Magazine - Year 1950 - Version 2
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Language: HINDI
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प्रेम और वासना
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(श्री देवेन्द्र जी एम.ए.)
केवल एक बार मानव अन्तर में यह ज्वाला जलती है।
यों तो सुन्दर स्वर्ग धरा है, और स्वर्ग है अम्बर सारा।
सभी सुपरिचित प्रिय हैं। अपने, सकल विश्व परिवार हमारा॥
फिर भी स्नेह किसी का ही पा, अमित शून्य सा उर भर पाता।
सुन्दरता से भरे विश्व में, रूप एक ही मन को भाता॥
पल पल मचल उठा करते हैं। दीप दीप पर वे परवाने।
फूल फूल के मधु रस लोभी, सत्य साधना को क्या जाने॥
जो मानव के उर में पोषित त्याग और तप से पलती है।
केवल एक बार मानव अन्तर में यह ज्वाला जलती है॥
प्रेम वही है एक बार जो होकर शिथिल नहीं होता है।
देश काल की झंझा से जो, थक कर कभी नहीं सोता है॥
बार बार जलने वालों में प्रेम नहीं वासना प्रबल है।
प्रेम, वासना में न द्वन्द है, पर केवल वासना गरल है॥
जिसको पीकर दो प्राणों की ममता क्षय गलती है।
केवल एक बार मानव अन्तर में यह ज्वाला जलती है॥
माना परिवर्तन निश्चित है, संसृति का अनिवार्य नियम है।
एक बार जल कर जल जाना, भी तो परिवर्तन का क्रम है॥
बार बार जलना बुझना तो, पशुता, आडम्बर है, भ्रम है।
प्राणों का बंधन अविचल है, सत्य, शिवम् और सुन्दरतम है॥
जिसका रस, जिसकी सुन्दरता, नित नूतन होती चलती है।
केवल एक बार मानव अन्तर में यह ज्वाला जलती है॥
*समाप्त*