Magazine - Year 1959 - Version 2
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Language: HINDI
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दैवी सहायता प्राप्ति के स्पष्ट प्रमाण
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(श्री भगवान सहाय वशिष्ठ)
पिछले पचास-साठ वर्ष के भीतर थियोसोफिकल समाज के कुछ सदस्यों ने, जो अध्यात्म विद्या का अभ्यास करने वाले थे, प्रेत लोक की आत्माओं द्वारा दुःख और कष्ट में पड़े लोगों की सहायता का कार्य आरम्भ किया है। उनका कथन है कि जब हम सो जाते हैं तो हमारी आत्मा स्थूल देह को त्याग कर भुवर्लोक में विचरण करती रहती है। उस समय उस आत्मा में ऐसी शक्ति आ जाती है कि वह भुवर्लोक और भूलोक के निवासियों से संपर्क स्थापित कर सके और उनको कुछ सहायता पहुँचा सके। वे आत्मायें ऐसे अवसर पर जगते हुये मनुष्य के सामने तो प्रकट नहीं हो सकतीं, पर सोते व्यक्ति पर बड़ा हितकारी प्रभाव डाल सकते हैं जिससे उसके दुःख की निवृत्ति हो जाय और उसे शाँति प्राप्त हो सके। जिन लोगों ने विशेष साधन करके सिद्धि प्राप्त कर ली है, वे अपने वासनामय शरीर को स्थूल बना कर प्रकट होकर भी कार्य कर सकते हैं, पर ऐसी शक्ति व्यक्ति को शीघ्र नहीं मिल सकती। पर अप्रत्यक्ष रूप से तुम लोगों को बहुत सी हितकारी सूचनाएं दे सकते हो और उन्हें आने वाली आपत्तियों और संकटों से बचा सकते हो। ऐसी दैवी सहायक अनेक बार भुवर्लोक की आत्माओं से मित्रता करके उनके द्वारा ही इस प्रकार के कार्य करते हैं। यहाँ हम ऐसे दैवी सहायकों द्वारा किये गये कुछ कार्यों का विवरण थियोसॉफी विद्वानों की लिखी पुस्तकों के आधार पर देते हैं-
(1) प्रथम योरोपीय महायुद्ध में एक अंगरेज फौजी अफसर तोप का गोला फटने से मारा गया। उसकी कुछ सम्पत्ति लन्दन में किसी बैंक में जमा थी, उसे वह अपनी स्त्री के नाम लिख जाना चाहता था, जिसके साथ उसने फ्राँस में विवाह कर लिया था और जिसके एक बच्चा होने की भी संभावना थी। चूँकि वह विवाह उसने माता की इच्छा के विपरीत किया था, इस लिये वह चाहता था कि वह अपना वसीयतनामा लिख कर सीधे अपने वकील के पास भेज दे और उसके द्वारा वह सम्पत्ति उस स्त्री को मिल जाए। तोप के गोले से घायल होने पर भी उसमें इतनी शक्ति शेष रही कि उसने एक गर्त में पड़े-पड़े ही वसीयतनामा लिख दिया और पास ही पड़े हुये एक अन्य घायल सिपाही के गवाह के रूप में उस पर दस्तखत करा दिये। मरते-मरते उसने अपने मन में यही आशा की कि जो लोग शवों को गाड़ने आयेंगे वे इस पत्र को पाकर ठीक पते पर भिजवा देंगे। पर उसे यह भी शंका हो रही थी कि प्रथम तो इस दूर के स्थान पर कोई शवों को गाढ़ने वाला आयेगा भी या नहीं, और जो देर से आया भी तो शायद तब तक कहीं वर्षा होकर लिखा हुआ मिट न जावे। तीसरी शंका यह थी कि कहीं उसके सब सामान के साथ इस पत्र को भी माता के पास ही न भेज दिया जाए।
जब अदृश्य सहायकों ने उसकी ऐसी व्याकुलता को देखा तो वे कोई ऐसी तरकीब सोचने लगे जिससे यह पत्र शीघ्र ही ठिकाने पर पहुँचा दिया जाए। उन्होंने पता लगाया कि वहाँ से थोड़ी दूर पर ही उसका एक मित्र रहता है। उन्होंने उसे कई तरह से प्रेरणा दी कि वह उक्त अफसर के शव के पास जाकर वसीयतनामे को ले आवे। पर वह मित्र ऐसे कठोर स्वभाव का निकला कि उस पर किसी प्रेरणा का प्रभाव नहीं पड़ा। इस कारण एक तरुण सहायक को स्थूल रूप धारण कराके उसे सूचना दी गई और तब वह शव के पास जाकर मृत्यु-पत्र को लाया और तभी उसे लन्दन भेज दिया।
