Magazine - Year 1949 - Version 2
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Language: HINDI
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उपवास का आध्यात्मिक रहस्य
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(राजकुमारी श्री रत्नेश कुमारी, मैनपुरी स्टेट)
हिन्दू धर्म में जो कुछ भी परम उपयोगी बातें रखी गई हैं वे केवल मानसिक लाभ के ही लिए नहीं रखी गई वरन् त्रिविधि उन्नति की पावन त्रिवेणी बनाई गई है। जिससे उनका अनुगामी कृतकृत्य हो सकें। उपवास भी उनमें से एक है जो उसे एकाँगी दृष्टिकोण से देखते हैं वे उससे अधूरा ही लाभ उठा पाते हैं। जब हमारे लिए हमारे दूरदर्शी पूर्वज त्रिविधि लाभों की पवित्र त्रिवेणी बना गये फिर भी हम उसका पूरा-2 लाभ उठाने से वंचित रहें तो इसमें दोषी हमारे सिवा कौन है?
शारीरिक उन्नति के विषय में तो प्राकृतिक चिकित्सा के ग्रन्थों में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। अतः मैं उसके अन्य दो लाभों के ही विषय में आपका ध्यान आकर्षित करूंगी। “उपवास” का शाब्दिक अर्थ है “दूसरे स्थान पर निवास करना” अतएव हमें अपना उपवास तभी सफल मानना चाहिए जब हम जिस शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक स्थिति में हों उससे अधिक श्रेष्ठ स्थिति में पहुँच जायें। इसके लिए यह आवश्यक है कि न तो हम इतना कम ही आहार ग्रहण करें कि हमारा पित्त खराब हो, फलस्वरूप शरीर तथा मन का सन्तुलन बिगड़ जाये और न आहार इतना अधिक ही होना चाहिये कि शरीर पर आलस्य का राज्य हो जाय और मन उच्च विचारों में रमण करने का पूर्ण आनन्द न प्राप्त कर सके। आहार की मात्रा इस कसौटी पर कस कर पाठक स्वयं ही निश्चित कर सकते हैं पर मैं इतना अवश्य कहूँगी कि फल, दुग्ध लेना अन्न की बनिस्बत अधिक अच्छा होगा, यदि वे भी ठूँस-2 कर पेट भर न खाये जायें तो।
जब शरीर और मन में स्फूर्ति शान्ति अर्थात् दोनों की समावस्था होती है तब आध्यात्मिक विचारों में मन सरलता पूर्वक डूब जाता है। इस डुबकी में जो आनन्द मिलता है उसको कह कर नहीं बतलाया जा सकता, आप स्वयं ही सरलतापूर्वक इसको अनुभव कर सकते हैं। आप स्वयं ही अनुभव कर सकेंगे कि इस दिव्य आनन्द के सन्मुख सभी साधारण आनन्द फीके पड़ जाते हैं।
कुछ नियम और भी यदि उपवास में ले लिए जाते हैं तो वह विशेष शक्तिशाली हो जाता है प्रातःकाल के उगते हुए बाल सूर्य को साक्षी करके ये व्रत दृढ़तापूर्वक ग्रहण करना कि-”आज मैं उपवास करूंगा। अर्थात् शरीर तथा मन को शान्त रखूँगा, इष्ट देव तथा आदर्श विचारों का ही चिन्तन करूंगा, सद्ग्रन्थों का ही पठन-पाठन करूंगा, दिन में नहीं सोऊंगा, कुविचारों को मन में स्थान नहीं दूँगा तथा उनको उत्पन्न करने वाले व्यर्थ के वार्तालाप भी नहीं करूंगा।’
इस व्रत संयुक्त उपवास को करने पर आपको इतना आनन्द अनुभव होगा कि मेरा विश्वास है कि आप इसको अपने नित्य की जीवन चर्या में सम्मिलित करने को उत्सुक हो उठेंगे।