Magazine - Year 1949 - Version 2
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Language: HINDI
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आ इक नया शिवाला इस देश को बना दें
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(स्व. डॉ. इकबाल)
सच कह दूँ ऐ बिरहमन, गर तू बुरा न माने।
तेरे सनमकदों के बुत हो गये पुराने॥
अपनों से बैर रखना तूने बुतो से सीखा-
जंगो जेदल सिखाया, वाइज को भी खुदा ने।
तंग आके मैंने आखिर, दैरो हरम को छोड़ा-
वाइज का वाज छोड़ा, छोड़े तेरे फसाने॥
कुछ फिक्र फूट की कर, माली है तू चमन का-
बूटों को फूँक डाला, इस विष भरी हवा ने॥
पत्थर की मूरतों में, समझा है तू खुदा है।
खाके वतन का मुझको हर जर्रा देवता है॥
आ मिलके गैरियत के, पर्दे को फिर उठा दें।
बिछड़ों को फिर मिला दें, नक्शे दुई मिटा दें॥
सूनी पड़ी हुई है, मुद्दत से जी की बस्ती-
आ इक नया शिवाला, इस देश को बना दें॥
दुनिया के तीर्थों से ऊँचा हो अपना तीरथ-
दामाने आसमाँ से उसका कलस मिला दें॥
फिर इक अनूप ऐसी सोने की मूरती हो-
इस हरदुवार दिल में लाकर जिसे बिठा दें॥
जन्नार हो गले में तसबीह हाथ में हो-
यानी सनमकदे में शाने हरम दिखा दें॥
पहलू को चीर डालें, दरशन हो आम उसका-
हर आतमा को गोया इक आग सी लगा दें॥
आँखों की जो है गंगा ले ले के उसमें पानी-
उस देवता के आगे इक नहर सी बहा दें॥
हर रोज उठके गायें मन्तर वो मीठे मीठे-
सारे पुजारियों को ‘मै’ प्रीत की पिला दें।
मन्दिर में हो बुलाना जिस दम पुजारियों को-
आवाजये अजाँ को नाकूस में छिपा दें॥
अग्नी है वो जो निरगुन कहते हैं प्रीत जिसको-
धर्मों के यह बखेड़े उस आग में जला दें॥
आ इक नया शिवाला इस देश को बना दें।
*समाप्त*