Magazine - Year 1956 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
बातें नहीं काम कीजिये
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री रामकृष्ण स्थापक, ‘राकेश’ लखनादौन)
अनेक व्यक्तियों के मस्तिष्क उत्तम 2 विचारों से परिपूर्ण है और उनकी प्राप्ति के लिए अनेक सुविधायें भी उन्हें उपलब्ध हैं। सफलता की अनेक युक्तियाँ भी उनके पास हैं। किंतु फिर भी क्या कारण हैं कि वे लोग आगे नहीं बढ़ पाते हैं?
इनके व्यक्ति त्व की त्रुटि यह है कि ये कागजी योजनायें तो यथेष्ट बनाते हैं, परन्तु स्वयं के विचारों को कार्यरूप में परिणत नहीं करते। विचार यदि निष्क्रिय हैं तो वे कल्पना के रंगीन महत्व के ही समान है, जिनमें न तो दृढ़ता ही है और न स्थायित्व। बात को सोचना एक चीज है, उसको कार्यरूप में परिणत करके स्वयं वैसा ही बन जाना दूसरी चीज है।
सफल व्यक्ति कार्य को क्रियात्मक रूप से कर देने में विश्वास करते थे। उनके आन्तरिक जीवन तथा बाह्य क्रियात्मक जीवन में पूर्ण साम्य था। कार्य संसार को संचालन करने वाली शक्ति है। जो कार्य को कर डालता है, उसके अंग, मस्तिष्क, स्मृति, अनुभव की वृद्धि होती है। जो केवल सोचता है, वह जहाँ का तहाँ रु का रहता है।
नेपोलियन पढ़ा लिखा नहीं था। अधिक सोचता नहीं था। वह कार्य करने का प्रेमी था। “मुझे बड़ी-बड़ी योजनाएं मत बताओ, जो मैं कर सकूँ, वही मुझे चाहिये।” यही उसका उद्देश्य था।
शिवाजी की शिक्षा कितनी थी? अकबर ने कौन सी डिग्री डिप्लोमा प्राप्त किये थे? महाराज रणजीत को एक नेत्र से कम दीखता था, पर अपनी अद्भुत कार्य करने की शक्ति द्वारा उन्होंने प्रसिद्धि प्राप्त की थी।
अँग्रेजी में एक कहावत है कि “नर्क की सड़क उत्तम योजनाओं से परिपूर्ण है।” अभिप्राय यह है कि जो गरजते हैं, सो बरसते नहीं। रावण के पास अमृत के घड़े रखे रहे किंतु उसको उन्हें पान करने का अवसर ही प्राप्त न हुआ। वह अपने बल में विश्वास रखे, निष्क्रिय जीवन व्यतीत करता रहा।
हैमलेट नामक राजकुमार की कठिनाई का हाल प्रत्येक व्यक्ति ने सुना है। “करूं या न करूं”? इसी दुविधा में वह सदैव फँसा रहा, एक पग भी आगे न बढ़ सका। उसका अधिक सोचना, योजनायें बनाना व्यर्थ रहा।
यही उसकी असफलता का कारण बना। जो हैमलेट की समस्या थी, वही आज के अनेक व्यक्तियों की है।
क्या लाभ है उस विचार से जिस पर काम न किया जाय? यह वैसा ही है, जैसा एक बीज, जो बञ्जर भूमि पर पड़ गया हो और अँकुरित न हो सका हो। यह वह पुण्य है, जो फड़कर फल का उत्पादन नहीं करता। व्यर्थ ही खिलकर अपनी पंखुरियाँ इधर-उधर छितरा देता है।
कार्य न करने वाला व्यक्ति एक प्रकार का शेखचिल्ली है। वह बड़ी योजनाएं बनाता है, बढ़-2 बातें करता है, शब्दों के माया जाल की उसके पास न्यूनता नहीं होती है। वह बात करने में आगे, पर काम में पीछे रहता है, कहेगा मन भर कार्य न करेगा, रत्ती भर। ऐसे व्यक्ति निष्क्रिय, बेकार, कोरे बातूनी जमा खर्च करने वाले होते हैं उनसे महान् कार्य की आशा नहीं की जा सकती है। आवश्यकता इस बात की है कि आप जो सोचे-विचारे या योजनाएं विनिर्मित करें, वे इस प्रकार की हो, जिन्हें कि आप कार्यरूप में परिणत कर सके। योजनाएं निर्माण करने के पूर्व सोचिये कि क्या आप उन्हें कर सकेंगे, क्या उनमें और आपकी शक्ति यों में अनुपात बराबर हैं, कहीं आप अपने सामर्थ्य से बाहर की बात तो नहीं सोच रहे हैं। जो योजना आपने बनाई हैं उसके लिये आपके पास क्या-2 साधन हैं। कितना धन है? कितने मित्र, बन्धु, बान्धव हैं। आर्थिक, शारीरिक, धार्मिक, सामाजिक स्थिति कैसी है। इन पर विचार करके ही किसी कार्य में हाथ डालें। कार्य की सफलता के लिये आपकी मानसिक, शारीरिक या क्रियात्मक शक्ति यों का एकीकरण आवश्यक है और इस एकीकरण को कार्य के उद्देश्य की ओर केन्द्रित करिये। मानसिक दृष्टि से सचेष्ट और जागृत रहिये। संकल्प शक्ति का विकास एवं संचालन जरूरी है। इन बातों पर भली भाँति विचार करने के पश्चात् कार्य करने से सफलता अवश्य मिलती है।