Magazine - Year 1956 - Version 2
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Language: HINDI
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अमृत वचन (Kavita)
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श्रद्धया सत्य माप्यते।
—यजु
श्रद्धा से ही सत्य (ईश्वर) प्राप्त होता है।
उच्चा दिवि दक्षिणावन्तो अम्थु।
—ऋग्वेद
देने वाले की उन्नति होती है।
अकर्मा दस्युः।
—ऋग्वेद
जो मेहनत नहीं करता सो चोर है।
यज्ञों वै श्रेष्ठतमं कर्म।
—गोपथ 2।13
यज्ञ संसार का सर्वश्रेष्ठ कर्म है।
सर्वेषाँ वै एष भूतानाँ सर्वेषा देवानाँ आत्मा यद यज्ञः।
शतपथ 14।3।2।1
निश्चय ही यह यज्ञ सब प्राणियों और सब देवताओं का जीवन है।
येत्राऽवष्टाम्भा शरीरस्य आहारःस्व प्रोब्रह्मचर्यम्—चरक
शरीर के तीन आधार हैं।
1. आहार 2,विश्राम 3.ब्रह्मचर्य।
त्रियो धर्मस्कन्धाः यज्ञाध्ययन दानमिति।
—शतपथ
धर्म के तीन आधार है। 1. यज्ञ, 2. अध्ययन 3.दान।
ब्रह्मर्येचरण तपसा देवा मृत्युपुपाघ्रत।
—अथर्व 11।5।49
ब्रह्मचर्य और तप के द्वारा देवताओं ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की।
त्वं तप परित्तयाजयःस्वः।
—ऋग्वेद 18।16।7।1
तपस्वी तपोबल से स्वर्ग पाता है।
अमूल्ये स्वपनम्।
—यजु. 38।17
आलस्य दरिद्रता की जड़ है।