Magazine - Year 1951 - Version 2
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Language: HINDI
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गलती को कैसे सुधारा जाए?
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(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए.)
जब मनुष्य एक बार किसी गलत रास्ते पर चला जाता है, तो उसे इतना ज्ञान और विवेक नहीं होता कि सही रास्ते पर आ सके। अन्धकार में खोये हुए पथिक की भाँति वह गलत मार्ग पर निरन्तर चला जाता है। यदि कोई रोक कर उसे सही रास्ता प्रदर्शित न करे,तो वह अज्ञान में ही भटकता रहेगा। कभी लोग जानते बुझते अनीतिकार मार्ग का अवलम्बन कर बैठते हैं। इसका कारण यह है कि एक बार गलत मार्ग चुन लेने के पश्चात सही रास्ते पर आते हुए उनके गर्व और अहं को चोट लगती है। वे गलत मार्ग पर चल कर उसी मिथ्या गर्व की रक्षा में सचेष्ट रहते है।
मान लीजिए, आप किसी से कुछ वायदा कर बैठे हैं, बाद में आपको प्रतीत होता है कि आप भूल कर बैठे हैं। आपको ऐसा अदूरदर्शिता पूर्ण वायदा नहीं करना चाहिए था। किसी को रुपया, पुस्तक, या साइकिल उधार देने का वायदा एक भूल है क्योंकि या तो ये वस्तुएँ समय पर वापस लौटकर नहीं आती, यदि आ भी गई तो टूट फूट कर आती हैं। गलत वायदा कर लेने पर उसे शीघ्र से शीघ्र सुधार लेना ही बुद्धिमानी है। अन्यथा वह गलती अधिकाधिक अभिवृद्धि को प्राप्त होती रहेगी।
मान लीजिए आप एक लड़के की शिक्षा, संस्कार और ब्रह्म वेशभूषा देख कर उसे अपनी कन्या के लिए चुन लेते हैं। कुछ मास पश्चात, विवाह से पूर्व, आपको उसके चरित्र की निर्बलताएँ मालूम होती हैं। आप यदि अपने वचन के पक्के हैं तो अपनी गलती को बढ़ा कर कन्या का जीवन नष्ट कर देंगे। उत्तम तो यह है कि वर पक्ष से क्षमा माँग लें और अपनी गलती को शुद्ध कर दें।
गलती करना नये प्रशस्त मार्ग को अनुसरण करने का मार्ग है। आप एक गलती को सुधार कर अपने चरित्र को सबल बना रहे हैं। आगे आने वाले युग के लिए अपने आपको तैयार कर रहे हैं। एक गलती को सुधारना सैकड़ों भूलों से बचना है।
जो अपनी गलती स्वीकार करता है। वह महान् आध्यात्मिक पुरुष है। वह अहं को अपने वश में रखता है। अहं को वश में करना स्वर्ग, मुक्ति और परमपद प्राप्त करने का मार्ग है। समस्त मूर्खताएँ इसी से दूर होती हैं। प्रत्येक सुधरी हुई गलती आगे के लिए सावधानी का मार्ग तैयार करती है। आत्मोन्नति का अर्थ है असंख्य गलतियों को सुधारते हुए परम पद की ओर अग्रसर होना।
गलती करना बुरा नहीं है। संसार के महान पुरुषों ने अनेक प्रकार की गलतियाँ की हैं। रावण जैसा विद्वान धार्मिक अपने दुष्कृत्यों से राक्षस जैसा बन गया, बाल्मीकि डकैत और खूनी रहे हैं, सूर तुलसी कामोन्धता में गलती करते रहे थे, नानक, कबीर, मीरा, रसखान आदि साँसारिक जीवन में गलती करते रहे थे, लेकिन इन्होंने गलती को सुधारा और आगे बढ़ कर महापुरुष बने।
मनोविज्ञान में ‘ट्रायल एंड एरर’ अर्थात् गलती कर अंक प्राप्त करना और आगे बढ़ने का महत्वपूर्ण स्थान है। मनुष्य जब जीवन यात्रा पर निकलता है तो उसके मार्ग में अनेक प्रलोभन आते हैं। वह इन प्रलोभनों के वश में इधर उधर भागता, गलतियाँ करता है। गलती की कड़वाहट से उसे भयंकर भूल का भान होता है। वह उस गलती को भविष्य में न दुहराने का संकल्प कर आगे साधन पथ पर बढ़ता है। इस प्रकार नाना प्रकार की गलतियों से बचकर निरन्तर साधना में अग्रसर होना मानव विकास है। गलतियों का अभिप्राय यह है कि यह सही मार्ग से जरा हट गये थे अब उस सही मार्ग का मर्म पहिचान कर पुनः शुद्ध मार्ग पर आ रहे हैं। जो गलती अनजाने में हो जाती है। उस पर आपका वश नहीं है, किन्तु जो आप जान बूझ कर करते है। उसके बारे में आप अवश्य दंडनीय है। उसके लिए आपको हृदय से पश्चाताप करना चाहिए। पश्चाताप ही इससे बचने का आध्यात्मिक उपाय हो सकता है। जब आप सच्चे मन से गलती न करने का संकल्प करते हैं तो मन की असंख्य शक्तियाँ आपके साथ रहती हैं। गलती से बचने का उपाय हमारे मन में ही है। मन जितना ही सतर्क रहेगा, उतना ही गलती करने की कम संभावना रहेगी।
स्मरण रखिए, एक गलती को सुधार कर आप किसी न किसी क्षेत्र में आगे बढ़ जाते हैं। प्रत्येक गलती अनुभव से जुड़ी हुई है। वह आपके अनुभव में नवीन और ठोस ज्ञान जोड़ती है। मनुष्य यदि प्रत्येक गलती से लाभ उठाने की मनोवृत्ति धारण करे, तो प्रचुर लाभ हो सकता है।