Magazine - Year 1949 - Version 2
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Language: HINDI
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क्या जाने
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(श्री बृजलाल वर्मा)
कर चुका मृत्यु का आलिंगन वह जीवन को क्या पहचाने।
जो दीप शिखा में जला कीट वह अंधकार को क्या जाने॥
वह पक्षी जिसका तड़प-तड़प पिंजरे में जीवन गया बीत,
मीठी-मीठी मादक ध्वनि से फिर गा न सका जो मधुर गीत,
जो बदन बधिक का लख क्षण-क्षण निज श्वासें गिनता हो अधीर,
आघातों से जो विद्ध और जीवन भर जिसने सही पीर,
वह वन प्रदेश में उड़-उड़ कर स्वच्छंद विचरना क्या जाने।
जो दीप शिखा में जला कीट वह अंधकार को क्या जाने
भू शैय्या भी जिसको न मिली पर्यंक शयन की कौन कहे,
करवट ले लेकर ठिठुर-ठिठुर हिम रजनी के खरपात सहे,
जिसका धन बोरे का चादर जिसकी निधि बोरे की गुदड़ी,
टाटों के ही जिसके सुवस्त्र जिसके टाटों की ही पगड़ी,
पट मिला न जीवन भर जिसको वह पाटाम्बर को क्या जाने।
कर चुका मृत्यु का आलिंगन वह जीवन को क्या पहचाने॥
जो खड्ग देख डर गया और गोली की ध्वनि सुनकर चिल्लाया,
जो बर्छी को लख काँप गया, श्रोणित को लख जो घबराया,
प्राणों का है व्यामोह जिसे जिसको प्रिय अति अपना शरीर,
स्वाराधन में जो है विह्वल केवल निज सुख में जो अधीर,
वह दीन दुखी के लिए समर में लड़ कर मरना क्या जाने।
कर चुका मृत्यु का आलिंगन वह जीवन को क्या पहचाने॥
कलियों को पुष्पित होते लख जिसका मन तनिक न मुस्काया,
शशि की उस रजत चन्द्रिका मैं जो मुग्ध न क्षण भर हो पाया,
भर साँस न ली, यद्यपि आया, सुमनों से सुरभि बटोर पवन,
जिसका मन हरण न कर पाये कोकिल, रसाल, सर, वन-उपवन,
आलोकमयी सुषमा को वह जड़-हृदय परखना क्या जाने।
कर चुका मृत्यु का आलिंगन वह जीवन को क्या पहचाने॥
-सहयोगी
*समाप्त*