन हो जाते हैं। शरीर के अणु-अणु में नवोत्साह का संचार हो उठता है।
हँसने से तात्पर्य है कि आपके सुख की कली फूल की पंखुड़ी की भाँति खिल उठे, रोम-रोम में नव स्फूर्ति दौड़ जाय, जीवन रस से, नई शक्ति से ओत-प्रोत हो उठे, मन की दुर्बलता धुल जाय। मुस्कराहट ज्ञान तन्तुओं में जो कुछ दुर्बलता अथवा चिंता होती है, उसे तत्काल दूर करती है। आनन्द का प्रभाव शरीर तथा मन के कण-कण में होता है। जिस जगह औषधि लाभ नहीं पहुँचाती, जहाँ इंजेक्शन, कुनैन या अन्य कृत्रिम साधन कार्य नहीं करते, वहाँ हास्य भाव अपना कार्य करता है।
विपत्ति, चिंता तथा व्याधि की हास्य के साथ शत्रुता है इसलिए प्रसन्नता की जितनी अधिकता होगी, उतनी ही व्याधि की न्यूनता होगी। जो हंसते हुए जीवन बितायेगा उसका जीवन उतना ही स्वस्थ होगा। यदि आप रोग तथा व्याधि से मुक्ति चाहते हैं, जीवन का बीमा चाहते हैं, सौ वर्ष तक जीना चाहते हैं तो एक ही मार्ग आपके समक्ष है- अन्तर से वास्तविक अन्तःकरण से -हंसो। खूब खिलखिलाकर हास्य फैलाओ। हंस-हंस कर रोग व्याधियों को मार भगाओ। हंसो और सारा संसार तुम्हारे साथ आनन्द से विभोर हो खिल खिला उठेगा। रोओ किन्तु तुम्हारे साथ रोने वाला और कोई न मिलेगा। यदि तुम सुख से जीवन व्यतीत करना चाहते हो, तो हास्य की महिमा को अविलग समझो और आज से, अभी से उसका अभ्यास प्रारंभ कर दो। अपने जीवन को हास्य से मधुर बनाओ। स्वयं भी हंसो तथा दूसरों को भी हंसाओ।
जब हम हंसते हुए जीवन व्यतीत करते हैं तो हमारे लिए सारा संसार परिवर्तित हो जाता है और हम उसका एक जीवन दृष्टिकोण से निरीक्षण करने लगते हैं। मनुष्य को यह गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जिस प्रकार भोजन, जल, वायु इत्यादि जीवन शक्ति के पोषक तत्व हैं, उसी प्रकार और सच पूछा जाय तो उससे हास्य तत्व आनन्द में मग्न रहना आवश्यक है।
अतः हंसें, खिलखिला कर, बिना किसी प्रतिबन्ध के, हंसों। जब समस्त संसार आपको रुलाने को प्रस्तुत हो, जीवन के युद्ध में जब आँधी और तूफान वेग से आता दिखाई देता हो, जब यह प्रतीत होता हो कि जीवन मौका उलटकर समुद्र की लहरों में विलीन हो जायगी, तब खिलखिलाकर हंस दें। आँधी तूफान शान्त हो जायगा, जीवन नौका पुनः आनन्द से चलने लगेगी, हृदय खुशी से उछलने लगेगा।
खुलकर हंसने से फेफड़े, पेट आदि के आन्तरिक अवयवों को व्यायाम प्राप्त होता है। हृदय अधिक तीव्र गति से कार्य करने लगता है। रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। हास्य नेत्रों की शक्ति को तेजवान करता है, छाती फैलती है और शरीर के प्रत्येक अंग को स्वास्थ्यप्रद गर्मी पहुँचती है। कठिन परिश्रम के मध्य में खुलकर हंस लेने से, मस्तिष्क को बहुत कुछ विश्राम प्राप्त हो जाता है, थकावट दूर हो जाती है और पुनः नवीन जोश से काम में जी लग जाता है।
हास्योपचार के लिए सहनशीलता की आवश्यकता है। जो जरा सी बात पर उद्विग्न हो उठता है, वह कैसे हंस कर रोग दूर कर सकता है? हँस वही सकता है जिसमें दूसरों के अपराध क्षमा कर देने की शक्ति हो, प्रतिहिंसा की ज्वाला हृदय से न सुलगती हो। यदि आपके विरुद्ध कोई अपशब्द कहे तब भी उद्विग्न न हों यदि कोई आपको रुलाने के लिए तैयार बैठा हो, हानि का हिमालय टूट पड़ने को हो,तो भी हंसे।
हँसना सीखिये। दूध पीने वाला बालक जैसे निर्दोष हँसी हँसता है, वैसी ही हँसी, मस्त बिखेरने वाली हँसी सर्वोत्तम दवा है। हास्य सेवन का आनन्द लें। हँसने वालो का संग करें, आनन्दजनक भविष्य को ही अपने सामने रखें प्रत्येक पहलू में आनन्द ही देखें, बरतें, सुनें और सुनायें। हास्य और केवल हास्य ही आपके दुःख दर्द की एकमात्र दवा है।