(2) फ्राँस के एक गाँव पर जर्मन सिपाहियों ने हमला किया और एक लड़के तथा एक लड़की को छोड़ कर शेष सब को मार दिया। वे दोनों बालक छिप जाने से बच गये। जब सिपाही गाँव को जला कर चले गये तो वे दोनों गाँव से बाहर निकले, पर मार्ग में फौजी सिपाहियों को देख कर फिर एक झाड़ी के भीतर जा छिपे। बड़ी देर तक गोले और गोलियाँ चलाते रहे, पर गड्ढे में रहने से उनकी जान बच गई। अन्त में जर्मन सिपाही वहाँ से हट गये, पर उन बालकों की खबर लेने वाला वहाँ कोई न था। जब “सिरिल” नाम का दैवी सहायक, जो स्वयं एक बालक की प्रेतात्मा था, उनके पास पहुँचा तो वे मरने के करीब थे। उनको दो दिन से भोजन नहीं मिला था और ठण्ड के मारे उनका शरीर अकड़ चला था।
सिरिल ने स्थूल रूप धारण करके बालकों को सान्त्वना देने का प्रयत्न किया, पर वे उसकी बात को न समझ सके। तब उसने अपने बड़े सहायक को बुलाया। उसने उनको फ्राँसीसी भाषा में ही समझाया कि तुम भय मत करो हम तुम्हारी रक्षा करेंगे। सिरिल ने पास ही पड़े एक मृत सिपाही के झोले से कुछ रोटी और चटनी ला दी। पर लड़के ने स्वयं भूखा होने पर भी पहले उसे अपनी छोटी बहिन को दिया। तब सिरिल उसके लिये और रोटी ले आया और उसे खा कर उन दोनों को कुछ चलने की शक्ति आई। तब सिरिल उनको अपने साथ किसी सुरक्षित स्थान को ले गया। पर उसे भी स्वयं मालूम नहीं था किस तरफ खतरा ज्यादा है और किस तरफ कम है। इसलिए सिरिल ने हवा में उठ कर उसका पता लगाया कि दुश्मन कहाँ है। इस प्रकार उनको हिम्मत तथा शक्ति देकर वह उनको युद्ध-क्षेत्र से कुछ दूर तक ले गया। वहाँ दोनों को एक अस्पताल में भरती करा दिया गया और उसके बाद उनको किसी सज्जन ने अपने घर में रख कर पालन-पोषण करने का भार ग्रहण कर लिया।
(3) तीसरी घटना “ईथन” नाम के छोटे बालक की है। उसका बाप जो उसे माता के मर जाने के बाद से बड़े प्रेम से पाल रहा था, लड़ाई में मारा गया। तब उसकी देख-भाल उसके चाचा करने लगे। उनका व्यवहार अच्छा था पर ईथन को पिता की याद नहीं भूलती थी और इससे वह दिन पर दिन दुःखी और बीमार सा होता जाता था। उसके पिता की मृतात्मा उसके चारों और मंडराती रहती थी और रात्री में वह उसे सान्त्वना देकर उत्तम स्वप्न दिखलाती थी जिससे लड़का आनंद में रहता पर जब सुबह होने पर उसकी नींद खुल जाती तो वह रात के स्वप्न की बात भूल जाता और दिन भर दुखी बना रहता।
जब पिता की सहायता करते हुये सिरिल ने “ईथन” की दयनीय दशा देखी तो वह उसकी सहायता को कटिबद्ध हो गया। इसके लिए इस बात की आवश्यकता थी कि “ईथन” को रात के स्वप्नों की याद रहे और वह उनकी सचाई को समझ कर पिता के वियोग के दुःख को भूल जाए। इसके लिये जो प्रयत्न किये गये वे इसलिये निष्फल रहे कि आठ वर्ष के “ईथन” को परलोक संबंधी ऐसे विषय का कोई ज्ञान न था। तब निद्रा के समय सिरिल ने उसकी आत्मा से मित्रता कर ली और जागने पर भी वह स्थूल रूप धारण करके उसके पास मौजूद रहा। तब उसके छोटे लड़के को स्वप्न की बात की याद दिलाई और कहा कि मैं तथा तुम्हारा पिता, यहाँ मौजूद हैं तुम व्यर्थ का दुःख मत किया करो। इस प्रत्यक्ष प्रमाण को देख कर लड़के का दुःख मिट गया और वह प्रसन्न तथा स्वस्थ रहने लगा।
इस प्रकार ये अदृश्य दैवी सहायक सैकड़ों हजारों दुःखी आत्माओं को सहायता पहुँचाते रहते हैं और साथ ही उनको मृत्यु के बाद के जीवन का भी प्रमाण दे देते हैं, जिससे आगे चलकर परलोक में उनको बहुत अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ती।