Magazine - Year 1955 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
आप भी डायरी लिखा कीजिए
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री प्रो. रामचरन ‘महेन्द्र’ एम. ए.)
दैनिक, साप्ताहिक या मासिक डायरी या दिन भर के कार्यों का लेखा जोखा लिखना महापुरुषों का एक महत्वपूर्ण कार्य रहा है। रात्रि में सोने से पूर्व वे प्रतिदिन दिन भर के कार्यों का ब्योरा, मन में आये हुए शुभ संकल्प, भविष्य के लिए मंगलकारी योजनाएँ अपनी डायरी में लिखा करते थे। अनेक डायरियाँ साहित्य के अंतर्गत स्थान पा चुकी हैं।
दिन में हम अनेक शुभ अशुभ कार्य करते हैं। जहाँ दूसरों की भलाई, परोपकार के कार्य करते हैं, वहाँ अनेक गलतियाँ, झूठ, कपट, मिथ्याचार, असत्य भाषण, क्रोध, काम इत्यादि दुष्ट मनोविकारों के वशीभूत होकर अपवित्र आचरण भी किया करते हैं। हमारे सद्गुण और दुर्गुण मन के विभिन्न कोनों में छिपे रहते हैं। मन के ये विचार बढ़ जाने से हमें भ्रष्ट करते हैं। तनिक सा प्रोत्साहन पाकर ये उभर उठते हैं। छिपकर विकसित होने की प्रतीक्षा किया करते हैं। यदि हम इनका दमन न करें, तो हमें सदा यह भय रहता है कि न मालूम कब किन परिस्थितियों में विकसित होकर हमें पतित कर देंगे। इन्हें बार बार मारने, चाबुक से पीटने, नियंत्रित करने और सत्पथ पर अग्रसर करने के हेतु डायरी अमूल्य साधन है। इसके द्वारा हमारे दुष्ट मनोविकारों का क्षय और सद्गुणों का विकास होता है। डायरी हमारे समय, विचारों, मानसिक संघर्ष, और कार्यों की आलोचना है, अच्छे बुरे का विवेचन है। बुरे पर पश्चाताप और अच्छे पर संतोष की अभिव्यंजना है।
हमारे मन में कौन सा विचार अच्छा या बुरा आया? क्यों आया? नहीं आना चाहिए था? आगे हम निश्चय बल से उसे न आने देंगे? आदि प्रश्नों का उत्तर हमें दैनिक डायरी में प्रतिदिन दर्ज करना पड़ता है। भविष्य की योजनाएँ लिखनी पड़ती हैं।
हम स्वयं अपने दोषों को परखने वाले, गलतियों पर अपने को ताड़ने वाले और सद्गुणों का विकास करने वाले होते हैं। हम दोषों को दूसरों से कहते हैं, अथवा लिखते हैं, तो हमें उनसे वचन की प्रवृत्ति दृढ़ होती है। हम अपनी लेखनी से उनसे बचने की प्रवृत्ति प्रकट करते हैं। दोषों से मुक्त होकर उच्चतर जीवन की अभिलाषा प्रकट करते हैं। गलतियों के लिए हार्दिक पश्चाताप करते हैं। स्वयं अपने आप ही अपने से सान्त्वना और मनः शान्ति प्राप्त करते हैं।
दैनिक डायरी लिखने से विचारों में स्पष्टता आती है। यदि सब दोषों की सूची हमारे सामने रहे, तो उन्हें दूर करने में मन लगा रहता है। कहते हैं बैंजामिन फ्रेंकलिन ने आत्मसुधार का यही साधन अपनाया था। प्रतिदिन वे जो कुछ उत्तम अथवा निकृष्ट कार्य करते थे, रात्रि में उसे अपनी डायरी में दर्ज करते थे। निकृष्ट कार्य पर विक्षोभ प्रकट करते थे और भविष्य में पुनरावृत्ति न करने का प्रतिज्ञा और दृढ़ संकल्प करते थे। वे अपने आलस्य प्रमोद, क्रोध, वासना आदि के लिए आत्मग्लानि प्रकट करते तथा आगे इन दुर्गुणों में न पड़ने का सद् संकल्प किया करते थे। सन्मार्ग का अवलम्बन तथा निकृष्ट से सम्बन्ध विच्छेद करते करते अन्ततः उन्होंने आत्मसुधार में अच्छी प्रगति की थी। वे अपने मन का अध्ययन और चंचलता दूर कर सके थे। अन्य पुरुषों ने भी डायरी लिखना सदा जारी रखा है। महात्मा गाँधी जी डायरी के सदा पक्षपाती रहे हैं। जेम्स ऐलन की डायरी आध्यात्म वृत्ति के जिज्ञासुओं के लिए खजाना है।
डायरी कैसे लिखें :—
एक साधारण सी डायरी खरीद लीजिए जिसमें प्रतिदिन के लिए एक पृष्ठ दिया हुआ हो। यदि काफी लम्बा न हो तो एक साधारण कापी से ही काम चलाया जा सकता है। इसमें प्रति रात्रि में अपने दिन भर के अच्छे बुरे कार्यों का सिंहावलोकन कीजिए। आपने जो अपशब्द कहे हों, या दूसरों से दुर्व्यवहार किया हो उसके प्रति दुख प्रकट कीजिए, सद्गुणों का प्रदर्शन किया हो तो, सेवा, दान, सहायता, या मधुर शब्द कहा हो तो उसे भी लिखिए और उसके प्रति अपना हार्दिक संतोष प्रकट कीजिये।
समय का ब्योरा दर्ज कीजिए। कितना समय सोने, नित्यकर्म, गपशप, आलस्य, व्यर्थ, बकवास, मनोरंजन आदि में व्यय किया है? दिन भर में भोजन के पश्चात कितनी देर विश्राम किया? कितने समय तक ठोस मन लगाकर कार्य किया, यह भी लिखिए। अपने आचार−व्यवहार की तीखी आलोचना कीजिए और गलतियों पर दुःख प्रकट कीजिए। कितनी बार झूठे बोले और उसके लिए आपने कैसी ली है। उपवास, मौन इत्यादि कितनी देर किया?
आध्यात्मिक उन्नति का ब्योरा भी दर्ज कीजिए। आप सांसारिकता से कितना छूट गये हैं? माया मोह ममता आपको दुनिया में कितना बाँधे हुए हैं? अपने इष्टदेव का ध्यान, भजन, पूजन, कीर्तन, सद्ग्रन्थावलोकन आप कितनी देर करते हैं? सत्संग कितनी देर करते हैं, स्वाध्याय कितना होता है? निष्काम सेवा में कितना समय देते हैं? गीता के कितने श्लोक पढ़ते तथा उन पर कैसा आचरण करते है? जब ध्यान हवन इत्यादि की ओर कैसी प्रगति है? भोग विलास में कितना संयम हो चुका है? आदि आदि प्रश्नों के विस्तृत उत्तर लिखा कीजिये।